अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 4 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 4

अगले दिन सुबह से ही जगदीश प्रसाद और सरोज के मन मे इस बात को लेकर बेचैनी थी कि वो कैसे मैत्री से उसकी दूसरी शादी को लेकर बात करें, वो दोनों बस एक सही मौके की तलाश मे थे पर घर के काम मे लगी हुयी मैत्री का उदास और उतरा हुआ चेहरा देखकर उनकी हिम्मत बार बार टूट सी रही थी, सुबह से दोपहर और दोपहर से शाम हो गयी थी लेकिन जगदीश प्रसाद और सरोज को समझ मे नही आ रहा था कि वो मैत्री से दूसरी शादी को लेकर बात की शुरुवात कैसे करें...?

फिर शाम को सरोज ने जगदीश प्रसाद से कहा- सुनिये जी ऐसे तो हम सोचते ही रह जायेंगे, मैत्री अपने कमरे मे है चलिये हम दोनो चलते हैं और थोड़ी देर उसके पास बैठते हैं फिर बातो बातो मे उससे उसकी दूसरी शादी के लिये बात कर लेंगे, मै फटाफट चाय बना लेती हूं इसी बहाने उसके साथ टाइम बिताने का मौका भी मिल जायेगा...

सरोज के ऐसा कहने पर जगदीश प्रसाद ने भी हामी भर दी इसके बाद सरोज रसोई मे चाय बनाने चली गयीं, चाय बना के लाने के बाद दोनो मियां बीवी एकसाथ ही मैत्री के कमरे मे चले गये, वहां जाकर उन्होंने देखा कि मैत्री अपने कमरे मे अपने बचपन के टेड्डी को जिसे वो बहुत प्यार करती थी अपनी बांहो मे भरे बैठी थी और जाने क्या सोच रही थी, उसकी आंखो को देखकर लग रहा था कि या तो वो बहुत रोई है अकेले मे या फिर जैसे तैसे करके उसने अपने आंसुओं को अपनी आंखों में रोका हुआ है...!!

अपने मम्मी पापा को एकसाथ अपने कमरे मे देखकर बड़ी बुझी बुझी सी मुस्कान अपने होठो मे लिये मैत्री ने उनसे पूछा- अरे आप दोनो एकसाथ...!!

सरोज ने कहा- हां हम दोनो एकसाथ!! आज हमने सोचा तेरे कमरे मे सब साथ बैठकर चाय पियेंगे..

इसके बाद सबने साथ बैठ के चाय पी, चाय पीने के बाद सरोज अपनी जगह से उठी और अपने बिस्तर पर बैठी मैत्री के ठीक बगल मे जाकर बैठ गयीं और बड़े प्यार से मुस्कुराते हुये उन्होने उसके सिर पर हाथ फेरा और उसका माथा चूम लिया, अपनी मम्मी से मिले इस प्यार से भावुक सी होकर मैत्री उनकी गोद मे सिर रखकर लेट गयी, मैत्री के बालो मे प्यार से हाथ सहलाते हुये सरोज ने कहा- तुझे याद है गुड़िया जब तू चार या पांच साल की थी तब टीवी पर एक विज्ञापन देखकर जिसमे एक बच्ची ने अपने हाथ मे एक टैड्डी लिया हुआ था... तू भी जिद करने लगी थी कि मुझे भी बिल्कुल वैसा ही टैड्डी चाहिये और वो भी अभी के अभी चाहिये, तू बहुत रोयी कि "मुझे वैसा ही टैड्डी लाकर दो...." और फिर तेरे पापा से तेरा इतना दुख करके रोना देखा नहीं गया, उस दिन संडे था... तेरे पापा सुबह साढ़े ग्यारह बजे के निकले निकले शाम को घर आये थे और जब वो घर आये तो उनके हाथ मे बिल्कुल वैसा ही टैड्डी था जिसके लिये तू इतना रोयी थी, उस दिन लखनऊ की शायद ही ऐसी कोई दुकान रही होगी जिसमे तेरे पापा ने जाकर वो टैड्डी नही ढूंढा होगा...!!

अपनी मम्मी सरोज के मुंह से इतने प्यार से अपने बचपन की शैतानी की बात सुनकर मैत्री उन यादो मे खोई हुयी सी धीरे धीरे मुस्कुराने लगी, अपनी बेटी के चेहरे पर आयी इस प्यारी और निश्छल मुस्कान को देखकर सरोज ने बड़े प्यार से उसका माथा चूम लिया, अपनी मम्मी के इस तरह से प्यार जताने पर मैत्री ने उनसे पूछा- हां मम्मा हल्का हल्का याद है पर वो टैड्डी कहां चला गया...?

मैत्री की इस बात को सुनकर उसके पापा जगदीश प्रसाद मुस्कुराये और उठकर अपने कमरे मे चले गये, करीब दस मिनट बाद जब वो अपने कमरे से वापस मैत्री के कमरे मे आये तो उनके हाथ मे वही वाला टैड्डी था जिसका जिक्र सरोज ने अभी थोड़ी देर पहले किया था, कमरे मे उस टैड्डी के साथ आते ही जगदीश प्रसाद बोले- ये रही तेरे बचपन की अमानत...!!

उस टैड्डी को देखकर मैत्री बहुत खुश हुयी ऐसा लगा मानो जैसे वो अपनी सारी तकलीफ भूल गयी हो, टैड्डी को देखकर मैत्री सरोज की गोद से उठकर बैठ गयी और बोली- आपने अब तक इसे संभाल कर रखा है!! मै तो भूल ही गयी थी...

ऐसा बोलते हुये मैत्री ने उस टैड्डी को अपने हाथों मे लिया और प्यार से उसकी तरफ देखकर हंसने लगी, रवि के जाने के बाद ये पहला ऐसा मौका था जब जगदीश प्रसाद और सरोज ने मैत्री को फिर से मुस्कुराते देखा था, अपने बचपन के खिलौने को देखकर मैत्री को इतने प्यार से मुस्कुराते देखकर जगदीश प्रसाद बोले- मैत्री बेटा चल मेरे साथ मै तुझे और भी कुछ दिखाना चाहता हुं...

ऐसा कहकर जगदीश प्रसाद ने मैत्री की तरफ हाथ बढ़ाया तो मैत्री ने भी उनका हाथ पकड़ लिया और फिर उनके साथ उनके रूम मे चली गयी, उनके पीछे पीछे सरोज भी अपने कमरे मे चली गयीं, वहां जाने के बाद जगदीश प्रसाद बेड पर चढ़कर अलमारी के ऊपर रखा एक बड़ा बक्सा उतारने लगे तो मैत्री ने उन्हे सहारा देकर वो बक्सा अलमारी के ऊपर से उतारने मे उनकी मदद करी, बक्से को जमीन पर रखने के बाद जगदीश प्रसाद ने उसे खोला तो उसमे बड़े ही अच्छे सुरक्षित तरीके से कुछ चीजें रखी हुयी थीं, उन चीजो को देखकर थोड़ा सरप्राइज़ होते हुये मैत्री ने पूछा- इसमे क्या है पापा...??

मैत्री के पूछने पर जगदीश प्रसाद ने एक छोटा सा बैग उस बक्से मे निकाला और उसे खोलकर उसमे से एक छोटी सी पिंक कलर की फ्रॉक निकालते हुये मैत्री से मुस्कुराते हुये कहा- ये तेरी फ्रॉक है... तेरी पहली फ्रॉक!! तुझे जब हॉस्पिटल से पहली बार घर लाये थे तो बड़ी रिक्वेस्ट करने के बाद डॉक्टर ने तुझे ये पहनाने दी थी...!!

अपनी पहली फ्रॉक को देखकर मैत्री के चेहरे पर एक बहुत प्यारी सी स्माइल आ गयी थी, मैत्री को अपने बचपन की यादो के बारे मे जानकर ऐसे मुस्कुराते देखकर जगदीश प्रसाद और सरोज दोनो को बहुत सुकून मिल रहा था, फ्रॉक दिखाने के बाद जगदीश प्रसाद ने उस बक्से मे संभाल कर रखा एक छोटा सा हेयर बैंड निकाला जिसमे बहुत प्यारा सा एक फूल बना हुआ था, उस हेयरबैंड को मैत्री को दिखाते हुये जगदीश प्रसाद बोले- ये तेरा पहला हेयरबैंड था बेटा...!!

उस हेयरबैंड को देखकर थोड़े एक्साइटेड से लहजे मे मैत्री ने कहा- पापा ये ड्राइंगरूम मे जो मेरी फोटो रखी है मेरे बचपन की उसमे जो हेयरबैंड मैने पहना हुआ है ये वही हेयरबैंड है ना...??

"हां ये वही है" जगदीश प्रसाद ने कहा....

इसके बाद उन्होने एक एक करके बहुत सारी चीजे मैत्री को दिखाई जो उसे उसके बचपन मे जगदीश प्रसाद ने लाकर दी थीं, उसमे मैत्री के छोटे छोटे कार्टून की डिजाइन वाले जूते थे, कई कलर की फ्रॉक थीं बहुत सारी डॉल्स थीं जो कभी मैत्री की जान हुआ करती थीं, अपने बचपन की सारी चीजें देखकर बचपन की यादो मे वापस लौटी मैत्री बहुत खुश हो रही थी कि तभी उसकी मम्मी सरोज ने कहा- बेटा तेरे पापा ने तेरी खुशियो से जुड़ी हर चीज बहुत संभाल कर रखी हुयी है, ये तेरी खुशी के लिये कुछ भी करते थे, इनसे तेरा रोना नही देखा जाता था...

अपने बचपन की चीजो को देखकर खुश हुयी मैत्री अपनी मम्मी की बात सुनकर एकदम से उदास हो गयी और सिर झुका कर बच्चो की तरह होंठ बाहर निकालकर सुबकने लगी, ऐसा लगा मानो रवि की यादों का झोंका अचानक से उसके हंसते हुये चेहरे को छू कर निकल गया हो, मैत्री को हंसते हंसते फिर से एक बार रोते देखकर जगदीश प्रसाद का भी गला भर आया और वो भी रुंधे हुये भारी गले से मैत्री से बोले- बेटा ऐसे मत रो तेरे आंसू मेरा दिल चीर देते हैं, बेटा कब तक ऐसे ही उदास रहेगी,ऐसे ही रोती रहेगी... (मैत्री के सामने हाथ जोड़कर जगदीश प्रसाद आगे बोले) बेटा जिंदगी मे आगे बढ़ जा...!!

अपने पापा जगदीश प्रसाद को इस तरह हाथ जोड़ते देख रोते हुये मैत्री ने उनके हाथ पकड़ लिये और कहा- पापा ऐसे हाथ क्यो जोड़ रहे हैं और जब किस्मत ने ही मेरे पैरो मे इतनी बड़ी बेड़ियां डाल दी हैं तो मै कैसे आगे बढ़ जाऊं, पापा मै कहीं जॉब कर लूंगी आप चिंता मत करिये मै बोझ नही बनूंगी आपके ऊपर...

मैत्री की इस बात से जगदीश प्रसाद जैसे आहत हो गये और उसके आंसू पोंछते हुये बोले- बेटियां बोझ नही होतीं है बेटा और इस घर मे जो कुछ भी है वो सब तेरा है, बेटा देख गलत मत समझना प्लीज हमारे लिये.. जिंदगी मे आगे बढ़ जा!! खुशियो को पाना तेरा भी अधिकार है कब तक ऐसे ही अपने आप को कष्ट पंहुचाती रहेगी और अंदर ही अंदर घुटती रहेगी.... (हिचकिचाते हुये जगदीश प्रसाद ने आगे कहा) ब.. बेटा.. दूसरी शादी कर ले!!!

दूसरी शादी की बात सुनकर मैत्री चौंक गयी और अपनी जगह से उठकर बोली- ये नही हो सकता पापा फिर से वही सब..!! नही मै अब इन रिश्तो के चक्रव्यूह मे पड़ना ही नही चाहती...!!

क्रमश:

इतनी कम उम्र में अपने पति को एक बेवजह की बीमारी की वजह से अपनी आंखों के सामने दम तोड़ते देखने के बाद मैत्री तो क्या कोई भी लड़की दूसरी शादी के लिये तैयार नहीं होगी लेकिन जगदीश प्रसाद और सरोज भी अपनी जगह बिल्कुल सही हैं क्योंकि मां बाप सब कुछ देख सकते हैं लेकिन अपनी औलाद का दुख नहीं देख सकते...!! ऐसे में देखना ये है कि क्या मैत्री अपनी दूसरी शादी के लिये मानेगी या इस आंसुओं से भरे जीवन को ही अपना भाग्य मान लेगी!!