अग्निजा - 143 Praful Shah द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अग्निजा - 143

लेखक: प्रफुल शाह

प्रकरण-143

‘देखो केतकी, उम्र के साथ व्यक्ति में परिपक्वता आए, ये जरूरी नहीं होता। परीक्षा में मिलने वाले अंकों के आधार पर व्यक्ति की होशियारी का आकलन नहीं किया जा सकता और अफवाहों के आधार पर किसी के चरित्र का मूल्यांकन नहीं हो सकता।’ प्रसन्न समझा रहा था। केतकी की कक्षा के एक दो विद्यार्थियों के अभिभावकों ने शिकायत की, ‘हमें गुमनाम फोन आते हैं कि केतकी जानी के प्रोजेक्ट के विरोध में शिकायत करें। उनके विरोध पत्र पर हस्ताक्षर करें।’ यह जानकर केतकी का मन खिन्न हो गया। उसकी व्यथा सुनकर प्रसन्न उसको समझा रहा था। ‘हमारा उद्देश्य गलत नहीं है। वे तुमसे ईर्ष्या करती हैं क्योंकि वे कुछ नया सोच नहीं पाती हैं। इस वजह से इस तरह की कारस्तानियां करती हैं। लेकिन हम उस ओर ध्यान क्यों दें? हाथी चले बाजार...कुत्ते भोंके हजार...ये कहावत हमेशा याद रखना।’

अभिभावकों ने हस्ताक्षर करने से मना कर दिया तो तारिका चिनॉय चिढ़ गयी। अचानक उसके दिमाग में एक शैतानी विचार आया। चेहरे पर हंसी लाकर उसने प्रिंसिपल मेहता को फोन लगाया। उसकी बातें सुनकर वह बोलीं, ‘वेरी गुड..गो अहेड...ऑल द बेस्ट...’

चौथे दिन राज्य सरकार के शिक्षण विभाग की ओर से केतकी और स्कूल को एक पत्र मिला। उसमें लिखा गया था, ‘शिक्षिका केतकी जानी नियमित शिक्षण कार्य और प्रचलित प्रोजेक्ट कार्यों के बजाय विद्यार्थियों से उल्टे-सुल्टे काम करवा रही हैं। इस वजह से विद्यार्थियों के बाल मन विचलित हो सकते हैं और उनके भविष्य पर इसका बुरा असर हो सकता है, ऐसा अनेक अभिभावकों का विचार है। अतः इस संदर्भ में शिक्षिका और स्कूल तीन दिनों के अंदर स्पष्टीकरण प्रस्तुत करें अन्यथा दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी।’

इस कारण बताओ नोटिस को पढ़ कर केतकी डर गयी। ठीक उसी समय कीर्ति चंदाराणा सर किसी जरूरी काम से अपने गांव गये हुए थे। प्रसन्न अपने मित्र की सगाई में शामिल होने के लिए मुंबई में था और भावना अपनी सहेली के घर नाइट-आउट के लिए गयी हुई थी। केतकी बहुत डर गयी। उसे अपने आप पर गुस्सा आ रहा था। उसे लगा कि वह आखिर किसके लिए इतनी मेहनत कर रही है? इससे उसे क्या मिलने वाला है? उसके कारण बाल मन विचलित...? उनके भविष्य पर बुरा असर होगा? केतकी सोफे से उतर कर नीचे बैठ गयी। पुकु और निकी उसके पास आकर बैठ गये। वह दोनों को अपने पास खींचते हुए बोली, ‘तुम्हारे जैसा जीवन होता तो कितना अच्छा होता...ये सपने समानता, सम्मान, ईर्ष्या, करियर ये सब झंझटें नहीं होतीं...बस अपना आनंद...’

वह उठकर पागलों की तरह फेरे मारने लगी। हॉल से रसोई घर और रसोई घर से बेडरूम में। बेडरूम में जाकर उसने जोर से आलमारी खोली। सामने ही एक प्लास्टिक की बैग दिखाई दी। उसने बैग खींच ली। रसोई घर में जाकर दो ग्लास निकाले। बैग में से वाइन की बोतल निकाली। दोनों ग्लास भरे। अपने हाथों में पकड़कर एकदूसरे को टकराते हुए चीयर्स प्रसन्न...थैंक्यू फॉर दिस गिफ्ट...तुमको सब मालूम है...मेरे लिए आज क्या अच्छा होगा..कल क्या अच्छा होगा...कमाल के आदमी हो यार तुम तो। इतना कहकर उसने एक सांस में एक ग्लास पीकर खाली कर दिया। बाद में प्रसन्न का ग्लास उठाया, ‘आज मैं दोस्ती निभा रही हूं लेकिन उसे देखने के लिए तुम यहां नहीं हो। लेकिन जब मैं तुम्हें बताऊंगी तो तुम मान जाओगे। मैं सच बोलती हूं, ऐसा क्यों लगता है तुम्हें? अपने से ज्यादा मुझ पर विश्वास कैसे कर सकते हो तुम, इतना विश्वास? ऐसा मत करो...देखो मैं कितनी बुरी हूं...विद्यार्थियों की तरह ही तुम भी कहीं विचलित हो गये मेरे साथ रहकर तो? अपने भविष्य का विचार करो, समझे?’

दूसरा ग्लास आधा खत्म किया। ग्लास को देखते हुए बोली, ‘मां ने देख लिया तो उसे कैसा लगेगा? और पिता? अरे यार...उनके साथ ही निकल गयी होती तो अच्छा होता...कोई भी विचलित नहीं हुआ होता...सारी समस्यायें साली जिंदा रहने पर ही हैं।’ बचा हुआ ग्लास भी उसने एक घूंट में खाली कर दिया।

पुकु और निकी उसकी तरफ देख रहे थे। ‘सॉरी बच्चा। मेरी वजहसे तुम पर बुरा असर तो नहीं होगा न?’ पुकु भौंकने लगा। वह केतकी के पैर चाटने लगा। उसे देखकर निकी भी केतकी के गाल चाटने लगी। ‘तुम दोनों मेरे जीने का कारण हो...और वह एक भावना.. शू...किसी को बताना मत...लेकिन तुम लोगों के सामने कबूल करती हूं कि जीने का चौथा कारण है वह प्रसन्न शर्मा...एकदम अजीब आदमी है। वन पीस है...उसके बाद भगवान ने ऐसे मॉडल बनाना बंद कर दिया है। लेकिन बेचारे का नसीब तो देखो...उसे मिला कौन? मैं केतकी जानी...केतकी टकली.. समस्याओं को एक बड़ा भंडार...’

केतकी ने फिर से बोतल निकाली और एक ग्लास भर लिया, ‘प्रसन्न ...ये तुम्हारे लिए...मैं तो एक ही पैग पीऊंगी...मुझे आदत नहीं है न...यू अंडरस्टैंड न? थैंक्यू...स्वीट ऑफ यू...लव यू प्रसन्न शर्मा...’ मुंह से ये शब्द तो निकल गए, बाद में पुकु निकी की तरफ देखा तो वे दोनों गैलरी के बाहर देख रहे थे। ‘हुश्श...बच गये...किसी ने नहीं सुना...प्रसन्न ने सुन लिया होता तो...?’

मानो इसी प्रश्न के उत्तर के लिए ही फोन की घंटी बजी। फोन उठाने के पहले केतकी ने देखा कि किसका है, ‘माइ गॉड...प्रसन्न...इस आदमी का मेरे साथ कमाल का कनेक्शन है...मैंने उसे याद किया है, ये बात उसे तुरंत पता चल जाती है।’ वह कुछ देर फोन की तरफ देखती रही। पुकु निकी भौंकने लगे। ‘हां बाबा...उठा रही हूं...’ ग्लास से एक घूंट पीकर केतकी ने फोन रिसीव किया। ‘हैलो...आप केतकी से बात नहीं कर रहे है...ये जो बात कर रही है न ..वह विद्यार्थियों के मन को विचलित करने वाली शिक्षिका है...अपने विद्यार्थियों का भविष्य और करियर बिगाड़ने वाली शिक्षिका, जिसे आज ही शो कॉज नोटिस मिला है, ऐसी शिक्षिका...समझ गये न मिस्टर प्रसन्न शर्मा? ’

‘केतकी? आर यू ओके? क्या हुआ? प्लीज मुझे बताओ...’

केतकी ने नशे में ही जैसे तैसे सब बातें बता दीं। प्रसन्न समझ गया कि केतकी नशे में है और खूब अपसेट है।

‘देखो केतकी, डरने की बिलकुल भी जरूरत नहीं है। मैं जो कह रहा हूं, वह ध्यान देकर सुनो।’ ‘नहीं, तुम्हारा कहा मानने के कारण ही ये सब हुआ है...एक मशीन में, एक आधी मरी हुई लड़की में जान आयी है...उसे गर्व से जीने की आदत लग चुकी है। सपनेदेखने के लिए वह अधीर हो उठी है। लेकिन नो मोर..आई वॉंट टू एंड इट नाऊ...गुड बाय फॉरएव्हर।’

केतकी ने फोन नीचे रख दिया। ग्लास उठाया और उधर प्रसन्न शर्मा चिंतित हो गया। केतकी नीचे बैठ गयी। प्रसन्न की ट्रेन तेजी से भाग रही थी और उससे भी तेज दौड़ रहा था प्रसन्न का मन। उसे लग रहा था कि तुरंत उड़कर केतकी के पास पहुंचा जाए। वह भावुक हो रहा था लेकिन फिर उसने तुरंत अपने आपको समझाया, ‘बी प्रैक्टिकल। कुछ तो करना होगा। ’

 

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह