अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 2 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 2

बाबू जगदीश प्रसाद अपनी पत्नी सरोज के साथ अपने दामाद रवि के तबियत को लेकर चिंता मे डूबे सोफे पर बैठे ही थे कि तभी उनके फोन की रिंग बजने लगी, फोन की रिंग बजते ही उन्होने सामने टेबल पर रखा अपना फोन उठाया तो देखा कि फोन उनकी बेटी मैत्री का था, उन्होने फोन की स्क्रीन पर अपनी बेटी मैत्री का नाम देखते ही झट से फोन उठाया और फोन उठाते ही बोले- हां गुड़िया कैसी तबियत है अब दामाद जी की...?

जगदीश प्रसाद अपनी बेटी मैत्री से ये सवाल करने के बाद उसके जवाब का इंतजार करने लगे लेकिन उधर से कोई जवाब नही आया, जगदीश प्रसाद ने थोड़ी तेज आवाज मे फिर से पूछा- गुड़िया बेटा कैसी तबियत है रवि जी की?कुछ तो बोल...!!

ये सवाल पूछने के बाद दूसरी तरफ से रुंधे हुये गले से सुबकती हुयी बेबस सी एक आवाज आयी - प.. पापा... अ.. आपकी गुड़िया टूट गयी पापा... रवि मुझे अकेला छोड़कर चले गये... सब खत्म हो गया ... आप प्लीज आ जाओ पापा....!!

मैत्री के मुंह से ये बेहद दर्दनाक बात सुनकर जगदीश बाबू जैसे शून्य से हो गये.. कुछ नही बोल पाये..!! उनको ऐसा अवाक् हुआ देखकर फोन आने के बाद से व्याकुल सरोज घबरा गयीं और जगदीश बाबू को जोर से हिलाते हुये घबराहट के मारे बौखलाई हुयी सी बोलीं- क्या हुआ.. कुछ बताओ तो सही... अरे सुनिये... हे भगवान ये कुछ बोल क्यो नही रहे...!!

सरोज के जोर जोर से हिलाने पर जगदीश बाबू बदहवास से होकर मूर्छित से हुये सोफे से गिर कर नीचे जमीन पर जा बैठे और जोर जोर से सांस लेते हुये बौखलाये से लहजे मे जोर जोर से रोने लगे, रोते रोते वो सरोज से बोले- अभी एक साल भी नही हुआ था हमारी बेटी के जीवन मे खुशियां आये हुये, हे भगवान ये क्या अनर्थ कर दिया (ऐसा कहते कहते सरोज की तरफ देखकर जगदीश बाबू बोले) सरोज रवि चले गये, हम सबको अभागा करके रवि चले गये, मेरी बच्ची को इतनी कम उम्र मे अभागा करके वो चले गये...!!

जगदीश बाबू के मुंह से अपनी इकलौती बेटी मैत्री के पति रवि के मरने की खबर सुनकर सरोज वहीं सोफे पर बैठे बैठे ही अपनी छाती को रगड़़ते हुये निढाल होकर "हे राम ये क्या हो गया, हे राम ये क्या हो गया" कहते हुये सोफे पर ही गिर कर बेहोश हो गयीं..!! अपने आंसू पोंछकर जैसे तैसे अपने आप को संभालते हुये जगदीश बाबू अपनी जगह से उठे और मेज पर ही रखा पानी का जग हाथ मे उठाकर और उसमे से पानी अपनी हथेली पर लेकर बेहोश पड़ी अपनी पत्नी सरोज की आंखो पर छिड़कने लगे, पानी छिड़कते हुये रोते रोते वो अपनी पत्नी सरोज से बोले- सरोज.. उठ जाओ सरोज, ऐसे हिम्मत हारोगी तो कैसे काम चलेगा..!! ये दुखो का पहाड़ जो हमारी बच्ची पर टूटा है उसके बाद हमे उसको भी संभालना है..!!

जगदीश प्रसाद श्रीवास्तव की अगर बात करें तो वो बैंक से रिटायर थे... चूंकि पुराने जमाने मे शादियां जल्दी हो जाती थीं तो बाबू जगदीश प्रसाद की शादी भी बैंक मे जॉब लगने के बाद महज चौबीस साल की उम्र मे ही हो गयी थी, जिस समय उनकी शादी हुयी थी उस समय सरोज की उम्र अट्ठारह साल की थी, शादी के कई साल बीत जाने के बाद भी उनके कोई संतान नही हुयी थी, तमाम मेडिकल टेस्ट और कई मंदिरो मे संतान के लिये मन्नते मानने के बाद बड़ी मुश्किल से उनके घर मे मैत्री संतान के तौर पर एक बहुत बड़ी खुशी बनके आयी थी चूंकि वो अपने मम्मी पापा की अकेली संतान थी तो बचपन से ही जगदीश बाबू और सरोज ने उसे बड़े ही प्यार और नजाकत से पाला था!! समय से पहले उसकी हर डिमांड पूरी करना, उसे हर वो चीज देना जो उसके लिये जरूरी थी... दूसरी तरफ मैत्री भी अपने नाम के हिसाब से बहुत सौम्य, सुंदर और संस्कारी लड़की थी, डिजिटल इंडिया की आधुनिकता की इस दौड़ मे भी वो मॉडर्न कम पूजा पाठ करने वाली ट्रेडीशनल लड़की जादा थी.... इतनी प्यारी, हमेशा सबका ध्यान रखने वाली, इकलौती बेटी के जीवन मे अचानक से आये इस भयंकर तूफान की खबर ने जगदीश बाबू और सरोज को बिल्कुल तोड़ के रख दिया था लेकिन वक्त की विडंबना ये थी कि उन्हे अपनी बेटी को संभालने से पहले खुद को संभालना था, इस उम्र मे इतना बड़ा झटका सहना उनके लिये भी अपने आप मे एक बहुत ही जादा बड़ी बात थी लेकिन उन्हे ये करना था क्योकि नियति ने उनके लिये और कोई चारा छोड़ा भी नही था..!!

मुंह पर पानी की छींटें पड़ने से सरोज को होश तो आ गया था पर उनको अपने आप को संभालना बहुत मुश्किल हो गया था|

सरोज को संभालते और उनके आंसू पोंछते हुये जगदीश बाबू ने कहा- सरोज अपने आप को संभालो, हमे मैत्री की ताकत बनना है और अगर हम ही इस तरह से टूट गये तो उसे कैसे संभालेंगे प्लीज अपने आप को संभालो और चलो... हमें मैत्री के पास जाना है...!!

जगदीश बाबू अपनी पत्नी सरोज को ढांढस बंधा तो रहे थे लेकिन अचानक से दुखो के टूटे इस पहाड़ के बाद एक मां के लिये इतना आसान कहां होता है संभलना..!!

सरोज को ढांढस बंधाने की नाकाम कोशिश करने के बाद जगदीश बाबू ने अपना मोबाइल उठाया और पास ही रहने वाले अपने छोटे भाई नरेश श्रीवास्तव को फोन कर दिया, नरेश को फोन करके जगदीश बाबू ने जब अपने दामाद रवि की मौत की खबर उनको दी तो उनके घर मे भी रोना पीटना मच गया, जगदीश बाबू और नरेश रहते भले अलग अलग घरो मे थे लेकिन दोनो के परिवारो और दोनो भाइयो के बीच प्यार बहुत था और मैत्री अपने चाचा नरेश और उनके पूरे परिवार की भी बहुत लाडली थी, वजह थी कि जगदीश बाबू और नरेश की कोई बहन नही थी और नरेश के भी दो लड़के ही थे तो पूरी दो पीढ़ी के बाद उनके परिवार मे मैत्री एक बेटी के रूप में आयी थी!! नरेश के दोनो लड़को के बीच मैत्री अकेली बहन थी और देर से पैदा होने की वजह से दोनो लड़को से छोटी थी तो उसे हर तरफ से प्यार मिलता था ऐसे मे अपनी लाडली के साथ हुये इस हादसे की खबर सुनकर जगदीश बाबू के भाई नरेश को भी गहरा सदमा लगा था, जगदीश बाबू के फोन के फौरन बाद नरेश और उनका पूरा परिवार भागता हुआ उनके घर आ गया था और उन लोगों के आ जाने से उन सब लोगो का साथ पाकर जगदीश बाबू और सरोज में परिस्थितियों को झेलने की थोड़ी हिम्मत आ गयी थी...!!

इसके बाद जगदीश प्रसाद, सरोज, नरेश और उनकी पत्नि सुनीता अपने दोनों बेटों राजेश और सुनील के साथ दुख की इस घड़ी में अपनी बेटी का साथ देने के लिये घर से निकल गये!!

क्रमशः