अग्निजा - 43 Praful Shah द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अग्निजा - 43

प्रकरण 43

रणछोड़ दास की स्थिति तो ऐसी हो रही थी कि कब एक रिश्ता मिले और कब तो केतकी की शादी निपटाऊं। शांति बहन भी उसी दिन की प्रतीक्षा में थीं। यशोदा को लग रहा था कि केतकी यहां से निकल जाए, तो ससुराल में अधिक सुखी रह पाएगी। केवल भावना दिन-रात भगवान से प्रार्थना करती रहती थी, “ भगवान जल्दी मत करना, दोगे तो हीरे सरीखा पति देना मेरी बहन को। ”

केतकी को अपने विवाह को लेकर जरा भी उत्सुकता या उत्साह नहीं था, न कोई सपना था। उसको तो बस इस घर में काम कर-करके विरक्ति हो गई थी और अब तो मौन रह कर अपनी मां का दुःख देख-देख कर भी। वह इस सबसे छुटकारा चाहती थी। संयोग कहें या, जानबूझकर...क्या मालूम...लेकिन अब शांति बहन, रणछोड़ दास और जयश्री ने केतकी को तकलीफ देना और बढ़ा दिया था। आते-जाते यशोदा-केतकी से लेकर प्रभुदास-लखीमां, जयसुख चाचा रमा चाची और तो और स्वर्गवासी जनार्दन और उसकी मां झमकू की भी खिल्ली उड़ाई जाती थी। उसे ताने मारे जाते थे। खराब बोला जाता था। केतकी अपना काम निपटा कर कॉलेज निकल जाती थी। घर में ठहर जाए तो काम तो करवाए ही जाते थे, ताने भी मारे जाते थे। केतकी को खीज होने लगी थी। अब रणछोड़ दास खुले आम घर में बैठ कर चंदा से फोन पर हंसते-हंसते बात करने लगा था। कदम-कदम पर चंदा के गुणगान करने लगा था। आते-जाते यशोदा का अपमान करने लगा था। केतकी का गला भर आता था, वह अपने मन पर नियंत्रण करने का प्रयास करती थी।

रणछोड़ हर दिन विवाह तय करवाने वाले मध्यस्थों को फोन पर डांटता रहता, “एक रिश्ता नहीं बता पाए तुम लोग?”  वह नए-नए लोगों का फोन नंबर तलाशता और उनसे संपर्क करता। अचानक शांति बहन को कानजी चाचा की याद आई। उनसे तो पूछा ही नहीं हमने...उनको फोन लगाया तो उनके बेटे ने फोन उठाया। उसने कहा, “अब पिताजी इस तरह के काम नहीं करते। उनको लकवा मार गया है। उनका बायां शरीर काम नहीं करता। हमें अब उनको अब ऐसे पाप नहीं करने देना है। भगवान जाने किसकी हाय लगी है उनको... ”

शांति बहन ने गुस्से में फोन पटक दिया। “और कितने दिन यह पनौती हमारे घर में रहने वाली है कौन जाने...”

सभी को जल्दी मची थी। समय आगे बढ़ता जा रहा था। केतकी ने एमए का पहला साल पूरा किया। दूसरे साल में भी वह पास हो गई। जीवन में पहली बार वह फर्स्ट क्लास में पास हुई थी। यशोदा और भावना को तो अत्यंत खुशी हुई। अब रणछोड़ दास ने सभी मध्यस्थों को फिर से फोन करके यह जानकारी दी, “लड़की एमए हो गयी है...वह भी फर्स्ट क्लास में... यह बात सभी को बताइए। ” आगे पढ़ाई नहीं करनी है-यह आदेश दे दिया गया। केतकी ने ट्यूशन लेना शुरू कर दिया। कुछ पैसे मिल जाते थे और खास बात तो यह कि उसके इसी बहाने घर से बाहर निकलने का मौका मिलता था। दो गरीब बच्चों को लह मुफ्त में पढ़ाने लगी थी। ट्यूशन लेकर घर आने में देर हो जाती तो वह घर में बताती थी, “बच्चों की परीक्षा नजदीक आ गई है...उनका कोर्स पूरा करवाना है। ”

इस ट्यूशन के बहाने वह दो काम और करती थी। घर वालों को इसके बारे में जरा भी अंदाज नहीं था। एक तो वह अपनी उपाध्याया मैडम से मिलने के लिए उनके घर पर जाती थी और दूसरा, बिना किसी की जानकारी उसने बीएड में प्रवेश ले लिया था। सच कहेंतो यशोदान ने उसे बीएड करने का सुझाव दिया था लेकिन घर वाले मानेंगे ही नहीं, इस बात का यशोदा को पक्का भरोसा था। ट्यूशन से मिलने वाले थोड़े पैसे और उपाध्याय मैडम द्वारा की जाने वाली सहायता, इन दोनों के कारण केतकी के लिए बीएड करना संभव हो पाया। इनसे उसकी फीस और पुस्तकों की आवश्यकता पूरी हो जाती थी।

केतकी का विवाह तय नहीं हो रहा था इससे परेशान होकर आखिर शांति बहन और केतकी एक ज्योतिषी के पास गए। केतकी की कुंडली बिछा कर ज्योतिषाचार्य ने जोड़-घटाव किया। और फिर भविष्य बताया, “इस व्यक्ति ने जीवन में खूब दुःख झेले हैं। ये जल्दी खत्म भी नहीं होने वाले। लेकिन व्यक्ति हिम्मती है। इस पर सरस्वती की कृपा है, इस बेचारी ने खूब सहन किया है...”

रणछोड़ दास ने उन्हें बीच में ही टोका, “वह सब छोड़िए, इसकी शादी कब तय होगी, केवल इतना बताइए...” ज्योतिषाचार्य ने फिर से उंगलियों पर कुछ गिना। हिसाब किया। गणित लगाया... “इसमें दो बातें हैं...इसका घर विवाह करने से छूटेगा या फिर यह दूसरी जगह रहने के लिए चली जाए तो....विवाह का संयोग तो फिलहाल नजर नहीं आ रहा है। लेकिन इसके सामने बहुत संकट आने वाले हैं, ऐसा दिखाई दे रहा है। छह महीने में विवाह न भी हुआ तो इसके घर छोड़ कर जाने का योग दिख रहा है...”

दोनों के चेहरे उतर गए। ज्योतिषी ने दिलासा देना छोड़ कर उनका टेंशन बढ़ा दिया था। रणछोड़ दास ने न चाहते हुए भी 51 रुपए उसके हाथ में टिकाए। रास्ते में मां-बेटा इसी पर चर्चा करते रहे, “शादी से पहले घर छोड़ कर जाएगी तो जाएगी कहां ये? किसी के साथ भाग तो नहीं जाएगी?” शांति बहन के दिमाग में दूसरी ही आशंका कुलबुलाने लगी। “शादी किए बिना घर छोड़गी यानी कहीं एक्सीडेंड वेक्सीडेंट तो नहीं हो जाएगा इसका?” ऐसा कुछ हुआ तो आगे जयश्री और भावना के विवाह में विघ्न पड़ेगा..देखो रणछोड़, अब बाकी सभी कामों को किनारे करो और इस काम में लग जाओ...।

भिखाभा का ऑफिस आते ही रणछोड़ रिक्शे से उतर गया।

आज भिखाभा बहुत खुश दिखाई दे रहे थे। रणछोड़ को देखते ही उन्होंने उसे अपने पास बुला लिया। मिठाई का डिब्बा खोलकर दो पेड़े उसके सामने रख दिए। रणछोड़ ने इसमें से एक उठा लिया।

“एक नहीं, दो दिये हैं न तुमको मैंने...दोनों खाओ..” भिखाभाई गरजे।

“लेकिन मिठाई किस बात की है, ये तो बताइए...”

“पहले मुंह मीठा कीजिए...उसके बाद उससे भी मीठी खबर तुमको सुनाऊंगा मैं।”

रणछोड़ ने दोनों पेड़े एकसाथ मुंह में ठूंस लिये। खाते-खाते हाथ जोड़ कर बोला, “साहब अब तो बताइए आखिर खबर क्या है?”

“मेरे सामने आराम से बैठो...ये देखो...अब तुम्हारा भिखाभा विधायक बनने वाला है। वो अंग्रेजी में क्या कहते हैं...एमएलए..। पार्टी मुझे टिकट देने वाली है ऐसी खबर मिली है।”

“वाह, साहब..वाह...ये तो आज तक की सबसे बड़ी खुशी की खबर है...”

“लेकिन एक समस्या है न...पालिका की जगह खाली छोड़ने से काम नहीं चलेगा...ये तो अपना किला...अपना गढ़ है...यहां अपना राज चलता है...राज...ऐसे समय में दूसरे नेता अपनी बीवी बच्चों को आगे बढ़ाते हैं। लेकिन हम तो ठहरे ब्रह्मचारी... ”

“ये तो सही है...अब इसका उपाय आप ही खोजें...साहब..”

“खोज लिया है न...उपाय तो मेरे सामने ही बैठा हुआ है...”

रणछोड़ दास को झटका लगा.. “मैं..मैं? साहब ये अपने बस का नहीं...इतना कह कर वह थूकने के लिए उठने लगा, तो भिखाभा ने उसका हाथ पकड़ कर वापस बिठा दिया।”

“पागलपन मत करो...लक्ष्मी टीका लगाने के लिए आई हों तो गुटका थूकने के लिए भागते नहीं हैं, समझ में आया न...”

“मुझसे ये सब होने वाला नहीं...”

“अरे मूर्ख, मैं जब गांव से यहां आया था तो मुझे भी कहां ये सब आता था...? चोरी से दारू बेचने के कारण धंधे में बरकत हुई और थोड़ी दादागिरी काम आ गई...ये देख, कुछ भी मुश्किल नहीं है इसमें...कोई अड़चन आए तो मैं हूं न...?”

“हां साहब, ये तो सच है...”

“तो अब तुम्हारे और मेरे चुनाव को लेकर एक-एक कदम विचारपूर्वक उठाना होगा... अच्छे कामों का आश्वासन देना होगा...भला आदमी बनने का दिखावा करना होगा...अपनी छवि साफ-सुथरी रखने का प्रयास करना होगा...ये साली छवि जो है न, बड़ी मक्कार होती है...कब हाथ से फिसल कर धूल में मिल जाएगी, बता नहीं सकते।”

रणछोड़ ने घर जाकर शांति बहन और जयश्री को ये खबर सुनाई। दोनों बड़ी खुश हुईं। और इधर अंदर के कमरे में केतकी ने जो दो खबरें सुनाईं थीं उसके कारण यशोदा और भावना खुश हो रही थीं। एक तो केतकी ने बीएड पास कर लिया था और दूसरी बात उसे शाला में नौकरी भी मिलने वाली थी। उपाध्याय मैडम ने सिफारिश लगाई थी। और कल ही इंटरव्यू होने वाला था। शाला छोटी है। और उसके समान पढ़ी-लिखी कोई शिक्षिका इतनी छोटी शाला में जाने को तैयार नहीं होती। इस लिए उपाध्याय मैडम को विश्वास है कि उसे वहां नौकरी मिल ही जाएगी।

इस समय किसी को भी यह मालूम नहीं था कि भावी शिक्षिका केतकी जानी और भावी राजनीतिज्ञ रणछोड़ दास इन दोनों के बीच किस तरह का संघर्ष खड़ा होने वाला है...।

 

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह