अग्निजा - 80 Praful Shah द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अग्निजा - 80

प्रकरण-80

केतकी को देर रात तक नींद ही नहीं आई। बालों का विचार उसका पीछा ही नहीं छोड़ रहा था। इन्हीं विचारों के बीच उसे नींद आ गई। सुबह उठ कर केतकी ने अपनी मुट्ठियां जोर से भींचीं और अपने आप से ही कहा, “मुझे कुछ नहीं होने वाला। मेरे बाल वापस आएंगे।” ऐसा करने से उसे मन ही मन अच्छा लगा। उसने हमेशा की तरह गुनगुने पानी से बड़ी देर तक शांति से स्नान किया। स्पेशल शैंपू से बाल धोए। नहाते समय कोई गाना गुनगुनाती रही। साबुन मलते हुए शरीर से मैल छुड़ाने के साथ निराशा, चिंता और नकारात्मक विचारों को भी अपने मन से घिस-घिस कर निकाल फेंका। वह तरोताजा महसूस करने लगी। तौलिए से मुंह पोंछ कर हमेशा की तरह “गुड मॉर्निंग केतकी” कहने ही जा रही थी कि उसका ध्यान फर्श की ओर गया और वह जोर से चीख पड़ी। लेकिन उसके मुंह से आवाज नहीं निकली। मानो गले में ही अटक गई हो। पूरा स्नानगृह उसके बालों से भर गया था। किसी भूतिया डरावने सिनेमा से भी डरावना था यह दृश्य। उसने चारों तरफ गोल-गोल घूम कर देखा। ऐसा दिखाई दे रहा था मानो स्नानगृह की फर्श मार्बल की न होकर मानो काले बालों से बनी हो। केतकी के बालों से बनी। केतकी के पैरों में ताकत नहीं रही। ऐसा लगा मानो उसके भीतर की पूरी शक्ति उन बालों के साथ निकल गई हो। वह धराशायी हो गई। वह बेसिन को पकड़ कर जैसे-तैसे खड़ी हुई। बची-खुची शक्ति को समेट कर उसने अपने सिर पर तौलिया लपेटा और बाहर आई। उस दिन केतकी ने न तो चाय-नाश्ता लिया न की किसी से बात की। वह चुपचाप अपने कमरे में बैठी रही। कुछ पड़ने का बहाना बना कर। तभी भावना ने आकर उसे गले से लगा लिया। केतकी ने  उसे जैसे-तैसे अपने से दूर धकेला तो उसने अपना मोबाइल उसे दिखाया। प्रसन्न शर्मा का मैसेज था। आज शाम सात बजे डॉक्टर से मिलने के लिए गांधीनगर जाना था। भावना के उत्साह पर केतकी ने कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दी। उसको लग रहा था कि अब उसके बालों का कुछ नहीं हो सकता। केतकी ने भावना से कहा, “मना कर दो, मुझे नहीं जाना है।” भावना को झटका लगा। लेकिन उसने मोबाइल में मैसेज टाइप किया, “ओके. शाम को मिलते हैं।” केतकी के जाने के बाद भावना अपने मन ही बोली, “बड़ी आई मना करने वाली। उसको पता नहीं है कि मैं किसकी बहन हूं। छोटी हूं पर हूं तो लौंगी मिर्ची।” और शाम को केतकी शाला से निकली तब वहां भावना और प्रसन्न शर्मा दोनों ही गेट के पास उसकी प्रतीक्षा करते हुए खड़े थे। केतकी ने गुस्से से भावना की ओर देखा। लेकिन भावना ने ऐसा जताया मानो उसने केतकी की तरफ देखा ही न हो और प्रसन्न से बोली, “चलिए जल्दी। रिक्शे में बैठ कर ही कुछ खा लेंगे। मैं तीनों के लिए इडली, चटनी और सैंडविच लाई हूं। ” रिक्शे में केतकी चुप ही थी। लेकिन भावना और प्रसन्न ने खूप गप्प मारी। भावना को प्रसन्न बहुत पसंद आया। ‘कितना सज्जन, सह्रदय और शांत है यह व्यक्ति.’ भावना खुश थी। आज का दिन बड़ा अच्छा है, ऐसा उसे लग रहा था। प्रसन्न जैसे भले इंसान से मुलाकात हुई।

दवाखाने में पहुंचने ही एक लड़के ने आकर पूछा, “केतकी जानी?” भावना ने सिर हिलाते साथ उसने कहा, “अंदर आइए।” डॉक्टर की केबिन बहुत शानदार भले ही नही हो लेकिन व्यवस्थित थी। साधारण लेकिन सुंदर। कर्णप्रिय मंद मधुर संगीत चल रहा था। एक कोने में बड़ा सा चित्र रखा हुआ था। हरा-भरा पर्वत, उस पर धवल बादल और चांदी सरीखा चमचम बहता पानी। वह चित्र आंखों के साथ-साथ मन को भी आनंदित कर रहा था। उससे भी अच्छी बात यानी उस चित्र के सामने एक दीपक जल रहा था।  बाजू में रखे हुए धूपपात्र में जल रहा धूप वातावरण को सुगंधित बना रहा था। इस संपूर्ण वातावरण के अनुरूप ही डॉक्टर का भी व्यक्तित्व था। काली पैंट पर सफेद कुरता, चेहरे पर तेज और आंखों पर रिमलेस चश्मा। माथे पर चंदन का टीका। बातचीत शुरू करने से पहले डॉक्टर ने एक रेशमी डोरी खींची उसी समय छोटी घंटियों की मधुर ध्वनि गूंजने लगी, पक्षियों की चहचहाहट सुनाई पड़ी। तुरंत, वही लड़का तांबे के चार गिलास रख कर गया। “सबसे पहले सब निश्चिंत हो जाएं। मन की चिंता और बेचैनी दूर करें, और फिर शुभ कार्य की शुरुआत करेंगे।”

उनकी आवाज में एक नम्र आदेश था। उन्होंने भी एक गिलास उठाया। वशीकरण की भांति उनके पीछे-पीछे तीनों ने भी एक-एक गिलास उठा लिया। उसमें सौंफ का शरबत था। केतकी को पसंद आया। उसमें और क्या डला था, उसे समझ में नहीं आया। उसने भावना की ओर देखा। डॉक्टर ने जैसे उसके मन का प्रश्न पढ़ लिया हो, वह बोले, “केतकी बहन सौंफ के इस शरबत में शहद, तुलसी और पुदीने का रस डाला है। ये सभी फायदेमंद चीजें हैं।”

प्रसन्न ने खुशी जताते हुए कहा, “बहुत स्वादिष्ट और ठंडा है। पेट में ठंडक लग रही है।”

“केतकी बहन, अपनी बात इस तरह से कहें मानो मुझसे नहीं, अपने ईश्वर से बातें कर रही हों। उससे पहले एक बात बताता हूं। मन में आशा ही नहीं यह श्रद्धा भी रखें कि मेरी इस समस्या का अंत होना ही है। यह समस्या भूतकाल में नहीं थी और भविष्य में रहने वाली नहीं, कुछ इस विश्वास के साथ बताना प्रारंभ करें। एकदम शांति से, निश्चिंतता से सबकुछ बताइए। कोई जल्दी नहीं है। नया मरीज आ जाये तो मैं उसके बाद किसी को भी अपॉइन्टमेंट नहीं देता। इस लिए निश्चिंत रहिए और ईश्वर का नाम लेकर अपनी बात कहना शुरू करें। ”

अपनी बात समाप्त करके डॉक्टर ने आंखें बंद कर लीं। केतकी ने गंजापन शुरू होने से लेकर, अलग-अलग तरीके की दवाइयां और डॉक्टरों तक की कहानी सुना दी। उसके कारण हुए मानसिक कष्ट को लेकर वह भावुक हो गई। केतकी की बात समाप्त होने के एकाध मिनट बाद डॉक्टर ने अपनी आंखें खोलीं। धीमे से मुस्कुराते हुए केतकी की तरफ देखा। “आप दो पल के लिए पहले शांत हो जाइए।” केतकी ने पर्स में से रुमाल निकाल कर अपने आंसू पोँछे। डॉक्टर की तरफ मुस्कुराते हुए इस भाव से देखा कि अब वह शांतचित्त है। डॉक्टर ने कोने में रखे हुए प्रकृति के चित्र की तरफ देखा और हाथ जोड़े। मन ही मन  अपने आराध्य देवता का स्मरण किया।

“मैं इसको समस्या मानता ही नहीं। हमारा शरीर अमुक तत्व की उपस्थिति के कारण तीव्र प्रतिक्रिया देता है। नाराज होकर कोई निर्धारित काम करना बंद कर देता है। आपके शरीर ने भी इसी तरह गुस्से में आकर अपने बालों को फेंकने की शुरुआत की है। और नये बाल बनाने की प्रक्रिया बंद कर दी है। ठीक है न? ”

केतकी ने हां में सिर हिलाया। डॉक्टर बोलते रहे, “कोई नाराज हो जाए या कोई गुस्सा हो, यदि हमारा प्रिय व्यक्ति, जिसके बिना हम जी नहीं सकते, हम क्या करते हैं?”

केतकी ने सहजता से उत्तर दिया, “हम उसको जाकर मनाते हैं। उसका गुस्सा दूर करने का प्रयास करते हैं।”

“ठीक. शरीर को भी मनाना पड़ेगा। उससे थोड़ा दुलार करें, उससे प्यार करें। उसके अभिमान का जतन करें। इतने दिन तक सब ठीकठाक था, तब आपने कभी अपने शरीर का आभार माना? नहीं, तो उसने थोड़ा सा नाराज होकर अपना काम करना बंद कर दिया तो आपने उसे कितने दोष दिये? दोषारोपण किया? उसको खत्म कर देने का विचार किया?आत्महत्या करने का विचार किया था कि नहीं?”

केतकी कुछ बोल ही नहीं पाई। उसकी आंखों से आंसू बहने लगे।

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह

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