Agnija - 85 books and stories free download online pdf in Hindi

अग्निजा - 85

प्रकरण-85

और फिर भावना ने प्रसन्न द्वारा बताया काम उसी दिन कर दिया। डॉ. मंगल ने केतकी को दवाइयों की जो पुड़िया दी थीं, उनमें से दो उसने प्रसन्न को लाकर दीं। प्रसन्न के मन में एक डर था। उसको विश्वास तो नहीं था, पर शंका थी। उसने यह जानने की कोशिश की कि यह दवा वास्तव में है क्या? और दो दिनों बाद उसे जो निष्कर्ष मिला उसे सुन कर तो उसके पैरों तले जमीन ही खिसक गयी। यह बात किसी को कैसे बतायी जाये, उसे समझ में नहीं आ रहा था। बहुत सोच-विचार करने के बाद उसने तीन-चार लोगों को फोन किया। सभी शा को सात बजे इकट्ठा हुए। प्रसन्न शर्मा, उपाध्याय मैडम, भावना और केतकी। सभी को अचरज हो रहा था कि प्रसन्न ने सभी को इतनी हड़बड़ी में क्यों बुलाया होगा? लेकिन प्रसन्न कुछ कह नहीं रहा था। वह लगातार घड़ी देख कर दरवाजे की तरफ देख रहा था। “प्लीज, झे पांच-दस मिनट का समय दें फिर आपको बताता हूं इस मुलाकात का कारण। बताने के लिए ही तो सबको यहां बुलाया है।”

तभी घंटी बजी। प्रसन्न ने भाग कर दरवाजा खोला। सभी के चेहरे पर आश्चर्य था। दरवाजे पर कीर्ति चंदाराणा खड़े थे। सभी को वहां पर उपस्थित देख कर उनको भी आश्चर्य हुआ। प्रसन्न ने उनको पानी दिया, “पहले ये बताओ कि बुलाया क्यों है...बाद में पानी-वानी...”

प्रसन्न ने सभी की  ओर देखा और अपने दोनों हाथ जोड़ लिए, “आप सभी लोगों को इस तरह यहां बुलाने के लिए माफ करें। लेकिन मुझे आप सभी से बात करनी ही थी और वह भी एकसाथ। ” लेकिन किसी को भी यह समझ में नहीं आ रहा था कि वह आखिर किस बारे में बाद करना चाहता है। “मैं आपको जो कुछ बताऊंगा उसके लिए मुझे आप सबकी मदद की आवश्यकता पड़ेगी। यदि वह नहीं मिली तो सबकुछ बहुत मुश्किल हो जाएगा।” इतनी भूमिका के बाद उसने केतकी के गंजेपन के बारे में सभी को बताया। केतकी को तब गुस्सा आ गया। और बाकी सबको आश्चर्य भी हुआ कि इस बात के लिए इसने हमें यहां बुलाया है? केतकी की परेशानी के बारे में संक्षेप में बोलने के बाद उसने गांधीनगर के डॉ. मंगल से ली हुई दवा के बारे में बताया। उस दवा से बाल वापस आने की बात भी बताईष। “लेकिन इसी के साथ केतकी के शरीर में कुछ अजीब से परिवर्तन भी होने लगे थे इस लिए मैं डॉ. मंगल द्वारा दी गयी पुड़िया अपने परिचित दूसरे डॉक्टर को दिखायी। उन्होंने परीक्षण के बाद जो कुछ बताया उससे मुझे बहुत बड़ा झटका लगा है।”

केतकी ने नर्वस होते हुए पूछा, “क्या निकला उस परीक्षण में?”

“उन पुड़िया में कोई दवा नहीं, केवल स्टेरॉयड्स हैं।”

चंदाराणा बोले, “ओ माय गॉड, स्टेरॉयड्स?”

“हां, गंजेपन के कारण जाने वाले बाल केवल स्टेरॉयड्स लेने से ही वापस आते हैं। इसी का फायदा उठा कर डॉ. मंगल सबको धोखा दे रहे थे।”

उपाध्याय मैडम ने चिंतित होकर कहा, “लेकिन स्टेरॉयड्स से तो बड़ा नुकसान होता है न?”

अपराधभाव से ग्रसत प्रसन्न बोला, “हां, मेरे एक डॉक्टर दोस्त ने मुझे बताया कि स्टेरॉयड के नियमित सेवन से शरीर को नुकसान हो सकता है।”

केतकी किंकर्तव्यविमूढ़ होकर बैठी थी। भावना ने जैसे-तैसे पूछा, “यानी केतकी बहन को अभी जो परेशानी हो रही है वह स्टेरॉयड्स के कारण हैं?”

“हां, संभावना इसी बात की है। आप सभी केतकी के शुभचिंतक हैं इस लिए दो निर्णयों के अच्छे-बुरे पहलुओं पर विचार करके आपसे सलाह लेने के लिए मैंने आप लोगों को यहां बुलाया है।”

चंदाराणा जी ने सीधा प्रश्न किया, “ कौन से निर्णय? और वे हमें लेने का अधिकार नहीं है।”

“सर, आई एग्री विथ यू। लेकिन मुझे नहीं लगता कि गलत इलाज लेते रहा जाए। इस लिए मैं सोचता कि सबसे पहले इस दवा को बंद किया जाये। ठीक है न?”

“कोई कुछ बोलता, इसके पहले ही केतकी बोली, ”अभी से बंद। मैंने कहीं पढ़ा था कि स्टेरॉयड्स की अधिकता से किडनियां भी खराब हो सकती हैं।”

प्रसन्न को राहत मिली। “इस पहले ही निर्णय पर आप ही सहमत हैं इससे मुझे अच्छा लगा। दूसरे निर्णय के जो भी परिणाम सामने आयेंगे उसका सामना आपको करना पड़ेगा और सभी की तरफ से मैं आपको आश्वासन देता हूं कि इसके लिए हम सब आपके साथ खड़े हैं।”

“एलोपेशिया के बारे में मैंने इंटरनेट पर खूब पढ़ा है। मेरे एक डॉक्टर दोस्त की मदद से मैंने कई डर्मेटोलॉजिस्ट से भी बात की है। बाल वापस आएंगे या नहीं, इस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता है। इस लिए इस परिस्थिति में केतकी को समाज का सामना पूरी दृढ़ता के साथ करना होगा।” प्रसन्न चुप हो गया और केतकी की तरफ देखने लगा। केतकी नीचे देख रही थी, लेकिन उसका ध्यान कहीं नहीं था। मानो वह जमीन के आरपार देखते हुए अनंत में पहुंच गयी थी। सभी उसकी तरफ देख रहे थे। लेकिन उसका ध्यान किसी की तरफ नहीं था। उसके उत्तर की प्रतीक्षा कर रहे थे। अचानक केतकी उठी और चलने लगी। जैसे-जैसे चप्पलें पहनीं और बाहर निकल गयी। उसके पीछे-पीछे भावना भी भागी। प्रसन्न शर्मिंदा हो गया। “मुझे लग रहा था कि यह बात बहुत गंभीर है इस लिए हम सब मिल कर केतकी को समझाएंगे। लेकिन यह मेरी दूसरी गलती थी।”

चंदाराणाजी को झटका लगा, “पहली गलती कौन सी थी?”

“इस डॉक्टर मंगल के पास मैं ही उसे लेकर गया था। अपॉइंटमेंट भी मैंने ही ली थी, और उनके साथ भी मैं ही गया था।”

उपाध्याय मैडम ने धीरे से उसके हाथ पर अपना हाथ रख दिया। “आप क्या उसे जबर्दस्ती ले कर गये थे? आपका उद्देश्य गलत नहीं था। आपसे उसका दुःख देखा नहीं जा रहा था, इसी लिए किया था न?”

“और अभी मैंने आप सबको इकट्ठा कर लिया। शायद केतकी को इस बात पर गुस्सा आ गया हो, इसी लिए वह निकल गयी।”

चंदाराणा जी प्रसन्न की ओर देखते हुए बोले, “आपका उद्देश्य अच्छा और सच्चा था। डॉक्टर के पास ले जाते समय और अभी हम सब लोगों को यहां बुलाते समय भी।”

उपाध्याय मैडम धीरे से मुस्कुराईं और बातचीत आगे बढ़ी, “आपने भावना को भी बुला लिया ये अच्छा किया। बिलकुल चिंता न करें। केतकी आसानी टूटकर बिखरने वाली इंसान नहीं है। हम सब उसके साथ खड़े हैं। मैं स्वयं उसको समझाऊंगी।”

चंदाराणा उठे, उन्होंने प्रसन्न की तरफ देखा, “एक बात कहना चाहता हूं। आई एम प्राउड ऑफ यू...प्लीज, हमेशा ऐसे ही रहें।” इतना कह कर उन्होंने प्रसन्न के कंधे पर हाथ रखा और निकल गये। जाते हुए पीछे मुड़ कर देखा और उपाध्याय मैडम से पूछा, “ रास्ते में आपको छोड़ता चलूं?”

“ओह, थैंक्स, प्लीज...” ऐसा कह कर वह भी उठ गयीं।

उन दोनों के जाने के बाद प्रसन्न गुस्से में ही उठा। उसे किसी भी हालत में उस मंगल डॉक्टर को पकड़ना था। रिक्शा ले कर वह जल्दी-जल्दी वहां पहुंचा। देखा दवाखाना बंद था और दरवाजे पर एक बोर्ड लटक रहा था, “किराये से देना है”। उसने चौकीदार से पूछा तो उसने बताया, “साहब, ये डॉक्टर तो एक महीने के लिए ही यहां आए थे...सुना है डबल भाड़ा दिया रहा...”

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह

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