अग्निजा - 75 Praful Shah द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अग्निजा - 75

प्रकरण-75

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केतकी अपना सिर को खुजला रही थी, तभी वहां सारिका आकर खड़ी हो गई। केतकी ने उसे अपना सिर देखने के लिए कहा। “नहीं, बाल तो साफ दिखाई दे रहे हैं तुम्हारे...रूसी भी नहीं दिखती...जुएं और लीख की तो क्या बिसात की वे इस वाइस प्रिंसिपल की तरफ बुरी नजर डालें, लेकिन...एक मिनट...जरा ... ” उसने अपने दोनों हाथों से बालों को थोड़ा किनारे किया और देखा, “ यहां चमड़ी दिखाई पड़ रही है। एक गोल चट्टा दिख रहा है छोटा सा। उसी से खुजली हो रही होगी मैडम...और कुछ नहीं है। ”

केतकी को अपने लंबे, घने, रेशमी चमकदार बालों से खूब प्रेम था और उन पर घमंड भी था। ऐसे सुंदर बाल तो किसी भी स्त्री का गहना ही होते हैं। वह जब बहुत उदास और दुःखी होती तो आईने के सामने खड़े होकर अपने बालों को देखने पर उसे खुशी होती थी, कि प्रकृति ने उसे कितना सुंदर उपहार दिया है। पूरी तरह से अन्याय नहीं किया है। इसी लिए उसे अपने बालों को खुला रखना अच्छा लगता था। और ये खुले बाल जब हवा में उड़ने लगते तो उसे आजादी का अनुभव होता था। उसे यह बात मालूम थी कि यह उसकी आजादी नहीं, केवल भ्रम है, लेकिन यह भ्रम भी से अच्छा लगता था। इसी कारण वह अपने सुंदर बालों की देखभाल में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ती थी। शाला से छूटते ही केतकी सीधे डॉक्टर के पास गई। डॉक्टर ने उसके सिर को देखते साथ ही बता दिया, “ये तो एलोपेशिया है।”

केतकी ने तो यह शब्द ही पहली बार सुना था. “एलोपेशिया यानी क्या?”

“यह बीमारी नहीं है। ऑटो इम्यून डिसऑर्डर है।”

“इसमें परेशानी क्या होती है?”

“इसमें बाल अपने आप निकलने लगते हैं।”

केतकी को झटका लगा।

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‘यात काय त्रास होतो?’ वह कुर्सी से उठ खड़ी हुई। कुछ देर तो कुछ बोलने की स्थिति में ही नहीं थी। फिर जैसे-तैसे बोली, “इस पर कोई दवा तो होगी?”

“दवा है, और यह ठीक भी हो जाएगा। अभी तो शुरुआत ही है।”

केतकी को राहत मिली। उसने सवाल किया, “लेकिन ये किस कारण होता है?”

“इसका कोई खास कारण तो नहीं, लेकिन कहा जाता है कि बहुत अधिक तनाव के कारण हो सकता है।”

“एलोपेशिया...मैंने तो कभी इसका नाम भी नहीं सुना था...नया रोग है क्या?”

“नहीं...सैकड़ों साल पुराना है। लेकिन आप चिंता न करें। मैं आपको क्रीम देता हूं, उसे लगाइए, ठीक हो जाएगा। ”

डॉक्टर ने उस गंजेपन पर लगाने के लिए क्रीम दी। केतकी ने घर में किसी को भी इसके बारे में कुछ नहीं बताया। बेकार ही सब लोग चिंता करने लगते। पहले ही घर में कम तनाव हैं क्या? लेकिन वह नियमित रूप से क्रीम लगाने लगी। उसे विश्वास था कि उस छोटे से गंजे भाग में बाल जरूर उगेंगे। और बालों की आड़ में वह गंजापन किसी को दिखाई भी नहीं देता था।

अगले दिन तारिका ने बहुत जिद की तो केतकी सिनेमा देखने के लिए गयी। तारिका का मित्र परिवार खूब मस्तीखोर था। उनमें से कई को केतकी पहचानती थी। पहले मिल चुकी थी। सभी सहेलियां खूब उत्साही और चुलबुली थीं। इन सहेलियों में जो कोई शामिल हो जाए, उसे भी मस्ती का रोग लग ही जाता था। सभी सहेलियां राजेश खन्ना-मुमताज की फिल्म ‘दो रास्ते’ देखने के लिए आई थीं। केतकी को सिनेमा देखने का शौक नहीं था, लेकिन तारिका की जिद के कारण और कुछ वक्त अच्छे से बिताने के हिसाब से वह आई थी। घर लौटते समय सभी लड़कियां एक ही गाना गुनगुना रही थीं, “ये रेशमी जुल्फें...ये शरबती आंखें...इन्हें देखकर जी रहे हैं सभी...” अचानक ही केतकी का हाथ अपने सिर के गंजेपन पर गया। दवाई का असर हो रहा है या नहीं, उसे समझ में नहीं आ रहा था। सभी को गाना गुनगुनाते देखकर तारिका ने कहा, “चलो सब मिलकर पिकनिक पर जाएंगे। जगह आसपास ही है, वहां पर खेलने के लिए एक नया खेल है मेरे पास। बड़ा मजा आएगा। सभी को एक गाना गाना होगा। कोई भी गाने को रिपीट न करे। ओके? ” सभी ने हंसते हुए उसके प्रस्ताव को मान लिया, लेकिन केतकी की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई।

अब जीतू मिलने के लिए कम ही आता था, इस लिए केतकी निश्चिंत थी। रणछोड़ दास के न होने के कारण घर में भी शांति ही थी। केतकी को अपने बालों पर बार-बार हाथ फेरते देख कर भावना ने पूछ ही लिया, “जुएं तो नहीं पड़ गई बालों में? देखूं क्या?” केतकी ने मना किया और वहां से निकल गई। अपने कमरे में जाकर उसने गंजे स्थान पर हाथ लगाकर देखा, लेकिन उसे समझ में नहीं आया कि दवा ने कितना काम किया है। आईने में उसे अपने सिर का पिछला भाग दिखाई नहीं दे रहा था। दूसरे दिन शाला में जाने से पहले केतकी डॉक्टर के पास भागी। डॉक्टर ने देखा। केतकी ने प्रश्नवाचक नजरों से डॉक्टर की तरफ देखा। “ऐसा लगता है दवा ठीक से लगाई नहीं है, गंजापन बढ़ गया है, इसके अलावा एक और जगह पर गंजापन दिखाई देने लगा है। ”

केतकी घबरा गई। डॉक्टर ने उसे धीरज बंधाते हुए कहा कि डरने की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने एक ट्यूब और एक मेडिकेटेड शैंपू लिखकर दिया। उसको किस तरह से लगाया जाए यह समझायाऔर यह विश्वास भी दिलाया कि उसकी बीमारी निश्चित रूप से ठीक होना चाहिए। केतकी उसी शैंपू से अपने बाल धोने लगी। तरह-तरह की ट्यूब लगाने लगी। एक मलहम लगाकर धूप में बैठना पड़ता था। वह अपने घर की छत पर जाकर बैठने लगी। शाला में रीसेस में कुछ खाने-पीने में समय बिताने की जगह छत में चक्कर लगाने लगी। घर में भावना और शाला में तारिका यह सब देख रही थीं, लेकिन उन्हें केतकी का इस तरह का व्यवहार कुछ समझ में नहीं आ रहा था।

 

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह

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