अग्निजा - 119 Praful Shah द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

  • मोमल : डायरी की गहराई - 47

    पिछले भाग में हम ने देखा कि फीलिक्स को एक औरत बार बार दिखती...

  • इश्क दा मारा - 38

    रानी का सवाल सुन कर राधा गुस्से से रानी की तरफ देखने लगती है...

श्रेणी
शेयर करे

अग्निजा - 119

लेखक: प्रफुल शाह

प्रकरण-119

कोई मर्मस्पर्शी फिल्म या फिर कोई दिल को छूने वाला नाटक देख रही हो, भावना को ऐसा महसूस हुआ। वह कुछ नहीं बोली। उठकर केतकी के पास गयी। उसके सिर को देखती रही। चारों तरफ से घूम-फिरकर देखा। माथे से लेकर गर्दन तक और दोनों कानो के बीच की जो  चित्र थे वे टैटू नहीं थे, केतकी का भावना संसार था। उसकी दुनिया थी। उसकी पहचान थी। उसका स्वाभिमान था।

इसके कारण केतकी के भीतर अब अदम्य विश्वास आ गया था। उसकी चाल बदल गयी थी। उसके चेहरे पर तेज आ गया था। यदा-कदा आने वाली मुस्कुराहट अब हमेशा बनी रहने लगी। टैटू बनवाते समय जो खरोचें आई थीं और उनसे थोड़ा खून बहा था,वह अब ठीक हो गया था। उस दिन केतकी बिना स्कार्फ बांधे ही घर से बाहर निकली और सब उसकी तरफ देखते ही रह गये। सबके मुंह आश्चर्य से खुले के खुले रह गये। आखिर कोई अपने सिर पर कैसे टैटू बनवा सकता है? लोगों को विश्वास ही नहीं हो रहा था। कुछ को लग रहा था कि ये टेंप्ररी बनवाया हुआ डिजाइन होगा। मेहंदी वगैरह लगवायी होगी। किसी किसी को वह वह बहुत अजीब लगी, किसी को पागल।

स्कूल में तो पूछिए ही मत। प्रिंसिपल मेहता और तारिका चिनॉय उसे देखकर स्तब्ध रह गयीं। प्रसन्न ने खूब तारीफ की और इतनी हिम्मत दिखाने के लिए अपनी खुशी भी जाहिर की। यह बात इधर-उधर होते-होते ट्रस्टी कीर्ति चंदाराणा तक पहुंच गयी। उन्होंने दूसरे दिन अर्दली से खबर भिजवायी की वह वह उनसे मिलकर जाये। वह जब केबिन में दाखिल हुई तो उसे देखकर चंदाराणा आश्चर्यचकित रह गये। मानो केतकी कोई इंसान नहीं तो नियाग्रा का जलप्रपात का प्रवाह उनके केबिन के भीतर बहकर आ गया हो। अखंड, अनंत और अकल्पनीय विश्वास का।

चंदाराणा केतकी की तरफ देखकर मुस्कुराये और उसे बैठने का इशारा किया। ‘अब मैं भी आपको बधाई फिर से नहीं दूंगा। लेकिन मुझे बहुत खुशी हो रही है, यह बात तो तय है। आपकी जैसी शिक्षिका मेरी स्कूल में पढ़ा रही है, इस बात पर मुझे गर्व है। यह सब तुम्हारे लिए जितना पीड़ादायक होगा, उतना ही वह प्रेरणादायक भी साबित होगा। मैं तुम्हारे इस अऩुभव को विस्तार से जानना चाहूंगा, लेकिन अभी नहीं और अकेले भी नहीं।’ इतना कहकर उन्होंने इंटरकॉम फोन उठाकर प्रिंसिपल मेहता से कहा, ‘कल शनिवार है। पहले दो घंटे सभी शिक्षक  और विद्यार्थी हॉल में इकट्ठा हों ऐसी व्यवस्था कीजिए और कृपया, इस संबंध में नोटिस घुमा दीजिए।’

अगले दिन शाला का हॉल खचाखच भरा हुआ था। अचानक इस तरह क्यों बुलाया गया है इस बात की सभी को उत्सुकता थी। कीर्ति चंदाराणा ने माइक हाथ में लिया, ‘गुड मॉर्निंग। आप सभी का अधिक वक्त न लेते हुए मैं सीधे मुद्दे पर आता हूं। हमारी शाला का गौरव मानी जानी वाली शिक्षिका केतकीबहन जानी से मैं आग्रह करता हूं कि वह माइक अपने हाथ में लें। ’

अनेक शिक्षकों को केतकी की इस तरह से तारीफ करना कुछ अधिक जान पड़ रह था। बिना वजह। केतकी शान से उठी। हाथ में माइक पकड़ते हुए वह धीमे से मुस्कुराई। फिर शांति से बोलना शुरू किया, ‘अब मेरे सिर की तरफ न देखते हुए मैं जो कह रही हूं उसे ध्यान से सुनिए। मैंने कोई बहुत बड़ा काम नहीं किया है। ये मेरी जरूरत थी। इच्छा भी थी इसलिए सिर पर टैटू बनवा लिया।’

उस बाद केतकी ने अपने बाल गंवाने और उसके बाद की सारी बातों को बताना शुरू कियाय़। कई तरह उपचार और उनसे कोई लाभ न होना। लोगों का मजाक उड़ाना, उपहास करना और मन में आया आत्महत्या का विचार, यहां तक की सारी बातें विस्तारपूर्वक बतायीं। इस मुश्किल समय में उसका साथ देने वाले लोगों का नाम लिया और उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की। उसके बाद टैटू बनवाते समय होने वाली पीड़ा और उसे सहन करने के लिए मन में जो दृढ़ संकल्प लिया था, उसके बारे में बताया। इसके बाद उसने माइक नीचे रख दिया।

दोनों हाथ जोड़कर उसने विद्यार्थियों का अभिवादन किय, ‘कभी-भी अपने आपको किसी से कम न समझें। हम जैसे हैं, सर्वश्रेष्ठ हैं। सभी परेशानियों और संकटों से बाहर निकलने का कोई न कोई रास्ता होता ही है। और हां, समाज की परवाह न करें। समाज तो फुरसत में होता है, नालायक होता है। इस समाज का सामना अपने कामों से करने पड़ता है। लोग क्या कहेंगे, इस विचार को अपने पास फटकने भी न देना।’

उसके बाद तालियों की गड़गड़ाहट के बीच प्रसन्न केतकी बड़ी देर तक हंसती रही। चंदाराणा ने अपने दाहिने हाथ का अंगूठा ऊपर करते हुए उसे वेलडन का इशारा किया। उसी समय अनेक लोगों के मन में उसके प्रति ईर्ष्या का भाव जाग रहा था।

अगले दिन शाम को प्रसन्न शर्मा उसकी नकल करते हुए लेकिन गर्व के साथ बोला, ‘लोग क्या कहेंगे इस विचार को अपने पास फटकने भी न देना।’ उसकी नकल देखकर चंदाराणा उपाध्याय मैडम और भावन तालियां बजाकर हंसने लगे। केतकी थोड़ा शर्मायी। निकी और पुकु थोड़ा सा भौंके।

प्रसन्न की इच्छा थी कि आज के दिन को सेलिब्रेट किया जाये। किसी बढ़िया, छोटे से होटल में रात का भोजन किया जाएगा, उसने लोगों को बताया। लेकिन केतकी बोली, निकी और पुकु की वजह से वह और भावना एकसाथ बाहर नहीं जा पायेंगे। मैं अपने इन तीनों व्यक्तियों के बिना जाऊंगी नहीं। अच्छा होगा सभी मेरे घर आएं। सभी को उसकी बात माननी ही पड़ी।

कीर्ति चंदाराणा ने एक सुंदर सी पेंटिग उसके लिए भेंटस्वरूप लायी। उपाध्याय मैडम ने एक फ्लॉवर पॉट लाया। प्रसन्न ने एक पैकेट उसके हाथ में दिया। सभी ने बढ़िया सा बोदन किया।

केतकी की आंखों में खुशी के आंसू आ गये। उसे अचानक अपनी मां की याद आ गयी। मानो वह दोनों हाथ ऊपर करके उसे आशीर्वाद दे रही हो। सभी के जाने के बाद भावना ने  तुरंत प्रसन्न का लिफाफा खोला और वह खुशी से चीख पड़ी, ‘अरे वाह, वंडरफुल।’ अंदर एक किताब थी। केतकी ने भावना के हाथ से किताब लेते हुए देखा और वह देखती ही रह गयी। किताब के मुखपृष्ठ पर उसका फोटो था और उस पर शीर्षक था, ‘हां, मैं केतकी जानी।’ नीचे छोटे अक्षरों में लिखा था ‘आगामी उपन्यास का आरंभ.’ मुखपृष्ट उलटते ही उसके एक अंदर एक डायरी मिली। उसके पहले पृष्ठ पर लिखा था, ‘बचपन से लेकर अब तक जीवन की जितनी भी घटनाएं याद आती जाएं, इसमें लिखती जाएं..रोज डायरी लिखी जाए, इससे अच्छा और क्या हो सकता है भला...तुम्हारा जीवन किसी उपन्यास से ज्यादा अद्भुत है, क्या तुम्हें ऐसा नहीं लगता। सदैव तुम्हारी प्रसन्नता का आकांक्षी शर्मा।’

केतकी डायरी की तरफ देखती रही और भावना उसकी ओर देखकर बोली, ‘इतना सब करने के लिए कोई बेवजह इतना परिश्रम नहीं करता, समझी क्या। उपन्यास का मुखपृष्ठ बनवाया। रंगीन छपवाया...वाह...’

‘लोग करते हैं, समझी न...एक मित्र दूसरे मित्र के लिए करता है...’ दोनों बहनें देर तक बातें करती रहीं। भावना को नींद आ गयी, लेकिन केतकी जागती ही रही। वह बाहर के कमरे में सोफे पर आकर बैठ गयी। न जाने किन ख्यालों में खोयी हुई थी। थोड़ी ही देर में निकी और पुकु भी उसके समने आकर बैठ गये। वह बड़ी देर तक उनकी तरफ देखती रही। तीनों ही निःशब्द थे। तीनों के बीच एक प्रेम और अहसास का धागा समान थाi

 

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह

====