अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 64 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 64

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुये मैत्री ने कहा-- रोते रोते घर के अंदर आने के बाद मै अपने कमरे मे गयी और पेट के बल लेटकर अपनी किस्मत को कोसते हुये रोने लगी,मेरे पीछे पीछे घर के अंदर आयीं दोनो भाभियां मेरे पास आयीं और उसके बाद नेहा भाभी ने बड़े प्यार से मुझे थोड़ा सा उठाकर अपनी गोद मे लिटाया और मेरे आंसू पोंछते हुये बोलीं- दीदी हिम्मत रखिये... ये वक्त भी गुजर जायेगा, जितने भी आंसू बहे हैं ना आपकी आंखो से उसकी हजार गुना जादा खुशियां मिलेंगी आपको... ऐसे मत दुखी हो आप....
नेहा भाभी की बात खत्म होने के बाद सुरभि भाभी ने कहा- हां दीदी... नेहा दीदी सही कह रही हैं, हम सब साथ हैं ना... हम सब मिलकर सब ठीक कर देंगे, ये सिर्फ आपके लिये ही नही हम सब के लिये भी बहुत भारी और बुरा वक्त है.... लेकिन आज बुरा है तो कल अच्छा भी आयेगा, वक्त ही तो है ठहर थोड़े ना जायेगा.... 

नेहा भाभी  और सुरभि भाभी से मिले इस प्यार और साथ से मै और जादा भावुक हो गयी और पता नही क्यो मैने उन्हे उस दिन रवि की करी गयी पिटाई के बारे मे रोते रोते  बता दिया... लेकिन मैने उन्हे बस इतना बताया था कि अंकिता की किन हरकतो की वजह से रवि ने मुझे मारा था... इसके बाद जब मैने रवि की मार से मेरी कलाई पर पड़ी वो गांठ दिखाई तो नेहा भाभी उस गांठ को देखकर एकदम से बौखला सी गयीं और मेरी हथेली अपने हाथ मे लेकर दुख करते हुये वो गांठ सहलाते हुये बोलीं- आपने ये सब बाते हम लोगो को क्यो नही बताईं.... कम से कम अपने राजेश भइया और सुनील भइया को तो बताना चाहिये था ना, ऐसे कौन मारता है किसी इंसान को... और मारना ही क्यो है... 

मैने कहा- भाभी मै जानती थी कि अगर मैने वो बात अपने दोनो भाइयो मे से किसी एक को भी बता दी तो बात बहुत बढ़ जायेगी... और मै नही चाहती थी कि रवि और मेरे दोनो भाइयो के बीच तनातनी हो, बस इसीलिये मै ये सब चुपचाप सहती रही.... 

मेरी बात सुनने के बाद नेहा भाभी खिसिया गयीं और दांत भींचते हुये बोली- रुको आप अभी मै इस औरत को बताती हूं जो बाहर खड़ी अपने घटिया बेटे के लिये मिन्नते कर रही है.... 

असल मे रवि की मम्मी अभी भी बाहर खड़ी थीं और नेहा भाभी उनके ऊपर अपना गुस्सा उतारना चाहती थीं...... लेकिन मैने उन्हे ये कहते हुये रोक दिया कि "भाभी रहने दीजिये अब जो हो चुका है मेरे साथ वो हो चुका अब जब रवि ही नही हैं तो फिर इन लोगो से किसी भी तरह के शिकवे और शिकायत का कोई मतलब नही है...." 

इसके बाद नेहा भाभी गुस्से मे बड़बड़ाते हुये कि "बेशर्म लोग, एक नंबर के बत्तमीज"... मुझे प्यार से अपनी बांहो मे भरकर मेरा सिर सहलाने लगीं और सुरभि भाभी तो मेरी गांठ वाली हथेली अपने हाथ मे लेकर उसे सहलाते हुये उसे देखकर रोने लगीं.... 

इसके बाद हम सबने निर्णय लिया कि रवि की खातिर हम रोहित के खिलाफ किया गया केस वापस ले लेंगे..... इसके बाद उन्ही एमएलए की मदद से हम सबको और रोहित समेत रवि के घरवालो को डीएम ऑफिस मे आमने सामने बैठाकर सारा मामला साफ किया गया और उन लोगो से सौ रुपय के स्टांप पेपर पर लिखवाया गया कि "अब रोहित ने मैत्री के साथ किसी भी तरह की बत्तमीजी करी तो सीधे सीधे कानूनी कार्यवाही होगी और गिरफ्तार करने के बाद कोर्ट मे पेश करके जेल भेजा जायेगा".... उस स्टांप पेपर पर और भी बहुत कुछ लिखाया गया था उन लोगो से.... जिसकी वजह से वो समझ गये थे कि अब कोई गलत हरकत हुयी तो लेने के देने पड़ जायेंगे, जो लोग मुझे अकेला पाकर हर समय मुझपर चिल्लाते थे, गुस्सा करते थे, लांछन लगाते थे... उस दिन वो मेरे सामने भीगी बिल्ली बने बैठे थे.... ये सब मुझे अच्छा नही लग रहा था, मैने कभी नही सोचा था कि जिस रिश्ते को मैने सच्ची श्रद्धा से स्वीकार किया था और रवि से शादी करी थी... उसका अंत इतना खराब होगा, मेरे मन मे बदले की भावना बिल्कुल नही थी... मै तो सच्चे दिल से सेवा करना चाहती थी उन लोगो की रवि के रहते भी और रवि के जाने के बाद भी लेकिन उन्होंने हालात ही ऐसे पैदा कर दिये थे कि मेरे और मेरे परिवार के पास कानूनी कार्यवाही करने के अलावा और कोई चारा नही रह गया था.... 

अपनी बात कहते कहते मैत्री ने गहरी सांस ली और गहरी सांस लेते हुये बोली- इसके बाद रोहित ने कभी कोई गलत हरकत नही करी.... ना हम लोगो ने उनसे किसी तरह के कोई संबंध रखे और मुझे अब पता भी नही है कि वो लोग कहां हैं... किन हालातो मे हैं.... 

अपनी बात खत्म करने के बाद मैत्री निढाल सी होकर बैठ गयी... ऐसा लग रहा था मानो उसे बहुत सुकून सा मिला हो अपनी जिंदगी के स्याह अतीत के बारे मे जतिन को बताकर... जतिन जो चाहता था आज वही हुआ था, जैसे समुद्र मंथन के समय समंदर मे से सारा विष निकल गया था आज जतिन के मैत्री के लिये किये गये मन मंथन ने मैत्री के भी मन के सारे जहर को उसके आंसुओ के जरिये उसके मन से बाहर निकाल कर फेक दिया था... 

जहां एक तरफ मैत्री अभीतक सुबक रही थी... वहीं जतिन उसका गांठ वाला हाथ अपने हाथो मे लिये चुपचाप सिर झुकाये बस उसी गांठ की तरफ देखे जा रहा था... ऐसा लग रहा था मानो मैत्री के ऊपर हुये हर जुल्म की टीस को वो अपने दिल पर महसूस कर रहा था और मैत्री सुबकते हुये और बार बार अपने आंसू पोंछते हुये बस सामने की तरफ देखे जा रही थी... पूरा कमरा बिल्कुल शांत हो गया था,मैत्री की सिसकियां जैसे कमरे मे गूंज रही थीं..... आज जतिन की मैत्री बहुत रोयी थी और जतिन जिसे मैत्री का एक आंसू बर्दाश्त नही होता था उसने आज अपनी अर्धांगिनी अपनी मैत्री को रोने से नही रोका था क्योकि आज मैत्री का रोना जरूरी था ताकि जतिन डरी हुयी.. हर बात पर सहम जाने वाली मैत्री मे से उस असली मैत्री को हमेशा के लिये बाहर निकाल ले जो आज रात मे डिनर करते वक्त खुल कर हंस रही थी... जिसने शैतानी करी थी.... जिसे जतिन देखना चाहता था... 

काफी देर तक ऐसे ही बैठे रहने के बाद माहौल को हल्का करने के उद्देश्य से जतिन सिर झुकाये झुकाये मैत्री से बोला- मैत्री...!! 
सुबकते हुये मैत्री ने कहा- जी.. 

जतिन बोला- ये... रवि की मम्मी ने मेरा भी नुक्सान करवाया है यार.... 

जतिन के मुंह से इस तरह से रवि की मम्मी का जिक्र सुनकर मैत्री चौंक गयी और चौंकते हुये बोली- आपका नुक्सान.... आपका कैसा नुक्सान, आप जानते थे उनको?? 

जतिन ने कहा- अरे नही नही... मै नही जानता था पर उन्होने मेरा नुक्सान करवा दिया, असल मे.... जो आईसक्रीम मै तुम्हारे लिये लाया था.... वो पिघल कर गर्म हो गयी...... ये नुक्सान... 

अपनी बात कहते कहते जतिन धीरे धीरे हंसने लगा... और जतिन की बात सुनकर मैत्री भी सुबकते सुबकते हंसने लगी.... और हंसते हुये बोली- हॉॉॉॉ... आईसक्रीम का तो मुझे ध्यान ही नही रहा.... फिर अब क्या करें... 

जतिन ने कहा- अब क्या... अब इसे फ्रीजर मे रख देते हैं... अब हम इसे कल खायेंगे.... 

जतिन की बात सुनकर मैत्री बिना वजह फिर से हंसी... और हंसते हुये बोली- बताइये... हमारे सामने सामने आईसक्रीम पिघल गयी और हम लोग कुछ कर भी नही पाये... 

मैत्री की बात सुनकर जतिन भी हंसने लगा.... मैत्री बिना वजह बस हंसे जा रही थी और बार बार "आईसक्रीम पिघल गयी" बोलते हुये ताली बजाकर और जोर से हंस रही थी.... उसे ऐसे हंसते देख जतिन भी हंसने लगा... जतिन समझ गया था कि जिस उद्देश्य के चलते उसने अपनी मैत्री को आज रोने से नही रोका था.. वो पूरा हो गया था, मन का भार आंसुओ के जरिये बाहर निकलने के कारण मैत्री को हल्का महसूस हो रहा था.... बस इसीलिये वो हंसे जा रही थी और अब जतिन को बहुत अच्छा लग रहा था.... लेकिन मैत्री के ऊपर हुये इतने बुरे अत्याचारो के बारे मे जानकर उसका मन अभी भी जैसे पसीज सा रहा था..... 

मैत्री हंस भले रही थी लेकिन उसकी आंखे भारी थीं... उसकी आंखो को देखकर साफ साफ लग रहा था कि उसकी आंखे नींद से भरी हुयी हैं.... ये देखकर जतिन ने मैत्री से कहा- मैत्री तुम बहुत थक गयी हो ना.... तुम्हारी आंखो मे तुम्हारी थकान साफ साफ दिख रही है.... तुम अब आराम करो और सो जाओ.... 

एक तो मैत्री दिन भर का काम करने के बाद सच मे बहुत थकी हुयी थी, ऊपर से उसका मन हल्का हल्का सा हो रहा था इसलिये जतिन के सोने के लिये कहने पर उसने जरा सी भी ना नुकुर नही करी और चुपचाप अपनी जगह पर लेट गयी.... जतिन ने उसे चादर उढ़ायी और बड़े प्यार से मुस्कुराते हुये उसके सिर पर हाथ फेरा.... और जब मैत्री सो गयी तो उसके पास से उठकर बाहर ड्राइंगरूम मे आकर बैठ गया.... 

क्रमशः