लेखक: प्रफुल शाह
प्रकरण-95
घर लौटकर भावना केतकी से गले लगकर रोने लगी। बहुत देर तक वह रोती रही। केतकी पूछती रही, लेकिन भावना कोई जवाब देने को तैयार नहीं थी। तो केतकी ने उसे अपनी कसम दी। तब भावना ने रोते-रोते कहा कि लोग कहते हैं कि तुम अब ज्यादा समय तक जीने वाली नहीं हो।
केतकी को हंसी आ गयी, ‘पगली...इतनी सी बात पर कोई रोता है क्या? वो भी इतना? मेरी या किसी के भी जाने का अभी समय आने पर कोई रोक नहीं सकता। और किसी के कहने भर से कोई मरने लग जाता तो लादेन या दाऊद अब तक जिंदा ही नहीं रहते। ’ केतकी ने भावना को चतुराई से समझाया तो सही लेकिन खुद उसके मन में न जाने कितने दिनों से आत्महत्या का विचार कौंध रहा था। ये यातनाएं, ये अन्याय अत्याचार ..इन सबका अंत जिंदगी के खत्म होने के साथ ही होने वाला था। ऐसे विचार उसके मन में बारंबार आ रहे थे। लेकिन इस विचार को अमल में लाने की उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी। इसके अलावा, भावना और किशोर वडगामा जैसे विद्यार्थी उसको आदर्श मानते हैं। उनके सामने इस तरह का आदर्श रखने से कैसे काम चलेगा, उसे यह भी लगता था। संकट आए तो आत्महत्या कर लेना? नहीं...नहीं...किसी भी हालत में ऐसा करना ठीक नहीं। वह भावना को सांत्वना देते हए बोली, ‘पागल हो गयी हो क्या? दिन भर नेट पर रहती हो न, तुम खुद ही देख लो। एलोपेशिया या गंजेपन से कोई मरता है क्या? ’ लेकिन केतकी के इतना समझाने के बावजूद भावना के मन का डर गया नहीं।
एक दिन अचानक जीतू की मां का फोन आया। मीना बेन शांतिबहन पर नाराज होने लगीं, ‘अरे, केतकी को इतनी परेशानी हो रही है, और आप लोगों ने मुझे बताया तक नहीं? हमारी जरा भी परवाह नहीं? कल जीतू ने बातों बातों में मुझे बताया..दवाइयां चल रही हैं। कोई डॉक्टर छोड़ा नहीं, बीच में बाल भी आ गये थे।’
‘आए थे, लेकिन फिर चले गये न?अब मैं चुप नहीं बैठूंगी। एक बाबा हैं। बड़े ज्ञानी और चमत्कारी हैं। कल सुबह मिलने के लिए उनसे अपॉइंटमेंट ली है मैंने।’ अगले दिन शांति बहन, केतकी और भावना जीतू के घर पहुंच गयीं। आसपास किसी को न पाकर जीतू ने धीरे से भावना के कान में कहा, ‘मैंने तुम्हारे तरह की ही पत्नी का सपना देखा था, लेकिन बीच में केतकी आ टपकी।’ भावना अवाक रह गयी। उसके मुंह से शब्द ही नहीं निकल रहे थे। उन दोनों को पता नहीं चला, लेकिन भीतर से आ रही केतकी ने उसकी बात सुन ली थी। जीतू कुछ भी बोले या करे, केतकी पर अब उसका फर्क नहीं पड़ता था। लेकिन आज तो उसने हद ही कर दी। लेकिन उससे क्या कहा जाये?
मीना बहन, शांति बहन, केतकी और भावना को लेकर एक पुरानी इमारत में दाखिल हुईं। पहले माले पर एक कमरे बाबा रहते थे। कमरे में अलग-अलग तरह की अगरबत्तियां जल रही थीं। धूप-लोबान का धुँआ फैला हुआ था। एक आसन पर बंगाली बाबा आंखें बंद करके बैठे हुए थे। उनके एक शिष्य ने मीनाबहन के पास आकर उनके कान में बताया कि आप आऩे वाली थीं इस लिए आज बाबा ने बाकी लोगों से मिलने के लिए मना कर दिया है। या वह आपकी समस्या के समाधान के लिए ही ध्यान लगाकर बैठे हैं। मीना बहन और शांति बहन बाबा के सामने हाथ जोड़ कर बैठ गयीं। बाबा ने आंखें खोलीं। बाजू में रखे हुए चिमटे को तीन बार जमीन परपटाका और फिर किसी ने कुछ नहीं पूछा फिर भी बोले, ‘हो जायेगा सब, हम हैं न।’
‘बाल आ जाएंगे...बच्चे भी होंगे...दो बेटे होंगे...दो मगर...’
‘मगर क्या बाबा?’
‘कोई है जो अच्छा नहीं चाहता है...उसने टोटका मारा...भारी टोटका...मगर डरो मत...हम हैं न...’
‘इसी लिए तो आए हैं आपके पास बाबा...जो करना हो सो करिए...मगर ..’मीना बेन विनती करने लगीं।
‘देखो दुश्मन चालाक है...टोटका छुड़ाना बहुत मुश्किल है...लगातार तीन दिनों तक यज्ञ करना पड़ेगा...इक्कीस संत मंत्रोच्चार करेंगे...चौथे दिन से परिणाम दिखने लगेगा...मन को सुकून लेगा...महीने भर में बाल वापस आ जाएंगे। ’
शांति बहन बाबा की बातों से प्रभावित हो गयीं। ‘यज्ञ तत्काल शुरू कर दें बाबा..हमको बैठना पड़ेगा क्या.... केतकी को?’
‘अभी जरूरत नहीं, सिर्फ चेले से बात कर लो।’
चेले ने समझाया कि केतकी तीन दिनों तक सिर्फ सफेद वस्त्र पहने। काली लाइन वाला रुमाल भी नहीं चलेगा। शांति बहन ने केतकी को ओर देखा। उनकी आंखों में आदेश झलक रहा था। मीना बहन ने शिष्य से पूछा, ‘इस विधि में कितना खर्च आएगा?’
शिष्य ने उत्तर दिया, ‘यदि सब सामान आप लाकर देंगी तो कोई खर्च नहीं लगेगा।’ शांति बहन की जान में जान आयी।
‘तीन दिनों के यज्ञ के लिए और तेईस अखंड दीपक जलाने के लिए 11 किलो गाय का घी, फूल, पत्तों की सूची मिलेगी। 21 संत तीन दिनों तक उपवास करेंगे उनके लिए दूध, फल और सूखा मेवा। हरेक को 2100 रुपए की दक्षिणा। रोज काम में आने वाली वस्तुएं पवित्र और ताजी होनी चाहिए। एक भी वस्तु अपवित्र या बासी हो तो यज्ञ अपवित्र हो जाएगा। ’
मीना बहन चिढ़ गयीं। नहीं...नहीं...हवन अपवित्र करके कैसे काम चलेगा। अच्छा हो कि सभी सामान आप ही लाएं।
‘आप पर बाबा का विशेष लगाव है इस लिए यह जिम्मेदारी हम ले सकते हैं, कम से कम पचास हजार का खर्च होगा। ’
मीना बहन ने शांति बहन की ओर देखा। दोनों एकदूसरे की ओर देख रही थीं कि पैसे कौन खर्च करेगा। इस दुविधा से केतकी ने ही उन्हें बाहर निकाला, ‘मैं कोई यज्ञ नहीं करवाना चाहती और पैसे भी खर्च नहीं करवाना चाहती।’
मीना बहन को झटका लगा। ‘धीरे बोलो...धीरे बोलो। बाबा ने सुन लिया तो मुश्किल हो जाएगी। ’ केतकी और ऊंची आवाज में बोलने लगी, ‘ऐसे बाबा वाबा बीमारियां ठीक करने लगे तो किसी की क्या जरूरत पड़ती? ये लोग ठग होते हैं...ठग...पुलिस रोज ऐसे कितने ही बाबाओं को पकड़ती रहती है। लोगों को फंसाना, उनका शोषण करना इनका धंधा है। पचास हजार कमाने के लिए कितने ही लोगों को सालों लग जाते हैं, और इसको तीन दिनों में पचास हजार का माल चाहिए। ’
शिष्य ने बाबा की ओर देखा। बाबा को बहुत गुस्सा आ रहा था लेकिन उन्होंने खुद पर नियंत्रण रखा था। झूठमूठ हंसते हुए बोले, ‘देखा...ये टोटके की वजह से हो रहा है। जिसके बाल चले गये हों, वो लड़की इस तरह की बात करेगी क्या? टोटके का खूब असर है इस पर।’
भावना उठ कर खड़ी हो गयी। ‘बाबा, मुझ पर तो किसी ने टोटका नहीं किया है न? मैं भी कहती हूं आप ढोंगी हैं, झूठे हैं, नालायक हैं। चलो केतकी दीदी...’भावना और केतकी वहां से निकल गयीं। मीना बहन और शांति बहन दोनों ने रोनी सूरत बना कर बाबा की तरफ देखा और हाथ जोड़ लिये।
अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार
© प्रफुल शाह
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