अग्निजा - 146 Praful Shah द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अग्निजा - 146

लेखक: प्रफुल शाह

प्रकरण-146

अगले दिन कीर्ति सर अपने केबिन में बैठ कर किसी से फोन पर बात कर रहे थे। तब प्रिंसिपल मैडम भी वहां आकर बैठ गयीं। उन्हें बुलाया गया था। चंदाराणा सर बोल रहे थे, ‘हां सर, केतकी हमारे स्कूल की शान है। मेरे इतने दिनों के अनुभव में मैंने उस जैसी तेजस्वी, निष्ठावान और प्रयोगधर्मी शिक्षिका नहीं देखी। ठीक है, यदि आप कह रहे हैं तो झूठी शिकायत भेजने वाले के विरुद्ध मैं पुलिस में कंप्लेंट डाल देता हूं और स्कूल की तरफ से एक पत्र आपको भेज देता हूं। ’

कीर्ति सर के फोन रखते रखते केतकी भी केबिन में आ गयी। वह परेशान थी। वह कीर्ति सर से नजरें नहीं मिला पा रही थी। कीर्ति सर ने कहा, ‘केतकी, बैठो।’

केतकी प्रिंसिपल के बाजू में बैठ गयी। कीर्ति सर ने तीखी नजरों से मेहता मैडम की ओर देखते हुए कहा, ‘इस नोटिस में कोई दम नहीं है। ऐसे गुमनाम पत्र से कुछ नहीं होन वालाष। कल आपके विरुद्ध भी ऐसी कोई गुमनाम शिकायत हो सकती है। आप शिक्षण अधिकारीको अपनी तरफ से एक पत्र भिजवाएं कि हमें हमारी स्कूल की शिक्षिका, केतकी जानी की योग्यता और उनकी कल्पनाशक्ति पर पूरा भरोसा है। उसके द्वारा आयोजित एक दिवसीय सौंदर्य प्रतियोगिता के शिविर में यदि आप अपना कोई निरीक्षक भेजें तो सच क्या है आपके सामने होगा। यदि आपके लिए निरीक्षक भेजना संभव नहीं होगा तो हम अपने पूरे कार्यक्रम की वीडियो शूटिंग आपके अवलोकन के लिए भेज देंगे। यह शिकायत निराधार, द्वेषपूर्ण और झूठी है।’

कीर्ति सर की बातें सुनकर केतकी की जान में जान आयी। कीर्ति सर आगे बोले, ‘एक काम करें मिसेज मेहता...आप स्वयं भी शिविर में उपस्थित रहें और उसकी रिपोर्ट मुझे दें..ठीक है?’ मेहता मैडम को मजबूरी में हामी भरनी ही पड़ी। फिर कीर्ति सर केतकी की तरफ देखते हुए बोले, ‘देखो, जो लोग आउट ऑफ द बॉक्स काम करने का विचार करते हैं और उसके अनुसार काम करने की कोशिश करते हैं, उनके कामों की चर्चा होती है, और आलोचना भी। उसके लिए परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। चलिए...फटाफट अपने काम से लग जाइए...और हां, किसी मदद की आवश्यकताहो तो प्रिंसिपल मैडम को बताइए...आखिर काम का श्रेय तो उनको और स्कूल को ही मिलना है न...ठीक है कि नहीं मेहता मैडम?’

‘हां...हां अवश्य सर...मैं चलूं अब?’

‘प्लीज...यू मे गो... और केतकी, अब जबकि यह प्रकरण इतना बढ़ गया है तो मुझे भी बताओ कि आखिर तुम इस  शिविर में क्या करने वाली हो?’ मेहता मैडम ने जाते-जाते मुंह बिचकाया। उन्हें समझ में आ गया कि तारिका के कहने पर वह जो नहीं करना था, वही कर बैठी हैं और कितने बड़े संकट से फंसते-फंसते बची हैं। पुलिस कंप्लेंट हो गयी होती तो? वह पत्र उन्होंने लिखा था और उस पर हस्ताक्षर तारिका ने किए थे। तभी सामने से तारिका आती हुई दिखी। उसके चेहरे पर जोश और आनंद था। ‘मुझे मेरे जासूस ने जानकारी दी है कि आपको और केतकी को ट्रस्टी सर के केबिन में बुलाया गया था? क्या हुआ? उस टकली का कोई फैसला हुआ?’

‘नहीं, तुम्हारा और मेरा फैसला होते-होते बचा। तुम फिलहाल तो मुझसे दूर ही रहो...’ इतना कह कर मेहता मैडम जल्दी से निकल गयीं। तारिका को कुछ समझ में नहीं आया। लेकिन वह डर गयी, इतनी कि उसके सामने से केतकी निकल गयी, लेकिन उसे मालूम भी नहीं पड़ा।

केतकी का सौंदर्य प्रतियोगिता प्रोजेक्ट बड़ा सफल रहा। उसमें व्यक्तित्व विकास, आंतरिक विकास और संस्कार वृद्धि पर जोर दिया गया था। कीर्ति सर के कहने पर चार-पांच अभिभावकों को भी इसमें आमंत्रित किया गया था। तीन दिनों के बाद उस प्रोजेक्ट की खबर समाचार पत्रों में भी प्रकाशित हुई। सभी जगह इस प्रोजेक्ट की तारीफ हुई। केतकी के सिर से मनों बोझ उतर गया। उस दिन शाम को घर पर आए प्रसन्न ने प्रस्ताव रखा...चलो सेलिब्रेट करें...केतकी ने कोई उत्साह नहीं दिखाया और भावना ने साफ मना कर दिया।‘मुझे ब्यूटी कॉन्टेस्ट की ग्रूमिंग की तैयारी करनी है। और फिर दुबई जाने के लिए खरीदारी भी करनी है।’ प्रसन्न तुरंत उठ खड़ा हुआ और झुक कर सलाम करते हुए बोला, ‘तो फिर इस नाचीज को रुखसत करें....’

‘नहीं, थोड़ी देर बैठें, प्लीज। मुझे आपसे कुछ बातें करनी हैं।’ प्रसन्न ने भावना की तरफ देखा। भावना हंसी, ‘अब बैठिए, आप दोनों बातें करिए, मैं कुछ खाने के लिए लेकर आती हूं बाहर से। लेकिन नाश्ता होने के बाद आपको तुरंत भागना होगा। ठीक है न?’

प्रसन्न हंसा, ‘हां, पक्का...चाहो तो वचन देता हूं...अपनी सबसे लाड़ली भावना की कसम खाकर.. ’

‘बाप रे...लगताहै मेरी वजह से बहुत परेशान हो रही है....मैं खाने के लिए अपनी पसंद का कुछ लेकर आ रही हूं। आप लोगों की कोई फरमाइश हो तो फोन करके बता दीजिएगा...आपके पास हैं सिर्फ बीस मिनट...’

दरवाजा बंद होने की आवाज सुनकर केतकी ने प्रसन्न का हाथ अपने हाथों में लेते हए कहा, ‘तुम्हारा धन्यवाद कहने के लिए मेरे पास शब्द नहीं है। उस दिन तुमने मुझे संभाल लिया। भावना को घर भेजा, कितनी ही देर तक मुझसे बातें करके मुझे उलझाये रखा ..मैं कितनी मूर्ख हूं... शिक्षा विभाग का कारण बताओ नोटिस देखकर मैं वास्तव में बहुत डर गयी थी।’

‘लेकिन अब सब कुछ ठीक हो गया न...’

‘लेकिन तुम्हें धन्यवाद नहीं दिया था। हमेशा ऐसे ही मेरे साथ रहोगे?’

‘हां, लेकिन एक शर्त है।’

‘मंजूर..सभी शर्तें मंजूर...’

‘अरे वाह, अपने इस प्रसन्न पर बड़ा भरोसा है?’

‘हां, खुद से भी ज्यादा...तुम मेरा कभी भी बुरा नहीं चाहोगे...शर्त तो बताओ...’

‘कभी भी एक पैग से ज्यादा वाइन नहीं पीनी है...केवल...’

‘केवल क्या?’

‘मैं साथ न रहूं तो...’

‘आप पीते हैं क्या?’

‘कभी कभार...लेकिन तुम्हारे संपर्क में आने के बाद से ये कभी-कभी हफ्ते में दो-चार बार होने लगा है।’ केतकी इस पर कुछ कहती उससे पहले ही दरवाजे पर घंटी बजी। भावना आ गयी होगी सोचकर प्रसन्न उठा। उसने कीहोल से देखा तो चौंक गया। बाहर जीतू खड़ा था। उसे देखकर प्रसन्न हड़बड़ा गया। उसने केतकी को बताया। वह शांति से दरवाजा खोलने के लिए उठी। दरवाजे पर जीतू को खड़ा पाकर उसने कहा, ‘आइए, भीतर आइए...’जीतू अंदर आया तो केतकी ने उसका परिचय प्रसन्न से करवाया, ‘ये प्रसन्न शर्मा हैं...हमारे स्कूल के संगीत शिक्षक। लेकिन उससे भी अधिक ये मेरे बहुत नजदीकी मित्र हैं। मुझे लगता है हम इस पर पहले भी बात कर चुके हैं। और ये जीतू। हमारी शादी तय हुई थी, लेकिन अब टूट गयी है। हम दोनों की नहीं जमी। ’ फिर जीतू की तरफ देखते हुए उसने पूछा, ‘कुछ काम था क्या मुझसे?’

‘म..मेरी इच्चा है कि यदि तुम राजी हो तो हम फिर से एकसाथ रह सकते हैं...मां की भी यही इच्छा है...पुराना सब कुछ भूल कर... ’

‘वह तो मैं कभी का भूल चुकी...मेरे पास समय ही कहां है पुरानी बातें याद रखने का। लेकिन जीतू, तुम्हारा स्वभाव एकदम अलग है, वह कभी नहीं बदलने वाला। मुझे फिर से उसी यातना के दौर में नहीं जाना है। थैंक्यू वेरी मच फॉर ऑफर।’ जीतू केतकी की तरफ देखता ही रह गया और फिर प्रसन्न की ओर देखते हुए बाहर निकल गया।

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार/ © प्रफुल शाह