लेखक: प्रफुल शाह
प्रकरण-91
प्रसन्न की कहानी सुन कर सब उसे देखते ही रह गये। उपाध्याय मैडम ने तो बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी रोकी। भावना ने मुंह पर हाथ रख। केतकी एकटक उसकी ओर देखती रही। अचानक वह उठ खड़ी हुई। “आपका मित्र आपसे अच्छा तैराक है इससे आपके अहम् को ठेस पहुंची। छोटे-छोटे बच्चे भी बड़ी ऊंचाई से छलांग लगा रहे थे, यह देख कर आपको अपने भीतर कमी महसूस हुई। दो लड़कों ने ताना मारा तो आप जोश में आकर सिकंदर की तरह छह फुट ऊंचे चढ़ गये? कमाल है। मिस्टर प्रसन्न शर्मा आप एक परिवक्व, विचारवान, होशियार इंसान हैं। आप ऐसे कैसे कर सकते हैं?” प्रसन्न ने कोई उत्तर नहीं दिया। जैसे-तैसे खड़ा हुआ और खिड़की के पास सबकी तरफ पीठ करके खड़ा हो कर बाहर देखने लगा। यह देख कर केतकी को और भी गुस्सा आया। “कहिए न प्रसन्न...आप धीरे-धीरे तैरना सीख सकते थे न? पूल कहीं भाग कर नहीं जा रहा था। सिंकदर ने भी एक दिन में दुनिया नहीं जीत ली थी..और हां...आपके संगीत में भी...वह क्या कहते हैं रियाज़...संगीत में भी रियाज़ की दरकार होती है, फिर आप तैराकी में बिना अभ्यास इतनी ऊंचाई से कैसे छलांग मार सकते थे? यह पागलपन आपको कैसे सूझा?”
प्रसन्न मुड़ कर देखे बिना ही बोला, “इस पागलपन की प्रेरणा आप ही हैं, मिस केतकी जानी...हां आप ही।”
केतकी समेत सभी हतप्रभ थीं। “मैं, और आपकी प्रेरणा? मैंने आपसे कब कहा कि तैरना सीखिए? और स्वीमिंग चैंपियन बनिए?”
प्रसन्न की हलचल एकदम बढ़ गयीं, वह हाथ चला-चला कर बोलने लगा, उसको दर्द भी हो रहा होगा, “नहीं, आपने सीधे-सीधे तो नहीं कहा कि स्वीमिंग चैंपियन बनिए लेकिन....आपका तरीका और उसमें से मिली सफलता देख कर मुझे लगा कि कोई भी काम असंभव नहीं है। और किसी भी काम को धीरे-धीरे करने की जगह एकदम छलांग मारी जाये। समय भी बरबाद नहीं होगा और सफलता भी मिल जाएगी। आपकी इस स्टाइल से मुझे प्रेरणा मिली। बहुत। भले ही कितनी परेशानी क्यों न हो, लेकिन मन में जो आये, वो कर ही डालो ये जो आपकी स्टाइल है-मुझे बहुत अच्छी लगी।” उपाध्याय मैडम और भावना उसी की तरफ एकटक देख रही हैं, यह देख कर केतकी और नाराज हो गयी। वह थोड़ा जोर से ही बोली, “मैंने...मैंने ऐसा कुछ कहां किया है?”
“अरे, भूल गयीं क्या? आपने एक ही झटके में सुबह की चाय और नाश्ता बंद कर दिया, दोपहर का खाना बंद कर दिया, चाहे कितना भी सिर दुखे, चाहे कितनी भी परेशानी हो...घर के लोगों के टोकने के बावजूद आप किसी की भी न सुन कर आगे बढ़ती रहीं अपने उद्देश्य की तरफ। ”
“अरे...लेकिन वो तो...”
“हां, आपको कोई बता थोड़े सकता है कि भले तुम नाश्ता मत करो, लेकिन एक चाय तो चालू रखो, इसके कारण तुम्हारे सिर में दर्द नहीं होगा। चाय भी धीरे-धीरे कर के कम कर सकती हो। इतने सालों की आदत को एक झटके में छोड़ोगी तो तकलीफ होगी? आपको अपनी और दूसरों की तकलीफों की चिंता कहां है? मुझे आपका यह एटीट्यूड पसंद अच्छा लगा इस लिए सोचा कि क्यों न ऐसा ही किया जाए। लेकिन बाद में लगा कि नहीं...नहीं... मुझे अपने शरीर को ही नहीं तो अपने प्रियजनों को भी तकलीफ देने का अधिकार नहीं है। मेरे घर वाले मुझसे प्रेम करते हैं और मैं उन्हें कष्ट दूं? आपका दुःख और परेशानी देख कर आपकी मां और भावना को क्या लगता होगा? आपको ईश्वरतुल्य मानने वाले विद्यार्थी क्या सोचते होंगे? लेकिन यह सब निर्रथक है। खुद को जो अच्छा लगे, वही करते रहना चाहिए। दूसरों की भावनाओं का विचार क्यों किया जाये? मैं आपका अनुकरण करने चला था...थोड़े में जान बची। लेकिन यदि कोई विद्यार्थी आपका अंधानुकरण करने चले तो?”
“बस...बहुत हुआ। प्लीज ये सब बंद करें। आपकी इस हालत के लिए मैं कारणीभूत बनी इसके लिए सॉरी। लेकिन मेरे कारण दूसरे हैं।” केतकी अपने दोनों हाथों से सिर पकड़ कर रोन लगी। “कारण अलग हैं...जरूरी भी हैं...इस लिए क्या सब कुछ एक झटके में ही छोड़ देंगी? कुछ दिन एक की जगह पौन कप चाय पीजिए, फिर आधा कीजिए, फिर पाव। चार-पांच दिनों में धीरे-धीरे छोड़ेंगी तो शायद तकलीफ भी नहीं होगी। मेरी तरह ही एकदम फिट और तंदरुस्त रह सकेंगी।”
प्रसन्न ने जब पीछे मुड़ कर देखा तो उसके माथे, गाल और हाथ-पैर के बैंडेज गायब थे। भावना खुशी से चिल्लाई, “आपको कुछ भी नहीं हुआ? तो वे बैंडेज किस बात के थे?”
भावना की आवाज सुन कर केतकी ने ऊपर देखा। प्रसन्न हंस रहा था। उपाध्याय मैडम बारी-बारी से केतकी और प्रसन्न की तरफ देख रही थीं। भावना ने एकदम केतकी के हाथ पकड़ लिया और बोली, “इनको कुछ नहीं हुआ है...प्रसन्न भाई को कुछ नहीं हुआ...”
प्रसन्न सामने आया, भावना ने उसे दोबारा पूछा, “बताइए न प्रसन्न भाई, क्या हुआ था?”
प्रसन्न हंसा, “प्लीज़ स्टॉप इट भावना। अब तुम ओवरएक्टिंग कर रही हो। तुम्हारा प्लान एवन था, पर अब मैं थक गया हूं।” उसने केतकी की तरफ देखा। “सभी लोगों को सीधे-सीधे सिखाया नहीं जा सकता। कभी-कभी टीचिंग पैटर्न बदलना भी पड़ता है।”
केतकी ने प्रसन्न की तरफ देखा। फिर भावना की तरफ। डांटने का नाटक करते हुए बोली, “तुम घर चलो..सीधा न किया तुमको तो...लेकिन एक बात याद रखना, कल से मैं चार दिनों तक पौन कप चाय पीने वाली हूं।”
“पर केतकी बहन, दोपहर का खाना?”
“एकदम चुप...दोनों में से किसी ने भी अब और कोई नाटक किया तो याद रखना। मेरा और उपाध्याय मैडम का भी विचार नहीं किया तुम लोगों ने कि प्रसन्न की ऐसी हालत देख कर हम दोनों के मन पर क्या बीतेगी?”
उपाध्याय मैडम एकदम भोली बन कर बोलीं, “मेरे मन पर तो कुछ नहीं बीती। जो मूर्खता करेगा, वह भुगतेगा भी। चार-पांच दिनों में ठीक हो जाएगा, और क्या?” यह सुन कर भावना को हंसी आ गई, और केतकी शरमा कर नीचे देखने लगी।
प्रसन्न ने अपना गला खखारते हुए कहा, “भावना, आगे चल कर चाय में से दूध भी कम करते जाना है। उस किताब में तो दूध से बनी सारी वस्तुएं बंद करने के लिए कहा गया है। आगे तुमको भी ब्लैक टी की आदत डालनी होगी। ठीक है न?”
भावना ने मुंह बिचकाया. “वो तो मुझे और मैडम को मालूम है, लेकिन मुझसे तो यह सब होगा नहीं। चाहें तो आप उसे कंपनी दे सकते हैं। मुझे तो खूब दूध वाली मलाई मार के चाय पसंद है।”
केतकी देखती ही रह गयी। इन तीनों ने ये किताब पढ़ ली? इतनी जल्दी, केवल मेरे लिए ही न...? मैं लकी हूं। सच में बहुत लकी हूं।
अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार
© प्रफुल शाह
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