अग्निजा - 66 Praful Shah द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अग्निजा - 66

प्रकरण-66

केतकी अपने आंसुओं को रोकती हुई घर में घुसी और अपने कमरे में जाकर उसने दरवाजा बंद कर लिया। यशोदा को लगा कि यह अभी तो गई थी और तुरंत वापस लौट आई? वह रुंआई होकर। जैसे तैसे सब ठीक होने को आया है, फिर कहीं कोई गड़बड़ न हो जाए। उसे आनंद हो रहा था कि उसकी बेटी के अब सुख के दिन शुरू हो रहे हैं। लेकिन मानो उसकी ही नजर लग गई उसको।

यशोदा ने केतकी के कमरे का दरवाजा धीरे से बजाया, “केतकी बेटा...दरवाजा खोलो न...” यशोदा ने जब बहुत प्रयास किया तो भीतर से आवाज आई, “मां, चिंता मत करो। मुझे कुछ देर अकेले रहना है, प्लीज।”

यशोदा निराश होकर वहां से जा ही रही थी कि भावना आ पहुंची। उसने यशोदा को रुकन के लिए कहा। भीतर केतकी को राहत हुई कि मां ने कम से कम उसकी बात तो मानी। उसने साड़ी खींच कर निकाल दी। पेटीकोट और ब्लाउज पहने-पहने आईने के सामने खड़ी हो गई। क्या मैं अच्छी नहीं दिखती? उसे मुझमें कुछ भी अच्छा नजर नहीं आता? अपने पुराने विचारों के चश्मे से ही मुझे देखता है। हर बात में बुराई और गलती दिखाई देती है, इस पर क्या इलाज किया जाए? इतने में बाहर हल्ला-गुल्ला सुनाई पड़ने लगा।

“मां...”भावना जोर से चीखी। “खूब जलन हो रही है..” तुरंत यशोदा का चिंतातुर स्वर सुनाई दिया, “ऐसे कैसे दल गई इतनी....हे भगवान...”

“ओ मां...कुछ करो न...”भावना और जोर से चिल्लाई। केतकी ने घबरा कर साड़ी लपेटी और दरवाजा खोला। सामने भावना हंसती हुई खड़ी थी, उसने यशोदा से कहा, “देख लिया न केतकी दीदी को...संतोष हो गया...? अब सब कुछ मुझ पर छोड़ दो...”इतना कह कर भावना कमरे में गई। केतकी उसकी तरफ गुस्से से देख रही थी। भावना ने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। केतकी ने गुस्से में उसे एक थप्पड़ मार दिया।

“ये क्या नाटक है? डर के मारे मेरी जान ही निकल गई होती...”

“ और तुम ...बाहर से आकर दरवाजा बंद करके कमरे में अकेली बैठी थी तो हमें चिंता नहीं होती होगी? और दो-चार थप्पड़ मार लो...पर ऐसा तो होगा ही।”

केतकी का दिल भर आया। उसने भावना को गले से लगा लिया “मुझसे इतना प्रेम मत कर पगली, मुझे इतने प्यार की आदत नहीं है, मेरे जीवन में प्रेम टिकता ही नहीं है...”

“वो सब मैं नहीं जानती। लेकिन यदि मैंने तुमसे प्रेम नहीं किया तो मैं मर जाऊंगी...तुम मेरे लिए ऑक्सीजन हो...आक्सीजन के बिना मैं कैसे जी पाऊंगी? सब कुछ फिनिश...” भावना ने जीभ बाहर निकालकर आंखें घुमाईं और नीचे गिर पड़ी। केतकी चिल्लाई, “उठ ड्रामेबाज..आगे से ऐसा नाटक किया तो....”

“तो क्या?”

“तुम्हें ससुराल भेज दूंगी।”

भावना तुरंत उठ बैठी। “न बाबा न.. वास्तव में अगर मरने के लिए ही शादी करनी होगी तो मैं मरना कैंसल कर दूंगी, जीना चालू.. अच्छा ये सब छोड़ो, हुआ क्या ये बताओ मुझे।”

“जाने दे...फालतू बातों में समय क्यों गंवाना?”

“फालतू बातों में अपना मूड गंवा बैठे इतनी भावुक तो मेरी दीदी नहीं है...हां...चुपचाप बताओ दो क्या हुआ...या फिर कोई नया आइडिया लगाऊं...?”केतकी भावना को देखती रही। उसकी आंखें गीली हो गईं, और जीभ चलने लगी... बड़ी देर तक..जीतू के किस्से सुनाती रही..बिना किसी संकोच के...

जब सब कुछ बता दिया तो केतकी स्थर नजरों से भावना की तरफ देखती रही। सच कहें तो वह भावना की तरफ देख ही नहीं रही थी। उसकी नजरें भावना को पार करके कहीं अज्ञात में टिकी हुई थीं। उन नजरों में कोई भाव नहीं था। वह अन्यमनस्क स्थिति में बैठी थी। अपनी दीदी को इस हालत में देख कर भावना घबरा गई। उसने केतकी के दोनों हाथ पकड़े। धीरे से उसके पास सरकी। उसे अपने सीने से लगा लिया। उसकी पीठ पर हाथ फेरती रही। लेकिन कुछ देर में ही भावना का अपने आप से नियंत्रण छूट गया और वह हिचकियां देकर रोने लगी। उसके रोने में केतकी भी कब शामिल हो गई, दोनों को पता नहीं चला।

“केतकी...ए भावना...” बाहर से यशोदा की पुकार सुनकर दोनों बहनें होश में आईं। तुरंत अपनी आंखें पोंछते हुए भावना ने उत्तर दिया, “आती हूं...पांच मिनट...मां सब ठीक है...” फिर केतकी की तरफ देखते हुए बोली, “तो अब क्या करने वाली हो?”

“ करना क्या है? किसी को मत बताना बस। ये बातें हम दोनों के बीच ही रहने देना। अपने घर के लोगों को तो इसमें भी मेरी ही गलती दिखाई देगी...” “ठीक है...तेरी भी चुप...मेरी भी चुप...”

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दो-तीन दिन से जीतू बहुत परेशान था, मीना बहन को यह समझ में आ रहा था। केतकी से मिलने भी नहीं जा रहा है। अपने छोटे-छोटे कामों की बड़ाई नहीं कर रहा है। सुबह उठते साथ चाय के लिए हल्ला नहीं मचा रहा है। वह तो ठीक, लेकिन खाने-पीने की ओर उसका ध्यान नहीं था। जीतू मैट्रिक में दो बार फेल हुआ, उसके रिजल्ट के दिन भी भरपेट खाना खाया था उसने, तो फिर अब ऐसा क्या हो गया? जीतू ने नौकरी या धंधा-दोनों को ही कभी गंभीरता के साथ किया ही नहीं, इस लिए उसमें विफल होने और उसके कारण परेशान होने का तो प्रश्न ही खड़ा नहीं होता। किसी से डरने वाला नहीं था वह कि इस तरह चुप हो जाए। कारण तो केवल एक ही होना चाहिए... और वह है केतकी।

जीतू ने अपने उतावले स्वभाव के कारण यदि कोई गड़बड़ कर दी, तो बड़ा नुकसान हो जाएगा। मीना बहन के लिए केतकी यानी एक पत्थर से कई निशाने साधने का माध्यम थी। जीतू जैसे उद्दंड बछड़े को बांधने का खूंटा थी केतकी। घर के कामकाज और घर के लिए हमेशा कमाई करने वाली थी केतकी। खास तौर पर शादी के बहाने भिखाभा से अपने चार लाख रुपए उगाहने का मौका थी केतकी। केतकी पर कितने भी संकट आ जाएं, पर वह लौट कर अपने सौतेले बाप के पास जाने की संभावना नहीं थी। ऐसी सर्वगुण संपन्न, सोने का अंडा देने वाली मुर्गी जीतू के नसीब में फिर कहां आएगी?  इसे किसी भी हालत में अपने हाथ से जाने नहीं देना है। इसके लिए अपने बेटे को ठीक से समझाना होगा और उसे अपनी बातों से राजी करना होगा, नहीं तो सब किए कराए पर पानी फिर जाएगा। और फिर, जीतू की शादी टूटी तो कल्पु के लिए लड़का तलाशना मुश्किल हो जाएगा। इस लिए किसी भी हालत में केतकी को इस घर में लाना ही होगा। मीना बहन ने जीतू को अपने पास बुलाया और उसे एक एक करके सारी बातें समझाईँ। उस पर से यह भी बताया, “तेरे जैस लड़के को केतकी जैसी लड़की किसी भी हालत में मिल ही नहीं सकती। ये तो लाखों-करोड़ों की लॉटरी लगी है तुम्हारे हाथ। जब तक हाथों में रकम आ नहीं जाती, तब तक तुमको इस टिकट को जतन से रखना होगा। थोड़ा धीरज रखो। एक बार वो घर में आ जाए, फिर उसे अपनी मर्जी के मुताबिक रखना। न रहे, तो चार फटके लगाना...सब चलेगा। ”

“लेकिन मां, उसके कपड़े तो देखो...”अरे मूर्ख, तेरा हीरो अजय देवगन, उसकी हीरोइनें एकदम छोटे-छोटे कपड़े पहन कर जब नाचते हैं तब क्या तू आंखें बंद कर लेता है, या सीटियां बजाता है? ”

“कुछ भी मत बोलो मां...वो हीरोइने हैं...”

“तो क्या हुआ, वे किसी की बेटियां नहीं? किसी की पत्नी नहीं बनेंगी, बहू नहीं बनेंगी? अभी तो उसके साथ अच्छे से बर्ताव करो....प्रेम से रहो...हंस-खेल के रहो। यदि भिखाभा नहीं माने तो तेरे ससुर को बुला कर उनसे बात करूंगी, कुछ तो करूंगी ही। लेकिन तब तब तू अजय देवगन की तरह अभिनय करता रह। अपनी हीरोइन पर इतना प्रेम कर कि वह तेरेघर आने के लिए उत्सुक हो जाए। जिद करने लगे। समझ में आया कि नहीं?” जीतू सिर खुजाने लगा। उसे बात थोड़ी बहुत समझ में आ गई थी।

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह

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