प्रकरण-74
“मुझे नहीं लगता कि यह लड़की तुम्हारे काबू में रहेगी। कितने दिन राह देखोगे?” भिखाभा ने थोड़ा नाराज होते हुए रणछोड़ से पूछा, “देखो, पुणे के पास एक बड़ी जमीन की खरीद करना है। तुम जाकर देख आओ। उस इलाके का भाव क्या है, पता लगाकर आओ। वकील से सारे कागजात बनवा लिये हैं, आते समय वो ले आऩा। अपनी जमीन के चारों ओर बाड़ लगानी है। उसकी व्यवस्था कर आओ। दो चौकीदार भी ऱखवा दो। वहां जाने के बाद मुझसे रोज फोन पर संपर्क में रहना।”
“ठीक है साहेब, चिंता न करें, मैं सब काम ठीक से निपटा कर आऊंगा। ”
“वैसा ही करना है...घर में भी बता दो कि लौटने में समय लगेगा। कुछ दिन वहां पर रहना पड़ेगा। ”
घर लौट कर रणछोड़ ने यशोदा को दम दिया, “देखो, मैं पुणे जा रहा हूं। वहां बहुत दिनों तक रहना पड़ सकता है। तुम यहां सबकी देखभाल करना और खासकर उस अभागिन को समझाना...फिर से कोई गड़बड़ न कर दे। मैं वापस आने के बाद जल्द से जल्द उसको इस घर से बाहर निकालने का प्रबंध करूंगा, ये तो तय है।”
रणछोड़ के पुणे चले जाने से यशोदा,केतकी और भावना ने छुटकारे की सांस ली। बड़े दिनों बाद उन्हें उससे मुक्ति मिली थी।
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केतकी पूरे परिवार के साथ भीमाशंकर के जंगल में भगवान शंकर के मंदिर के दर्शन के लिए निकली थी। जंगल में बहुत अंदर जाने के बाद लोगों की बड़ी भीड़ दिखाई दी। मानो कोई मेला लगा हो। सभी गाड़ी से उतरे और मंदिर दर्शन की कतार में खड़े हो गए। भावना, शांति बहन और रणछोड़ को लगा कि पहले खाना खा लिया जाए। लेकिन केतकी ने भोलेशंकर के दर्शन के बाद ही कुछ खाने-पीने का निश्चय किया था। सभी लोग खाना खाने चले गए, वह अकेली कतार में खड़ी रही। ये कतार किसी सर्प की भांति आगे सरक रही थी। अचानक केतकी के ध्यान में आया कि कतार में आगे-पीछे कोई नहीं है। सभी लोग गायब हो चुके हैं। वहां केतकी अकेली रह गई थी। लेकिन केतकी उसी रास्ते पर आगे बढ़ती रही। उसके मन में एक ही विचार था कि अब तो दर्शन लेकर ही वापस लौटना है। इस तरह बहुत दूर चलने के बाद उसे दूर एक छोटा सा मंदिर दिखाई दिया। लेकिन वहां तक पहुंचने के लिए एक छोटी सी सुरंग से होकर गुजरना था। पहले तो केतकी घबराई लेकिन फिर भोलेनाथ का नाम स्मरण करते हुए आगे बढ़ती रही। और फिर वह मंदिर के एकदम पास पहुंच गई। एक हाथ मंदिर की दीवार पर ऱख कर उसने अंदर झुक कर देखा, तो स्तब्ध रह गई। भीतर शिवलिंग की जगह कुछ छोटा सा तेजपुंज चमक रहा था। शिवविंग के चारों ओर एक बड़ा नाग और गर्भगृह में अनेक छोटे-बड़े नाग विचर रहे थे। केतकी आंखें फाड़ कर भीतर देखती रही। एक क्षण के लिए उसने दीवार पर रखा हुआ अपना हाथ एक झटके से उठा लिया, तभी भीतर शिवलिंग सहित बड़ा नाग और बाकी छोटे बड़े सभी नाग डोलने लगे। पूरा मंदिर डोलने लगा। केतकी ने अब दोनों हाथ अपने मस्तक के पास जोड़ कर भगवान को प्रणाम किया। एकदम तल्लीन होकर बड़ी देर तक नतमस्तक खड़ी रही। संपूर्ण आत्मसमर्पण के साथ। बड़ी देर तक भक्ति में तल्लीन रही।
जब आंखें खोली तो सबकुछ पूर्ववत था। मानो कुछ हुआ ही न हो। वही मंदिर, वही शिवलिंग, पत्थर का नाग, मंदिर के अंदर-बाहर आते जाते लोग, वही भीड़, वही कतार। उसने दूर देखा तो भावना खड़ी नजर आई। केतकी दौड़ती हुई उसके पास गई। उसने सबको बताया कि उसे बहुत अच्छे तरीके से दर्शन हो गए हैं, आप सब लोग भी हो आइए।
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अगले दिन केतकी ने भोलेनाथ मंदिर के इस विचित्र सपने की बात रीसेस में तारिका से कही। दोनों ने उस पर बड़ी चर्चा की। लेकिन उस सपने का अर्थ नहीं निकाल पाईँ। शाम को तारिका बड़े आग्रह के साथ केतकी को एक ज्योतिषी के पास ले गई। ज्योतिषी तारिका के दूर के रिश्तेदार थे। वह सपनों का अर्थ बताने में विशेषज्ञ थे। उन्होंने केतकी के सपने को पूरी तरह से सुन लिया। उसके बाद उसकी जन्मतिथि और समय पूछी। थोड़ी देर तक जोड़ घटाव करते रहे फिर गिने-चुने शब्दों में धमाका कर दिया, “तुम्हारे जीवन में कुछ भयंकर घटने वाला है। और वह भी जल्दी ही।”
केतकी को आश्चर्य हुआ। अब तक कौन सा अच्छा हो रहा था उसके जीवन में, तो अब चिंता क्यों की जाए? अभी तक जो कुछ हुआ वह क्या कम भयंकर था? इससे अधिक भयंकर और क्या बाकी है?
वह जबर्दस्ती तारिका को दक्खन सेंटर ले गई। वहां पर दोनों ने साउथ इंडियन पद्धति का खाना खाया। आज पहली बार खाना खाने के बाद केतकी को चाय पीने की इच्छा हुई। तारिका को आश्चर्य हुआ तो केतकी मुस्कराई, “भयंकर क्या घटने वाला है इसे देखने के लिए जागते रहना होगा न?”
केतकी को पढ़ने का बड़ा शौक था। बचपन में झाड़ू लगाते समय कचरे में भी यदि कोई कागज मिल जाए तो वह पढ़ने लगती थी। तब रणछोड़ और शांति बहन उस पर नाराज होते थे, “आई बड़ी पंडिता...झाड़ू मारो पहले...”
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जीतू अब मिलने आता था लेकिन उसमें वह उत्साह नहीं था। लेकिन चिड़िचड़ाहट भी नहीं थी। प्रेम नहीं था और मीठे शब्द भी नहीं बोलता था। कम से कम बोलने की कोशिश करता था, लेकिन मौका मिलते ही ताना मारने से नहीं चूकता था। मिलने के लिए पहले की तुलना में कम आता था। आता भी तो ऐसा लगता कि जबर्दस्ती आया है। केतकी को लगता था कि उनका रिश्ता अभी से मृतप्राय हो रहा है। रिश्ते का यह शव कितने दिनों तक राजा विक्रमादित्य की तरह अपने कंधों पर उठाना पड़ेगा? फिर उसने ज्यादा विचार करना छोड़ दिया। नियति जो खेल जब दिखाए, वो तब देख लिया जाएगा। अभी से चिंता करके अपना वर्तमान क्यों खराब किया जाए? यदि यह रिश्ता नाजुक होगा तो कोई भी इसे बचा नहीं पाएगा। और बचाया भी क्यो जाए?
उसने जीतू से साफ-साफ कह दिया था, “आपको खुश करने के लिए मैं आपकी कहे अनुसार व्यवहार नहीं कर पाऊंगी और जी भी नहीं पाऊंगी। वैसा करूंगी तो मुझे उसमें खुशी नहीं मिलेगी और यदि मैं ही खुश नहीं रह पाई तो आपको कैसे खुश रखूंगी? आपको जैसा अच्छा लगता है वही करना और वैसा ही बोलना मुझसे नहीं हो पाएगा। इसी के साथ आप भी मेरे हिसाब से व्यवहार करें या बोलें-मेरी भी आपसे अपेक्षा नहीं है।” जीतू को इसमें से कितनी बातें समझ में आईं पता नहीं लेकिन वह उदास चेहरा लेकर चला गया। केतकी को लगा कि जिसे मैं अपने सभी प्रश्नों का उत्तर समझ रही थी, वही मेरे सामने एक बड़ा प्रश्न बनकर खड़ा हो गया है।
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रीसेस में केतकी पेपर जांचते बैठी थी। बच्चे को गंभीरता से पढ़ाई करते देख कर उसे खुशी हो रही थी। पढ़ाई के साथ-साथ अन्य गतिविधियों में भी उनकी भागीदारी बढ़ रही थी। उसने खास आग्रह करके विद्यार्थियों को प्रसन्न शर्मा द्वारा सुझाए गए संगीत शिविर में भिजवाया। साठ-सत्तर में से सात-आठ विद्यार्थियों ने प्रसन्न शर्मा के पास जाकर संगीत संबंधी कुछ शंका, कुछ सवाल पूछे थे। संगीत सीखने की इच्छा व्यक्त की। प्रसन्न का मन एकदम प्रफुल्लित हो गया था।
उसने हंस कर केतकी का धन्यवाद किया, “पिछले चार सालों में मैं स्वयं भी बच्चों को इतना प्रोत्साहित नहीं कर पाया था। थैंक यू।” केतकी हंस कर फिर से कॉपियां जांचने लगी। उसे अपने परीक्षा के दिन याद आ गए। परीक्षा के दिन भी उसे घर के सारे काम करने पड़ते थे। देर हो जाती थी। एक बार तो जल्दबाजी में पेन की जगह टूथब्रश लेकर निकल गई थी। फिर क्या? बाजू वाली लड़की से एकस्ट्रा पेन मांग कर उसने परीक्षा दी थी। तभी केतकी का सिर खुजाने लगा। कल ही तो बाल धोए थे, फिर भी इतनी खुजली क्यों हो रही है, उसे समझ में नहीं आ रहा था। रूसी हो गई होगी। जरा ध्यान देना पड़ेगा। डिंपल कापड़िया की तरह सुंदर बालों के अलावा उसके पास और है ही क्या? केतकी ने अपना बांया हाथ उठा कर खुजली वाली जगह वाले बालों पर हाथ फेरा तो उसके हाथों में कुछ चिकना सा महसूस हुआ। जैसे त्वचा का स्पर्श। उस समय केतकी ने ध्यान नहीं दिया, लेकिन ये चिकना सा स्पर्श यानी एक गहरा अंधेरा कुआं था, इसकी उसको कल्पना भी नहीं थi
अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार
© प्रफुल शाह