अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 7 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 7

सरोज के साथ अपने घर वापस आने के बाद नरेश अपने कमरे मे चले गये, उनकी पत्नी सुनीता ने सरोज की हिम्मत बढ़ायी और "दीदी मै थोड़ी देर मे आयी" बोलकर अपने पति नरेश के अपने कमरे मे जाने के पांच मिनट बाद वो भी अपने कमरे मे चली गयीं, सुनीता जब अपने कमरे मे गयीं तो उन्होने देखा कि नरेश अपने बेड पर पैर लटका कर सिर झुकाये बैठे हैं उनको ऐसे बैठा देखकर सुनीता उनके पास गयीं और बोलीं- मैं जानती हूं भाई साहब की तबियत देखकर आप दुखी हैं लेकिन आप परेशान मत हो वरना आपकी तबियत खराब हो जायेगी और आपकी शुगर वैसे भी बढ़ी हुयी रहती है... प्लीज आप परेशान मत हो!!

सुनीता की बात सुनकर सिर झुकाये बैठे नरेश ने अपना सिर उठाया और अपने आंसू पोंछते हुये बोले- कितनी खुशियां थीं उस घर मे मैत्री की शादी से पहले, उसकी शादी के बाद से ऐसा लगता है मानो किसी की बहुत बुरी नजर लग गयी हो उन लोगो पर.. एक के बाद एक, एक के बाद एक परेशानियां आये ही जा रही हैं, तुम्हे तो पता ही है सुनीता कि हमारे पिता जी का देहांत जब हम दोनों भाई बहुत छोटे थे तब ही हो गया था चूंकि वो सरकारी नौकरी मे थे तो मां को उनकी जगह नौकरी मिल गयी थी और वो जब नौकरी पर चली जाती थीं तो भइया मेरा कितना ध्यान रखते थे, बड़ा भाई होने के सारे फर्ज इतने अच्छे से निभाये उन्होंने और आज मुझे उनको इस हालत मे देखना पड़ रहा है, सुनीता मुझे बहुत तकलीफ हो रही है भइया को ऐसे देखकर... (ऐसा कहते कहते नरेश बहुत दुख करके रोने लगे, रोते रोते वो आगे बोले) भगवान ना करे भइया को कुछ हो जाता तो मेरे सिर से तो एकबार फिर पिता का साया उठ जाता ना, बड़ा भाई पिता ही तो होता है ना सुनीता..!!

नरेश की बाते सुनकर सुनीता भी इमोशनल हो गयीं और इमोशनल होते हुये बोलीं- आप सही कह रहे हैं भइया भाभी ने हमेशा हमारा इतना साथ दिया, राजेश और सुनील को भी बिल्कुल अपने बेटो के जैसा प्यार दिया है और दोनो बहुओ के लिये भी कितना कुछ किया है लेकिन सुनिये जी आप ऐसे मत परेशान हो आपकी तबियत ना बिगड़ जाये कहीं और वैसे भी डॉक्टर ने कहा तो है ना कि अब भाई साहब खतरे से बाहर हैं, आप चिंता मत करो भाईसाहब बहुत जल्दी ठीक हो जायेंगे...

सुनीता के समझाने पर नरेश अपने आंसू पोंछते हुये बोले- मै ठीक हूं सुनीता बस भाई साहब को जब से देखा है आज हॉस्पिटल मे तड़पते हुये तब से बचपन से लेकर आज तक की उनकी सारी बाते और मेरे लिये उनका प्यार रह रह कर याद आ रहे हैं, मेरा एक ही एक तो भाई है और उन्हे भी इस उम्र मे इतना दुख सहना पड़ रहा है और मै कुछ कर भी नही पा रहा हूं, जिस घर मे हम रह रहे हैं वो हमारा पैत्रक घर है भइया ने ये घर हमे दे दिया और खुद दूसरे घर मे चले गये, आज के समय मे इतना बड़ा बलिदान कौन करता है सुनीता और भाभी ने भी बिल्कुल विरोध नही किया... (अपनी बात कहते कहते नरेश अपनी पत्नी सुनीता की तरफ मुड़े और उनका हाथ अपने हाथो मे लेते हुये बोले) सुनीता जब तक भाई साहब ठीक होकर नही आ जाते तब तक भाभी जी हमारे साथ ही रहेंगी और तुम एक मिनट के लिये भी उन्हे अकेला नही छोड़ोगी...

नरेश की बात सुनकर सुनीता ने कहा- हां, इसमे कहने की क्या बात है वो तो मै आपके कहने से पहले ही करने वाली थी...

नरेश ने कहा- तुम एक काम करो भाभी जी के पास जाओ और उन्हे कुछ खिला दो वो शाम से बहुत परेशान हैं और राजेश की बहू नेहा से बोलो की राजेश और मैत्री के लिये खाना पैक करदे तो सुनील खाना दे आयेगा उन्हे हॉस्पिटल मे, अब तुम जाओ और तुम भाभी के पास ही रहो...

इसके बाद सुनीता अपने कमरे से निकलकर उस कमरे मे चली गयीं जिसमे सरोज आराम कर रही थीं, उधर दूसरी तरफ थोड़ी देर बाद सुनील के खाना देके जाने के बाद मैत्री और राजेश ने भी खाना खा लिया था, वो दोनों खाना खा के बैठे ही थे कि वॉर्डबॉय ड्यूटी चेंज होने से पहले उनके पास आया और राजेश से बोला- भइया जी.. डॉक्टर साहब का फोन आया था, आपके मरीज की तबियत पूछ रहे थे, उन्होने कहा है कि वो रात मे एक विजिट करेंगे तो आप लोग सोना मत...

इतना कहकर वॉर्डबॉय वहां से चला गया, उसके जाने के बाद मैत्री और राजेश चुपचाप जगदीश प्रसाद के प्राइवेट वॉर्ड के बाहर बैठकर डॉक्टर के आने का इंतजार करने लगे, दोनो मे से कोई कुछ नही बोल रहा था कि तभी राजेश ने मैत्री से कहा- मैत्री... एक बात पूछूं??

मैत्री ने बुझी बुझी आवाज में कहा- हां भइया पूछिये..

राजेश ने कहा- वो जब हम ताऊ जी को लेकर हॉस्पिटल आ रहे थे तब तूने ये क्यो कहा कि "मै रवि को खा गयी और अब पापा के पीछे पड़ी हूं"... कौन कह रहा है तुझसे ये सारी बाते जो तू हर गलत बात के लिये अपने आपको दोष देने लगी है....?

राजेश की बात सुनकर मैत्री का गला भर आया और वो बोली- भइया यही बोल कर तो उन लोगो ने मुझे घर से बेघर किया था कि मै रवि को खा गयी...!!

"वो लोग तो इडियट हैं, वो कुछ भी बोलेंगे और तू मान जायेगी और फिर खुद को कोसने लगेगी, हैना!! कोरोना तेरी वजह से तो नही फैला ना मैत्री, इसमे तेरी क्या गलती...हम्म्" राजेश ने कहा...

मैत्री ने कहा- भइया अगर मेरी कोई गलती नही थी तो मुझे इतनी बड़ी सजा क्यो मिली, शादी के अगले दिन से ही परेशान करा हुआ था उन लोगो ने, मैने फिर भी किसी से कुछ नही कहा क्योकि रवि मेरा साथ देते थे भले उनके सामने चुप रहते थे पर अकेले मे मुझे उनकी बाते दिल पर ना लेने के लिये समझाते थे, सात आठ महीने की शादी मे क्या कुछ नही सहना पड़ा है मुझे, शुरू मे तो रवि मेरा साथ देते थे बाद मे वो भी मुझे ही दोष देने लगे थे कि मेरी वजह से ही घर मे कलेश होते हैं जबकि मै कभी उनकी मम्मी और बहनो को पलट के जवाब तक नहीं देती थी फिर भी उस घर मे हर बात के लिये मुझे ही दोष दिया जाता था, सात आठ महीने की शादी मे मुझे कितना कुछ सहना पड़ा ऊपर से रवि के छोटे भाई रोहित ने क्या क्या कोशिशें नही की, ऐसा लगता था जैसे मै शादी करके उस घर मे नही गयी बल्कि वो लोग मुझे खरीद कर ले गये हैं, अपनी गुलाम बनाकर और आखरी मे इतना बड़ा इल्जाम लगा के घर से निकाल दिया और पापा कहते हैं कि.... (ये कहते कहते मैत्री रोने लगी)

राजेश ने मैत्री के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुये कहा- क्या कहते हैं ताऊ जी??

अपने आंसू पोंछतै हुये मैत्री ने कहा- और पापा कहते हैं कि मै दूसरी शादी कर लूं...!! इतना सब कुछ झेलने के बाद मै फिर से शादी के चक्रव्यूह मे फंस जाऊं...!!

मैत्री की बात सुनकर थोड़ी देर के लिये राजेश शांत हो गया फिर थोड़ा हिम्मत करके उसने कहा- मैत्री ताऊ जी सही कह रहे हैं ये जिंदगी बहुत बड़ी है और दुनिया बहुत निष्ठुर!! अभी तेरे जख्म नये हैं इसलिये तुझे बुरा लग रहा है शादी की बात सुनकर लेकिन एक उम्र के बाद एक साथी की जरूरत पड़ती है और जरूरी तो नही है ना कि एक बार कड़वा अनुभव हुआ तो हर बार कड़वा ही होगा, एक कदम आगे तो बढ़ा हो सकता है सब कुछ वैसा ही मिल जाये जैसा तेरा हक है और रही बात ताऊ जी और ताई जी की तो मैत्री जब तू पैदा हुयी थी तब मै दस साल का था, तुझे तेरे बचपन की बाते याद नही होंगी पर मुझे याद हैं कि किस तरह तेरे रोने पर ताऊ जी परेशान रहते थे, एकबार खेलते खेलते तू बिस्तर से गिर पड़ी थी गिरने की वजह से तू बहुत रोयी, तेरे रोने की वजह से ताऊ जी ने खाना भी नही खाया और तुझे अपने सीने से लगा के इधर उधर टहलते रहे, तू इतना जादा रो रही थी कि ना तो दूध पी रही थी ना पानी... तू बस रोये जा रही थी ताऊ जी के कंधे से चिपक कर, ताऊ जी तुझे दुलारते दुलारते खुद भी रोने लगे थे ये सोचकर कि क्या हो गया मेरी गुड़िया को!! रात मे ग्यारह बजे तक जब तू चुप नही हुयी तो तुझे लेकर हॉस्पिटल गये कि कहीं कोई गहरी चोट तो नही लग गयी, वहां हॉस्पिटल मे डॉक्टर को देख कर भी तू खूब रोयी थी उस दिन तू चुप ही नही हो रही थी, डॉक्टर ने जब कहा कि नही गहरी चोट नही है बच्चे कभी कभी घबराहट मे और डर मे ऐसे रोने लगते हैं तब ताऊ जी को तसल्ली हुयी और वो तुझे लेकर घर आ गये, फिर तू रात मे करीब दो बजे चुप हुयी और दूध पीने के बाद सो गयी तब जा के कहीं ताऊ जी ने खाना खाया था अब तू खुद सोच ऐसे पिता के दिल पर क्या बीतती होगी जब वो अपनी जान से प्यारी अपनी बेटी को ऐसे उदास और रोते हुये देखते होंगे, ताऊ जी जो कह रहे हैं वो स्वीकार करले मैत्री माता पिता अपने बच्चो का कभी बुरा नही चाहते वो बस तुझे खुश देखना चाहते हैं और मै तुझसे प्रॉमिस करता हूं कि तेरे लिये बेस्ट जीवनसाथी ढूंढ के लाउंगा जो तुझे प्यार दे और जो तेरी हर छोटी बड़ी खुशी का ध्यान रखे....!!

राजेश मैत्री को समझा ही रहा था कि इतने मे न्यूरो डॉक्टर विजिट पर आ गये, जगदीश प्रसाद का चेकअप करने के बाद डॉक्टर जब बाहर आये तो वो राजेश से बोले- ये आपके पिता जी हैं...?

राजेश ने कहा- हां पिता जी ही समझिये.. वैसे ये मेरे ताऊ जी हैं..

डॉक्टर ने कहा- आपके ताऊ जी अब ठीक हैं लेकिन इन्हे अभी एडमिट ही रखियेगा जब तक इनकी अगली रिपोर्ट नॉर्मल नही आ जातीं...

राजेश ने कहा- ठीक है डॉक्टर साहब जैसा आप कह रहे हैं वैसा ही होगा लेकिन डॉक्टर साहब ताऊ जी को होश क्यो नही आ रहा...?

डॉक्टर ने कहा- अरे नही नही होश मे ही हैं अब वो, बस दवाइयां स्ट्रॉंग होने की वजह से नींद की खुमारी मे हैं आप लोग चाहो तो अंदर ही बैठो और उनसे मिल भी लो, अभी वो जागे हुये थे जब मै गया था तब, आप लोग अंदर ही बैठो तो उन्हे साहस मिलेगा...

इतना कहकर डॉक्टर साहब वहां से चले गये, उनके जाने के बाद राजेश ने जब पलट के देखा तो पाया कि मैत्री अपने पापा जगदीश प्रसाद के कमरे के अंदर जा रही है, मैत्री को अंदर जाता देख राजेश भी धीरे धीरे उसके पीछे जाने लगा, कमरे मे अंदर जाने के बाद मैत्री ने देखा कि जगदीश प्रसाद जाग रहे हैं और उसी की तरफ देख रहे हैं, मैत्री उनके पास गयी और उनका हाथ अपने हाथों मे लेकर बोली- पापा जल्दी से ठीक हो जाइये क्योकि जो आप कह रहे थे शाम को वो करने के लिये आपका ठीक होना भी तो जरूरी है ना, आप जैसा चाहते हैं वैसा ही होगा, मैं आपका हर निर्णय मानने के लिये तैयार हूं आप बस ठीक हो जाइये!!

मैत्री की ये बात सुनकर जगदीश प्रसाद बहुत खुश हुये और प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरने लगे...

मैत्री के पीछे पीछे कमरे मे आये राजेश ने भी जगदीश प्रसाद से कहा- और हां ताऊ जी इस बार मै खुद अपनी छोटी सी गुड़िया के लिये बेस्ट जीवनसाथी की तलाश करूंगा, हम सब मिलके मैत्री के जीवन मे एकबार फिर से खुशियां लायेंगे, ताऊ जी आप बस ठीक हो जाओ...!!

मैत्री और राजेश की बात सुनकर जगदीश प्रसाद ने भी राहत की सांस ली और बीमारी की इस हालत में भी उनके बुझे पर प्यार भरी स्माइल आ गयी!!

क्रमशः