Ardhangini book and story is written by रितेश एम. भटनागर... शब्दकार in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Ardhangini is also popular in प्रेम कथाएँ in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम.. - उपन्यास
रितेश एम. भटनागर... शब्दकार
द्वारा
हिंदी प्रेम कथाएँ
हर तरफ बस एंबुलेंस के सायरन का शोर सुनायी दे रहा था,लोग बदहवास से होकर इधर उधर अपने अपनों को बचाने के लिये भाग रहे थे, पूरी पूरी रात लाइनों मे लगने के बाद भी बहुत से ऐसे लोग रह जाते थे जिन्हे ऑक्सीजन का सिलेंडर नही मिल पाता था!! जहां एक तरफ अपने प्रियजनों की उखड़ती हुयी सांसो की चिंता वहीं दूसरी तरफ ऑक्सीजन सिलेंडर ना मिल पाने की खिसियाहट, जहां देखो वहीं बस लोग आंखो मे आंसू लिये फड़फड़ाते, खिसियाये होंठो के साथ जगह जगह हाथ जोड़कर मिन्नते करते खड़े दिख रहे थे कि "भगवान के नाम पर प्लीज प्लीज बस एक सिर्फ एक ऑक्सीजन सिलेंडर दे दो लेकिन ऐसा लग रहा था मानो पूरा का पूरा मेडिकल सिस्टम, सरकारी तंत्र और सरकार फेल हो चुके थे..!!
हर तरफ बस एंबुलेंस के सायरन का शोर सुनायी दे रहा था,लोग बदहवास से होकर इधर उधर अपने अपनों को बचाने के लिये भाग रहे थे, पूरी पूरी रात लाइनों मे लगने के बाद भी बहुत से ऐसे लोग ...और पढ़ेजाते थे जिन्हे ऑक्सीजन का सिलेंडर नही मिल पाता था!! जहां एक तरफ अपने प्रियजनों की उखड़ती हुयी सांसो की चिंता वहीं दूसरी तरफ ऑक्सीजन सिलेंडर ना मिल पाने की खिसियाहट, जहां देखो वहीं बस लोग आंखो मे आंसू लिये फड़फड़ाते, खिसियाये होंठो के साथ जगह जगह हाथ जोड़कर मिन्नते करते खड़े दिख रहे थे कि "भगवान के नाम पर
बाबू जगदीश प्रसाद अपनी पत्नी सरोज के साथ अपने दामाद रवि के तबियत को लेकर चिंता मे डूबे सोफे पर बैठे ही थे कि तभी उनके फोन की रिंग बजने लगी, फोन की रिंग बजते ही उन्होने सामने टेबल ...और पढ़ेरखा अपना फोन उठाया तो देखा कि फोन उनकी बेटी मैत्री का था, उन्होने फोन की स्क्रीन पर अपनी बेटी मैत्री का नाम देखते ही झट से फोन उठाया और फोन उठाते ही बोले- हां गुड़िया कैसी तबियत है अब दामाद जी की...? जगदीश प्रसाद अपनी बेटी मैत्री से ये सवाल करने के बाद उसके जवाब का इंतजार करने लगे
मैत्री के साथ हुये इस हादसे को पूरे 6 महीने बीत चुके थे, कोरोना की दूसरी लहर कई परिवारो की खुशियो को बर्बाद करने के बाद लगभग खत्म हो चुकी थी और मैत्री पर इतनी कम उम्र मे दुखो ...और पढ़ेटूटे इस पहाड़ के बाद एक और झटका जिंदगी ने उसे दे दिया था और वो ये कि उसके ससुराल वालो ने रवि की असमय हुयी मौत के लिये उसे ही जिम्मेदार ठहरा कर उसे अपने मायके वापस जाने के लिये मजबूर कर दिया था, अब वो अपने मायके मे ही रहती थी..!! उम्र के इस पड़ाव मे अपनी इकलौती,
अगले दिन सुबह से ही जगदीश प्रसाद और सरोज के मन मे इस बात को लेकर बेचैनी थी कि वो कैसे मैत्री से उसकी दूसरी शादी को लेकर बात करें, वो दोनों बस एक सही मौके की तलाश मे ...और पढ़ेपर घर के काम मे लगी हुयी मैत्री का उदास और उतरा हुआ चेहरा देखकर उनकी हिम्मत बार बार टूट सी रही थी, सुबह से दोपहर और दोपहर से शाम हो गयी थी लेकिन जगदीश प्रसाद और सरोज को समझ मे नही आ रहा था कि वो मैत्री से दूसरी शादी को लेकर बात की शुरुवात कैसे करें...? फिर शाम
मैत्री को उसके बचपन की यादो को याद करके खुश होते देख जगदीश प्रसाद को लगा था कि यही सही मौका है मैत्री से उसकी दूसरी शादी के लिये बात करने का लेकिन शादी की बात सुनकर मैत्री ने ...और पढ़ेतरह की प्रतिक्रिया दी उसकी उम्मीद ना तो सरोज को थी ना ही जगदीश प्रसाद को!! उन्हे लगा था कि मैत्री उनकी बात को इत्मिनान से सुनेगी और शायद इस बारे मे सोचने के लिये समय मांगेगी लेकिन उसके सीधे सीधे तल्ख लहजे मे मना करने से जगदीश प्रसाद आहत से हो गये थे.. वो मैत्री को समझाते हुये बोले-