अग्निजा - 123 Praful Shah द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अग्निजा - 123

लेखक: प्रफुल शाह

प्रकरण-123

गोआ में तीसरे दिन, चंद्रिका, गायत्री और मालती ने घोषणा कर दी कि आज हम तीनों बीअर पीने वाली हैं, वाइन पीएंगी और खूब नाचेंगी भी। केतकी तुम आना पसंद करोगी? केतकी ने जबाव दिया, ‘देखूंगी। सच कहूं तो मुझे इनमें से किसी की भी आदत नहीं है, और मुझे अच्छा भी नहीं लगेगा। और मेरी इच्छा भी नहीं है। मैं समुद्र किनारे जाकर बैठूंगी या फिर तुम लोगों को मौज-मस्ती करते हुए देखूंगी यहीं पर। ’ उस दिन भी अलका कहीं दिखाई नहीं दी। वह किसी न किसी बहाने से बाहर निकल जाती थी। किसी के साथ मिलती-जुलती नहीं थी। शाम को साढ़े चार बजे केतकी अकेली ही घूमने के लिए निकली। धूप थी, इसलिए अधिक भीड़भाड़ भी नहीं थी। धूप लग रही थी इसलिए उसने दो बार नारियल पानी पीया। बाकी तीनों के लिए पार्सल करवा लिया और घंटे भर में अपने कमरे में वापस आ गयी। वह जब लौटी तो टेबल पर दस-बारह बोतलें रखी हुई थीं। साथ में फल्लीदाने, चने, वेफर्स, पापड़, ड्रायफ्रूट और वेजीटेबल सलाद...गायत्री, चंद्रिका और मालती पालथी मारकर बैठ गयीं। बीअर के ग्लास भरे। दोनों ग्लास में से फेन उफनकर बाहर गिरने लगा। गायत्री, चंद्रिका हंसने लगी। ‘कभी कभार तो पीते हैं. लेकिन अब तक अपना ग्लास खुद भरना नहीं आया। मालती ने लंबे ग्लास में वाइन डाली। केतकी के मन में सवाल उठा, बीअर बड़े और चौड़े ग्लास में और वाइन नाजुक, छोटे पतले ग्लास में क्यों? गायत्री ने पूछा, ‘चीयर्स किया जाए? ’ चंद्रिका ने उसे रोका। एक फोन लगाया। लेकिन स्पीकर पर सामने वाले का फोन स्विच ऑफ बता रहा था। चंद्रिका ने ग्लास उठाया, ‘अलका का फोन बंद है। अब चीयर्स करो।’ केतकी को अलका की चिंता सताने लगी। ‘अलका की तबीयत तो ठीक है न?’ यह सुनकर तीनों खिलखिलाकर हंस पड़ीं। केतकी की ओर देखते हुए आंखें मिचमिचाकर गायत्री बोली, ‘समझ जाओ अब। होगी कहीं। रोज एक बार हमसे मिलकर जाती हैं न, इसका मतलब है मजे में होगी।’ लेकिन केतकी को कुछ समझ में नहीं आया। चंद्रिका ने अपनी बीअर तुरंत खत्म कर ली। उसे देखकर गायत्री भी कॉम्पीटीशन में उतर गयी। ग्लास खाली करके दोनों ने टेबल पर पटक दिए। चंद्रिका ने गायत्री की पीठ ठोकी, ‘वाह, मेरी शेरनी...वाह...’ लेकिन मालती शांति से वाइन का मजा लूट रही थी। दूसरा ग्लास भरने के बाद चंद्रिका ने वह भी तुरंत खत्म कर दिया। फिर वह केतकी के पास  जाकर बोली, ‘तुम मेरे साथ आयी हो न, इसलिए गोआ क्या चीज है, गोआ घूमने का मतलब क्या, तुम्हें समझाती हूं। तुम जानती हो क्या गोआ क्या चीज है?

‘समुद्र किनारा...सुंदर किनारा..’

‘नहीं, केवल समुद्र किनारा देखना होता तो हम मुंबई गये होते। गुजरात के किसी भाग में गये होते। लेकिन गोआ यानी समुद्र किनारे से भी अधिक कुछ है। काजू, दारू, डांस, मस्ती और...’ वह रुक गयी। मालती ने उसे टोका, ‘रुक क्यों गयी? शर्म आ रही है क्या? अपना वाक्य पूरा करो...’

लेकिन कुछ बोलने के बजाय चंद्रिका बीअर पीने बैठ गयी। मालती ने एक ही घूंट में अपनी वाइन खत्म करके ग्लास नीचे रख दिया, ‘कोई ग्लास तो भरो...मैं समझाती हूं केतकी को...डार्लिंग गोआ माने सैंड एंड सेक्स...’ अब चंद्रिका भी थोड़ी खुली, ‘हां...समुद्र...बालू...डांस, वाइन और मैन ऑर वूमेन...जिसको जो पसंद हो।’ मालती का ग्लास भरने के बाद उसने वाइन का एक लंबा घूंट लिया। ‘देखो केतकी, गोआ में आकर दारू नहीं पी, डांस नहीं किया और समुद्र किनारे नहीं गये...कहोगी तो कोई नहीं मानेगा...उल्टा लोग पूछेंगे कि फिर गोआ गयी क्यों थीं...दीदी तीर्थयात्रा पर जाना था न...’ चंद्रिका ने गहरी सांस छोड़ते हुए कहा, ‘लेकिन यार तुम सेक्स तो भूल ही गयी...काश मेरा पति मेरे साथ होता...’ मालती ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘अब गोआ में ड्रग्स भी बढ़ गये हैं। बोलो, क्या लोगी...गांजा की चरस या और कुछ?’

चंद्रिका ने अपना ग्लास खत्म करते हुए कहा, ‘नहीं...मेरे पति को बुला लो...मुझे तो उसी का नशा है...’

अचानक चंद्रिका ने गायत्री और मालती के कान में कुछ कहा। तीनों ने ग्लास नीचे रख दिए। थोड़ी नाराजगी के साथ केतकी की ओर देखा। मालती ने रुठने का स्वांग करते हुए कहा ‘यार तुम पी नहीं रही हो तो हमारी आत्मा हमें कचोट रही है कि हम कोई गलत काम कर रहे हैं...’

चंद्रिका ने उसके सुर में सुर मिलाते हुए कहा, ‘हां यार, दारू चढ़ ही नहीं रही जरा भी...’ गायत्री उठी और बोली, ‘मुझे नहीं चाहिए बीअर...अब कोई भी नहीं पीएगा...केतकी..ये सब उठाकर बाहर फेंक आओ...’ वह जाने लगी और बड़बड़ाने लगी, ‘अब खाना खाएंगे...गुड नाइट...’

केतकी पर इस बात का असर हो गया। मालती ने उसका हाथ पकड़ा, ‘देखो...किसी पर भी जबर्दस्ती नहीं करनी है, यही तय हुआ था...और दारू की जबर्दस्ती तो किसी से भी नहीं करनी चाहिए।’ चंद्रिका ने हाथ जोड़कर उससे बिनती की, ‘लेकिन यार केतकी...जरा चखकर तो देखो...हमें कंपनी दो..’ कहते-कहते वह केतकी के सामने बैठ गयी। ‘बोलो, दोगी हम लोगों को कंपनी? थोड़ी सी...केवल चार बूंद...तीन बूंद..नहीं नहीं एक-दो बूंद...तो हमें ही मौज करते हुए बुरा नहीं लगेगा...क्या लोगी बोलो..बीअर या वाइन? तुम कहोगी वही देंगे...और जितनी तुम्हारी इच्छा होगी, उतनी ही देंगे...’

केतकी को लगा कि उसकी वजह से दूसरों का मजा भी किरकिरा हो रहा है। उसने डरते-डरते कहा, ‘मैं थोड़ी सी लूंगी, शायद वह भी मुझसे खत्म न हो पाए...’

तीनों खुश होकर तालियां बजाने लगीं। मालती ने उसके कंधे पर थाप मारी और कहा, ‘ये हुई न बात...थोड़ी ही लेना है न...तो फिर वाइन लो...एकदम माइल्ड और मस्त...ठीक है?’

चंद्रिका और गायत्री ने भी वही कहा। चंद्रिका ने वाइन की बोतल खोली, गायत्री ने ग्लास दिया और उसमें वाइन ढाली। फिर वह उठी. उसने अपने कपड़े और बाल ठीक किए। एक ट्रे में उस ग्लास को रखा और फिर केतकी के सामने रखे हुए टीपॉय पर उसे रख दिया। ‘एनीथिंग एल्स मैडम? प्लीज एंजॉय।’ इसके बाद वह केतकी के सामने बैठ गयी और हाथ उठाते हुए ग्लास ऊंचा किया और बोली, ‘चीयर्स टू केतकी...उसके भविष्य के लिए...उसके सपनों और अपनी दोस्ती के लिए...’

केतकी ने ग्लास ओठों से लगाया। एक छोटा सा घूंट भरा। मुंह खट्टा हो गया। इस स्वाद को अच्छा कहा जाए या बुरा, उसे समझ में नहीं आ रहा था। लेकिन गले के नीचे उतर गयी। उसके बाद सहेलियों के साथ गप्पबाजी, मस्ती और हंसी ठट्ठा करते हुए केतकी ने वाइन के दो पैग खत्म कर दिए। और उसे लगा, इन तीनों ने मेरा मन परिवर्तित किया, सो एक तरह से अच्छा ही किया।

 

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह

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