अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 65 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 65

मन मे दबी हुयी बातें जो मैत्री को खुलकर जीने नही दे रही थीं आज आंसुओ के जरिये बाहर आने के बाद मैत्री को बहुत सुकून मिल रहा था... वो अपने आप में इतना हल्का महसूस कर रही थी कि बिस्तर पर लेटते ही उसे नींद आ गयी.... मैत्री को सुलाकर जतिन बाहर ड्राइंगरूम मे जाकर बैठ गया और सोचने लगा कि वो मैत्री जिसे वो इतना प्यार करता है, जो छोटी सी, प्यारी सी है.... जो हर काम इतने अच्छे तरीके से पूरी जिम्मेदारी के साथ करती है.... वो मैत्री जो सबका सम्मान करती है... उसे कितना कुछ सहना पड़ा... जतिन ये सोच सोच कर बेचैन सा हुआ जा रहा था कि जब उसके ऊपर इस तरह के अत्याचार हो रहे होंगे तब मैत्री को कितना दुख होता होगा.... कितना अकेला महसूस करती होगी वो.... उसका मन कितना चीखता होगा और भगवान से मदद की गुहार लगाता होगा.... एक लड़की जो अपने माता पिता परिवार सबको छोड़कर शादी के बंधन मे बंधकर अपनी ससुराल गयी उसके साथ जानवरो जैसा सुलूक उसे कैसा महसूस कराता होगा..... कितना रोती होगी अकेले मे वो.... 

जतिन मैत्री के बारे मे सोच सोचकर बहुत जादा परेशान हो रहा था.... वो खुद अपने आप को उस जगह रख कर ये सारी बाते सोच रहा था जिस जगह कभी मैत्री थी.... ये सोचकर ही उसके शरीर मे सिहरन सी हो रही थी... वो भावुक हो रहा था.... उसका मन जैसे रो सा रहा था....

लेकिन आज जतिन ने एक बहुत बड़ा काम किया था.. जिसका अंदाजा उसे खुद भी नही था.... वो एक अच्छा बेटा, अच्छा भाई, अच्छा इंसान और अच्छा पति तो था ही... लेकिन आज उसने मैत्री के लिये एक पिता की भूमिका भी अदा करी थी..... जैसे एक अच्छा पिता अपने बच्चो की तकलीफ ध्यान से सुनता है और उन तकलीफो से बाहर निकालने के लिये अपनेे बच्चो के साथ हर कदम पर खड़ा रहता है.... आज जतिन ने मैत्री के मन से उसके अतीत की यादो का जहर बाहर निकाल कर उसे जो नया जीवन दिया था वो भी एक पिता की भूमिका से कम नही था.... सच ही तो है कि एक स्त्री अपने पति मे ना सिर्फ अच्छा और जिम्मेदार प्रेमी देखती है बल्कि समय समय पर उसमे एक पिता भी ढूंढती है जो प्यार से उसके सिर पर हाथ रखे... उसे प्यार से समझाये... जो आज जतिन ने किया भी था... 

रात के करीब बारह बज रहे थे और जतिन की आंखो मे नींद नही बल्कि मैत्री के लिये करुणा के आंसू थे.... वो सोफे पर बैठा बस मैत्री के बारे मे ही सोचे जा रहा था... कि तभी उसके कंधे पर किसी ने हाथ रखा... जतिन ने पलट कर देखा तो उसकी मम्मी बबिता उसके पीछे खड़ी थीं..... जतिन के अपनी तरफ देखने पर बबिता ने बड़े प्यार से उसके बालो मे हाथ फेरते हुये कहा- क्या हुआ बेटा... तू अभी तक सोया नही... और यहां अंधेरे मे क्यो बैठा है.... कोई उलझन है क्या?? 

जतिन ने बड़ी बुझी बुझी सी आवाज मे कहा- नही मम्मी ऐसा कुछ नही है.... बस नींद नही आ रही है... तो सोचा बाहर चलकर बैठ जाता हूं.... 

जतिन की बुझी हुयी आवाज सुनकर बबिता समझ गयीं कि जरूर कोई बात है तभी जतिन इस तरह से बात कर रहा है.... इसके बाद बबिता ने थोड़ा दबाव बनाते हुये कहा- बेटा मै तेरी मां हूं... और तू मुझसे ही अपने मन की बात छुपाने की कोशिश कर रहा है.... क्या हुआ बता... ऐसे क्यो उदास है?? ऑफिस मे कोई बात हुयी है क्या....?? 

इधर ड्राइंगरूम मे हो रही जतिन और बबिता की बातो की सुगबुगाहट सुनकर जतिन के पापा विजय की भी नींद खुल गयी... उन्होने घड़ी की तरफ देखा तो करीब सवा बारह बज रहे थे.... ये सोचकर कि इतनी रात मे क्यो जाग रहे हैं ये लोग... वो बाहर ड्राइंगरूम मे चले गये और जतिन और बबिता को बाते करते देख बोले- अरे तुम दोनो मां बेटे इतनी रात मे क्या बात कर रहे हो... कल सुबह कर लेना जो भी बात है..... 

विजय के ऐसा कहने पर बबिता ने उन्हे इशारा किया और अपने पास बैठने को कहा.... बबिता के ऐसे इशारा करने पर विजय चुपचाप जाकर उनके बगल मे बैठ गये... विजय के बैठने के बाद बबिता ने उनसे कहा- आज मैत्री बहुत रोयी है.... 
मैत्री के रोने की बात सुनकर विजय की आंखो से नींद उड़ गयी और चौंकते हुये वो बोले- मैत्री रोयी है....!! पर क्यो... क्या बात हो गयी... उसे अगर अपने मम्मी पापा की याद आ रही है तो जतिन बेटा उसे कुछ दिनो के लिये लखनऊ भेज दे..... 

विजय की बात सुनकर जतिन ने कहा- नही पापा ऐसी कोई बात नही है... 

इसके बाद जतिन ने मैत्री के लिये आईसक्रीम लेकर अपने कमरे मे जाने के बाद की सारी बाते संक्षेप मे एक एक करके बबिता और विजय को बतानी शुरू करीं... अपनी बात खत्म करने के बाद जतिन ने कहा- और यही वजह थी कि मैत्री जरा सी बात पर सहम जाती थी... उसे लगता था कि उसका किया गया काम पसंद ना आने पर यहां भी कहीं कोई उसे डांट ना दे.... और यही कारण था कि आज मैने उसे पूरा मौका दिया अपने दिल मे छुपी तकलीफ को अपने शब्दो के जरिये बयान करने का..... 

जतिन की सारी बाते सुनने के बाद बबिता की आंखो मे आंसू आ गये और विजय भी बहुत भावुक हो गये और भावुक होते हुये बोले- विश्वास नही होता कि मैत्री जैसी संस्कारी, सुशील, हर काम मे निपुण, सबका सम्मान करने वाली इतनी छोटी सी प्यारी सी बच्ची पर कोई इतना अत्याचार कैसे कर सकता है.... सच मे बहुत बहादुर है हमारी मैत्री जो इतने कष्ट सहे फिर भी उस रिश्ते को निभाने की दिल से कोशिश करी.... ये उन लोगो का दुर्भाग्य है जिन्होने मैत्री जैसी पवित्र आत्मा को सही तरीके से नही पहचाना और इतना बुरा व्यवहार किया.... 

बबिता को भी बहुत बुरा लग रहा था मैत्री के ऊपर हुये अत्याचारो के बारे मे सुनकर.... बबिता को फोटो देखने के बाद से ही मैत्री बहुत अच्छी लगी थी और उस दिन शादी मे खानदानी साड़ी पहनने के बाद तो मैत्री जैसे बबिता के दिल मे सीधे उतर गयी थी.... वो मैत्री से बहुत प्यार करती थीं इसीलिये उनका मन बहुत द्रवित हो रहा था... वो बस चुप बैठी थीं.... 
इधर जतिन बार बार ये कहने की कोशिश कर रहा था कि "मम्मी आपसे एक विनती है कि अगर मैत्री से कभी कोई गलती हो जाये तो उसे डांटियेगा नही प्यार से समझा दीजियेगा, वो बहुत समझदार है... समझ जायेगी"... लेकिन कह नही पा रहा था ये सोचकर कि वो अपनी मां से समझाने के लहजे मे कैसे बात करे..... जतिन ये सोच ही रहा था कि वो अपनी बात अपने मम्मी पापा से कैसे कहे कि तभी बबिता बोलीं- जतिन बेटा.... वैसे मै तेरा स्वभाव जानती हूं पर फिर भी तेरी मां होने के नाते मै तुझसे ये ही कहूंगी कि मैत्री से कभी कोई गलती हो जाये तो उसे डांटना मत हमेशा प्यार से ही समझाना.... वो बहुत समझदार लड़की है... समझ जायेगी... और फिर गलतियां किससे नही होती हैं.... हम सब गलतियां करते हैं.... जतिन बेटा वो तेरे लिये भले तेरी पत्नी है पर हमारे लिये वो हमारी बेटी ही है.... 

अपनी मम्मी बबिता के मुंह से बिल्कुल ठीक वही बात सुनकर जो जतिन कहना चाहता था... उसे बहुत अच्छा लगा.... इसके बाद भावुक हुयीं बबिता अपनी जगह से उठीं और जतिन के कमरे के दरवाजे पर जाकर खड़ी हो गयीं और गहरी और सुकून की नींद ले रही मैत्री की मासूमियत देख कर दूर से ही उसकी बलायें उतारने लगीं और सोचने लगीं कि "मैत्री बेटा इस घर मे मै और हम सब तुझे किसी भी तरह की कोई तकलीफ नही होने देंगे, तुझे वो सारी खुशियां देंगे जो तेरा हक है... हमेशा खुश रह मेरी बच्ची" 

क्रमशः