अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 28 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 28

सबके कहने पर जतिन और मैत्री एक दूसरे से बात करने के लिये उस कमरे मे चले गये जहां पहले से ही नेहा और सुरभि ने उन दोनो के लिये चाय, नाश्ते की व्यवस्था करी हुयी थी, अंदर कमरे मे जाने के बाद मैत्री जो पहले से ही इस रिश्ते को लेकर बहुत असहज थी.. वहां पड़ी दो कुर्सियो मे से एक की तरफ इशारा करते हुये जतिन से बहुत धीरे से अपनी महीन आवाज मे बोली- बैठ जाइये...

मैत्री के बैठने के लिये कहने पर जतिन ने भी मैत्री से थोड़ा संकुचाते हुये कहा- आप भी बैठिये...

कुर्सी पर दोनो लोगो के बैठने के बाद करीब दो मिनट तक जतिन और मैत्री दोनों चुप रहे और ये सोचते रहे कि "पहले वो बोले, तो मै बोलूं" पर दोनो मे से कोई कुछ नही बोल रहा था कि तभी जतिन ने सोचा "यार क्या बात करूं और कैसे शुरू करूं".. जतिन ये सोच ही रहा था कि तभी मैत्री ने अपना सिर झुकाये झुकाये धीरे से कहा - चाय ले लीजिये ठंडी हो जायेगी....

मैत्री के चाय के लिये कहने पर जतिन ने भी थोड़ी हिम्मत जुटायी और मैत्री की तरफ रखा चाय का कप उठाकर उसकी तरफ बढ़ाते हुये कहा- आप भी लीजिये... आपकी भी चाय ठंडी हो जायेगी...

जतिन के हाथ से चाय का कप लेने के बाद मैत्री सिर झुकाकर बैठ गयी इधर जतिन भी चुपचाप एक एक सिप करके चाय पीने लगा, चाय खत्म होने के बाद जतिन चाय का कप वापस से मेज पर रखने के बाद सोचने लगा "मैत्री तो कुछ बोल ही नही रही है, लग रहा है मुझे ही शुरूवात करनी पड़ेगी" ऐसा सोचते हुये चंचल स्वभाव के जतिन ने मैत्री की चुटकी लेते हुये मजाकिया लहजे मे मैत्री को थोड़ा रिलैक्स करने के उद्देश्य से कहा- मैत्री आप बहुत बोलती हैं, थोड़ा कम बोला करिये...

जतिन की ये बात सुनकर बहुत दबी दबी सी हंसी हंसते हुये मैत्री ने बहुत धीरे से कहा- मै कब बोली...

मैत्री के इस तरह से अपनी बात कहने पर जतिन भी हंसने लगा और बोला- मै मजाक कर रहा था खैर मजाक तो चलते रहेंगे असल मे मुझे आपसे कुछ... अम्म् पूछना नही है, मै बस इतना कहना चाहता हूं कि हमारे घरवालो ने इस रिश्ते को लगभग स्वीकार कर लिया है और यही वजह है कि हम आज यहां इस कमरे मे आमने सामने बैठे हैं लेकिन मै चाहता हूं कि ये जो पूरी प्रक्रिया है ना शादी की उसमे आप जो भी निर्णय लें वो अपनी मर्जी से लें ना कि किसी दबाव मे इसलिये अच्छे से सोचकर आखरी निर्णय आप खुद लें कि आपको ये रिश्ता स्वीकार है या नही... मेरे लिये आपकी मर्जी बाकी सबकी मर्जियो से जादा महत्व रखती है क्योंकि अपना घर आपको छोड़कर आना है और जिंदगी आपको बितानी है मेरे साथ...

जतिन की बात सुनकर मैत्री सोचने लगी कि "दूसरी शादी के नाम पर ये पहला ऐसा मौका है जब किसी ने मेरी मर्जी पूछी है, वो भी उस इंसान ने जो आने वाले दिनो मे शायद मेरा जीवनसाथी बनने वाला है"... जतिन की बात सुनकर मैत्री को एक अजीब सा सुकून महसूस होने लगा था, अभी तक मैत्री ने सरोज के मुंह से और राजेश के मुंह से जतिन के बारे में सुना था लेकिन अभी करी गयी उसकी बात को सुनकर मैत्री को भी कहीं ना कहीं ये महसूस होने लगा कि "जतिन सच मे अच्छे इंसान हैं वरना ऐसे मौको पर कौन एक लड़की की मर्जी पूछता है.... रवि ने भी नही पूछी थी... "

मैत्री अपने मन मे ये बात सोच ही रही थी कि जतिन ने कहा- मुझे बस यही कहना था बाकि आप जो कुछ भी पूछना चाहो वो पूछ सकती हो, मै सब सच सच आपको बता दूंगा...

जतिन की बात सुनकर मैत्री ने अपनी महीन सी आवाज मे धीरे से कहा- नही जी मुझे भी कुछ नही पूछना....

मैत्री की बात सुनकर मुस्कुराते हुये जतिन ने कहा- अमम्म्... चलिये ठीक है फिर मै चलता हूं और आप बिल्कुल भी नर्वस मत हो, बिल्कुल भी चिंता मत करो क्योंकि अब जो होगा वो सब कुछ बहुत अच्छा ही होगा.. प्रॉमिस!!

इसके बाद मैत्री से विदा लेकर जतिन मुस्कुराते हुये वापस ड्राइंगरूम मे आ गया, जतिन को ड्राइंगरूम मे आया देखकर सरोज और मैत्री की चाची सुनीता दोनो अपनी जगह से उठे और घर के अंदर मैत्री से उसकी मर्जी जानने के लिये उसके कमरे में चले गये |

कमरे में जाकर सरोज ने मैत्री से पूछा- मैत्री बेटा कैसे लगे जतिन जी? अच्छे हैं ना और अच्छे से बात हुयी ना...

सरोज के सवाल सुनकर मैत्री मुस्कुराने लगी और मन ही मन सोचने लगी कि "बात तो हुयी ही नहीं, मै कुछ बोल ही नही पायी" लेकिन अपनी मम्मी से ये बात छुपाते हुये मैत्री ने झूट ही कह दिया- हां मम्मी बात हो गयी...

सरोज ने पूछा- तो क्या मन बनाया तूने? ये रिश्ता तुझे स्वीकार है ना? बेटा इससे अच्छा परिवार और जतिन जैसे जीवनसाथी से अच्छा साथी तुझे नहीं मिलेगा....

चूंकि पहली ही मुलाकात मे जतिन ने जिस सहज तरीके से मैत्री से बात करी थी उससे मैत्री को जतिन का नेचर अच्छा तो लगा था लेकिन अभी भी कहीं ना कहीं उसके मन मे थोड़ी हिचक, थोड़ा डर और दूसरी शादी को लेकर थोड़ा अजीब सा एहसास तो बाकी था!!

दूसरी तरफ मैत्री भी सारी परिस्थितियों का आंकलन करते हुये सोच रही थी कि "राजेश भइया जतिन के बहुत पुराने दोस्त हैं, वो जतिन को अच्छे से जानते हैं और वो कभी गलत निर्णय नही लेंगे मेरे लिये और फिर मम्मी पापा समेत घर के सारे सदस्य भी यही चाहते हैं कि मेरी शादी जतिन से ही हो ऐसे में इस रिश्ते के प्रति अपनी अस्वीकार्यता या असहजता दिखाने से तो बेहतर है कि मै धारा के उसी बहाव मे खुद को बहा ले जाऊं जिस तरफ मेरी किस्मत और परिस्थितियां मुझे बहा के ले जा रही हैं.. "
चूंकि जतिन ने मैत्री से जोर देकर कहा था कि अंतिम निर्णय वो खुद ही ले इसलिये सारी परिस्थितियों का स्वतंत्र आंकलन करते हुये मैत्री ने अपनी मम्मी सरोज से कहा- जतिन का स्वभाव बहुत अच्छा है मम्मी बाकि जैसा आप सबको सही लगे, मै आप सबके निर्णय को स्वीकार करने के लिये तैयार हूं....

मैत्री की इस रिश्ते को लेकर दी गयी मूक सहमति से खुश होकर सरोज ने उसे गले लगाकर उसका माथा चूमते हुये कहा- अरे वाह मेरी गुड़िया आज मै बहुत खुश हूं, मुझे तेरे जीवन मे खुशियां आती साफ दिखाई दे रही हैं, मै अभी सबका मुंह मीठा करवाती हूं...

मैत्री के इस रिश्ते को लेकर दी गयी सहमति के बाद वहां खड़ी उसकी चाची सुनीता और दोनो भाभियां नेहा और सुरभि सब बहुत खुश हुये और सबने बारी बारी मैत्री को गले लगाकर उसे प्यार दिया और उसके उज्जवल भविष्य की कामना करी, इसके बाद सरोज अपनी देवरानी सुनीता को लेकर ड्राइंगरूम मे सबको ये खुशखबरी देने चली गयीं, सरोज के मन मे कहीं ना कहीं ये बात थी कि मैत्री ने तो इस रिश्ते के लिये स्वीक्रति दे दी लेकिन अभी जतिन के मन की बात सबको पता नही चली थी इसलिये ड्राइंगरूम मे जाते वक्त उनके हाथ मे मिठाई का डिब्बा तो था लेकिन सबको मिठाई खाने के लिये बोलने से पहले उनके मन मे थोड़ी हिचक थी इसलिये ड्राइंगरूम मे जाने के बाद उन्होने बबिता और विजय सक्सेना से कहा- बहन जी... भाईसाहब हम सबकी तरफ से इस रिश्ते के लिये सहमति है, हम सब बहुत खुश हैं इस रिश्ते से अब बस आप दोनो, ज्योति बिटिया, सागर जी और जतिन बेटा अपनी मर्जी बता दें तो सब कुछ बहुत अच्छा हो जाये....

सरोज की ये बात सुनकर बबिता ने खुश होते हुये कहा- बहन जी हमारी तो अग्रिम सहमति है इस रिश्ते को लेकर और वैसे भी मैत्री राजेश की बहन है और राजेश और जतिन अच्छे दोस्त हैं तो हमारे मन मे तो पहले से ही किसी तरह से मना करने या ना नुकुर करने का तो प्रश्न ही नही था बाकि रही बात जतिन की तो जतिन बेटा तुम्हारा क्या जवाब है... (ऐसा कहते हुये बबिता जतिन की तरफ देखकर हंसने लगी और उनके हंसने की वजह उस रात मैत्री के लिये दिखाई गयी जतिन की बेचैनी थी, बबिता जानती थीं कि जतिन मैत्री को पहली ही नजर मे पसंद कर चुका है)
आज क्या ज्योति और क्या बबिता सब जतिन को छेड़ रहे थे और छेड़ें भी क्यों ना एक तो मौका इतनी बड़ी खुशी का है और दूसरा जतिन सबका प्यारा भी तो है!!

बबिता को इस तरह से अपनी तरफ देखकर मुस्कुराते हुये ये बात बोलने पर जतिन थोड़ा सा झेंप गया और थोड़ा हिचकिचाते हुये बोला- ह.. हां... जैसा आप सबको ठीक लगे बाकि मेरी भी पूर्ण सहमति है इस रिश्ते को लेकर...

इधर जतिन की बात सुनकर सरोज और सुनीता समेत जगदीश प्रसाद, नरेश और दोनो भाई राजेश और सुनील... सब लोग बहुत खुश हो गये कि तभी अपनी ताई जी सरोज का काम आसान करते हुये राजेश अपनी जगह से उठा और उनके हाथ से मिठाई का डिब्बा लेकर जतिन और उसके परिवार का बहुत खुश होते हुये मुंह मीठा करा दिया, राजेश सबका मुंह मीठा करा ही रहा था कि तभी ज्योति ने सरोज से कहा- आंटी... एक बार मै अपनी होने वाली भाभी से मिलना चाहती हूं, अगर आप लोग कहें तो मै अंदर जाकर मिल लूं....

ज्योति की बात सुनकर सरोज ने कहा- हां हां बेटा बिल्कुल मिल लीजिये, इसमे पूछने की क्या बात है ये आपका ही घर है...

जहां एक तरफ सरोज और सुनीता ड्राइंगरूम के दरवाजे से थोड़ा सा आगे ही खड़ी हुयी थीं वहीं दूसरी तरफ उस दरवाजे पर लगे पर्दे के पीछे खड़े होकर राजेश के छोटे भाई सुनील की पत्नी सुरभि ड्राइंगरूम मे हो रही सारी बाते सुन रही थी और जैसे ही ज्योति ने मैत्री से मिलने की इच्छा जतायी थी वो वहां से पलटी और मैत्री के पास जाकर बोली- दीदी वो जतिन जी की छोटी बहन ज्योति आपसे मिलने के लिये आ रही हैं...

ज्योति के अपने पास मिलने के लिये आने की बात सुनकर मैत्री घबरा गयी और फिर से अतीत की यादो मे जाकर सोचने लगी कि "यार जतिन की बहन ज्योति भी कहीं रवि की छोटी बहन अंकिता जैसा व्यवहार ना करे, वो भी मिलने के लिये अंदर आयी थी और बड़े ही अजीब तरीके से मुझे देखकर उसने मेरे माथे पर पड़े बालो को अपनी एक उंगली से हटाकर मेरे कानो के पीछे किया था, उस दिन उसका स्पर्श बहुत गलत था और रवि से शादी के बाद अलग ही रंग दिखे थे उसके... "

क्रमशः

ननद भौजाई का रिश्ता वैसे भी थोड़ा खट्टा थोड़ा मीठा होता है और फिर आज की तारीख में तो मैत्री के साथ उसकी कड़वी यादें और अनुभव भी जुड़े हुये थे तो क्या होगा जब इस नये नवेले रिश्ते में मैत्री पहली बार अपनी ननद से अकेले में मिलेगी? हम सब तो जानते हैं कि ज्योति कैसी है लोकिन मैत्री का जानना अभी बाकी है...