लेखक: प्रफुल शाह
प्रकरण-149
दुबई का अनुभव केतकी के लिए एकदम अलग था। वहां की व्यवस्था, साफ-सफाई, भव्यता...सबकुछ अद्भुत था। वह कोई सपना देख रही है और उस सपने के महानगर में वह खो गयी है, ऐसा उसे लग रहा था। उस पर हवाई अड्डे के अनुभव, पिता के फोटो में दर्शन और बादलों के साथ हुआ मन ही मन संवाद।केतकी मानो हवा में उड़ रही थी। उसका मन एकदम हल्का हो गया था। अब उसे न तो प्रतियोगिता की चिंता थी न ही वहां के प्रतिभागियों की। न ही जीतने की लालसा थी। उसके मन से सारा बोझ उतर चुका था। वह प्रतियोगिता के जय-पराजय की चिंता से दूर हो गयी थी। पहले ही विजयी हो चुकी हो इस तरह केवल सिकंदर की तरह विचरण कर रही थी। उसके इस आत्मविश्वास के कारण वह बाकी प्रतिभागियों में सबसे अलग दिखाई पड़ रही थी।
साइट सीईंग के लिए सभी लोगों को दुबई के मरुस्थल में ले जाया गया, तब उसे लगा कि यही उसकी मंजिल है, यही उसका उद्देश्य। उसे न दिशा का ध्यान था, न उसकी फिक्र। किसी की चिंता नहीं। व्यवहार की औपचारिकता नहीं। यही रह जाए तो? लेकिन भावना के बगैर? और प्रसन्न...उसे आश्चर्य हुआ कि उसके जाने बिना प्रसन्न उसके दिल में घर बनाकर रहने लगा था। एक पक्का और कायम घर। लेकिन क्या वह इस संबंध के लिए तैयार है? वह उसे क्या दे पाएगी? मेरा उस पर प्रेम है या नहीं उसे साफ-साफ उत्तर देना होगा। मैं उसके लायक नहीं। उसके लिए मैं खुद को बदल सकती नहीं। मैं उसके लिए तैयार भी नहीं। तैयार नहीं? या इच्छा नहीं? वह उसके लिए इतना कुछ करता है, फिर वह उसके लिए थोड़ा सा बदल नहीं सकती? केतकी ने खुद से ही पूछा। मालूम नहीं, शायद मुझे संबंध में बंधने से डर लगता है। मन में एक धारणा पक्की बन गयी है। और...प्रसन्न को दुखी करने की उसकी इच्छा नहीं। लेकिन उसके बिना वह सुखी कैसे रह सकेगा? कितने दिन? अब तक भी तुम उसके प्रेम को समझ नहीं पायी? उसे पहचाना नहीं?
अचानक हवा का एक झोंका आया और विचारों के जंगलों में खोयी हई केतकी अचानक उससे बाहर निकली। मरुस्थल से होटल की तरफ भागती हुई गाड़ी से भी तेज गति से केतकी के विचार भाग रहे थे। केतकी को आश्चर्य हो रहा था कि इस उजाड़, वीरान पड़े मरुस्थल में भी उसके मन में खुशियों के वन कैसे डोल रहे थे?
दुबई के राउंड में साठ में से तीस प्रतिभागियों का चयन हुआ। उसमें केतकी के नाम की घोषणा तालियों की सर्वाधिक गड़गड़ाहट के बीच हुई। तालियां बजाते समय अनेक लोगों को अपनी आंखों पर भरोसा ही नहीं हो रहा था कि एक बिना बालों वाली लड़की सौंदर्य प्रतियोगिता में कैसे? वह भी फाइनल में? ये सच है कि सपना? केतकी बहुत आनंद में थी। उसे यह विजय अपनी अकेली की नहीं तो सभी एलोपेशियनग्रस्त लोगों की लग रही थी। गंजेपन के कारण घर से बाहर भी निकलने से डरने वालों को अपने सिर पर शीतल जीवनदायी अमृतवर्षा का अनुभव कर रहे थे। उसे भावना और यशोदा की याद आ रही थी। तभी उसके समाने प्रसन्न का चेहरा घूम गया। वह खुद से ही हंस कर मानो बोली, ‘हां...तुम्हारी अनुपस्थिति भी खटक ही है...समझ में आया न? वह भी सबसे अधिक।’
दुबई से वापस आते समय जैसे ही उसने अहमदाबाद हवाईअड्डे पर कदम रखा, उसी समय उसका फोन बजा। वही अननोन नंबर था। अनिच्छा से उसने फोन उठाया, हैलो कहते ही पहली बार में ही उधर से एक गंभीर आवाज गूंजी, ‘वेलकम टू इंडिया डार्लिंग...’और फोन कट गया। भावना और प्रसन्न उसको लेने के लिए आए थे। वे उसकी तरफ देखते ही रह गये। ‘यह केतकी ही है न? जाते समय से एकदम अलग? आत्म विश्वास से भरी हुई। दुनिया की परवाह न करने वाली, किसी की भी परवाह न करने वाली।भावना ने उसे गले लगाते हुए पूछा, ‘इस राउंड का नतीजा कब घोषित होगा?’ ‘ट्राली बैग को आगे धकेलते हुए केतकी बोली, ‘वो तो वहीं घोषित हो गये।’ भावना और प्रसन्न अपनी जगह पर ही ठिठक गये। केतकी आगे बढ़ने लगी थी। यह देखकर दोनों फिर से तेजी से उसे पीछे-पीछे चलने लगे। ‘सच कहें तो केतकी बहन तुम दुबई तक पहुंच गयी,सेमीफाइनल तक पहुंच गयी यही बहुत बड़ी सफलात है।’ केतकी ने इस पर कुछ नहीं कहा। भावना ने प्रसन्न की तरफ देखा। वह बोला, ‘बेशक, यह भी कोई छोटी बात नहीं है। आई एम प्राउड ऑफ यू।’
केतकी ने झट से गर्दन पीछे करके उनकी तरफ देखा और बोली, ‘ये सब वाक्य फाइनल राउंड के बाद बोलने के लिए बचा कर रखें।’
भावना स्तब्ध थी, ‘यानी...तुम फाइनल के लिए चुन ली गयी हो?’
‘हां...उसमें कौन सी बड़ी बात है? फाइनल मुंबई में होगा आठ मार्च को।’
‘वॉव, कॉन्ग्रेचुलेशन्स..’ प्रसन्न ने भावना के सामने ही केतकी का हाथ अपने हाथों में ले लिया। ‘बधाई तो केवल औपचारिकता है। इतने कम शब्दों में मेरा आनंद व्यक्त नहीं हो पाएगा।’
‘तुम दोनों को जो कुछ भी कहना हो, बाद में कहना। अभी इस भीड़ में और शोरशराबे में मुझे कुछ सुनाई नहीं दे रहा है।’ ‘भीड़? कहां है भीड़ और कैसा शोरशराबा?’
‘मेरे पेट में चूहों की भीड़ और उनका शोरशराबा...प्लेन में बस कैन्ड जूस मिला।’
‘ओह, तो मैं एक जगह बताऊं क्या केतकी बहन?’
प्रसन्न और अधिक उत्साह से बोला, ‘नहीं, नहीं...मेरे दिमाग में एक और नयी जगह है...’
‘प्रयोग बाद में...पहले सीधे दक्कन सेंटर जाएंगे...भावना ...तुम मां को फोन करके बता दो कि मैं वापस आ गयी हूं और ठीक हूं।’
‘जीतकर...ये पहले बताना होगा।’
सभी दक्कन सेंटर में खाना खाने के बाद घर पहुंचे। केतकी ने दोनों की तरफ देखते हुए कहा, ‘मुझसे आधे घंटे तक कुछ मत पूछना।’ इतना कहकर वह पुकु और निकी को लेकर बेडरूम में चली गयी। भावना ने प्रसन्न की तरफ देखते हुए कहा, ‘दो दिनों में ही ये कितनी बदल गयी है।’
‘देखो न...अब दुबारा इसे दुबई नही भेजेंगे...’
‘मैं उपाध्याय मैडम को फोन लगाती हूं आर कीर्ति सर को यह गुड न्यूज दे दीजिए..’
‘कीर्ति सर डरबन गये हैं। हफ्ते भर बाद वापस आएंगे। रात को उनको वॉट्सअप कॉल करूंगा।’
करीब बीस मिनट बाद केतकी फ्रेश होकर पुकु निकी को लेकर बाहर निकली।
‘भावना, दुबई अमेजिंग है। मैं तुम्हें भी जल्द ही भेजना चाहती हूं।’
‘मुझे नहीं जाना। वहां जाकर लोग बदल जाते हैं। ’
‘बदलते नहीं, सुधर जाते हैं। उनका आत्मविश्वास बढ़ जाता है। मुझे संभव हुआ तो हर छह महीने में या फिर साल में एक बार वहां का चक्कर मार कर आऊंगी।’
‘केतकी बहन, दुबई की तारीफ बाद में...पहले फाइनल राउंड के बारे में बताओ न?’
केतकी ने पर्स में से दो कागज निकालकर भावना के हाथ में दे दिए। ‘तुम दोनों ये पढ़ो। मुझे आराम करना है, बाय गुडनाइट। ’
प्रसन्न ने फाइनल के नियम पढ़े। उसमें एक बात अनिवार्य थी। फाइनल के लिए पिता, पति अथवा मंगेतर में से किसी एक के, और नौकरी करने वालों को बॉस के हस्ताक्षर अवश्य लेने होंगे।
अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार
© प्रफुल शाह
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