अग्निजा - 112 Praful Shah द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अग्निजा - 112

लेखक: प्रफुल शाह

प्रकरण-112

मानो केतकी ने बम विस्फोट कर दिया हो, ऐसी स्थिति हो गयी थी सभी की। वस्तुस्थिति को समझने में लोगों को कुछ क्षण लगे। क्या कहें, किस तरह से प्रतिक्रिया व्यक्त करें, किसी को भी समझ में नहीं आ रहा था। कौन, किसे समझाए ऐसी स्थिति निर्मित हो गयी थी। जैसे तैसे संभलते हुए भिखाभा बोले, ‘लड़की नादान है, जिद्दी है, बड़बोली है...रणछोड़ चाय-नाश्ते की व्यवस्था देखो तो जरा...बाद में आराम से विचार करेंगे कि इस पर क्या रास्ता निकाला जाए...’

मीना बहन उठ गयीं, ‘अब चाय-पानी की आवश्यकता नहीं.... सबके सामने नाक काट कर चली गयी वह लड़की....इतना ही काफी है...चलो जित्या...उठो...’ मीना बहन जीतू को लेकर निकल गयीं। शांति बहन ने इशारा किया तो रणछोड़ दास ने खड़े होकर भिखाभा के सामने हाथ जोड़ लिये, ‘भा...चाय पानी की जरूरत नहीं...आप आराम करें...’

भिखाभा की इजाजत या उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना ही रणछोड़, शांति बहन और यशोदा उठ खड़े हुए। तीनों को जाते हुए देखकर भिखाभा का गुस्सा बेकाबू हो गया। वह अपने आप पर ही चिढ़ गया, ‘मैं इतना अनुभवी नेता। नेता बनकर घूमता-फिरता हूं...नेता। ये कल की छोकरी मेरे मुंह पर थूक कर चली गयी?...मैं उसे पहचान नहीं पाया आज तक? रणछोड़ की तो कोई बात नहीं लेकिन मीना बहन यदि टेढ़ी हो गयी तो फिर से ‘मेरे पैसे वापस करो’ की रट लगा देगी...’ मेरे दिमाग में अब क्या जंग लग गया है? लेकिन इसमें मैं क्या कर सकता हूं? मैं तो रणछोड़ की तरफदारी कर रहा था..मीना बहन की तरफ खड़े होने का तो केवल नाटक कर रहा था....लेकिन अब...अब रणछोड़ और मीना बहन दोनों को ही किनारे रखकर इस लड़की की तरफ पहले देखना होगा....ये लड़की बड़े काम की हो सकती है...तेजाब की तरह तेज...तलवारी की तरह धारदार..आग की तरह जलाकर रखने वाली..और हां...ये लड़की यदि मेरे साथ आ गयी तो? अच्छे-अच्छों को पानी पिला कर रख देगी...धूल में मिला देगी...भीखा...सबको किनारे रखकर इस लड़की को अपना हथियार किस तरह बनाया जाए, इस पर विचार करो...ये विचार मन में आते ही भिखाभां का चेहरा बदल गया। उसके चेहरे पर चमक आ गयी।

इधर, शांति बहन और रणछोड़ दास के चेहरों की चमक पूरी तरह से गायब हो गयी थी। रणछोड़ के कलेजे में आग लगी हुई थी। वह अंदर ही अंदर जल रहा था। रिक्शे में बैठकर वह कुछ नहीं कर पा रहा था फिर भी यशोदा की तरफ तिरछी नजरों से देखकर अपना गुस्सा जता रहा था। शांति बहन को लगा, ‘ये केतकी तो आजाद बछड़े की तरह है....उसपर लगाम लगाने की कोशिश करेंगे तो आज की तरह मुंह के बल गिरने की नौबत आ जाएगी...लेकिन उसके निकल जाने से सारे किए कराए पर पानी फिर जाएगा...सब लोग हंसी उड़ाएंगे...समाज निंदा करेगा...और तो और उसके साथ भावना भी निकल गयी...इस कारण लोग तो हमें ही दोष देंगे...यदि ऐसा हुआ तो जयश्री की शादी में अड़चन आएगी...और...ये यशोदा भी अपनी बेटियों के पास कब निकल जाए...पता नहीं...फिर घर के काम कौन करेगा? कुछ तो करना ही होगा...ये लड़कियां मुझे इस तरह मात देकर निकल जाएं, ऐसा कैसे चलेगा..’

यशोदा बेचैन थी। उसको डर और चिंता दोनों सता रहे थे। ‘अब केतकी का क्या होगा? घर पहुंच कर मेरी तो खैर नहीं...इस शादी टूटने के लिए मीना बहन और जीतू तो केतकी को ही दोष देते फिरेंगे...केतकी का आगे का जीवन कैसे कटेगा? और फिर इसमें भावना की क्या गलती, वो तो अभी बहुत छोटी है? उस बिचारी को बिना वजह ही इस उम्र में यह सब देखना पड़ रहा है...उसके मन पर क्या असर हो रह होगा? सभी लोगों पर दुःखों का पहाड़ टूट पड़ा है आज तो...मैं इसमें क्या कर सकती हूं भला?’  इधर, मीना बहन भी मन ही मन कुछ तय कर रही थीं। उनको पक्का भरोसा था कि केतकी जैसी लड़की ही उनके परिवार को अच्छे तरीके से संभाल सकती है। उनके दिमाग में दो बातें स्पष्ट थीं-एक तो भिखाबा उनके साथ नाटक कर रहे थे और दूसरा केतकी ने जो यह कदम उठाया है उसके लिए जीतू ही जिम्मेदार है। इन्हीं दोनों मुद्दों पर विचार करतेहए उन्होंने मन ही मन निश्चय किया, ‘चाहे जो हो जाए, इस केतकी को अपने घर की बहू बनाना ही है। ऐसी हिम्मत वाली लड़की जीतू को सीधा कर सकती है, इसके कारण समाज में भी अपनी इज्जत रहेगी और मरते समय घर-परिवार की चिंता नहं रहेगी। क्योंकि मेरे पीछे घर और कल्पू को संभालने पाए इतना दम नहीं है। लेकिन केतकी को वापस लाया कैसे जाए?’

केतकी बिना पीछे देखे अपनी स्कूटर दौड़ा रही थी। पीछे बैठी हुई भावना भी कुछ नहीं बोल रही थी। लेकिन उसको मन ही मन बड़ी खुशी हो रही थी। वह स्कूटर के पीछे नहीं, झांसी की रानी के घोड़े पर बैठी है, ऐसा उसे लग रहा था। ‘क्या बात है...मैं कितनी लकी हूं...केतकी बहन जैसी लड़की मेरी बहन है...बहन...ऐसे डैशिंग लोग तो फिल्मों में ही देखने के मिलते हैं...इतनी छोटी सी उम्र में उसे कितना कुछ झेलना पड़ा है। कितने काम किये हैं...कितना नाम कमाया है...सबसे बड़ी बात तो यह है कि उसने सभी तरह की परिस्थितियों का सामना किया है.. संघर्ष करती रही...हार नहीं मानी...भूखी रह कर, लगातार दुःख-परेशानियों सह कर भी पढ़ाई करती रही, नौकरी तलाशी और अब वाइस प्रिंसिपल बन गयी...उसको जानने वाले सभी उसका सम्मान करते हैं...कीर्ति सर, उपाध्याय मैडम, प्रसन्न भाई और कल्पना बहन...बाल चले गये....फिर भी केतकी कितनी दृढ़निश्चयी है...आज सभी को उनके मुंह पर सुना आयी...फौलाद से भी मजबूत है मेरी दीदी...’ अचानक भावना के मन में दीदी के प्रति प्रेम उमड़ पड़ा और वह केतकी के नजदीक सरकी और उसे दोनों हाथों से कसकर पकड़ लिया.... ‘आई लव यू दीदी...’

केतकी ने स्कूटर को ब्रेक मारा। नीचे उतरकर भावना को देखने लगा...निर्विकार भाव से...उसने भावना को आदेश दिया, ‘नीचे उतरो, रिक्शा पकड़कर घर जो...’ भावना उतर गयी।

‘लेकिन केतकी बहन...’

‘कुछ मत पूछो...बस जाओ....’

भावना के उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना ही केतकी ने स्कूटर स्टार्ट किया। लेकिन इस समय केतकी को जरा भी चिंता नहीं थी कि वह कहां जा रही है, क्या करेगी। उसे केवल उत्सुकता यह जानने की थी कि वह गयी कहां है।

लेकिन भावना को वहां से रिक्शा मिलने और घर पहुंचने में समय लग गया। केतकी उससे पहले ही घर पहुंच चुकी थी। दरवाजे पर ताला नहीं था, भावना समझ गयी कि वह घर में ही है। अंदर से केतकी ने आवाज दी, ‘दरवाजा खुला है, धकेलो...’

भावना दरवाजा धकेल कर अंदर आयी तब केतकी टेबल पर छोटा सा केक रखकर खड़ी थी। उस केक के ऊपर एक मोमबत्ती रखी हुई थी लिखा हुआ था, ‘हैप्पी बर्थडे टू न्यू केतकी।’

भावना दौड़कर केतकी के गले लग गयी। उसे केतकी के साथ-साथ अपने आप पर भी गर्व हो रहा था-देखो कैसी है मेरी बहन।

 

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह

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