अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 11 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 11

अपने परिवार से मिले प्रोत्साहन से उत्साहित हुये जतिन ने अगले ही दिन ऑफिस जाकर अपने बॉस से अपना निर्णय बताते हुये कहा- सर मै जॉब छोड़ने के लिये तैयार हूं पर अब मै बिज़नेस ही करूंगा..

जतिन के आत्मविश्वास से भरी इस बात को सुनकर उसके बॉस ने कहा- वैरी गुड जतिन और मुझे पूरा विश्वास है कि तुम कर ले जाओगे लेकिन अभी मंथली क्लोजिंग आने वाली है महीना पूरा करलो एक तारीख को जब सैलरी आ जाये तब रिज़ाइन कर लेना, बाकि रही बात इस महीने के इंसेंटिव की तो वो फुल एंड फाइनल सेटेलमेंट मे एक महीने बाद तुम्हे मिल जायेगा जो तुम्हारे काम आयेगा..

अपने बॉस से मिले प्रोत्साहन से जतिन और जादा आत्मविश्वास से भर गया और खुश होते हुये अपने बॉस से बोला- सर आपसे बहुत कुछ सीखा है मैने आप मेरा साथ तो नही छोड़ेंगे ना....

जतिन की इमोशनल तरीके से की गयी इस बात को सुनकर उसके बॉस मुस्कुराते हुये बोले- बेटा रहोगे तो तुम मेरे ही अंडर मे ना और हमारा तो जॉब ही यही है कंपनी के लिये डिस्ट्रीब्यूटर और रिटेलर बनाना तो मै तुम्हारा साथ कैसे छोड़ दूंगा लेकिन जतिन एक बात गांठ बांध लो जो तुम्हे जिंदगी मे बहुत आगे ले जायेगी और वो ये कि तुमने उस दिन मुझसे कहा था कि तुम्हारे पास डेढ़ लाख रुपय हैं चलो मेरी कोई बात नही तुम्हारा इंसेंटिव मिला कर कितनी सेलरी आती है वो मुझसे छुपा नही है लेकिन हर किसी के सामने कभी ये मत बोलना कि तुम्हारे पास पैसो का कितना बैकअप है, ये बिज़नेस वर्ल्ड है और ये वो दुनिया है जो कभी किसी दूसरे की तरक्की को नही पचा पाती है इसलिये हमेशा याद रखना कि अपनी लाइफ के कुछ सीक्रेट कभी किसी से मत बताना क्योकि दुनिया मे हर तरह के लोग होते हैं जो हमेशा इसी ताक मे रहते हैं कि कब उन्हे सामने वाले का फायदा उठाने का मौका मिले इसलिये जिस बिजनेस की दुनिया मे तुम जा रहे हो ना वहां तुम्हे बहुत फूंक फूंक कर कदम रखने होंगे, बिज़नेस मे बस एक ही चीज का इस्तेमाल करना और वो है... तुम्हारा दिमाग!! अपने दिल को कभी इस्तेमाल मत करना वरना धोखा खा जाओगे...

अपने बॉस की बात सुनकर जतिन ने कहा- ठीक है सर आप जैसा कह रहे हैं मै वैसा ही करूंगा...

इसके बाद जतिन उस महीने की क्लोजिंग निपटाने और अपने बिजनेस के लिये प्लानिंग करने मे लग गया, क्लोजिंग पूरी करने के बाद जतिन ने जैसा पहले से तय था वैसा ही किया और जॉब छोड़ दी, जिस समय जतिन अपना रैजिग्नेशन देने अपने बॉस के पास गया तो उन्होने उससे कहा- देखो जतिन मैने तुम्हारा काम करवा दिया है एक डिस्ट्रीब्यूटर जिसे तुमने ही अपॉइंट किया था दो साल पहले मैंने उससे बात करली है तुम्हारी सीमेंट की बोरियो की बिलिंग के लिये, वो तुम्हारा नाम सुनते ही फौरन मान गया तुम्हारे साथ काम करने के लिये, शुरू मे मैने पांच सौ सीमेंट की बोरियो की बिलिंग करवायी है जो उसी डिस्ट्रीब्यूटर के गोडाउन मे रखी जायेंगी और तुम अपने पास सिर्फ सौ बोरियां ही रखोगे क्योकि पूरी पांच सौ बोरियां रखने के लिये जगह भी काफी चाहिये और अगर तुम जगह का इंतजाम कर सकते हो तो उन सारी बोरियो को अपने पास रखलो लेकिन मेरा यही कहना है कि अभी सौ बोरी ले लो और जैसे जैसे ऑर्डर मिलते रहें वैसे वैसे उसी डिस्ट्रीब्यूटर के गोडाउन से उठवाते रहना, वो तुम्हे जानता भी है और ट्रैक्टर भी हैं उसके पास तो तुम्हे कोई दिक्कत नही होगी बाकी जब काम चल पड़े, ऑर्डर्स मिलने लगें तो तुम जगह ले लेना और फर्म बना के उसका रजिस्ट्रेशन करवा लेना तो बिलिंग तुम्हारे नाम से ही होने लगेगी, बस अब मार्केट से ऑर्डर लाना तुम्हारी जिम्मेदारी है...

अपने बॉस की ये सकारात्मक बात सुनकर जतिन बहुत खुश हुआ उसे ऐसा लगने लगा जैसे उसके सपने अब तो पूरे होकर ही रहेंगे, वो जानता था कि आगे का रास्ता बहुत कठिन है, अकेले चलना मुश्किल है... पर वो ये भी जानता था कि इंसान के जीवन मे आने वाली कोई भी चुनौती उसके हौसले से बड़ी नही हो सकती, ये जतिन का हौसला ही था जो उसे बिजनेस रूपी समंदर मे गोते खाने के लिये प्रोत्साहित कर रहा था...

इसके बाद जतिन लग गया अपने काम मे, सबसे पहली चुनौती जतिन के लिये ये थी कि वो इन सौ सीमेंट की बोरियो को कहां रखे, उसके लिये उसके दिमाग मे आइडिया आया कि "एक काम करता हूं.. घर के पास ही मेनरोड पर जगह खाली है, वहां और लोगो ने भी टीन की दुकाने बनवा के उनमे शटर लगवाया हुआ है, मै भी एक वैसी ही छोटी सी दुकान बनवा लेता हूं ताकि सीमेंट की बोरियो को वहां रख सकूं बाकि ऑर्डर के लिये मै फील्ड पर काम कर लूंगा और जैसे ही ऑर्डर मिलेंगे मै यहीं दुकान से माल उठवा के कस्टमर्स के यहां पंहुचवा दूंगा"

इसके बाद जतिन ने अपने घर के ही पास एक टीन की दुकान बनवा ली, उसमे खर्च भी कम आया और आसानी से सारा माल भी उसमे आ गया इसके बाद जतिन ने बिल्कुल वही ऑफिस वाला रुटीन अपनाया, वो रोज सुबह ऑफिस जाने की तरह ही तैयार होता और फील्ड पर निकल जाता, फील्ड पर जाके वो मकान बनाने वाले ठेकेदारों से मिलता, अपार्टमेंट्स बनाने वाले बिल्डर्स से मिलता और उन्हे अपनी बात समझाकर और अपना विजिटिंग कार्ड देकर चला आता, ऐसा करते करते एक एक दिन करके आठ दस दिन गुजर गये पर जतिन को कोई भी ऑर्डर नही मिला, जतिन के माथे पर अब बल पड़ने लगे थे बिजनेस को लेकर जतिन के दिमाग मे एक छवि थी कि जिस तरह से उसे नौकरी मे सफलता मिली थी उसने सोचा था कि वैसी ही सफलता उसे बिज़नेस मे भी मिलेगी लेकिन बिजनेस के उत्साह मे वो ये भूल गया था कि नौकरी के समय मे वो जब फील्ड पर कस्टमर विजिट पर जाता था उस समय उसके साथ एक बड़ी नामी कंपनी का टैग होता था और जिस पोस्ट पर वो था उस पोस्ट का रौब भी उसके साथ साथ चलता था जिसका सम्मान सब करते थे, कम उम्र के कम अनुभव लिये हुये जतिन ये नही समझ पाया कि इस दुनिया मे इंसान की नही बल्कि उसके औहदे की एहमियत होती है लेकिन जैसे जैसे दिन बीत रहे थे जतिन को ये सारी बाते समझ आने लगी थीं लेकिन अब जतिन भी पीछे हटने को तैयार नही था!!

दस दिन हो गये थे और उसका हाथ खाली था, रोज का पैट्रोल का खर्चा और कम से कम पानी और चाय का खर्चा तो फील्ड पर होता ही था और कमाई "शून्य", इन्ही सब बातों की वजह से जतिन ने सोचा कि एक काम करता हूं जादा दूर दूर जाने के बजाय आसपास के एरिया मे ही काम करता हूं और बाइक की बजाय साइकिल से जाता हूं इससे पैट्रोल का खर्चा भी बचेगा और आसपास रहूंगा तो घर आकर लंच भी कर लिया करूंगा, यही सोचकर उसने अपनी पुरानी साइकिल जो उसने स्कूल की यादो के तौर पर संभाल कर रखी थी घर के आंगन मे उसे ठीक करवाया और फिर जतिन ने संघर्ष का एक नया सफर शुरू कर दिया, वो साइकिल से वैसे ही तैयार होकर फील्ड पर जाने लगा जैसे बाइक से जाया करता था, साइकिल बाइक से धीरे चलती है उसका फायदा ये हुआ कि जतिन की नजर मे वो मकान भी आने लगे जिनका कंस्ट्रक्शन चल रहा होता था, जतिन ने सोचा कि सिर्फ बड़े बड़े ठेकेदारो से और बिल्डरो से मिलने से अच्छा है कि मै इस तरह के मकान मालिको से भी मिलूं जिनके मकान अंडर कंस्ट्रक्शन हैं, यही सोच कर जतिन ने कई ऐसे मकानो मे विजिट किया जो या तो बनने शुरू हुये थे या बन रहे थे, साइकिल से फील्ड वर्क करने मे मेहनत बहुत जादा थी लेकिन नतीजे वही... खाली हाथ!!

एक एक दिन बीतता जा रहा था, इन्कम जीरो थी और सेविंग का पैसा भी काफी खर्च हो रहा था और ये सारी बाते काफी थीं जतिन की चिंताये बढ़ाने के लिये..!! ऐसे ही एक दिन ऑर्डर ना मिलने से उदास जतिन सुबह के समय घर पर बैठकर हिसाब लगा रहा था कि जॉब छोड़ने के बाद से अभी तक कितना पैसा खर्च हो चुका है, वो याद कर कर के जैसे जैसे पिछले कुछ दिनो मे हुये खर्च को अपनी डायरी मे लिख रहा था वैसे वैसे उसकी उलझन बढ़ रही थी, वो परेशान था और उसके दिमाग मे बस यही चल रहा था कि "यार कमी कहां हो रही है मेरे से... नौकरी मे तो ज्वाइन करने के तीसरे दिन ही ऑर्डर मिल गया था फिर अब क्यो इतनी दिक्कत आ रही है, एक महीना होने को आया है अभी तक कम से कम एक ऑर्डर तो मिल ही जाना चाहिये था, कुछ समझ नही आ रहा कि ऐसा क्या करूं कि बोरियां बिकनी शुरू हो जायें" जतिन इसी असमंजस की स्थिति मे पड़ा हुआ बस सोचे जा रहा था कि तभी उसके मोबाइल की रिंग बजी.. नंबर अननोन था, जतिन ने फोन उठाया तो दूसरी तरफ से आवाज आयी- अरे जतिन बोल रहे हैं..??

जतिन ने कहा- हां जी जतिन बोल रहा हूं.... बतायें!!
उधर से आवाज आयी - आप आये थे ना तीन चार दिन पहले हमारे पास सीमेंट के लिये...

जतिन ने चौंकते हुये कहा- जी जी जी जी... आया था सर बतायें क्या सेवा कर सकता हूं मै आपकी...
दूसरी तरफ से आवाज आयी- अरे भइया सेवा ये है कि हमारे घर की छत पड़ रही है और उसमे कम से कम दस बोरी सीमेंट कम पड़ रहा है और जिस एजेंसी से हमने सीमेंट लिया था आज वो बंद है उसका मालिक फोन भी नही उठा रहा तो हमे आपसे फिलहाल दस बोरी सीमेंट चाहिये लेकिन आधे घंटे के अंदर क्योकि मजदूर आ चुके हैं और काम शुरू हो रहा है...

उस कस्टमर की बात सुनकर परेशान जतिन के उदास चेहरे पर एकदम से खुशी की लहर दौड़ गयी और खुश होते हुये वो बोला- बिल्कुल मिल जायेंगी सर आप अपना पता बता दीजिये मै तुरंत बोरियां लेकर खुद ही आ रहा हूं...

इसके बाद उस कस्टमर ने जब जतिन को अपना एड्रेस बताया तब जतिन को याद आया कि उसका जो घर बन रहा था वो करीब पांच किलोमीटर दूर है, आधे घंटे मे बोरियां लेकर इतनी दूर जाना बहुत मुश्किल था लेकिन पहली बार मिले इस ऑर्डर की चुनौती को जतिन ने अपनी पूरी ऊर्जा के साथ स्वीकार किया और ये सोचकर कि "रिक्शा ट्रॉली करने मे समय लगेगा मै खुद ही बाइक पर लाद कर सारी बोरिया फटाफट पंहुचा देता हूं..." जतिन ने अपनी बाइक उठायी और बहुत तेज स्पीड मे अपनी दुकान पंहुच गया, वहां जाकर उसने खुद ही सीमेंट की दस बोरियो को अपनी बाइक मे जैसे तैसे एडजस्ट किया और रस्सी से बांधकर वो उस कस्टमर के घर की तरफ निकल गया, उस कस्टमर ने जतिन को आधे घंटे यानि तीस मिनट का समय दिया था लेकिन जतिन उसके पास ठीक उनत्तीस मिनट मे पंहुच गया, जतिन को देखकर वो कस्टमर भी खुश हो गया और घड़ी देखते हुये बोला - अरे वाह जतिन बाबू...!! टाइम से एक मिनट पहले ही आ गये, बेटा जीवन मे बहुत आगे जाओगे क्योंकि जिसने समय को जीत लिया उसे कोई नही हरा सकता....!!

उस कस्टमर की इतनी सकारात्मक बात सुनकर जतिन खुश हो गया और बोला- थैंक्यू सर!! आपको और बोरियां चाहिये हों तो बता दीजियेगा, आपको जितनी भी बोरियां चाहिये होंगी मै ला के दे दूंगा...

जतिन की बात सुनकर उस कस्टमर ने कहा- ठीक है... अभी आज तो छत पड़ने के बाद पंद्रह बीस दिन काम नही होगा उसके बाद अंदर के प्लास्टर के लिये मै आपसे ही लूंगा सीमेंट....

जतिन खुश होते हुये बोला- जी ठीक है सर आप जब कहेंगे मै आ जाउंगा या मै आपको खुद फोन कर लूंगा..
कस्टमर ने कहा- हां ठीक है, अच्छा अभी का कितना हुआ? मेरे ख्याल से दो हजार ही हुआ होगा यही रेट है सीमेंट का आजकल...

जतिन ने कहा- जी सर दो हजार ही हुआ है....

इसके बाद कस्टमर ने अपनी जेब से पैसे निकाले और पूरे दो हजार रुपय गिन कर जतिन के हाथ मे पकड़ा दिये... बिज़नेस शुरू करने के बाद से ये पहला ऐसा मौका था जब बिज़नेस के नाम पर जतिन के हाथ मै पैसा आया था... उन दो हजार रुपयो मे से 1800 रुपय तो उन बोरियो की वो कीमत थी जिनमे जतिन को वो बोरियां मिली थीं और बाकी बचे 200 रुपय जतिन का प्रॉफिट था और इन 200 रुपयो ने जतिन के अंदर एक अलग ही सकारात्मक ऊर्जा का संचार कर दिया था, वो बहुत खुश था..इतना खुश कि बोरियां उठाने की वजह से उसके हाथ और कपड़े जो गंदे हो गये थे उसने वो भी साफ नही किये और सीधे घर पंहुच गया, जतिन जब बाइक से उतर कर खुशी से मुस्कुराता हुआ घर के अंदर घुसा तो उसे इस तरह धूल मे लिपटा देखकर ज्योति डर गयी और बोली- भइया आपके कपड़े इतने गंदे कैसे हो गये, आप इतनी तेजी मे घर से गये थे बाइक चलाकर भइया कही गिर पड़े क्या? चोट तो नही आयी ना आपके...?

ये कहते कहते जतिन की प्यारी बहन ज्योति की आंखो मे आंसू आ गये, उसकी आंखो मे आंसू देखकर जतिन ने कहा- अरे पगली मै कहीं नही गिरा, क्यो चिंता कर रही है..!! सीमेंट की बोरियां बाइक पर लादने और उतारने की वजह से कपड़े गंदे हो गये और सुन तेरे भइया को आज पहला ऑर्डर फाइनली.... मिल गया...!!!

जतिन की ये बात सुनकर ज्योति एकदम से उछल पड़ी और खुश होते हुये बोली- अरे वाह भइया ये तो बहुत बड़ी गुड न्यूज है, फाइनली आपको आपकी मेहनत का फल मिल ही गया..!!

ज्योति की बात सुनकर जतिन ने कहा- हां बेटा... अब सब ठीक कर दूंगा मै, अच्छा ये बता मम्मी कहां हैं...?

ज्योति ने कहा- वो छत पर कपड़े सुखाने गयी हैं...

ज्योति की बात सुनकर जतिन ने उसका हाथ पकड़ा और उसे अपने साथ लेकर अपनी मम्मी के पास छत पर चला गया, वहां जाकर उसने अपनी मम्मी के पैर छुकर उनका आशीर्वाद लिया और अपनी जेब मे रखे पैसो मे से प्रॉफिट के दो सौ रुपय निकाल कर उनके हाथो मे रखते हुये कहा- मम्मी ये मेरे बिजनेस की पहली कमाई....

जतिन की ये बात सुनकर कि ये पैसे उसके बिजनेस की पहली कमाई है उसकी मम्मी बबिता की आंखो मे आंसू आ गये और भावुक हंसी हंसते हुये उन्होने जतिन के सिर पर हाथ रखते हुये कहा- ऐसे ही तरक्की करता रह मेरा बेटा, तेरी इस कमाई मे तेरी मेहनत और तेरे पसीने की बहुत प्यारी खुश्बू आ रही है, ऐसे ही आगे बढ़ता जा...

इसके बाद जतिन की मम्मी बबिता ने जतिन और ज्योति दोनो को गले से लगा लिया और भावुक शब्दो मे बोलीं- मेरे दोनो बच्चे बहुत प्यारे हैं, मेरा अभिमान हो तुम दोनों, हमेशा खुश रहो मेरे बच्चो...

इसके बाद शाम को जब ये खुशखबरी जतिन ने अपने पापा को सुनाई तो वो भी बहुत खुश हुये और उन्होने भी जतिन को ढेर सारा प्यार और उज्जवल भविष्य के लिये आशीर्वाद दिया लेकिन जतिन को नही पता था कि आज मिली सफलता से जो खुशी उसे मिली है उसपर एक बहुत बड़ा ग्रहण लगने वाला था!!

क्रमशः