अग्निजा - 41 Praful Shah द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अग्निजा - 41

प्रकरण 41

शांति बहन को घर में फैली हुई नीरवता खल रही थी। उनका दम घुट रहा था। उन्होंने एक व्यूहरचना की। उन्होंने यह सबकुछ जयश्री को मिर्च मसाला लगाकर बताया। “ये चलने वाला नहीं, चींटी को पंख निकल आए हैं। आज वह हरामी बोल रही है, कल उसकी मां भी मुंह चलाने लगेगी। पर ये हुआ कैसे, ये ही समझ में नहीं आ रहा.. यशोदा को वह पहली बार मार खाते हुए थोड़े देख रही थी। किसी ने उसके कान तो नहीं भरे होगें...जयश्री, तुम एक काम करो...वो जहां पढ़ने जाती है वहां उसकी कौन-कौन सी सहेलियां हैं...किससे मुलाकात करती है...किससे बात करती है...इस पर नजर रखो...जानकारी लाओ...सांप और दुश्मन इनको समय रहते ही मारना पड़ता है, नहीं तो बाद में खुद को ही सहन करना पड़ता है...”

जयश्री ने जासूसी शुरू कर दी। उसकी सहेली यास्मीन की बहन केतकी के साथ एमए कर रही थी। वह यास्मीन की बहन, रमोला से जाकर मिली। केतकी का जिक्र होते ही वह बोली, “अरे, वह तो उपाध्याय मैडम की लाड़ली है...लाड़ली...पूरा कॉलेज इस जोड़ी को पहचानता है...चार ही महीने में दोनों ने एकदूसरे पर जाने क्या जादू कर दिया, समझ में नहीं आता...थोड़ा भी समय मिले तो दोनो साथ बैठती हैं...मैडम उसको नोट्स देती हैं...पुस्तकें देती हैं...कभी-कभी अपने टिफिन में से खाने के लिए भी देती हैं। सभी मजाक में उन्हें लव बर्ड्स कहते हैं...”

उपाध्याय मैडम अविवाहित थीं। वह तर्कशास्त्र पढ़ाने वाली बहुत अच्छी प्रोफेसर, कवयित्री और खासतौर पर प्रखर स्त्रीवादी महिला हैं-यह जानकारी भी जयश्री को मिली। आग लगाने के लिए इतनी जानकारी जयश्री के लिए काफी थी। उसने शांति बहन को जाकर बताया, “ऐसी स्त्रियां, पुरुषों से गुस्सा करती हैं...किस तरह से पुरुष सदियों से महिलाओं पर अत्याचार करते आ रहे हैं, यह बताती हैं...स्त्रियों ने आज तक बहुत सहन कर लिया, अब उन्हें आवाज उठानी चाहिए-ऐसा सिखाती हैं...उनको डर नहीं होता इसलिए घर की चिंता भी नहीं करतीं...मुझे तो लगता है कि केतकी को वही पट्टी पढ़ा रही हैं...”

“हम्म्म...दिन भर तुम जिसके साथ रहते हो उसका प्रभाव पड़े बिना रहता ही नहीं... संगत का असर...पर ये कल की छोकरी...मुझे पहचानती नहीं है अभी...”

रात को रणछोड़ दास बहुत देर से लौटा, आया भी तो खूब दारू पीकर...शांति बहन को उससे बात करनी थी लेकिन वह उनकी ओर बिना देखे ही अपने कमरे की ओर निकल गया। शांति बहन को बहुत गुस्सा आया... “ऐसा पहली बार हुआ है...ये उन दो कलमुहिंयों की वजह से हुआ है...”

रणछोड़ दास ने बत्ती जलाई और यशोदा उठ कर बैठ गई, “खाना लगा दूं?”

“नहीं, बाद में...पहले तुम मेरे सामने बैठो...” यशोदा को पलंग पर बिठा कर रणछोड़ कुर्सी सरका कर उसके सामने बैठ गया। थोड़ी देर वह यशोदा की तरफ देखते रहा। फिर जेब से एक तुड़ामुड़ा कागज निकाल कर यशोदा के हाथ में दे दिया। “मुट्ठी बंद रखो...और ध्यान से सुनो...इस चंदा को मैं पिछले कई सालों से जानता हूं...मेरी पहली पत्नी के मरने के पहले से...क्या समझीं? लेकिन हम दोनों के बीच कुछ नहीं था..फिर तुम इस घर में आई...तुम्हारे साथ वो हरामी लड़की...तुमने न तो मुझे प्रेम दिया न बेटा...मैं बिखर गया...मैं तो मर ही गया होता...लेकिन चंदा ने मुझे जिंदा रखा है...उसके कारण मैं दारू पीने लगा...और दारू ने मुझे जिंदा रखा है...”

“लेकिन आपके शरीर को नुकसान...”

“कैसा नुकसान...? बेटा नहीं है तो मेरा नाम कौन चलाएगा, मेरी चिता को कौन अग्नि देगा, ये सब किसके लिए कमा रहा हूं? इतने सारे यातनादायक प्रश्नों को मैं दारू के कारण भूल जाता हूं...दारू के कारण मुझे नींद आती है...”

“लेकिन...”

“चुप...एकदम चुप...मुंह मत चलाओ...अब मुट्ठी खोल कर देखो...क्या है उसमें...” यशोदा ने मुट्ठी खोली..उसमें चंदा का फोटो था...उसको कुछ समझ में नहीं आया।

“समझ में नहीं आया न..? इस फोटो को तुम नीचे रख दोगी...लेकिन ध्यान में रखो, तुम्हारे हाथों की रेखा में चंदा है.. और वो हमेशा रहेगी...जर तुमने और तुम्हारी बेटी ने उस पर कोई एतराज किया तो मैं तुम्हारी इन रेखाओं से हमेशा के लिए निकल जाऊंगा...हमेशा के लिए...इस दुनिया से निकल जाऊंगा...इस लिए जो चल रहा है उसको देखती रहो...क्या?”

यशोदा के मन में प्रश्न उठा कि मेरा ये जीवन कैसा है, कितनी समस्याएं, कितनी परेशानियां? एक पल को चैन नहीं, सुख नहीं, आराम नहीं...

रणछोड़ दास ने धीमी से लेकिन स्पष्ट आवाज में पूछा, “समझ में आया कि नहीं?” लेकिन अपने दुःखों के समुद्र में डूबी हुई यशोदा को न तो उसकी आवाज सुनाई दी, न उसने उत्तर दिया।

रणछोड़ दास ने दांतों को भींचते हुए उसे एक थप्पड़ मारा, “अब तुमको मेरी बात भी सुनाई नहीं पड़ती क्या? देखूं तो जरा...” इतना कह कर उसने यशोदा का मुंह जबरदस्ती खोला और उसमें रुमाल भर दिया। उसके बाद यशोदा को जानवरों की तरह मारने लगा। न जाने कितनी ही देर वह उसको मारता रहा। “यदि मुंह से आवाज निकाली न...तो तेरी खैर नहीं...साली...घड़ी भर कहीं चैन से रहने नहीं देती...खुद में दम नहीं...कुछ भी नहीं दे सकती मुझको...और बड़ी आई फोटो लेकर खड़ी हो जाती है सामने...कमजात साली...” इतना कह कर रणछोड दास ने उसे इतनी जोर से लात मारी कि यशोदा दीवार के पास जा गिरी। फिर उसने पानी का जग उठा कर मुंह से लगा लिया। पानी मुंह में कम बिस्तर पर अधिक गिर रहा था। पानी पीने के बाद उसने जग यशोदा की ओर दे मारा। लेकिन वह उसे लगा नहीं, कुछ दूर जाकर गिरा। अपने दोनों हाथों से अपना सिर पकड़कर रणछोड़ दास उसकी ओर देखता रहा। फिर सो गया और खर्राटे भरने लगा। यशोदा रोती रही। कराह रही थी, लेकिन उसे अपने मुंह में भरा हुआ रूमाल निकालने की भी सुध बाकी नहीं रह गई थी।

उधर, दूसरे कमरे में केतकी को नींद नहीं आ रही थी। उसने उठ कर पानी पिया। उसके दिमाग में मां के बारे में विचार घूम रहे थे। “इस नरक से उसको जल्दी मुक्त नहीं कराया गया तो वो एकाध दिन मर जाएगी। लेकिन मैं कर क्या सकती हूं, आखिर कहां जाए, आदमी कितना लाचार हो सकता है? मां कुछ बोलती क्यों नहीं? कुछ पूछती क्यों नहीं? कुछ करती यों नहीं?” तभी बाजू में सो रही भावना नींद से जाग गई। “केतकी बहन, टेंशन में हो क्या? क्या हुआ?” उसे दिन भर के घटनाक्रम के बारे में मालूम नहीं था। केतकी को लगा कि यह सब समझने की उसकी उम्र नहीं है, वह अभी बहुत छोटी है। लेकिन यदि उसे अभी से मालूम होता जाए तो आगे चल कर दुःख कम होगा। उसने सारांश में सब कुछ बता दिया। भावना की आंखों में आंसू आ गये। “बहन, आज तो मां की खैर नहीं होगी?”

“मुझे भी वही सोच-सोच कर नींद नहीं आ रही है। ”

“तुमको आवाज सुनाई दी की नहीं?”

“नहीं...इसका मतलब है सब ठीक होगा...लेकिन डर लग रहा है...कहीं कुछ उल्टा-सीधा तो नहीं हो गया होगा न?”

“मैं दरवाजा बजा कर देखती हूं...” भावना उठी।

केतकी को लगा कि उसको रोकना चाहिए, पर वह कुछ नहीं बोली। भावना ने रणछोड़ दास के कमरे का दरवाजा खटखटाया, “मां, मां...दरवाजा खोलो...” पांच-छह बार दरवाजा बजने के बाद यशोदा होश में आई। रणछोड़ दास के जागने के डर से उसने दरवाजे के पास जाकर धीरे से पूछा, “क्या हुआ भावना, इस समय तुम्हें क्या काम है?”

“मां, मेरे पेट में बहुत दर्द हो रहा है और सिर में भी दर्द है...बहुत दर्द है...” इतना सुनते ही यशोदा ने दरवाजा खोला।

मद्धिम रौशनी में भी उसको देख कर भावना को झटका लगा। उसने धीमे से मां का हाथ पकड़ा और उसे अपने कमरे में ले आई। केतकी ने बत्ती जलाई और मां की ओर देख कर गिरते-गिरते बची। बहुत दिनों से भूखा शेर किसी हिरण को जिस तरह से फाड़ खाता है, यशोदा की स्थिति वैसी ही थी। दोनों ने मिल कर यशोदा को पलंग पर बिठाया और फिर दोनों उसकी गोद में सिर रख कर रोने लगीं। केतकी ने सिर उठा कर उसकी ओर देखा और कहा, “और कितने दिन ये अत्याचार सहन करते रहेंगे? ” यशोदा ने उत्तर दिया, “तुम दोनों शादी होकर ससुराल चली जाओगी तब तक, या फिर मेरे मरने तक।”

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह