अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 29 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 29

ज्योति के अपने कमरे मे आने की बात सुनकर मैत्री अपने पिछले जीवन से जुड़ी बातो के बारे मे सोच कर परेशान हो ही रही थी कि तभी उसके कमरे मे थोड़े दबे कदमो से चलकर मुस्कुराते हुये ज्योति अंदर आ गयी, मैत्री ने जब ज्योति को देखा तो वो सकपका गयी और संकुचाई हुयी नजरों से झेंपती हुयी सी हंसी हंसते हुये ज्योति की तरफ देखने लगी, मैत्री ने देखा कि ज्योति के हाथ मे रैक्सीन का बड़ा सा बैग है और वो मैत्री की तरफ देखकर बहुत खुश हो रही है!!

ज्योति को इस तरह से मुस्कुरा कर अपनी तरफ बढ़ते हुये मैत्री देख ही रही थी कि तभी ज्योति ने खुश होते हुये उससे कहा- हैलो भाभी..!! अब तो मै आपको भाभी बोल सकती हूं ना...??

ज्योति की ये बात सुनकर थोड़ा सा झेंपते हुये मैत्री ने उसकी तरफ देखा और अपने होंठो पर नर्वस सी मुस्कान लिये हुये उससे बोली- जी.. जैसा आपको ठीक लगे..

जहां एक तरफ मैत्री.. ज्योति को लेकर अपनी पिछली जिंदगी से जुड़ी यादो की वजह से जाने क्या क्या सोच रही थी वहीं ज्योति अपने प्यारे भइया जतिन की वजह से मैत्री को देखकर मन ही मन फूली नही समा रही थी...

मैत्री को देखकर खुश होते हुये उसके पास जाकर ज्योति ने कहा- भाभी आप बहुत प्यारी हैं और आपको देखकर ऐसा लगता है कि सिर्फ आप ही मेरे भइया को संपूर्ण कर सकती हैं, ऐसा लगता है जैसे आप मेरे भइया के लिये ही बनी हैं, भाभी आप बिल्कुल भी नर्वस मत हो हम सब आपको अपनी पलकों पर बैठा के रखेंगे खासतौर पर जतिन भइया, वो बहुत अच्छे हैं और ये बात मैं इसलिये नही कह रही हूं कि वो मेरे भइया हैं बल्कि मै इसलिये कह रही हूं क्योकि वो वाकई में बहुत अच्छे हैं और आपको ये बात कुछ दिनों में खुद ही समझ में आ जायेगी!!

इसके बाद अपनी बात को आगे बढ़ाते हुये ज्योति ने मैत्री से कहा- भाभी मुझे कहीं ना कहीं ये एहसास था कि आप ही मेरी भाभी बनोगी और इसीलिये मै आपके लिये एक बहुत प्यारा और कीमती तोहफा लायी हूं, जो हमारे लिये अनमोल है और इसके पीछे एक बहुत रोचक कहानी जुड़ी है जो मम्मी आपको शादी के बाद बता देंगी, भाभी ये सिर्फ एक उपहार ही नही बल्कि एक जिम्मेदारी भी है जो अभी तक मम्मी के पास थी और अब ये मैं आपको दे रही हूं...

ऐसा कहते हुये ज्योति ने मैत्री की तरफ वो बैग बढ़ा दिया जो वो उसे देने के लिये अपने साथ लायी थी, मैत्री जानती थी कि शादी ब्याह के माहौल में उपहारो का आदान प्रदान तो होता ही है और जिस तरह से ज्योति इस उपहार की व्याख्या कर रही है उसे सुनने के बाद वो उस उपहार को लेने के लिये मना नही कर पायी|

मैत्री ने संकुचाते हुये जब वो बैग अपने हाथों में ले लिया तब ज्योति ने कहा- भाभी इसे खोल कर देखिये...

ज्योति के कहने पर मैत्री ने जब वो बैग खोल कर देखा तो वो हैरान सी होकर देखती रह गयी, असल में उस बैग में मेहरून रंग की बहुत खूबसूरत और काफी वजनदार साड़ी थी और उसमें चांदी का बहुत बारीक काम हुआ था... वो साड़ी देखकर मैत्री हैरान होकर ज्योति से बोली- दीदी ये तो बहुत खूबसूरत साड़ी है..!!

ज्योति ने कहा- जी भाभी और ये साड़ी मेरी दादी ने मम्मी को दी थी उनकी पापा से शादी से पहले और मम्मी ने यही साड़ी अपनी शादी मे पहनी थी और उसके बाद अब ये उन्होने खुद मुझे निकाल के दी थी ये कहकर कि ये साड़ी मैत्री को देनी है, तो मैने कहा कि क्यों ना आज ही दे दें आखिरकार थोड़े दिनो मे आपको ही तो संभालना है सब कुछ....

ज्योति असल मे मैत्री से ये भी कहना चाहती थी कि मैत्री ये साड़ी अगर हो सके तो अपनी शादी के दिन पहने लेकिन उसने ये सोचकर कि "भाभी वैसे ही इतनी नर्वस हैं और ऐसे में उनपर दबाव बनाना ठीक नही है, बाकि वो खुद समझदार हैं.. जैसा उन्हे ठीक लगे उन्हे वैसा ही करने देते हैं" अपने दिल की बात मैत्री से नहीं कही...

जहां एक तरफ ज्योति अपनी होने वाली भाभी से सम्मानित, समर्पित और प्यार भरे लहजे से बात कर रही थी वहीं दूसरी तरफ ज्योति की इतनी अच्छी बाते सुनकर मैत्री के दिल से भी अंकिता की वजह से ननदो को लेकर जो मैल था वो धीरे धीरे कम से कम ज्योति के लिये तो धुल ही रहा था, उसे ज्योति से बात करना बहुत अच्छा लग रहा था कि तभी उसकी नजर ज्योति के गर्भवती पेट पर पड़ी जिसके बाद उसने थोड़ा चौंकते हुये ज्योति से कहा- दीदी.. आप मम्मी बनने वाली हैं...!!

मैत्री के इस सवाल को सुनकर ज्योति मुस्कुराते हुये बोली- जी भाभी... हमारे घर मे दो नये मेहमान आने वाले हैं एक आप और एक ये....

ज्योति की बात सुनकर मैत्री ने बहुत ही प्यार से उससे कहा- तो दीदी आप खड़ी क्यो हैं बैठिये ना...

ज्योति ने कहा- भाभी मन तो मेरा भी है कि मै आपसे खूब सारी बाते करूं पर अब मै चलूंगी, हमे कानपुर भी निकलना है ना लेकिन शादी के बाद हम ढेर सारी बातें करेंगे!!

अपनी बात कहते कहते ज्योति ने बड़े प्यार से पहले मैत्री के गाल पर अपना हाथ रखा और उसको बाद बड़े ही सहज तरीके से खुश होते हुये उसे गले लगाकर बोली- भाभी... आपका स्वागत है मेरे जतिन भइया के जीवन और हमारे घर में अब मै चलती हूं....

ऐसा कहकर ज्योति मैत्री से विदा लेकर बाहर ड्राइंगरूम मे आ गयी, ज्योति के अपने कमरे से जाने के बाद मैत्री बहुत अच्छा महसूस कर रही थी, उसे ऐसा लग रहा था कि वो बेकार ही ज्योति को लेकर गलतफहमी पाले हुये थी, ज्योति से बात करने के बाद वो सोच रही थी कि "जहां एक तरफ अंकिता का स्पर्श इतना अश्लील और गंदा था वहीं दूसरी तरफ ज्योति के स्पर्श मे कितना सम्मान, संस्कार और सहजता थी..." पहली ही मुलाकात में मैत्री को ज्योति बहुत अच्छी लगी थी....

ज्योति के ड्राइंगरूम मे पंहुचने के बाद बबिता ने सरोज से कहा- बहन जी.. जरा मैत्री को एक बार बुलायेंगी बाहर....

"जी बहन जी बिल्कुल... अभी बुलाती हूं" सरोज ने कहा...

ये बोलकर सरोज अपनी जगह से उठीं और मैत्री को लेने अंदर चली गयीं, वो मैत्री को लेकर जब बाहर आयीं तो मैत्री को देखकर बबिता उसके पास गयीं और बड़े ही प्यार से मुस्कुराते हुये शगुन के तौर पर एक पैसो से भरा लिफाफा अपने बैग से निकालकर मैत्री को देते हुये बोलीं- बेटा ये तुम्हारे लिये शगुन का लिफाफा है...

इसके बाद उन्होने मैत्री को गले से लगाकर सरोज से कहा- बहन जी आज से आपकी मैत्री हमारी हुयी, अब से ये हमारी अमानत के तौर पर आपके पास कुछ दिन और रहेगी.... (सरोज से अपनी बात बोलकर बबिता ने बहुत प्यार से मैत्री की तरफ देखकर और उसके सिर पर हाथ फेरते हुये सरोज से कहा) मैत्री का ध्यान रखियेगा, ये बहुत कीमती है हमारे लिये...!!

इसके बाद बबिता ने मैत्री को वहीं सबके साथ बैठने के लिये कहा और खुशी खुशी खुद अपनी जगह आ कर बैठ गयीं, बबिता का मैत्री के साथ किया गया इतना अच्छा व्यवहार घर के सारे सदस्यो समेत मैत्री को भी बहुत अच्छा लगा, आज जतिन और उसके परिवार के घर आने के बाद से सब कुछ अच्छा अच्छा ही हो रहा था लेकिन वो जैसे ही खुश होने की कोशिश करती थी वैसे ही कहीं ना कहीं उसके दिल को ये बात जैसे छूकर निकल जाती थी कि "शुरू मे तो सब अच्छा ही लगता है, असलियत तो बाद मे ही खुलती है..."

जहां एक तरफ अतीत की कड़वी यादें उसे खुश नहीं होने दे रही थीं वहीं दूसरी तरफ उसे खुद भी जतिन, ज्योति और उसकी होने वाली सास बबिता का स्वभाव दिखावा नही बल्कि सच्चाई से जुड़ा कुछ अलग सा ही लग रहा था, मैत्री के दिमाग में ये सब बाते चल ही रही थीं कि तभी सरोज ने सबके सामने बबिता से कहा- अम्म्म्म्... बहन जी दरअसल मैं ये कहना चाहती थी कि देखिये मैत्री के पिछले जीवन मे जो कुछ भी उसके साथ हुआ उसके बाद हमें तो कुंडली मिलान पर विश्वास नही रहा लेकिन आप अगर चाहें तो अपनी तसल्ली के लिये कुंडली मिलवा लीजिये....

सरोज की बात सुनकर बबिता मुस्कुराते हुये बोलीं- बहन जी जब आप पहली बार मिलने आयी थीं तभी ये बात मेरे भी दिमाग मे थी कि एक बार कुंडली मिला लेते हैं लेकिन जिस तरीके से ये रिश्ता बना है उसके बाद कुंडली मिलाने की मुझे कोई जरूरत नहीं लग रही है और वैसे भी जहां दिल मिल जायें वहां कुंडली मिले ना मिले कोई फर्क नही पड़ता ऐसे में कुंडली मिलवा कर एक संशय अपने दिमाग में डालना सही नहीं है!!

ऐसा कहकर बबिता ने भी कुंडली मिलवाने से मना कर दिया, ड्राइंगरूम में काफी देर से सबकी बातें सुन रहे और चुप चाप बैठे विजय ने कहा- देखिये जी हम बस ये चाहते हैं कि जतिन और मैत्री बिटिया की शादी एक महीने के अंदर हो जाये क्योंकि हमारी बिटिया ज्योति प्रेग्नेंट है और लगभग एक महीने का ही समय है उसके पास, उसके बाद उसका घर से निकलना मना कर दिया है उसकी डॉक्टर ने तो मजबूरन फिर हमे कम से कम 6 महीने इंतजार करना पड़ेगा क्योकि ज्योति की अनुपस्थिति में तो ये शादी हम नही करेंगे...

विजय की बात सुनकर जगदीश प्रसाद ने कहा- भाईसाहब एक महीना कुछ कम नही है...??

जगदीश प्रसाद की ये बात सुनकर उनके पास ही बैठा राजेश तुरंत बीच मे बोला- ताऊ जी आप चिंता मत करिये अंकल जी सही कह रहे हैं, ज्योति बहन के बिना तो हम भी नही चाहेंगे कि शादी हो, एक महीना बहुत है हम दोनों भाई सारे इंतजाम कर लेंगे...

राजेश की बात सुनकर सुनील ने कहा- हां ताऊ जी हम सब कर लेंगे आप बिल्कुल चिंता मत करिये और मेरा एक दोस्त है उसका मैरिज लॉन है कानपुर रोड पर स्कूटर इंडिया चौराहे के पास, मै आज ही उसको फोन करके मैरिज लॉन बुक करने के लिये बात कर लेता हूं...

राजेश और सुनील का आत्मविश्वास देख कर जगदीश प्रसाद भी विजय की बात से राजी हो गये, इसके बाद उन्होने विजय से संकुचाते हुये से लहजे मे जब लेन देन की बात करी तो विजय मुस्कुराते हुये बोले- हम मैत्री के अलावा आपके यहां से कुछ नही ले जायेंगे और हमारी विनती है कि आप मैत्री और जतिन को देने के लिये क्रपा करके कोई भी सामान मत मंगाइयेगा क्योंकि हम सच में अपने साथ मैत्री के अलावा कुछ नही ले जायेंगे, लेन देन सिर्फ इतना होगा कि हम अपना बेटा आपको देंगे और बदले मे आपकी बेटी ले लेंगे... बस!! बाकि रही बात शगुन की तो शगुन का एक रुपिया आप टीका करते वक्त हमे दे दीजियेगा, बस बाकी कोई भी किसी भी तरह का लेन देन नहीं होगा...

विजय की बात सुनकर मुस्कुराते हुये बबिता ने उनकी बात खत्म होने के बाद कहा- देखिये हमारा बेटा काबिल है, सक्षम है अपनी अर्धांगिनी का ध्यान रखने के लिये और इसने बड़ी मेहनत से अपना सब कुछ बनाया है बस एक जीवनसाथी की कमी थी वो भी अब पूरी हो जायेगी और भाईसाहब शादी के आयोजन में जो भी खर्च आयेगा वो भी हम आधा आधा करेंगे, आधा हम देंगे और आधा आप....

बबिता की बात सुनकर जगदीश प्रसाद मन ही मन बहुत खुश हुये और खुश होते हुये बोले- बहन जी... आपकी सारी बातें स्वीकार हैं लेकिन शादी का खर्चा तो हम ही करेंगे...

जगदीश प्रसाद की बात सुनकर बबिता बोलीं- नही भाईसाहब ऐसा नही होगा और अगर ऐसा है तो आप इन दोनों की शादी मंदिर मे करवा दीजिये बाकि हम रिसेप्शन दे देंगे कानपुर में लेकिन अगर मैरिज लॉन या गेस्टहाउस से शादी हुयी तो आधा खर्चा हम देंगे ही देंगे और फिर जब दो परिवार आपस मे खुशियां और दुख साझा करने के लिये एक दूसरे से जिंदगी भर के लिये मिल रहे हैं तो हम खर्च साझा क्यो नही कर सकते, अकेले मैत्री की ही तो शादी नही है ना जो सिर्फ आप ही खर्चा करें, शादी तो हमारे बेटे की भी है ना...

बबिता की इतनी अच्छी और महान सोच वाली बाते सुनकर मैत्री खुद और उसके परिवार के सारे सदस्य मन ही मन जैसे प्रफुल्लित से हुये जा रहे थे और सोच रहे थे कि कहीं ये सपना तो नहीं जो इतना अच्छा परिवार हमे मिल गया...!!

वो सारे लोग ये सोच के खुश हो ही रहे थे कि तभी विजय ने जगदीश प्रसाद से कहा- भाईसाहब सगाई का देख लीजिये कब करनी है और जैसा भी निर्णय आप लोग लें हमें फोन करके बता दीजियेगा और मैत्री बिटिया की अंगूठी का नाप आप हमें दे दीजिये...

इसके बाद जतिन के परिवार ने मैत्री की और मैत्री के परिवार ने जतिन की अंगूठी का साइज ले लिया, सारी बातें तय होने के बाद थोड़ी देर जतिन और उसका परिवार वहां रुका, सबने साथ मिलकर लंच किया और उसके थोड़ी देर बाद मैत्री के परिवार से विदा लेकर सब लोग कानपुर के लिये निकल गये...

क्रमशः

लखनऊ से कानपुर का रास्ता करीब दो से ढाई घंटे का है और कार में जतिन के साथ ज्योति और सागर भी हैं तो ऐसा तो हो नहीं सकता कि इतनी बड़ी खुशी के माहौल में ज्योति चुप बैठे ऐसे कैसे हो सकता है, रास्ता लंबा है हंसी मजाक और जतिन की टांग खिंचाई तो होना तय है... लेकिन कैसे वो अगले एपिसोड में पता चलेगा..