लेखक: प्रफुल शाह
प्रकरण-111
वह अंदर जा ही रही थी कि फोन बजा, ‘हैलो...बोलिए भिखाभा...क्या कह रहे हैं? अरे मैं उसके पैर पकड़ कर माफी मांगूंगा...वह आखिर मेरी ही लड़की है न..ठीक ठीक...आपकी मेहरबानी है साहब...’ ‘कल ही मीना बहन से मिलना है....’
फिर यशोदा को देखते हुए हाथ जोड़कर बोला, ‘केतकी को बुला लो...क्या होगा कौन जाने...’ शांति बहन उदास स्वरों में बोलीं, ‘अब और क्या होना बाकी है? शादी तोड़ने की बात कर रह होगी...सभी लोगों के सामने यह बात कहनी होगी...यह दिन देखने से अच्छा तो मर जाना...’
यशोदा ने शांतिबहन के सामने बिनतीपूर्वक कहा, ‘ऐसा मत बोलिए। मैं केतकी को समझाऊंगी...आप चिंता करें...मैं चाय और खाने के लिए कुछ लेकर आती हूं। ’
दूसरे दिन शाम को सात के बजे के आसपास रणछोड़ दास, शांतिबहन और यशोदा भिखाभा के घर में बैठे हुए थे। पांच मिनट के अंदर जीतू और मीना बहन भी आ गयीं। आते ही मीना बहन ने पूछा, ‘केतकी नहीं आयी...? उसकी गैरहाजिरी में क्या बात होगी?’
रणछोड़दास हाथ जोड़कर बोला, ‘आ ही रही होगी वह...स्कूल से आएगी...ट्रैफिक होगा...’
वैसे तो ट्रैफिक अधिक नहीं था, लेकिन स्कूटर की अपेक्षा केतकी का दिमाग तेज गति से चल रहा था। भावना उसकी तरफ देख रही थी। ‘मां ने कसम दिलाकर तुम्हें बुला लिया, इसका मतलब है कोई गंभीर बात होगी...लेकिन अब क्या किया जाए? केतकी ने भावना की ओर देखा, धीरे से उसके कंधे पर हाथ रखा, ‘आसमान फटने वाला नहीं। तुम जो कुछ होगा उसे बस चुपचाप देखते रहना, कुछ कहना मत।’
भिखाभा का घर आ गया। दोनों भीतर गयीं। केतकी के साथ भावना को भी देखकर सबने मुंह बना लिया। यशोदा ने उठकर केतकी को अपने पास सोफे पर बिठा लिया। भावना उसके पीछे खड़ी हो गयी।
सरपंच की तरह भिखाभा ने गला खखारा, ‘पहले चाय पी लेते हैं...’
मीना बहन उठीं और हाथ जोड़ते हुए बोलीं, ‘रहने दीजिए...पहले मेरे मन का बोझ हल्का करना है मुझे...’
वातावरण गंभीर हो गया था। मीना बहन सबकी ओर देखने लगीं। ‘मुझे इतना ही कहना है कि हमारे परिवार में कभी ऐसा नहीं हुआ...शादी के पहले ही वादविवाद, झगड़ा और पुलिस तक जाना...मैं तो कल्पना भी नहीं कर सकती इस बात की...अब आगे क्या करना है...? दो लोगों के जीवन का सवाल है... ऐसा नहीं चलेगा...दोनों परिवारों के इज्जत का सवाल है..बड़े लोग हमेशा चिंता में ही जीते रहें क्या?’
यशोदा हाथ जोड़कर उठ खड़ी हुई, ‘नहीं, ऐसा तो किसी को भी मंजूर नहीं...जो हुआ वह अच्छा नहींथा....हमें इस तरह का आचरण करना शोभा नहीं देता...’
‘यशोदा बहन, मैं भी वही कह रही हूं...लेकिन अब इसका निपटारा क्या हो और कैसे हो?’
किसी ने कुछ नहीं कहा। भिखाभा ने गला खखारते हुए बोलना शुरू किया, ‘मुझे लगता है कि इसमें...’
मीना बहन उन्हें रोक दिया, ‘भिखाभा आपके लिए दोनों परिवार एकसमान हैं...आपने हमारे लिए बहुत कुछ किया है...लेकिन अब यह मामला उलझ गया है। इसमें से हमें ही रास्ता निकालना होगा। वह भी आपके सामने ही...’
मीना बहन की आवाज में दृढ़निश्चय था, भिखाभा फिर से बैठ गये। बाकियों के दिल की धड़कनें तेज हो गयीं। मीना बहन कठोर आवाज में बोलीं, ‘जीतू उठो...खड़े हो जाओ...यहां आओ...’जीतू गर्दन नीची करके सामने आ गया। वह नीचे ही देखता रहा। जिस तरह किसी छोटे बच्चे को डांटा जाता है, उसी अंदाज में मीना बहन बोलीं, ‘अपने घर में किसी स्त्री पर किसी को हाथ उठाते हुए तुमने कभी देखा है क्या?’ जीतू ने गर्दन हिलाकर नहीं में जवाब दिया। मीना बहन और बिफर गयीं,
‘मुंह में दही जमा है क्या? मुंह से जवाब दो हां या नहीं..’
‘नहीं, कभी नहीं...’
‘किसी ने एकदूसरे के कपड़े फाड़े हैं क्या?’
‘नहीं।’
‘पुलिस स्टेशन की चौखट तक पहुंचा है क्या कोई?’
‘कभी नहीं।’
‘या फिर कभी पुलिस घर पर आयी?’
‘नहीं...नहीं...’
मीना बहन ने गुस्से में ही उसकी कॉलर पकड़ ली, ‘अब एक ही शब्द रट रहे हो..नहीं. नहीं. नहीं। तो फिर ये सब करते समय तुम्हारी अक्ल क्या घास चरने के लिए गयी थी?’ इतना कहकर मीना बहन ने जीतू के गाल पर सटासट दो-चार थप्पड़ जड़ दिये। सभी अवाक। लेकिन शांति बहन ने उठकर मीना बहन का हाथ पकड़ लिया। ‘अरे, ऐसा क्यों कर रही हैं...जवान खून है...कभी-कभी गुस्सा आ जाता है...हो जाती है गलती...और फिर उस अकेले की ही गलती थोड़े है इसमें?’ यशोदा ने उठकर कहा, ‘हां, दोनों ही नादान हैं...बदलते जमाने का भी असर होता है...’ मीना बहन ने हाथ जोड़ लिये, ‘सब कुछ मंजूर है...लेकिन बातों को इस स्तर तक पहुंचाना चाहिए? वह मर्द है...उसको घर-परिवार संभालना है, पत्नी को संभालना है, इस तरह करने से कैसे काम चलेगा? इसके बाद जीतू का हाथ खींचते हुए बोली, ‘मांगो....सबसे माफी मांगो...’ इसके बाद एक-एक के सामने हाथ जोड़कर खड़ी हो गयीं। सभी उनकी विनम्रता देखकर दंग रह गये।
फिर से अपनी जगह पर आकर बैठते हुए मीना बहन बोलीं, ‘देखा जाए तो इसकी गलती माफी के लायक ही नहीं। पाप किया है इसने...अब पश्चाताप हो रहा है...जो हो गया अब उसे मिटाया तो नहीं जा सकता...सभी लोग हमें माफ कर दें...खासतौर पर केतकी से, हमारी होने वाली बहू से मापी मांगनी है...बेटा माफ कर दोगी न?’
केतकी ने आगे बढ़कर उनके हाथ पकड़ लिये, ‘आप बड़ी हैं। आप माफी मत मांगिए। जो हुआ सो हुआ। मैं आपको वचन देती हूं कि आगे ऐसा नहीं होगा। आपको हममें से किसी के भी सामने हाथ जोड़ने की नौबत नहीं आएगी। किसी को भी इस तरह का मानसिक कष्ट आगे कभी नहीं होगा। ’
सबने राहत की सांस ली। मीन बहन, जीतू, शांति बहन, भिखाभा, रणछोड़ दास...सभी के चेहरों से तनाव कम हो गया। भावना को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक केतकी ने जीतू की तरफ देखा, ‘मैंने आपसे गैरवाजिब अपेक्षाएं रखीं, ये मेरी गलती थी। अब ऐसी गलती आगे कभी नहीं होगी...मैं आज...अभी...आपको अपने रिश्ते से आजाद करती हूं...हमेशा के लिए...’ इतना कहकर केतकी तेज कदमों से कमरे के बाहर निकल गयी। भावना उसके पीछे-पीछे दौड़ी।
अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार
© प्रफुल शाह
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