लेखक: प्रफुल शाह
प्रकरण-148
केतकी दुबई जाने वाले प्लेन में बैठी थी, उसे लग रहा था कि वह सपनो में है...ऊंचे आकाश में उड़ रही है। लगभग सभी यात्री लैपटॉप पर सिनेमा देखने में, खाने-पीने में, पढ़ने और संगीत सुनने या फिर बातें करने में व्यस्त थे। केतकी इनमें से कुछ भी नहीं कर रही थी। ये सब तो वह फिर कभी कर सकती थी।
प्लेन बादलों को चीरते हुए आगे बढ़ रहा था। वह उन बादलों को देख रही थी। उसे वे अपने इतने पास आने दे रहे हैं, इसके लिए उसने उन बादलों को धन्यवाद दिया। बादलों के बदलते हुए आकार में उसे उनकी मुस्कुराहट दिखायी पड़ रही थी। वे उसका स्वागत कर रहे हैं,उसे ऐसा महसूस हो रहा था। उसके मन में विचारों का चक्र चालू हो गया, ‘ये बादल कितने अच्छे हैं...उन्हें मालूम है कि उनका अस्तित्व कुछ ही समय का है फिर भी वे हंस रहे हैं। सृष्टि की सर्जन-विसर्जन की प्रक्रिया जान कर भी वे कतई हताश-निराश नहीं दिख रहे हैं। सूर्य का तीव्र ताप सहन करते हैं, लेकिन शीतल जल की बरसात कर सकते हैं। अब मैं भी इन बादलों की ही तरह दृढ़प्रतिज्ञ रहूंगी। कभी भी टूट कर बिखरूंगी नहीं। टूट भी जाऊं तो फिर से खड़ी हो जाऊंगी। मुझे एलोपेशिया का बहुत कष्ट सहना पड़ा, लोगों का तिरस्कार, घृणा और अन्याय झेलना पड़ा, लेकिन मैं मेरी ही तरह एलोपेशिया से ग्रस्त लोगों के लिए जागृति की शीतल बरसात करूंगी। उनकी प्रेरणा बनूंगी। इसके लिए मुझे चाहे कितनी ही बार टूट कर गिरना पड़े, पर मैं बार-बार फिनिक्स पक्षी की तरह उठ कर खड़ी होऊंगी।’
केतकी के लिए यह विमान यात्रा महत्त्वपूर्ण साबित हुई। उसके जीवन को बदलने वाला साबित हुआ। उसे लग रहा था कि इन बादलों को वह छू पाती, उनसे गले मिल पाती तो कितना अच्छा होता। उनके श्वेत श्याम चेहरे को चूम कर उनसे कहा जाए, ‘थैंक्यू दोस्त फॉर बीइंग इन माई लाइफ।’ कौन जाने किस लिए, पर इस वाक्य के साथ-साथ ही उसे प्रसन्न की याद आ गयी। उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कार उतर आयी और वह लिफाफा याद आया जो प्रसन्न और उपाध्याय मैडम ने गिफ्ट में दिया था। उसने अपनी पर्स में से वह लिफाफा निकाला। ‘उसने कहा था कि दुबई में तुम्हारे काम आएगा, आखिर क्या होगा इसमें?’ उसने उत्सुकता से लिफाफे की तरह का बैग खोला। उसके भीतर दो और लिफाफे थे। एक में से एक आदमी का फोटो निकला। वह फोटो श्वेत श्याम था। किसका था पता नहीं लेकिन उसे चेहरा अच्छा लगा। इन्हें कहीं देखा है क्या? कुछ भी याद नहीं आ रहा था। फिर उसने दूसरा लिफाफा खोला। उसके अंदर और दो लिफाफे थे। एक लिफाफे के ऊपर लिखा था, ‘केतकी इस लिफाफे को पहले खोलना।’ उसने खोल कर देखा तो उसमें एक चिट्ठी थी। उपाध्याय मैडम और प्रसन्न की लिखी हुई। मजेदार बात यह थी कि दोनों ने एक के बाद एक लाइनें लिखी हुई थीं। सारांश इतना ही था कि इस फोटो में नजर आ रहा व्यक्ति तुम्हारे सबसे करीब और सबसे प्रिय है। तुम्हारा कभी भी बुरा न चाहने वाला, तुम्हें सदैव आशीर्वाद देने वाला है। इस फोटो को पाने के लिए प्रसन्न द्वारा किए गये प्रयास के बारे में उपाध्याय मैडम ने बहुत तारीफ की थी। अब दूसरा लिफाफा खोलो। ’
दूसरे लिफाफे की फोटो में यशोदा और उस दूसरे फोटो वाला व्यक्ति-इन दोनों का फोटो था। वह शादी की तस्वीर थी। यानी...यानी....ये मेरे पिता हैं...?जनार्दन ...पिता...? केतकी का दिल भर आया। इतनी ऊंचाई पर उनका मुझे प्रथम दर्शन हुआ...उसने कांच से बाहर देखा तो बादलों से जनार्दन का मुस्कुराता हुआ चेहरा दिखने लगा। उसने अपनी नाक कांच से सटा दी। उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे। पिता का...मेरे पिता का भी मुझे आशीर्वाद मिल गया...अब दुबई में मुझे कोई भी रोक नहीं पाएगा।
हवाई अड्डे पर पहुंचने पर एक विदेशी युवक दौड़ कर उसके पास आने लगा। उसने अपनी चाल तेज कर दी तो वह भी जल्दी जल्दी उसके पास आने लगा। केतकी डर गयी। उसके साथ चल रही दिल्ली की एक प्रतियोगी ने उसका हाथ पकड़ कर उसे रोकते हुए कहा, ‘अरे, ठहर भी जाओ। उसे तुम्हारे साथ फोटो खिंचवानी है।’ केतकी को आश्चर्य हुआ। केतकी के रुकते साथ उस युवक को खुशी हुई। उसने अपना मोबाइल उस लड़की के हाथ में देते हुए कहा, ‘विल यू प्लीज क्लिक फॉर मी?’ उस लड़की ने पांच-छह फोटो खींच दिए। उसके बाद वह अपने घुटनों के बल बैठ कर केतकी का ङात अपने सिर पर लगाते हुए बोला, ‘थैंक्यू वेरी मच। नमस्ते, आई एम विलियम फ्रॉम कनाडा..एंड यू?’ केतकी शरमा गयी। बिना कुछ कहे ही उसने अपना हाथ छुड़ा लिया और आगे बढ़ने लगी। दिल्ली वाली उस लड़की ने उसे फटकारा, ‘पागल है क्या तू...कितना सोना मुंडा है...तेरी जगह मैं होती तो उसके साथ चली जाती...’ दूसरी एक प्रतियोगी लड़की ने भी उसकी हां में हां मिलाते हुए कहा, ‘फिर क्या...मुझसे कहता तो मैं दो घंटे उस हैंडसम साथ कॉफी हाउस में बिता सकती थी। शाहरुख खान जैसा था न?’ फिर दो-तीन युवकों को उसकी तरफ दौड़ते हुए आते देख दिल्ली वाली लड़की बोली, ‘अरे यार, तू सबके साथ फोटो खिंचवाने के दस-दस दिरहाम ले ले..सचमुच लाइन लग जाएगी..ये तो पेजेन्ट से पहले ही स्टार बन गयी..इंटरनेशनल स्टार...’
लेकिन यह हंसी-ठट्ठा अधिक देर तक टिका नहीं रहा। हवाई अड्डे पर चेकिंग से एक-एक को गुजरना पड़ रहा था। सबकुछ अच्छे से चल रहा था। केतकी का नंबर आते ही चेकिंग अधिकारी उसकी तरफ देख कर हंसा। केतकी भी उसे देख कर मुस्कुराई। उसने पासपोर्ट से नजरें हटा कर केतकी की तरफ देखा और आश्चर्य से बोला, ‘ये इंडियन लोग कबसे इस तरह का फैशन करने लगे।’ उसका ध्यान केतकी के सिर पर बने टैटू की तरफ था।
केतकी वहां से आगे बढ़ गयी। तभी एक लेडी ऑफिसर दूर से उसके पास चल कर आयी, ‘एस्क्यूज मी, प्लीज कम विथ मी..’ केतकी को आश्चर्य हुआ। बाकियों को भी हैरत हुई। केतकी को एक कमरे में ले जाया गया। उसके सामान को पूरी तरह से तितर-बितर कर के देखा गया। उसकी पर्स को ठीक से तलाशा गया। केतकी यह सब एक कोने में बैठ कर देख रही थी। स्मगलिंग, ड्रग्स और आर्म्स जैसे शब्द उसके कानों पर पड़ रहे थे, इस लिए वह घबरायी हुई थी। उस पर प्रश्नों की झड़ी लगा दी गयी। ‘कहां से आ रही हैं? कहां जाना है? किस काम से आयी हैं? सिर पर ये क्या बनाया है?’
सभी प्रश्नों के ठीक उत्तर मिल जाने पर और पासपोर्ट को बार-बार चेक करने के बाद उस लेडी ऑफिसर ने कहा, ‘सॉरी फॉर ट्रबल। आपके दिखने से आप भारतीय होंगी ऐसा लगता ही नहीं। दूसरे देश की होंगी, इसलिए रोकना पड़ा। एनी वे. कॉन्ग्रैचुलेशन फॉर ब्यूटीफुल रेड डिजाइन। इट्स लुक मार्वलस।’ राहत के साथ केतकी उठ खड़ी हुई। तभी उस लेडी ऑफिसर ने उसे एक बार फिर रोका। उसके स्टाफ की एक-दो और लड़कियां उसके पास आकर खड़ी हो गयीं। उन्होंने एक पुरुष कर्मचारी के हाथ में मोबाइल देते हुए कहा, ‘प्लीज क्लिक अवर फोटो विथ ब्यूटीफुल इंडियन मैडम.’
अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार
© प्रफुल शाह
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