अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 27 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 27

जहां एक तरफ सरोज अपने साथ मैत्री को लेकर ड्राइंगरूम की तरफ बढ़ रही थीं वहीं दूसरी तरफ ड्राइंगरूम मे बैठे सब लोग आपस मे बातचीत कर रहे थे लेकिन इन सब लोगों के बीच में बैठे जतिन के मन में बेचैनी थी, बेचैनी मैत्री से पहली बार मिलने की... बेचैनी मैत्री को पहली बार अपने सामने देखने की और बेचैनी होती भी क्यो नही भगवान ने पहले दिन से ही मैत्री के लिये उसके दिल में ना सिर्फ ढेर सारा प्यार भर दिया था बल्कि खुद भगवान ने ही जतिन और मैत्री को एक करने के लिये सारे रास्ते भी साफ कर दिये थे....!!

जतिन ड्राइंगरूम के सोफे पर बैठा बस यही इंतजार कर रहा था कि कब मैत्री वहां आये और कब वो उसे पहली बार अपने सामने खड़ा देखे!!

जतिन.. मैत्री को पहली बार अपनी आंखों के सामने देखने की बात सोचकर नर्वस हो ही रहा था कि तभी ड्राइंगरूम और घर के अंदर केे हिस्से के बीच बने दरवाजे पर लगा पर्दा हटा और आखिरकार वो पल भी आ ही गया जिसका ना सिर्फ जतिन बल्कि जतिन से ज्यादा ज्योति और ज्योति से भी ज्यादा बबिता को इंतजार था, सरोज का हाथ अपने हाथो मे पकड़े... घबराई हुयी सी, संकुचाई हुयी सी, शर्म से लाल अपना सिर झुकाये हुये मैत्री ड्राइंगरूम मे आ चुकी थी..!!

मैत्री ने हल्के पीले रंंग का कुर्ता और सफेद रंग की सलवार पहनी हुयी थी जिसपर सफेद और बीच बीच मे कुर्ते के रंग से मिलते जुलते पीले रंग के दुपट्टे को बड़े सलीके से उसने अपने ऊपर डाला हुआ था, मैत्री ने मेकअप के नाम पर सिर्फ एक छोटी सी पीले रंग की ही बिंदी लगायी हुयी थी, इस साधारण परिधान में मैत्री बहुत प्यारी लग रही थी, मैत्री के कमरे मे आने का पता सबके साथ साथ जतिन को भी चल गया था लेकिन वो भी मैत्री की तरह ही नर्वस था, मैत्री की ही तरह उसके दिल की धड़कनें भी जोर जोर से धड़क रही थीं चूंकि ये पहला ऐसा मौका था जब जतिन के मूक प्रेम से भरे दिल ने पहली बार अपनी प्रेयसी मैत्री के अपने आस पास होने की खुश्बू को महसूस किया था इसीलिये वो संकुचाया हुआ सा कभी सामने देखता तो कभी नीचे लेकिन मैत्री की तरफ वो चाहते हुये भी देख ही नही पा रहा था, इधर ज्योति और बबिता दोनो मैत्री की सादगी, मासूमियत और खूबसूरती देखकर जैसे उसपर निहाल हुये जा रहे थे, आज मैत्री को अपने सामने देखकर सबसे जादा बबिता खुश थीं और मैत्री को देखते हुये वो ये सोच रही थीं कि "मै कितनी गलत थी, मैत्री से बिना मिले, बिना देखे ही मैने उसके लिये जतिन को ना सिर्फ मना किया बल्कि ना जाने कितनी बार उसके लिये "विधवा" जैसे गंदे शब्द का इस्तेमाल करके उसकी बेज्जती भी करी, कभी कभी हम कितने गलत हो जाते हैं जो बिना कुछ समझे बिना कुछ जाने ही किसी किसी के बारे मे बिना वजह कोई भी राय कायम कर देते हैं... "
मैत्री को पहली नजर मे ही देखकर बबिता जैसे आत्मग्लानि से भरी जा रही थीं और अपने मन में ही उससे जैसे हजार वादे किये जा रही थीं कि "मैत्री बेटा मुझे माफ कर देना, मै तुमसे अपने सच्चे दिल से वादा करती हूं कि मै तुम्हे अपनी पलकों पर बैठा के रखूंगी, तुम्हारी जिंदगी मे अब कोई दुख नही आने दूंगी, तुम्हे अपनी मम्मी के साथ की कमी कभी महसूस नही होने दूंगी"

वो बबिता जो इस शादी के सबसे जादा खिलाफ थीं आज वो मैत्री की एक झलक मात्र से इस रिश्ते को लेकर सबसे जादा खुश थीं, मैत्री से अपने मन के जरिये ही बात करते करते बबिता बेहद भावुक हो रही थीं इधर ज्योति भी अपने प्यारे जतिन भइया की होने वाली अर्धांगिनी मैत्री को देखकर बहुत खुश भी थी और भावुक भी हो रही थी उसका गला बार बार भर रहा था|

उसने अपने खुशी के आंसुओं को जैसे तैसे संभाल कर घबराते हुये इधर उधर देख रहे अपने भइया जतिन से मजाकिया लहजे मे कहा- भइया यहां वहां क्या देख रहे हैं, हमारी होने वाली भाभी की तरफ देखिये....

ज्योति के ऐसा कहने पर वहां बैठे सब लोग हंसने लगे तो जतिन ने ज्योति की तरफ देखकर उसे आंख दिखा कर और दांत भींचते हुये हल्का सा मुस्कुराकर बिल्कुल ऐसे इशारा किया जैसे वो कहना चाह रहा हो कि "चुप कर यार क्यो नर्वस कर रही है, मै पहले से ही नर्वस हूं"....

इधर इन सब बातो के बीच सरोज ने मैत्री को वहीं पास पड़ी एक कुर्सी पर बैठा दिया और खुद उसके बगल मे बैठ गयीं कि तभी नेहा और सुरभि दोनो देवरानी जेठानी चाय और नाश्ता लेकर ड्राइंगरूम मे आ गयीं, उन्होने सबके सामने एक एक प्लेट मे चाय का कप रख दिया बस जतिन और मैत्री के सामने चाय नही रखी, सबके सामने चाय रखने के बाद सुरभि ने अपनी ताई सास सरोज के कानो मे कुछ कहा, सुरभि के अपने कानो मे कुछ कहने के बाद सरोज सबके सामने ही जतिन से बोलीं- अम्म्म्म्... जतिन बेटा आपकी और मैत्री की चाय हमने दूसरे कमरे मे लगवा दी है, आप लोग वहां आराम से बैठकर चाय पी लो और इसी बहाने आपकी बात भी हो जायेगी....

सरोज की ये बात सुनकर बबिता ने भी कहा- हां हां बिल्कुल सही कहा आपने बहन जी आखिरकार जिंदगी तो इन दोनों को ही एक दूसरे का साथ देकर बितानी है तो इन दोनो को भी एक बार बात करनी चाहिये..!!

अपनी मम्मी की बात सुनकर पहले से ही शैतानी करने के मूड मे बैठी ज्योति ने कहा- हां भइया जाइये जाइये लेकिन डरियेगा मत... भाभी कुछ नही कहेंगी...

असल में ज्योति अच्छे से जानती थी कि जतिन लड़कियों से बात करने के मामले में कितना कच्चा है, ये बात और थी कि अपने प्रोफेशन में उसकी डीलिंग लड़कियों से होती थी लेकिन वो बात अलग होती है और आज बात अलग थी जहां एक ऐसी लड़की के साथ अकेले में बात करने जाने की बात हो रही थी जिससे जतिन पहली ही नज़र में प्यार कर चुका था और जो जतिन की अर्धांगिनी बनने वाली थी, ये सिचुयेशन किसी भी संस्कारी लड़के के लिये बहुत नर्वस कर देने वाली होती है इसलिये जतिन तो क्या कोई भी जतिन जैसा लड़का होता तो वो नर्वस हो जाता और ज्योति ये बात अच्छे से समझती थी इसलिये बार बार उसकी टांग खींच रही थी, छोटी बहनें होती ही ऐसी हैं.. एकदम नटखट, हैना?

अपनी बात कहकर ज्योति हंसने लगी थी लेकिन उसकी हंसी मजाक में करी गयी बाते सुनकर पहले से ही "ननदो" से परेशान मैत्री सोचने लगी कि "यार ये तो बहुत बोल रही है कहीं ये भी अंकिता जितनी तेज ना निकल जाये, अब निकल जायेगी तो भी क्या कर सकती हूं मैं सहना तो पड़ेगा ही, तो ठीक है फिर सह लूंगी और कोई विकल्प भी तो नहीं है"

इसके बाद सबके कहने पर जतिन और मैत्री उस कमरे मे चले गये जहां उनके लिये चाय रखी हुयी थी...

जतिन अंदर कमरे में मैत्री के साथ संकुचाये हुये कदमों से चला तो गया लेकिन उसे ये समझ में नहीं आ रहा था कि वो बात क्या करेगा और बात करना तो छोड़िये... वो बात की शुरुवात कैसे करेगा और बात की शुरुवात तो छोड़िये वो मैत्री के सामने कुछ बोल पायेगा भी या नहीं!!

अब कमरे में पहली बार अपनी होने वाली जीवन संगिनी के सामने बैठकर जतिन क्या बोल पाता है या क्या नहीं ये तो तब ही पता चलेगा जब वो मैत्री के साथ अंदर कमरे में पंहुच जायेगा, हैना!!

क्रमशः

जतिन और मैत्री दोनों अपनी अपनी वजहों से संकुचाये हुये हैं और हद से जादा नर्वस हैं, अंदर कमरे में जाने के बाद दोनों बात कर भी पायेंगे या ऐसे ही वापस ड्राइंगरूम में आ जायेंगे, जानने के लिये पढ़ें जतिन और मैत्री के पहले संवाद का खूबसूरत अगला भाग..