अग्निजा - 90 Praful Shah द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अग्निजा - 90

लेखक: प्रफुल शाह

प्रकरण-90

रेस्टोरेंट से बाहर निकलने के बाद केतकी के चले जाने के बाद प्रसन्न ने तुरंत भावना को फोन लगाया। नयी आहार पद्धति की किताब के बारे में पूछ लिया। भावना ने कहा, “मैंने आधे से अधिक किताब पढ़ ली है, पर मुझे कुछ ज्यादा समझ में आया नहीं। और जो कुछ समझ में आया उसका पालन करना बहुत कठिन है।” प्रसन्न ने उससे कहा कि वह तुरंत यह किताब उसे लाकर दे। संभव हो तो कल ही। अगले दिन भोजन का समय गुजर जाने के बाद केतकी का सिर दुखने लगा। इसके कारण उसका चेहरा भी खिंच रहा था। यशोदा और भावना ने उसको खूब समझाया, लेकिन केतकी नहीं मानी। वह जैसे-जैसे शाला पहुंची। उस दिन प्रसन्न आधे दिन की छुट्टी लेकर चला गया था। क्योंकि भावना ने उसे रिसेस में वह किताब लाकर दी थी। जाते-जाते उसने रास्ते में ही दूध और ब्रेड खरीद लिया, ताकि फिर से खाना खाने के लिए उसे नीचे न उतरना पड़े और समय बरबाद न हो। घर जाकर फ्रेश होकर उसने तुरंत किताब पढ़ना शुरू कर दिया।

घर लौट कर केतकी ने चाय पी, डेढ़ कप। उससे उसे थोड़ा अच्छा लगा। इसके बाद डेढ़ खाखरा और चटनी खायी। नीरसता के कारण कहें या फिर कमजोरी के कारण, वह जरा लेट तो उसे नींद ही आ गयी। भावना बड़ी देर से उसके कमरे में आ कर उसकी तरफ देख रही थी। ‘केतकी बहन ने आज तक क्या कोई कम कष्ट झेले थे तो अब उसमें अब अपने आप को तकलीफ देने के लिए ये भी शामिल कर लिया?थोड़ी सी मोटी ही तो दिखेंगी, तो फर्का क्या पड़ता है?’ तभी केतकी के मोबाइल की घंटी बजी। कल्पना बहन मेहता का नाम सामने आया। केतकी को जगाया जाये या नहीं इस दुविधा में उसने घड़ी की ओर देखा तो नौ बज रहे थे। उठेगी तो, खाना खा लेंगे इस मकसद से उसने केतकी को जगाया। उसके हाथ में फोन रखा। केतकी ने आधी नींद में ही कहा, “हैलो, कल्पना बहन कैसी हैं? नहीं, नहीं तबीयत एकदम ठीक है...वाह...तो फिर मिलते हैं कल शाम को...पता मैसेज करती हूं...बाय।” फोन रख कर केतकी भावना की तरफ देखने लगी। “तुम कब से यहां पर बैठी हो?” “आधे-पौन घंटे से इस स्लीपिंग ब्यूटी को निहार रही हूं।”

“स्लीपिंग फैट ब्यूटी बोलो..” केतकी हंस कर बोली।

“वो सब छोड़ो। खाना खाने की इच्छा है न?”

“इच्छा? पेट चूहे दौड़ रहे हैं। चलो जल्दी खाना खाने।”

भरपेट खाना खा लेने के बाद केतकी को सूझा कि क्यों न चाय अभी ही पी ली जाए तो? संभव है कल सुबह सिर में दर्द न हो। और केतकी ने जीवन में पहली बार रात में ग्यारह बजे चाय पी। चाय पीने से मन तो तृप्त हो गया, लेकिन नींद उड़ गयी। रात को तीन भी बज गये लेकिन वह इस करवट से उस करवट होती रही। और सुबह आठ बजे से ही उसका सिर दुखने लगा, सो अलग। आज सुबह चाय नहीं मिली, और कल रात के जागरण की भी परेशानी, इस कारण सिर में बहुत तेज दर्द चालू हो गया था। एक मन हुआ कि आज शाला की छुट्टी कर दी जाए। बाद में विचार किया कि ऐसी छोटी-मोटी परेशानियों के सामने झुकना क्यों? नहीं, शाला तो जाना ही है। शाला में वह सिर दर्द के साथ ही पढ़ाती रही। रिसेस में पानी पीकर अंगूर खाने के बाद उसे अच्छा लगा। पेट शांत हुआ। उस दिन प्रसन्न शाला में दिखाई ही नहीं दिया। व्यस्त होगा किसी काम में। शाम को छह बजे भावना शाला में आई और दोनों बहनें उपाध्याय मैडम के घर पहुंची। दरवाजे पर दस्तक हुई इसलिए मैडम ने अपने हाथ की किताब आलमारी में रख दी और दरवाजा खोलने के लिए उठीं। दोनों बैठीं, पानी पी ही रही थीं कि कल्पना बहन का फोन आया, “सॉरी केतकी, अर्जेंट काम के कारण मुझे तुरंत मुंबई निकलना होगा। सबको मेरा नमस्ते कहना। अपना ख्याल रखना। मुंबई पहुंचने के बाद आराम से तुमसे बात करूंगी। ओके, बाय।”

केतकी दोनों की तरफ देखते हुए बोली, “जिनके लिए ये मीटिंग रखी थी, वे ही नहीं आ रही हैं।”तभी फिर से दरवाजे पर दस्तक हुई। भावना ने दरवाजा खोला तो प्रसन्न खड़ा था। उसके हाथ-पैर, माथे और गालों पर पट्टियां बंधी हुई थीं। भावना चिल्लाई, “ओ माई गॉड। क्या हुआ?” बिना कुछ कहे ही प्रसन्न लंगड़ाते हुए भीतर आया। जैसे-तैसे कुर्सी पर बैठा। बैठते समय उसे बहुत परेशानी हो रही थी, ये किसी से छिपा नहीं। उपाध्याय मैडम ने तुरंत उसके हाथ में पानी का गिलास दिया। प्रसन्न ने जैसे-तैसे पानी पिया। केतकी चुप रह कर प्रसन्न की तरफ बहुत देर से देख रही थी। भावना बाजू वाली कुर्सी में जाकर बैठ गयी। “अब कल्पना बहन ही नहीं आ रहीं हैं। कोई जरूरी काम आ गया इस लिए उनको मुंबई जाना पड़ा। लेकिन आप ऐसी हालत में यहां तक क्यों आए?” प्रसन्न कुछ भी नहीं बोला, बस धीरे से मुस्कुरा दिया।

उपाध्याय मैडम ने उठ कर केटली में रखी हुई चाय कप में डाली, “प्रसन्न पहले चाय पीजिए...जो कुछ हुआ बाद में आराम से बताइए।”

प्रसन्न ने चाय का कप हाथ में लिया, एक गरम घूंट लिया। “कल मेरा दोस्त प्रकाश मेरे घर आया था। हम स्कूल से एक साथ बड़े हुए हैं। परीक्षा में उसे मुझसे ले देकर आधे नंबर मिलते थे। लेकिन हमारी दोस्ती पक्की थी।”

भावना से रहा नहीं गया, “लेकिन उससे इस चोट का क्या लेना देना?”

“अरे, बातचीत करते समय उसने कहा कि वह अपने क्लब का सबसे अच्छा तैराक है। निपुण तैराक। और मुझे तैरना नहीं आता इस लिए वह मेरी हंसी उड़ाने लगा। मुझे गुस्सा आ गया। मैंने उससे कहा, क्या तुम मेरी तरह गाना गा सकते हो? तो उसने तुरंत एक गाना सुना दिया,एकदम बेसुरा। मैंने भी उसकी हंसी उड़ा दी, कि इसको गाना कहते हैं क्या? तो उसने कहा मैंने जैसा भी हो गाना सुनाया न, तुम तैर कर दिखा सकते है ? इसके बाद हमारे बीच बहुत तू-तू मैं-मैं हुई।”

भावना को आश्चर्य हुआ, “और आप लोग हाथापाई तक पहुंच गए?”

“नहीं, स्वीमिंग पूल तक।”

“यानी?”

“मैं उसी शाम को स्वीमिंग पूल पर गया। अंदर जा कर देखा तो छोटे-छोटे बच्चे भी बहुत अच्छे से तैर रहे थे। पानी में ऊंची-ऊंची छलांगे मार रहे थे। नये-नये तरीके से तैर रहे थे। मुझे वहां के इंस्ट्रक्टर ने सुझाया कि आप दो फुट की ऊंचाई से शुरुआत करें। इसके अलावा उन्होंने तैराकी के कुछ सबक भी सिखाये। मुझे सब कुछ आसान सा लगा। तभी उसका मोबाइल बजा और वह बात करने के लिए थोड़ी दूर निकल गया। मैंने देखा कि छोटे-छोटे बच्चे भी पांच-छह फुट से छलांग लगा रहे थे। उनके सामने मुझे दो फुट से छलांग लगाने में कमी महसूस हो रही थी। दो बच्चे आपस में फुसफसाते हुए सुना कि इन अंकल को तैरना नहीं आता शायद। फिर उन सब लोगों के दिखाने के लिए मैं छह फुट की ऊंचाई पर चढ़ गया। विश्वविजेता स्टाइल में वहां से चारों दिशाओं को देखा। विजयी मुस्कान फेंकते हुए वहां से कूद पड़ा। लेकिन बैलेंस संभाल नहीं पाया और स्वीमिंग पुल के किनारे पर जा कर गिरा और मुझे पूरे शरीर पर ये सब सफेद मैडल्स मिल गये।”

 

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह

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