अग्निजा - 92 Praful Shah द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अग्निजा - 92

लेखक: प्रफुल शाह

प्रकरण-92

केतकी ने अब सचमुच अपनी आहारपद्धति में थोड़ा परिवर्तन करना दिया था। शुरु के पांच दिन उसने पौन कप चाय ली, उसके बाद पांच दिन आधा और फिर पाव और आखिर में पूरी तरह बंद। उसके शरीर को अब चाय के बिना रहने की आदत हो गयी थी। चाय बंद करने के बाद दो-तीन दिन सिर में दर्द हुआ, लेकिन वह कुछ ज्यादा नहीं था। सहने लायक था। इसी तरह उसने शाम की चाय बंद करने का भी ठान लिया।

शाला में केतकी की डायटिंग की खूब तारीफ हो रही थी। उसकी दृढ़निश्चयी स्वभाव और अपने निर्णय पर मजबूती से टिके रहने की चर्चा हो रही थी। तारिका चिनॉय को उसकी तारीफ बिलकुल भी पसंद नहीं थी, इस लिए वह चुप ही रहती थी। अब भावना ने भी डायटिंग को स्वीकार कर लिया था। तकलीफ बढ़ने से पहले ही इसे अपनाने की आवश्यकता थी, अपनी बहन की इस बात से वह सहमत थी। इसके अलावा उसके मन में यह बात अच्छी तरह से बैठी हुई थी कि उसकी बहन मन से मजबूत है, जो चाहेगी, करके ही दिखायेगी। सुपरवुमैन है वह।

यशोदा को उसकी चिंता सताती थी। एक बार तो एलोपेशिया की परेशानी, उस पर से दिन भर स्कूल में खड़े होकर पढ़ाना और एक ही समय भोजन करना। बीमार न पड़ जाए कहीं। रणछोड़, शांति बहन और जयश्री को लगता था कि चलो उतना ही खर्च कम हो रहा है। रणछोड़ दास बड़बड़ाया भी, “जब से आयी है, मुफ्त में खा रही है। पिछले जन्म की कोई लेनदार निकली ये बदनसीब तो।”

जीतू को कारणों या परिणामों की फिक्र ही नहीं थी। वह तो केतकी का मजाक ही उड़ाता रहता था। “ये बड़ा अच्छा किया तुमने। मेरे घर आते तक शाम का खाना भी बंद कर देना। तुम्हारे लिए ये संभव है तो क्यों बेकार में खाना बरबाद करें और खर्च करें?” अब केतकी को चिढ़ाने और परेशान करने के लिए जीतू सुबह ही होटल में जाने का कार्यक्रम बनाता था। उसके सामने पेट भर खाना खाता था और केतकी उसे देखती रहती थी। इससे और मस्ती चढ़ती और वह कुछ और मंगवा कर खाता। वह जानबूझ कर केतकी के पसंदीदा होटल में उसकी पसंद की डिशेज मंगवा कर खाता था। एक दिन तो और नाटक करने के लिए वह भावना को भी साथ ले कर गया। केतकी बिना कुछ खाये पीये बैठी है और जीतू बढ़िया तर माल उड़ाता रहा है, यह देख कर तो भावना की भूख ही मर गयी। कितना अजीब आदमी है ये?दूसरों को तकलीफ में देख कर इसको इतनी खुशी मिलती है?

अगले रविवार को एक और घटना घटी। उपाध्याय मैडम को चार-पांच डिग्री बुखार चढ़ा है और उनकी तबीयत ठीक नहीं है, यह खबर शनिवार देर रात को केतकी को मिली। केतकी और भावना रविवार को सुबह दस बजे मैडम के घर पहुंची। प्रसन्न वहां पर डॉक्टर को लेकर पहले ही पहुंच चुका था। वायरल फीवर था। दवा, आराम और हल्का भोजन लेना था। प्रसन्न ने बाहर से बिरयानी या पुलाव लाने का विचार किया, लेकिन केतकी ने उसे मना कर दिया। “मैडम को बाहर का खाना नहीं देना चाहिये। मैं ही उनके लिए यहां कुछ बना देती हूं।” उपाध्याय मैडम ने कहा कि सभी के लिए बना लो। सभी को साथ खाते देख कर उन्हें भी खुशी होगी और तबीयत जल्दी ठीक होगी। केतकी और भावना रसोई घर में गयीं। प्रसन्न ने सब्जी काट कर दी। लेकिन भोजन करने से पहले वह दो बार फ्रेशरूम में होकर आया। “मेरा पेट खराब है, मेरा खाना मत बनाना।” उपाध्याय मैडम के साथ भोजन करते समय भावना के मन में विचार आया कि क्या सच में प्रसन्न का पेट खराब होगा? या फिर केतकी नहीं खा रही है, इस लिए वह भी मना कर रहा है? उसका संदेह सही निकला। इसका सबूत उसे दोपहर को फल खाते समय मिल गया। शाम के चाय-नाश्ते और रात के भोजन के समय भी मिला। भावना ने मजाक किया, “आगे से केतकी बहन और प्रसन्न भाई के साथ कहीं खाना खाने के लिए नहीं जाना चाहिये। एक ने खाना नहीं खाता तो दूसरा भी नहीं खाता। दूसरे की तबीयत बिगड़ती है तो मुझे अकेले खाना पड़ता है। इससे अच्छा तो घर में ही रहो। दो भूखे लोगों के सामने पेटभर खाने का पाप तो नहीं लगेगा कम से कम।” केतकी और प्रसन्न ने कुछ नहीं कहा, लेकिन जो समझना था, समझ लिया। उपाध्याय मैडम को भी दोनों के बीच एक अलग ही रिश्ता महसूस कर रही थीं, लेकिन अब क्या फायदा?

केतकी के सिर पर कितने बाल रह गये थे ये सिर्फ केतकी और उसके सिर पर बंधा स्कार्फ ही जानता था। करीब तीन महीनों के भीतर उसने नयी आहारपद्धति को स्वीकार कर लिया था। सुबह-शाम की चाय बंद। दूध और दूध से बने सभी व्यंजन बंद। और दोपहर का खाना भी बंद कर दिया था। स्टेरॉयड के कारण बढ़ा हुआ वजन धीरे-धीरे कम होने लगा था। इतनी कठिन डायटिंग को देख कर सबको आश्चर्य हो रहा था। लेकिन केतकी को अब इसकी आदत हो चुकी थी।

भावना ने किताब तो पढ़ी लेकिन उसे उसमें से ज्यादा कुछ समझ में नहीं आया। एक बार, दोनों जब अकेली बैठी थीं तो भावना ने केतकी से प्रश्न पूछा, “केतकी बहन, ये कैसे संभव होता होगा? तुमने आधे से अधिक आहार पदार्थ बंद कर दिये हैं, फिर भी तुमको थकान नहीं होती, उलटा तुम तरोताजा दिखती हो।”

केतकी हंसी, “मुझे भी बहुत अधिक समझ में नहीं आता, लेकिन इस किताब को पढ़ने के बाद जो समझ में आया वो सच लगता है। उसमें लिखा है कि पृथ्वी की तरह ही हमारा शरीर भी पंचतत्वों से मिल कर बना है, लेकिन उनके अनुसार चलता नहीं है। एक से दस तक जा सकते हैं और क से ज्ञ तक जा सकते हैं उसी तरह दिन और शरीर को भी उतरते क्रम में लेना चाहिये। उनकी सुनना चाहिये। सुबह आकाश तत्व होता है यानी आसमान, खालीपन। उस समय शरीर को किसी भी चीज की आवश्यकता नहीं होती। सिर्फ खाली जगह चाहता है यानी हवा। उसके बाद का समय होता है वायुतत्व का। इस समय कुछ हल्का खाना चाहिये। जैसे हरी सब्जियां, पालक मेथी, चौलाई वगैरह। उसके बाद दोपहर को सूरज तपता है यानी अग्नि तत्व। उस समय पहले से थोड़ा गरिष्ठ भोजन यानी खट्टे-मीठे फल खाना चाहिये। शाम को सूर्य शांत होने के बाद जलतत्व का समय आता है। इस समय पहले से और गरिष्ठ भोजन किया जा सकता है। इसमें सभी सब्जियां खा सकते हैं। और सबसे अंत में पृथ्वी तत्व यानी सबसे भारी तत्व। इस समय पूरा भोजन और सभी प्रकार की साबुत दालें खा सकते हैं।”

“वाह, केतकी बहन, तुमको तो पूरा याद हो गया है।”

“थोड़ा-बहुत हुआ है। अभी तो ये शुरुआत है।”

“लेकिन हम तो अनेक वर्षों से यही सुनते आ रहे हैं कि सुबह का भरपेट नाश्ता शरीर के लिए अत्यंत आवश्यक होता है?”

“इस नयी आहारपद्धति के अनुसार नाश्ता नाश करता है। सुबह का नाश्ता जहर है। अंगरेजी में साफ और स्पष्ट लिखा है ब्रेक योर ब्रेकफास्ट अदरवाइज़ योर ब्रेकफास्ट ब्रेक यू फास्ट।”

“यह इतनी गंभीर बात होगी, मालूम नहीं था।”

“हां, इनके सिद्धांत के अनुसार तो सुबह उठने के छह-सात घंटे तक पेट में पानी की एक बूंद जाना भी नुकसानदायक है।

केतकी यहां सेहत के बारे में बात कर रही थी, उस समय उस पर एक नया संकट आने के लिए तैयार खड़ा था।

 

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह

 

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