अग्निजा - 114 Praful Shah द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अग्निजा - 114

लेखक: प्रफुल शाह

प्रकरण-114

भावना को कुछ समझ में नहीं आ रहा था। सुबह केतकी ने कुछ नहीं कहा। उसने अपनी तैयारी की और स्कूल जाते समय आवश्यक हिदायतें दे दीं। भावना कोई जवाब देती, इससे पहले ही केतकी बाहर निकल गयी। भावना लगातार मैसेज देख रही थी, लेकिन उसे जिस मैसेज का इंतजार था, वह दिखाई नहीं दे रहा था। न प्रसन्न का, न उपाध्याय मैडम का। भावना का मन खिन्न हो गया। किसी से उम्मीद रखना ही बेकार है, निराशा ही हाथ लगती है।

अचानक मोबाइल में एसएमएस अलर्ट रिंग बजी। ‘वाह, केतकी बहन का मैसेज।’कुछ भूल गयी होगी, और अब रास्ते में याद आया होगा...बेटर लेट दैन नेवर...लेकिन मैसेज देखकर उसका चेहरा उतर गया, ‘स्कूल में काम है, रात को लौटने में देर होगी. टेक केयर।’

भावना ने आज खाना जल्दी ही मंगवा लिया। और दिनों में तो वह पूरा टिफिन शायद ही कभी खत्म कर पाती थी, लेकिन आज गुस्से में वह पूरा खाना खा गयी। खाखरे भी खाये। फल खाये और इतने से भी मन नहीं भरा तो फ्रिज में रखी आइसक्रीम निकाल कर खा ली। इसके बाद मोबाइल का स्विच ऑफ करके, दरवाजे की घंटी बंद करके वह बिस्तर पर लेट गयी। न्यूजपेपर मुंह पर ढांक कर वह दस मिनट में खर्राटे भी भरने लगी। उसकी जब नींद खुली तो पांच बज रहे थे। नींद से जागकर उसे अच्छा लग रहा था, लेकिन सुबह की घटना याद करते साथ उसका मूड फिर खराब हो गया। मोबाइल चालू करके देखा तो न किसी का मैसेज था न किसी का मिस्ड कॉल।

शाम को छह बजे अचानक दरवाजा बजा। भावना ने डोरबेल का स्विच ऑन किया और दरवाजा खोला। सामने उपाध्याय मैडम मुस्कुराते हुए खड़ी थीं। उन्हें देखकर भावना को अच्छा लगा। चलो किसी ने तो याद किया। भीतर आकर सोफे पर बैठते-बैठते उपाध्याय मैडम ने कहा, ‘बाकी सब तो...पहले....’ भावना के कान खड़े हो गये, उपाध्याय मैडम ने वाक्य पूरा किया, ‘पानी पिलाओ पहले तो...’ पानी पीने के बाद उपाध्याय मैडम आराम से बैठ गयीं, ‘आज स्कूल क्यों नहीं गयी? तबीयत ठीक नहीं है क्या?’

‘मैं ठीक हूं,लेकिन आप अचानक इधर कहां?’

‘अरे, इसी तरफ आयी थी तो सोचा देखूं घर में कोई है या नहीं...केतकी नहीं आयी अभी तक?’

‘नहीं, आज उसे देर हो जाएगी शायद।’

‘ठीक है, तो मुझे चाय पिलाओ...जरा ज्यादा बनाना...सिर में बड़ा दर्द हो रहा है...तीन-चार कप चाय बनाओ...’

भावना का मन हुआ कि वह खूब जोर से चीखे, लेकिन वह चुपचाप रसोई घर में गयी और उसने चाय का पानी चढ़ा दिया। जब वह चाय लेकर बाहर आयी तो उपाध्याय मैडम के पास प्रसन्न भी बैठा दिखाई दिया। दोनों बातचीत कर रहे थे। भावना को याद नहीं था कि उपाध्याय मैडम के अंदर आने के बाद उसने दरवाजा बंद किया था या नहीं। प्रसन्न ने भावना की तरफ देखा भी नहीं। लेकिन इस बार भावना को गुस्सा नहीं आया। उसकी ध्यान में आया कि ये लोग कोई प्लान बना रहे हैं, लेकिन पता कैसे चल पाएगा कि वास्तव में है क्या? इन लोगों ने जोरदार सस्पेंस खड़ा कर दिया है। क्या होगा? कुछ उल्टा-सीधा न हो गया हो बस...

तभी दरवाजा बजा, तो भावना ने उठकर दरवाजा खोला। दरवाजे पर डिलवरी बॉय खड़ा था, ‘भावना बहन जानी आप ही हैं?’

‘हां, क्या है?’

‘यहां सही करें, पार्सल है आपके नाम का।’

भावना ने सही करके पार्सल हाथ में लिया... ‘बाप रे...इतना भारी ...?’

‘अच्छे से पकड़िए...हाथ से छूट गया और फूट गया तो मुझ पर आएगा...’

भावना ने जैसे-तैसे उस पार्सल को उठाकर नीचे रखा। तभी फिर से दरवाजा बजा। उसने परेशान होकर दरवाजा खोला, लेकिन सामने कोई भी नहीं था। आजूबाजू भी कोई दिखाई नहीं दिया। उसे आश्चर्य भी हुआ और गुस्सा भी आया। ‘कौन फालतूगिरी कर रहा है?’ इतना कहकर वह पीछे मुड़ी इतने में न जाने कहां से केतकी फुर्ती से अंदर आ गयी। वो सीधे उपाध्याय मैडम के पास आकर बैठ गयी। भावना दरवाजा बंद करने के लिए मुड़ी, तो केतकी ने आदेश दिया, ‘दरवाजा बंद मत करना।’

भावना बिना कुछ बोले अपनी जगह पर आकर बैठ गयी। उपाध्याम मैडम और प्रसन्न बातें करने में व्यस्त थे। केतकी मोबाइल पर बात कर रही थी, ‘हां, हां...अब कोई एतराज नहीं...।’ कुछ ही क्षण में एक कुत्ता दौड़ते-दौड़ते घर के भीतर आ गया। भावना डर गयी। कुत्ता केतकी के पैरों के पास आकर खड़ा हो गया। उसके गले में एक थैली बंधी हुई थी। भावना ने उस थैली को खोला...उसमें लिखा हुआ था, ‘हैप्पी बर्थ डे...ये जिंदा, दौड़ने वाला भागने वाला बर्थडे गिफ्ट पसंद आया कि नहीं?’

भावना का गला रुंध गया। वह कुछ कहती इसके पहले ही केतकी, प्रसन्न और उपाध्याय मैडम खड़े होकर गाने लगे, ‘हैप्पी बर्थडे टू यू...हैप्पी बर्थ डे टू भावना...हैप्पी बर्थ डे...’

भावना ने केतकी की तरफ देखा...केतकी दोनों बांहें फैलाकर खड़ी थी। भावना भागते हुए सुसे पास गयी और गले से लग गयी। कुछ पल के लिए तो जैसे समय भी ठहर गया था।

उपाध्याय मैडम ने भावना के कंधे पर थपकी मारी लेकिन भावना ने सिर उठाकर देखा ही नहीं। वह केतकी के कंधे पर सिर रखकर मुस्कुरा रही थी। फिर उपाध्याय मैडम ने उसे अपनी ओर खींचा। भावना ने पीछे मुड़कर उनकी तरफ निर्विकार भाव से देखा, मानो वह उन्हें पहचानती ही न हो।

उपाध्याय मैडम भावुक हो गयीं। ‘तुम मुझे रोने की सजा देना चाहती हो तो वैसा कहो...’ जवाब दिये बिना भावना उनके गले लग गयी। तभी प्रसन्न ने जानबूझकर अपना गला खखारा। उसकी तरफ देखकर भावना ने नाक सिकोड़ ली। ‘मुझे लगता था कि आप हमेशा मेरी तरफ खड़े रहेंगे। ’

‘तुम्हारे साथ ही हूं हमेशा...मेरी कसम यार... ’ भावना ने उसके मुंह पर अपना हाथ रख दिया। ‘कसम खाने की बजाय आशीर्वाद दीजिए।’ प्रसन्न ने उसका हाथ अपने हाथों में लिया और जन्मदिन की शुभकामनाएं दीं। कुछ देर पहले आये हुए पार्सल को प्रसन्न ने खोला, उसमें से ड्रेस, नया मोबाइल, टी शर्ट, पर्स और न जाने क्या-क्या निकला। ये सब भावना के लिए था...प्रसन्न, उपाध्याय मैडम और केतकी की तरफ से। केतकी ने भावना को अपनी तरफ खींच लिया। चारों एकदूसरे के गले में हाथ डालकर सेल्फी लेने लगे, तभी वो कुत्ता भौंकने लगा। भावना ने भागकर उसे उठा लिया। और मोबाइल की फ्रेम में आते हुए कहा, ‘से चीज़...’

 

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह

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