अगले दिन सुबह राजेश और नेहा दोनो रात की बनायी प्लानिंग के हिसाब से अपने ताऊ जी जगदीश प्रसाद के घर पंहुच गये, उनके घर मे अंदर जाने के बाद अपने ताऊ जी और ताई जी के पैर छूकर राजेश ने मैत्री को आवाज लगाते हुये कहा- मैतू...
और आवाज लगाते हुये किचेन की तरफ जाने लगा... राजेश किचेन के दरवाजे तक पंहुचा ही था कि उसकी आवाज सुनकर मैत्री ने उसे आवाज लगायी- जी भइया...
किचेन के अंदर जाते ही राजेश ने बड़े प्यार से मैत्री से कहा- अरे वाह बड़ी अच्छी खुशबू आ रही है...
राजेश की बात सुनकर खुश होते हुये मैत्री ने कहा- जी भइया मैने भाभी का मैसेज रात मे ही पढ़ लिया था और तभी मैने सोच लिया था कि आज आपकी फेवरेट नमकीन सेंवई और वेज कटलेट बनाउंगी, बस वही बन रहा है...
मैत्री की बात सुनकर राजेश ने कहा- अरे वाह... क्या बात है, मुझे तो और जोर से भूख लगने लगी..!!
मैत्री ने कहा- बस भइया दस मिनट मे तैयार हो जायेगा...
असल मे बीती रात नेहा और राजेश के बीच मैत्री के अतीत को लेकर जो बात हुयी थी उसके बाद राजेश के मन मे मैत्री के लिये एक दया का भाव पैदा हो रहा था ये सोचकर कि उसकी बहन को.. जिसको उसने गोद मे खिलाया है उसके जीवन मे कैसी कैसी अजीब घटनायें हो गयीं और उसने किसी पर जाहिर नही करींं, ये सोचकर कि सब परेशान होंगे वो अकेले ही सब सहती रही... इसी भाव को मन मे रखकर बड़े ही प्यार से राजेश ने मैत्री के पास जाकर उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुये कहा- मैत्री बेटा तू खुश तो है ना इस रिश्ते से...??
मैत्री ने मुस्कुराते हुये हल्का सा सिर हिलाते हुये कहा- जी भइया मै खुश हूं... और सबसे जादा खुशी मुझे इस बात की है कि आप सब और खासतौर पर मम्मी पापा बहुत खुश हैं लेकिन सबसे जादा अच्छा मुझे आज लगा जब आपने इतने महीनो बाद मुझे... "मैतू" कहके बुलाया...
ऐसा कहते हुये मैत्री अपने भइया राजेश के सीने से लग गयी... उसे ऐसे प्यार से अपने गले लगते देख राजेश ने उसके सिर पर हाथ रखते हुये कहा- हमेशा ऐसे ही खुश रह मेरी गुड़िया, तुझे खुश देखकर हम सबके अंदर एक अलग ही ऊर्जा आ जाती है, अच्छा मुझे जल्दी से नाश्ता करा दे तो मै ऑफिस के लिये निकलूं वैसे भी तूने इतनी अच्छी अच्छी चीजें बनायी हैं कि मुझसे अब रहा नही जा रहा है....
मैत्री ने कहा- जी भइया आप अंदर चलके बैठिये... मै बस अभी लायी...
राजेश और मैत्री अपनी बातो मे इतना खोये हुये थे कि उन्हे पता ही नही चला कि नेहा भी वहीं पर आ गयी है, नेहा चुपचाप खड़ी मुस्कुराते हुये भाई बहन की प्यार भरी बाते सुन रही थी और ऐसे जैसे मैत्री को लाख दुआयें दे रही हो... ऐसे उसकी तरफ देखे जा रही थी, राजेश की बात खत्म होते ही वहीं पर खड़ी नेहा ने भी मैत्री से कहा- हां दीदी आपके भइया सच कह रहे हैं, आप बहुत स्पेशल हो.... भगवान आपको हमेशा खुश रखें...
इसके बाद राजेश ड्राइंगरूम मे अपने ताऊ जी और ताई जी के पास आकर बैठ गया, राजेश के अपने पास आकर बैठने के बाद उसके ताऊ जी जगदीश प्रसाद ने उससे पूछा- बेटा राजेश आगे की तैयारियों का कैसे क्या करना है क्योंकि अब बहुत कम समय बचा है हमारे पास...
राजेश ने कहा- हां ताऊ जी समय तो कम है पर चिंता मत करिये सब हो जायेगा, देखिये मार्च चल रहा है तो मेरी क्लोजिंग की वजह से 31 मार्च तक सुनील सारा काम संभाल लेगा और मै 1 अप्रैल से 10 अप्रैल यानि शादी वाले दिन तक की छुट्टी ले लूंगा, तो जो काम बचेंगे उन दिनो मे वो काम मै निपटा लूंगा... बाकि खरीददारी की जहां तक बात है तो एक दिन मे कपड़े वगैरह खरीद लिये जायेंगे और किसी एक दिन मे गहने वगैरह ले लिये जायेंगे बाकि वो लोग कुछ लेने को तैयार नही हैं तो उस बात की चिंता भी नही है, गेस्टहाउस और कैटरिंग पहले ही बुक हो चुके हैं... इसलिये आप आराम से रहिये सारे काम टाइम से हो जायेंगे....
जहां एक तरफ मैत्री के घर मे शादी की तैयारियां चल रही थीं वहीं दूसरी तरफ जतिन के घर मे भी कुछ ऐसा ही माहौल था, जतिन की मम्मी बबिता और ज्योति अपने परिवार मे नये सदस्य के शुभ आगमन को लेकर इतने प्रफुल्लित थे कि वो कोई भी चीज छोड़ना नही चाहते थे, अपने घर को मैत्री के आगमन के लिये ऐसे सजाने की प्लानिंग कर रहे थे जैसे किसी दुल्हन को सजाया जाता है, ज्योति तो छोटी छोटी चीजो के लिये ऐसे ध्यान दे रही थी जैसे उसे वो सारी चीजे मैत्री के लिये नही बल्कि अपने लिये चाहिये हों... "भाभी के लिये इस चीज को भी खरीदना है, ये भी लेना है वो भी लेना है... भाभी को किसी चीज की जरूरत पड़े तो पहले ही उनके पास उपलब्ध हो जाये..." इधर जतिन की मम्मी बबिता जो कभी इस शादी के सबसे जादा खिलाफ थीं उनकी खुशी का तो कोई ठिकाना ही नही था, दोनो मां बेटी अपने परिवार मे नये सदस्य के आगमन के लिये कोई कमी नही छोड़ना चाहते थे...
ऐसे ही शादी की तैयारियां करते करते एक एक दिन करते कब पूरा महीना बीत गया पता ही नही चला, आज शादी का दिन यानि 10 अप्रैल आ गयी थी, जतिन और मैत्री दोनो के घर मे सारे मेहमान आ चुके थे.... बारात जतिन के घर से लखनऊ के लिये रवाना भी हो चुकी थी....
मैत्री भले ही अपने घर में बैठी इस दूसरी शादी के बारे में सोच सोचकर घबरा रही थी लेकिन उसे इस बात का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि उसके नये परिवार के सदस्य किस कदर बेसब्री से उसके शुभ आगमन के लिये अपनी पलकें बिछाकर बैठे उस पल का इंतजार कर रहे हैं जब उस घर की बहू पहली बार उस घर में कदम रखेगी..!! मैत्री को अंदाजा भी नहीं था कि इतनी कम उम्र में मिले इतने कष्टों के बाद बेहिसाब खुशियां और इतना प्यार करने वाला परिवार उसका कितनी बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं..!!
क्रमशः
आज जतिन और मैत्री की शादी है... आप सभी पाठकजन सादर आमंत्रित हैं, जोड़े को आशीर्वाद देने के लिये आइयेगा जरूर!!