अग्निजा -- 125 Praful Shah द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अग्निजा -- 125

लेखक: प्रफुल शाह

प्रकरण-125

आखरी दिन शाम को छह बजे केतकी ने भावना को फोन लगाया। भावना नींद से जागी। केतकी का नंबर देखकर डर गयी, ‘क्या हुआ केतकी बहन?’

‘होना क्या है? खूब मजा आयी। तुमको थैंक्स कहने के लिए फोन किया। लौटने के बाद विस्तार से बताऊंगी। ओके? ’ उसके बाद केतकी ने उपाध्याय मैडम, कीर्ति चंदाराणा और प्रसन्न शर्मा को भी मैसेज भेजकर धन्यवाद दिया।

उपाध्याय मैडम और भावना सोच रही थीं कि केतकी जब लौटकर आयेगी तो बहुत थकी हुई होगी। लेकिन वह एकदम ताजादम होकर लौटी। खुश थी। उसने पहुंचते साथ भावना को गले से लगा लिया। उपाध्याय मैडम के दोनों हाथ थाम लिए, ‘थैंक्स कहकर मैं ये ऋण उतारना नहीं चाहती।’ उसने दोनों हाथ अपने सिर पर रखकर कृतज्ञतापूर्वक कहा, ‘अपने हाथ सदैव मेरे सिर पर रहने दें।’ पुकु और निकी चुपचाप खड़े थे। अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। केतकी वापस आ गयी है, इस पर उनको भरोसा ही नहीं हो रहा था शायद। केतकी उनके सामने अपने दोनों हाथ पसार कर बैठ गयी। दोनों को अपने पास बुलाया। तीनों ही कुछ क्षण बिना कुछ बोले एकदूसरे को पकड़ कर बैठे रहे। भावना ने हंसी मे कहा, ‘पुकु-निकी...मुझे भूल गये?’ दोनों ने उसकी तरफ देखा। भावना के पास गये और फिर केतकी के पास जाकर बैठ गये।

‘केतकी बहन अब गोआ की मौज-मस्ती के बारे में बताना शुरू करो। इतने विस्तार से बताना की पंद्रह-बीस दिनों तक उसकी बातें चलती रहें।’ केतकी ने अपना मोबाइल भावना के हाथों में दे दिया। ‘पहले आराम से सारे फोटो देखो, फिर आराम से बातें करेंगे।’ भावना फोटो देखने में खो गयी।

केतकी ने पीसी खोला। बड़े दिनों बाद फेसबुक पर लॉगइन किया। पहली ही पोस्ट पर उसकी नजर ठहर गयी। पेजेन्ट के पेज पर सौंदर्य प्रतियोगिता का विज्ञापन था। उसने उस पर केंट किया और खेल-खेल में इंटरेस्टेड का कमेंट डाल दिया और अपना ई-मेल भी दे दिया। पांच मिनट के भीतर इनबॉक्स में प्रतियोगिता का फॉर्म आ गया। केतकी ने मजाक समझकर वह फॉर्म भरना शुरू कर दिया। नाम, पता, फोन नंबर, ई-मेल, जन्मतारीख, उम्र, वजन और कद का कॉलम भरने के बाद एक जगह पर वह फंस गयी।

उस कॉलम में बालों का रंग पूछा गया था। केतकी ने थोड़ी देर तक विचार किया, फिर उसे हंसी आ गयी। उसने उस कॉलम में लिखा, ‘ नो हेयर, आई एम बाल्ड।’ पूरा फॉर्म भर कर भेज देने के बाद उसे पूरा यकीन था कि आगे कुछ नहीं होने वाला। बात खत्म। लेकिन फिर उसे आश्चर्य हुआ कि आखिर उसने यह फॉर्म भरा ही क्यों?

केतकी अगले दिन पूरे उत्साह के साथ स्कूल जाने के लिए निकली। उसे प्रसन्न से मिलने की जल्दी थी। उससे मुलाकात होने के बाद उत्साह और विश्वास के साथ हाथ मिलाया, ‘मैंने बहुत मौज-मस्ती की। इसका श्रेय आपको जाता है। आज रात को घर पर भोजन करने के लिए आएं। वहीं पर सारी बातें बताऊंगी।’

केतकी को देखकर प्रसन्न भी खुश हुआ। लेकिन अपने जेब में रखा हुआ लिफाफा उसे दें या न दें, इस बात को लेकर वह दुविधा में था। उसने अपने पास रखी हुई पुस्तक में से एक लिफाफा निकालकर केतकी के हाथ में दे दिया., ‘जब समय मिले तब जरूर पढ़ें। कोई जल्दी नहीं है, लेकिन महत्वपूर्ण अवश्य है।’

कीर्ति चंदाराणा को तो उसने पहले ही दिन फोन करके आभार जता दिया था। बीच की छुट्टी में केतकी ने प्रसन्न का दिया हुआ लिफाफा बाहर निकाला। उसका दिल थोड़ा धड़क रहा था, क्या होगा इसमें, प्रसन्न क्या बताना चाहता है?थरथराते हाथों से उसने लिफाफा खोला। उसमें गुजरात के एक छोटे से अखबार की एक खबर की कतरन थी। ‘गंजेपन की बीमारी से ग्रस्त एक महिला ने खुद को तीन महीनोंतक कैद में रखा और उसकी मृत्यु हो गयी।’

पूरी खबर पढ़ने के बाद केतकी हतप्रभ थी। एक महिला को शादी के उपरांत, और दो बच्चे होने के बाद गंजेपन की बीमारी हुई और उसके सारे बाल झड़ गये। तो उसके पति ने उसे छोड़ दिया। मायके वालों ने भी उसे अपने घर में पनाह नहीं दी। इस वजह से अंत में उसके अमीर पति ने अपने खेत में बने एक स्टोर रूम में कैद करके रख दिया था। सुबह-शाम बस एक खिड़की से उसे खाने-पीने को दिया जाता था। छत पर हवा के लिए एक खिड़की थी। वहां से बाहर का कुछ भी दिखाई नहीं देता था। उस महिला का जीवन उस कमरे में ही कैद होकर रह गया था। पति ने दूसरी शादी कर ली और उस बदनसीब महिला 28 सालों तक उस अंधेरी कोठरी में जीवन बिताती रही। इतने सालों में उसका मानसिक संतुलन भी बिगड़ चुका था। मरने के बाद ही उसे मुक्ति मिली। उसकी अंतिम यात्रा में उसकी सगी बेटियां और पति में से कोई भी शामिल नहीं हुआ।

केतकी को इस खबर पर भरोसा ही नहीं हो रहा था। ऐसा भी कभी हो सकता है? वह भी आज के जमाने में? वह निराश हो गयी।

शाम को केतकी को देखकर प्रसन्न ने कहा, ‘सुबह तुम बहुत अच्छे मूड में थ। लेकिन मैं इस खबर से हिल गया था। हमें, खासकर तुम्हें इसके लिए कुछ करना चाहिए। इस पर विचार किया जाए, इसलिए यह खबर संभाल कर रखी थी। ’

केतकी ने कहा, ‘इक्कीसवीं सदी में लोग इतने जड़बुद्धि और क्रूर हो सकते हैं, इस पर तो मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा। इसमें उस बेचारी का क्या दोष था?उसे किस बात की जा दी गयी?’

‘यह तो केवल एक घटना है। ऐसी न जाने कितनी ही लड़कियां, महिलाएं बाल गंवाने के बाद बरबाद हो गयी होंगी। मेरा एक डॉक्टर मित्र कह रहा था कि बाल वापस लाने के नाम पर न जाने कितने ही ठग ऐसी महिलाओं को लूटते हैं। झूठी उम्मीदें जगा देते हैं। और इतना करने के बाद भी बाल नहीं लौटते तो उसके बाद जो मानसिक आघात होता है, वह अलग। यह सब तुमने स्वयं अनुभव किया है। इसलिए तुम्हें इस बारे में कुछ करना होगा। मैं इसमें तुम्हारे साथ पूरी तरह खड़ा रहूंगा, समय और सहयोग दूंगा, इसका भरोसा रखो। ’

घर पहुंचकर सबका भोजन हुआ, गोआ की बातें हुईं। लेकिन केतकी के मन से उस महिला और उसके द्वारा बिताया गये तीस वर्षों के दुष्कर जीवन भुलाए भूल नहीं रहा था। रात को देर तक विचार करती रही। ‘कुछ तो अवश्य करना होगा। लेकिन क्या?’ केतकी ने इस बीमारी के बारे में सारी जानकारी इंटरनेट के जरिए खोज निकाली और पढ़ी। इस बीमारी के लिए सही-गलत दवाइयों के बारे में जानकारी ली। इस बीमारी से ग्रस्त लोग किस तरह से इस बीमारी से लड़ते हैं, संघर्ष करते हैं-पढ़ा। भारत में यह बीमारी नयी नहीं है, सैकड़ों वर्षों से अस्तित्व में है। पुराणों में भी इसका उल्लेख है। गंजेपन की बीमारी होने पर महिलाएं खुद को घर में कैद कर लेती हैं और पुरुष विग पहनकर घूमते हैं। लेकिन मैं क्या करूं? इस प्रश्न का उत्तर उसे दूसरे दिन मिलने वाला था। लेकिन, क्या-यह उसे पता नहीं था।

 

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह

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