अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 3 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

  • मोमल : डायरी की गहराई - 47

    पिछले भाग में हम ने देखा कि फीलिक्स को एक औरत बार बार दिखती...

  • इश्क दा मारा - 38

    रानी का सवाल सुन कर राधा गुस्से से रानी की तरफ देखने लगती है...

श्रेणी
शेयर करे

अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 3

मैत्री के साथ हुये इस हादसे को पूरे 6 महीने बीत चुके थे, कोरोना की दूसरी लहर कई परिवारो की खुशियो को बर्बाद करने के बाद लगभग खत्म हो चुकी थी और मैत्री पर इतनी कम उम्र मे दुखो के टूटे इस पहाड़ के बाद एक और झटका जिंदगी ने उसे दे दिया था और वो ये कि उसके ससुराल वालो ने रवि की असमय हुयी मौत के लिये उसे ही जिम्मेदार ठहरा कर उसे अपने मायके वापस जाने के लिये मजबूर कर दिया था, अब वो अपने मायके मे ही रहती थी..!!

उम्र के इस पड़ाव मे अपनी इकलौती, महज 28 साल की जवान बेटी को इस तरह रोज तिल तिल करके घुटते देख जगदीश प्रसाद और मैत्री की मां सरोज बस इसी चिंता मे डूबे रहते थे कि "हम आज हैं कल नही, उम्र के इस पड़ाव मे पता नही कब ऊपर वाले का बुलावा आ जाये ऐसे में हमारे बाद हमारी बेटी का ध्यान कौन रखेगा..?" यही बात सोच सोचकर जगदीश प्रसाद और सरोज दोनों जैसे मन ही मन रोज थोड़ा थोड़ा कट से रहे थे, उन दोनों के लिये ये वाकई एक विकट मानसिक पीड़ा का बहुत भारी दौर था जिसे ना तो वो दोनों बुजुर्ग बेचारे सह पा रहे थे और ना किसी से अपनी वेदना कह पा रहे थे!!

दूसरी तरफ मैत्री भी पूरी तरह गुमसुम हो गयी थी, वो काम तो सारे करती थी घर के और बाहर के जो उससे कहे जाते थे या जो उसे करने के लिये समझ आते थे और अपने मम्मी पापा का भी ध्यान रखती थी लेकिन उसके चेहरे पर हमेशा एक उदासी बनी ही रहती थी, हमेशा सबके बीच मे रहने वाली मैत्री ने सबसे मिलना छोड़ दिया था, जिंदगी मे आये इतने बड़े तूफान के बाद जो मैत्री सुबह और शाम दो बार भगवान के आले के सामने खड़े हो कर और घी का दिया जलाकर पूजा करती थी.. उसी मैत्री ने भगवान की तरफ से भी पूरी तरह से अपना मुंह मोड़ लिया था, रवि के जाने के बाद कई त्योहार आये... नवरात्र, दशहरा, दिवाली पर नही आयी तो मैत्री के चेहरे पर मुस्कुराहट...!! उसने अपने भविष्य को जैसे अपने भाग्य के सहारे छोड़ दिया था और अवसादो से भरी एक सोच जैेसे उसके दिल मे घर कर गयी थी कि अब मुझे ऐसे ही जिंदगी गुजारनी है...!!

लेकिन इस दुनिया के संभ्रांत समाज मे रहने वाले माता पिता को ये कहां मंजूर कि उनके रहते उनकी संतान इतने अवसाद मे जिंदगी जिये, अपनी लाडली बेटी मैत्री के उतरे हुये चेहरे को देखते देखते आधी सी हुयी जा रही सरोज ने एक दिन ऐसे ही मैत्री के पापा जगदीश प्रसाद से हिचकते हुये और दुखी लहजे मे कहा- सुनिये जी.. मुझसे मैत्री की ये हालत देखी नही जाती...

जगदीश प्रसाद भी उसी उदास से लहजे मे बोले- हम्म्... देखी तो मुझसे भी नही जाती सरोज पर क्या करूं कुछ समझ नही आता, मैत्री की चिंता खाये जा रही है... हमेशा हंसती रहती थी, हर त्योहार मे बढ़ चढ़कर काम करती थी, क्या नही आता हमारी बेटी को..!! पकवान बनाने से लेकर घर सजाना, रंगोली कितनी खूबसूरत बनाती है, कितने अच्छे से मैत्री ने अपना ससुराल संभाला हुआ था, एक झटके मे सब बर्बाद हो गया... भगवान इतना निर्मोही कैसे हो गया सरोज, ऐसा तो कोई पाप हमने नही किया जिसकी इतनी बड़ी सजा हमारी बच्ची को मिली है... (ये कहते कहते जगदीश प्रसाद फफक कर रोने लगे और रोते रोते अपने माथे पर अपनी हथेली पटकते हुये बोले) इससे तो भगवान रवि की जगह मुझे उठा लेते, रवि के जाने के बाद आधा तो मै वैसे ही मर चुका हूं...!!

अपने पति जगदीश प्रसाद को इस तरह से टूटकर रोते देख सरोज ने उनके कंधे को सहलाते हुये और खिसियाते हुये कहा- आप संभालिये अपने आप को, ऐसे टूटने से क्या होगा... हमे कुछ निर्णय लेना होगा...!!

अपने आंसू पोंछते हुये रुंधे हुये गले से जगदीश प्रसाद ने सरोज से कहा- कैसा निर्णय..?

सरोज ने कहा- हम अपनी बेटी को ऐसे तिल तिल करके मरते नही देख सकते, हमे उसे उसके जीवन मे आगे बढ़ाना होगा (थोड़ा हिचकते हुये सरोज ने आगे कहा) ह.. हम... उसकी द.. दूसरी शादी करायेंगे...!! उसे भी हक है खुश रहने का और उसे उसका हक हम देकर रहेंगे...!!

सरोज के मुंह से ये बात सुनकर एकदम से जैसे जगदीश प्रसाद के दिल का बोझ कम सा हो गया था और वो अपने आंसू पोंछते हुये बोले- मै बहुत दिनो से ये बात सोच रहा था पर मैत्री का उतरा और उदास चेहरा देखकर फिर से शादी की बात करने की हिम्मत नही जुटा पा रहा था, तुम बिल्कुल सही कह रही हो सरोज हमारी बेटी को भी पूरा हक है अपनी जिंदगी मे आगे बढ़ने का लेकिन...!!

अपनी बात कहते कहते जगदीश प्रसाद चुप हो गये तो सरोज ने पूछा- क्या लेकिन जी??

जगदीश प्रसाद बोले- लेकिन रवि को गये अभी साल भर भी नही हुआ है ऐसे में क्या मैत्री से इस संबंध मे इतनी जल्दी बात करना ठीक रहेगा?? अभी तो वो उस रिश्ते से बाहर भी नही आयी है...

सरोज थोड़़ा एग्रेसिव सी हुयी बोली- आपकी बात ठीक है कि रवि को गये अभी जादा समय नही हुआ लेकिन ये बात क्या मैत्री के ससुराल वालो ने सोची कि उनके बेटे को गये इतना कम समय हुआ है तो अपनी बहू को इतना प्रताड़ित ना करें, उसे इस तरह इस दुख से भरे समय मे गलत इल्जाम लगा के घर से धक्के देकर ना निकालें!! क्या इसी दिन के लिये हमने अपनी बेटी को इतने प्यार और नाजों से पाल पोस के बड़ा किया था कि उसके पति के जाने के बाद उसे इस तरह की बेज्जती सहनी पड़े...!! रवि भले मैत्री से बहुत प्यार करते थे, उसका बहुत ध्यान रखते थे लेकिन अपनी बहनों और मम्मी की बातो मे आकर अक्सर मैत्री को बिना वजह बाते सुनाया करते थे, परेशान कर रखा था सबने मिलकर मैत्री को फिर भी हमारी बेटी ने कोई गलत कदम नही उठाया, वो सब निभाती रही और उसके बाद भी उन लोगो ने इतना गलत किया मैत्री के साथ, आपको याद नही है क्या कि बिल्कुल खाली हाथ उन लोगो ने घर से निकाल दिया था मैत्री को, इतना भी नही हुआ किसी से कि हमे एक फोन करके बता देते कि नही रखना इसे अपने साथ तो हम ही उसे इज्जत के साथ यहां वापस ले आते, वो तो भला हो आजकल की ऑनलाइन टैक्सियो का जो मैत्री ने अपने फोन से बुक कर ली थी और घर आ गयी थी, क्या ये नही याद आपको कि कैसे घर आने के बाद हम दोनो को देखकर रोते हुये घुटनो के बल गिरके इतना दुख करके रोयी थी मैत्री और कितना दुख करके रोते हुये बोली थी कि "मम्मा उन लोगो ने मुझे बेघर कर दिया, क्या मै आप लोगो के साथ रह सकती हूं"
हमारी बेटी किस कदर टूट गयी थी उस दिन कि अपने घर मे रहने के लिये ही हमसे पूछ रही थी...!!

जगदीश प्रसाद के रवि को लेकर किये गये सवाल ने सरोज के सब्र का बांध जैसे तोड़ दिया था और वो उस स्याह अतीत को याद करके बौखलाई हुयी सी बस अपनी बात बोले जा रही थीं...

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुये सरोज ने कहा- सुनिये जी.. अब जादा मत सोचिये, हमे मैत्री से इस सिलसिले मे कल ही बात करनी होगी, हमारी बच्ची जिंदगी से हारी हुयी सी भगवान ना करे कल को कोई गलत कदम उठा ले तब हम क्या करेंगे? वो वैसे भी इतनी संजीदा है और हर बात दिल पर लगा लेती है, आप प्लीज कल सारे काम भूलकर मैत्री से इस विषय पर बात करिये और हम दोनो मिलकर उसे समझायेंगे....!!

माता पिता अपने बच्चों की खुशियों के लिये जीवन भर ना जाने कितनी बार अपने दिल पर पत्थर रख लेते हैं, अपने कलेजे का टुकड़ा अपनी बेटी के जीवन में खुशियां भरने के लिये उसे हंसते हुये घर से विदा कर देते हैं ये सोचकर कि वो जिस घर जा रही है उसे वहां मायके से भी जादा प्यार और खुशियां मिलेंगी लेकिन जब उन्हे पता चले कि उनकी फूल सी बच्ची को अकेले पाकर उसे प्रताड़ित किया गया, तो उनके दिल पर क्या बीतती होगी!!

जिस बेटी को खुश देखने के लिये जगदीश प्रसाद और सरोज ने उसकी शादी करवायी थी उस बेटी को आज दुखों के पहाड़ों के बीच में घिरा देखकर वो कैसे ना सोचें उसके सफेद हो चुके जीवन में फिर से रंग भरने के लिये..!!

क्रमशः

लेकिन क्या मैत्री शादी के नाम पर इतनी प्रताड़नायें सहने के बाद फिर से दूसरी शादी के लिये खुद को मना पायेगी? क्या वो दूसरी शादी की बात स्वीकार कर पायेगी?? देखते हैं आगे....