प्रकरण-76
तरह-तरह मलहम, दवाइयां, मेडिकेटेड शैंपू और धूप में बैठने जैसे प्रयोग करने के बाद भी बीमारी पर कोई असर नहीं हो रहा था। उल्टा, बढ़ती ही जा रही थी। दो की जगह तीसरी जगह पर भी चट्टा दिखाई देने लगा था। कुछ दिन बाद चौथा भी...केतकी को सिर्फ डॉक्टर का ही सहारा था। वह उसे ठीक हो जाने का आश्वासन दे रहे थे। इस बार उन्होंने एक नया इलाज बताया। “स्टेरॉइड के इंजेक्शन लेने से कुछ फायदा होगा।” लेकिन स्टेरॉइड के दुष्परिणामों के बारे में केतकी को थोड़ी-बहुत जानकारी होने के कारण वह उसके लिए राजी नहीं हुई। केतकी ने अभी तक अपने घर में किसी को बताया नहीं था, लेकिन अपने बालों को लेकर उसे बेचैनी बहुत थी। इसका असर उसके व्यक्तित्व पर भी पड़ने लगा था। उसका उत्साह, जोश, खुशी और मुस्कान उसके बालों के साथ-साथ कम होती जा रही थी। घर और शाला में वह जितना जरूरी हो, उतना ही बोलती थी। उसका मन कहीं भी नहीं लग रहा था। चिंता के कारण नींद उड़ गयी थी। मेरे व्यक्तित्व का सबसे सुंदर हिस्सा थे मेरे बाल। कितनी तेजी से बढ़ते थे। हवा के साथ रेशम की तरह लहराते थे। मेरे गर्व का कारण थे मेरे बाल। मेरी पहचान..मेरा स्त्रीत्व थे..वे बाल भी अब मेरा साथ छोड़कर जा रहे हैं। नहीं, नहीं...मैं ऐसा नहीं होने दूंगी। मैंने कभी भी धन-दौलत की मांग कब की थी? बाल मेरे थे, तो उन्हें मेरे पास रहना चाहिए, इतना ही तो मांग रही हूं न मैं?
केतकी अब आयुर्वेद और होम्योपैथी की ओर मुड़ी। दोनों साथ-साथ। घर में किसी को बताया नहीं था इस लिए उसे दवा सबसे नजरें चुराकर लेनी पड़ती थी। सिर का गंजापन या फिर पतले होते जा रहे बाल किसी को दिखाई न पड़े इसके लिए अब वह स्कार्फ बांधने लगी। घर में बताया कि सिर दुखता है, शाला में बताया कि ठंड लगती है, हवा लगती है इस लिए। केतकी किसी न किसी चिंता से ग्रस्त है, यह बात भावना की समझ में आने लगी थी। काम या फिर जीतू का टेंशन होगा क्या? तारिका ने बहुत कुछ पूछा नहीं। प्रसन्ना शर्मा ने एक बी बार चिंता जताते हुए पूछा था “सबकुछ ठीकठाक है न”? केतकी ने हंस कर अपना सिर हिला दिया। लेकिन उसकी हंसी देख कर ही प्रसन्न शर्मा को लगा कि कुछ न कुछ तो गड़ब़ड़ है। क्योंकि उसकी वह मुस्कान जबर्दस्ती और झूठी थी।
एक दिन भावना बड़े उत्साह के सात केतकी के पास आई। उसके सामने अपनी बंद मुट्ठी रख दी, “इसमें तुम्हारे लिए एक सरप्राइज है।” जरा भी उत्साह या उत्सुकता न दिखाते हुए केतकी ने पूछा, “क्या है?”
“एक संकेत देती हूं। दुनिया भर के लोगों से बात कर सकोगी। दोस्ती कर सकोगी। लड़ाई भी कर सकोगी। अब बताओ क्या है?”
“भावना, पहेलियां बुझाते मत बैठो। मेरा सिर दुख रहा है। बताना है तो बताओ, नहीं तो जाओ यहां से..”
भावना को इस बात पर गुस्सा नहीं आया, लेकिन उसको अब इस बात का पूरा यकीन हो गया कि कुछ न कुछ तो गड़बड़ अवश्य है। आगे कुछ न बोलते हुए उसने केतकी के हाथ में एक कागज थमाते हुए कहा, “मैंने फेसबुक पर तुम्हारा अकाउंट खोला है। तुमको पसंद आएगा। इस कागज पर लॉग इन आईडी और पासवर्ड लिख दिया है। समय मिलेगा तो देख लेना। तुमको अच्छा लगेगा..एक अलग ही दुनिया है वहां...”
केतकी ने बिना कोई प्रतिक्रिया के उस कागज को एक किनारे रख दिया। भावना सोच में पड़ गयी। फिर अचानक कुछ याद आया हो, इस तरह से उठ कर खड़ी हो गई। केतकी स्कार्फ बांध कर शाला की ओर निकलने को थी, तब भावना ने उससे कहा, “केतकी बहन, आज शाम को बाहर जाएंगे। बहुत दिन हो गए, हम लोग दक्खन सेंटर नहीं गए।”
“मैं नहीं जा पाऊंगी,,,तुम अपनी सहेलियों के साथ हो आओ...पैसे दूं क्या..?”
“नो थैंक्स।” भावना गुस्से में वहां से निकल गई। “पहले दीदी कैसे खुश होकर पूछती थी, कहां जाना है...? क्या करना है? आज केवल पैसे की बात पूछी। निश्चित ही उसे कोई बड़ी चिंता खाये जा रही है। वरना मुझसे बातें करने समय वह कितनी प्रसन्न रहती थी। ”
शाम को केतकी घर लौटी और यशोदा से बोली, “मैंने बाहर बहुत खा लिया है। रात को खाना खाने की इच्छा नहीं है। बहुत थक गई हूं, इस लिए मैं रात में जल्दी सोने वाली हूं।” यशोदा केतकी तरफ देखती रही। उसे भी पिछले कुछ दिनों से केतकी का व्यवहार समझ में नहीं आ रहा था। “क्या हुआ होगा? जो होगा, ठीक हो जाएगा..वह हंसते हुए ससुराल चली जाए तो सबसे मुक्ति मिलेगी।”
कुछ ही देर में भावना हाथ में थैली लेकर आई। केतकी के बारे में यशोदा से पूछा तो उसने बताया वह अपने कमरे में है और बिना खाना खाए ही जल्दी सोने वाली है, ऐसा कह कर गयी है। “इतनी जल्दी सोएगी? तबीयत तो ठीक है न उसकी?”
“वैसा कुछ लगा तो नहीं, और होता तो वह कहती। लेकिन इन दिनों वह कुछ कटी-कटी सी रहने लगी है, तुमको ऐसा नहीं लगता?”
“तुम चिंता मत करो, उसका उपाय है मेरे पास। तुम कुछ मत कहो, बस मेरा जादू देखती रहो। ”
केतकी के कमरे के सामने, थोड़ी दूर खड़ी होकर भावना जोर-जोर से चिल्लाने लगी, “ओ मां...मेरा पैर...मर गई...उस स्कूटर वाले को फटकारना पड़ेगा...मूर्ख कहीं का..गलत यू-टरन् ले लिया और मुझे ठोक दिया...मां, डॉक्टर को बुलाओ...जल्दी...ओ मां...बाप रे...ये मेरा पैर तो देखो...और ये उंगली...”
धड़ाक से दरवाजा खोलकर केतकी बाहर निकली। सामने भावना को ठीकठाक खड़ा देखकर उसे जो समझना था, उसने समझ लिया। “बंद करो तुम्हारा ये नाटक। मुझे अकेले रहने दो प्लीज।”
भावना उसके पास दौड़ गई। “अकेले रहने दूं...तुमको? तुम मेरे लिए क्या हो,ये तुम नहीं जानती क्या? तुम्हारे बिना मेरी क्या हालत होगी इसका कभी विचार किया है क्या? तुम यदि चिंता में होगी, दुःखी होगी, तो मैं कैसे खुश रह सकती हूं भला? चलो, आज ढेर सारी शिकायतें करनी हैं मुझे तुमसे..झगड़ा करना है तुमसे।” भावना केतकी के कमरे में जाना चाहती थी, लेकिन केतकी दरवाजा अड़ा कर खड़ी थी। भावना उसके हाथ के नीचे से अंदर चली गई। केतकी का हाथ खींच कर उसे भी अंदर ले लिया और दरवाजा बंद कर लिया। दूर से यह सब देख रही यशोदा ने दोनों हाथ जोड़कर ऊपर देखा। और मानो भगवान से बातें कर रही हो, इस तरह कहा, “केतकी और मैंने पिछले जन्म में कोई पुण्य किया होगा इस लिए मुझे तुमने भावना दी है। और इसी लिए वह अपने पिता पर नहीं गई और केतकी को सगी बहन से भी ज्यादा प्रेम करती है।”
अंदर जाने के बाद केतकी कुर्सी पर बैठ गयी, लेकिन उसके चेहरे पर गुस्सा और नाराजगी थी। लेकिन उसकी परवाह न करते हुए भावना ने अपने हाथों की थैली टेबल पर उलटाई। “मैं तुरंत आती हूं, लेकिन अब यदि दरवाजा बंद किया तो तुम्हें मेरी कसम।” इतना कहकर वह भागते हुए बाहर गई और थोड़ी ही देर में प्लेट, कटोरी और चम्मच लेकर आ गई। सभी पैकेट खोल कर उसमें से दोसे, इडली, चटनी और सांबर बाहर निकाला। और फिर अपने चेहरे पर दयनीयता का भाव लाते हुए बोली, “तुमसे बहुत झगड़ा करना है। लेकिन ये सब देखकर तुम्हारे मुंह में पानी आ गया। चलो फटाफट खा लेते हैं तो झगड़ा करने के लिए ताकत मिलेगी।” इडली का एक टुकड़ा चटनी में डुबोकर उसने केतकी के मुंह के पास रखा। मुंह खोले बिना ही केतकी उसकी तरफ एकटक देखती रही। उसका गला भर आया और वह केतकी के गले लगकर रोने लगी। कितनी ही देर, हिचकियां ले लेकर। भावना कुछ बोली नहीं, बस उसकी पीठ पर हाथ फेरती रही।
अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार
© प्रफुल शाह
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