अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 41 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 41

जहां एक तरफ जतिन अपने मन मे मैत्री को आठवां वचन दे रहा था वहीं दूसरी तरफ मैत्री भी उन सात वचनो के बाद जो जतिन ने मैत्री को दिये थे.. अपने मन से जतिन को आठवां वचन दे रही थी... मैत्री अपने मन मे वचन दे रही थी कि "मै आपका हमेशा ध्यान रखुंगी, एक अर्धांगिनी के तौर पर मै अपने सारे कर्तव्यो का पालन करूंगी, मै अपनी सासू मां, ससुर जी की पूरी निष्ठा और सच्ची श्रद्धा के साथ सेवा करूंगी, मै अपने इस नये परिवार को प्रेम के एक ही सूत्र मे बांध कर रखूंगी, किसी पराये मर्द से किसी भी तरह के संबंध बनाना तो दूर मै अपने सपनो मे भी किसी को अपने आसपास नही आने दूंगी, मै आपकी हर बात मानुंगी, मै आपसे वादा करती हूं कि इस रिश्ते के प्रति जो मेरे मन मे पिछले अनुभवो की वजह से अस्वीकार्यता है उसे मै कभी जाहिर नही होने दूंगी और मै सच्चे दिल से ये भी वादा करती हूं कि धीरे धीरे मै पिछली सारी बातो को भूल जाउंगी.... हां मै वचन देती हूं कि अपनी पिछली जिंदगी की स्याह हकीकत का साया मै आपके जीवन, आपकी भावनाओ और आपके मेरे प्रति प्रेम पर कभी नही पड़ने दूंगी... आप देख लेना मै एक आदर्श पत्नी और बहू बनके दिखाउंगी.... मै रवि की मम्मी और उनके लांछनो को सिरे से गलत साबित कर दूंगी... मै बुरी नही हूं मै अच्छी हूं मै ये साबित कर दूंगी "

अपने मन मे जतिन से ये सारे वादे करते हुये मैत्री भावुक हो गयी... उसे फिर से वही सब ताने याद आने लगे जो उसके दिल मे घर करके बैठे हुये थे... वो अपमान वो तिरस्कार जैसे सब कुछ उसकी आंखो के सामने फिर से नाचने लगा जो रवि की मम्मी, बहनो और भाई ने किया था... उन लोगो ने मैत्री के मन मे इतना जहर घोल दिया था उल्टे सीधे ताने मार मार कर और लांछन लगाकर कि आज जो सम्मान जो प्यार उसे जतिन और उसके परिवार से मिल रहा था वो देखकर उसे कभी कभी लगता था कि वो उसके लायक नही है.... सही भी है... बिना वजह का अपमान इंसान को खुद अपनी नजरो मे कभी कभी बुरी तरह गिरा देता है...

मैत्री अपने मन मे ये सब सोचकर भावुक हो ही रही थी कि पंडित जी ने जतिन से कहा- अब आप वधु की मांग मे सिंदूर भरिये....

पंडित जी की बात सुनकर मैत्री थोड़ी असहज हो गयी.. वो पहले से ही भावुक थी और ये सोचकर कि उसकी मांग जो सूनी हो चुकी थी आज वो फिर से भरी जा रही है... वो और जादा भावुक हो गयी...

इधर पंजित जी के कहने के बाद जतिन ने अपना एक हाथ मैत्री के दूसरी तरफ वाले कंधे पर रखा और एक हाथ से सिंदूर की डिब्बी से सिंदूर निकाल कर जैसे ही अपने हाथ की उंगलियां मैत्री की मांग के सिरे पर रखीं... जतिन को ऐसा लगा जैसे मैत्री को जोर का झटका सा लगा हो... मैत्री बेहद भावुक हो रही थी उसने जैसे तैसे अपने आंसुओ को अपनी आंखो मे रोका हुआ था.. उसकी सांसे जोर जोर से चलने लगी थीं... उसने अपने आंसू तो जैसे तैसे रोक रखे थे अपनी आंखो मे लेकिन वो अपनी सिसकियां नही रोक पायी और सिर झुकाये झुकाये सिसकने लगी.... जतिन ये सारी बाते महसूस कर रहा था... मैत्री की सिसकियां भी, उसकी तेज तेज चलती सांसे भी और उसके मन की तकलीफ भी.... जतिन सब समझ रहा था... और समझे भी क्यो ना मैत्री अगर उसकी अर्धांगिनी थी तो वो भी तो मैत्री का अर्धांग था और शरीर का आधा अंग दुखी हो और बाकी के आधे अंग को वो दुख महसूस ना हो... ऐसा कैसे हो सकता है.... 

तभी जतिन ने मैत्री के कंधे पर रखे अपने हाथ से उसका कंधा जोर से दबाया... मैत्री को ऐसा महसूस हुआ मानो जतिन उसे भरोसा दिलाने की कोशिश कर रहा हो कि परेशान मत हो... मै तुम्हारे साथ हूं ना!!! 

इसके बाद जैसे ही जतिन ने अपनी चुटकी मे पकड़े सिंदूर को मैत्री की मांग मे भरा वैसे ही जो आंसू मैत्री ने बड़ी जद्दोजहद के बाद अपनी आंखो मे रोके हुये थे उनमे से एक आंसू उसकी आंख से टपक गया... जतिन ने उस आंसू को मैत्री की आंख से टपकते हुये देखा भी... लेकिन सबके सामने शर्म के चलते वो उस आंसू को पोंछ नही पाया... 

इसके बाद पंडित जी के कहने पर जतिन और मैत्री उठकर खड़े हो गये और पवित्र अग्नि के चारो तरफ घूम कर पवित्र सात फेरे लेकर एक दूसरे को जीवन भर के लिये अपना बना लिया.... पवित्र सात फेरो के बाद पहले से ही तय कार्यक्रम के हिसाब से इस बार मैत्री के चाचा नरेश और सुनीता ने मैत्री के कन्यादान की रस्म को पूरा किया.... फेरो और कन्यादान की रस्मो के साथ बाकि की अन्य रस्मे जो मंडप मे होती हैं उन्हे पूरा करने के बाद सब लोगो ने जतिन और मैत्री को मंडप के पास ही पड़े एक आरामदायक सोफे पर बैठने के लिये कह दिया... सबके कहने पर सोफे पर बैठने के लिये जब जतिन मैत्री के साथ मंडप से उठकर मंडप से बाहर आया तो उसने नीचे देखकर इधर उधर तीन चार बार अपनी नजर दौड़ायी और हतप्रभ सा हुआ बोला- चोरी हो गये!! (ऐसा कहकर जतिन हंसने लगा)... 

जतिन के जूते चोरी हो चुके थे... 

जतिन की ये बात सुनकर पास ही खड़ी नेहा हंसने लगी.. तो जतिन ने भी मजाकिया लहजे मे उसकी तरफ देखकर मुस्कुराते हुये कहा- हम्म्म् ये पक्का आपने ही किया है... 

नेहा हंसते हुये बोली- नही नही भइया जी इसमे मेरा कोई योगदान नही है... इस साजिश मे घर का ही कोई सदस्य शामिल है... 

जैसे ही नेहा ने "घर का सदस्य" वाली बात कही... जतिन पलटा और पास ही खड़ी हंस रही अपनी बहन ज्योति को देखकर बोला- ज्योतिििि..!! तू मेरी तरफ से है या उस तरफ से...!! 

कुछ भावुक घंटो के बाद माहौल मे हंसी मजाक के रूप मे आये हल्के क्षणो का आनंद लेते हुये ज्योति ने भी अपने भइया जतिन की बात का हंसते हुये जवाब देते हुये कहा- भइया मै तो पहले दिन से ही अपनी भाभी की तरफ से हूं.... 

ज्योति की ये बात सुनकर सागर से भी रहा नही गया और वो भी हंसते हुये बोले- भइया ज्योति ने ही आपकी सालियो को ढूंढ ढूंढकर आपके जूते चुराने के लिये उकसाया था.... यही है यही है वो साजिशकर्ता... गौर से देखिये इसे.... 

सागर की मजाकिया लहजे मे की गयी इस बात को सुनकर सब लोग हंसने लगे तो ज्योति ने भी हंसते हुये कहा- अरे तो... सारी रस्मो की तरह ये भी तो एक रस्म है... मतलब सारे लोग अपनी रस्मे पूरी करें और भइया की सालियां एक कोने मे खड़ी रहें... ये तो सालियो के साथ अन्याय है.... 

ज्योति की बात सुनकर जतिन ने कहा- ये बात तो बिल्कुल सही है.... सबकी अपनी अपनी रस्मे हैं और सब पूरी होनी चाहियें... अरे लेकिन हैं कहां मेरे जूते चुराने वाली मेरी सालियां.... मेरे जूते तो लाओ... थोड़ा मोलभाव तो करने दो.... 

मजाकिया माहौल मे जतिन की चंचलता भरी बातो को सुनकर कन्यादान के समय बना वहां का भावुक माहौल अब पूरी तरह बदल चुका था... जतिन भी जानबूझ कर माहौल को हल्का करने वाली बाते कर रहा था क्योकि उसे मालूम था कि थोड़ी देर मे ही एक बेहद भावुक करने वाली रस्म आने वाली है जिसे "विदाई" कहते हैं.... 

जतिन के अपनी बात खत्म की ही थी कि वहां खड़े लोगो के बीच मे से एक करीब साढ़े चार पांच साल की बच्ची सबको अपने छोटे छोटे हाथो से धक्का देते हुये आगे आयी और जतिन से बोली- ये लीजिये आपते शूज़... 

उस प्यारी सी बच्ची को देखकर जतिन उसके बराबर आने के लिये नीचे बैठ गया और बड़े ही प्यार से उससे बोला- ओोोोोो.. तो आप हैं मेरी साली साहिबा... 

बच्ची बोली- अले नही नही नही नही... मै तो इतनी छोटी हूं मै आपकी छाली कैछे हो सकती हूं... 

जतिन ने कहा- अरे क्यो छोटी सी साली क्यो नही हो सकती.... 
बच्ची बोली- नही नही नही नही मै आपकी छाली नही हूं मेली मम्मा आपकी छाली हैं.... उन्होने ही मुझछे कहा है कि मै आपके शूज़ दे आऊं.... 

जतिन भी उस बच्ची की बातो के खूब मजे ले रहा था... 

जतिन ने कहा- तो आपकी मम्मा क्यो नही आयीं शूज़ लेकर... 
बच्ची बोली- ललके वालो के बहुत ड्लामे होते हैं ना इछलिये... 

बच्ची की बात सुनकर जतिन जोर से हंसा और हंसते हुये बोला- अरे.. हाहा.. ये आपसे किसने कहा कि लड़के वालो के ड्रामे होते हैं... देखो मै तो कोई ड्रामा नही कर रहा.... 

इससे पहले कि वो बच्ची आगे कुछ कह पाती उसकी मम्मी यानि मैत्री की मौसी की बेटी ने बीच मे आकर कहा- सॉरी भाईसाहब इसे ये सब कोई नही सिखाता ये ऐसे ही बोलती रहती है.... प्लीज बुरा मत मानियेगा... 

जतिन ने अपने स्वभाव के अनुसार जवाब दिया- अरे नही नही इसमे बुरा मानने वाली क्या बात है... मुझे तो बच्ची से बात करके मजा आ रहा था.... 

असल मे मैत्री की रवि से शादी के दिन रवि के भी जूते इन्ही सालियो ने चुराये थे... इस बात पर रवि की मम्मी ने बहुत गुस्सा किया था कि "रात भर से मेरा बेटा जागा हुआ है और रस्म के नाम पर परेशान कर रहे हैं आप लोग" जबकि रवि उन्हे टोक रहा था कि "मम्मी कोई बात नही रहने दो" लेकिन रवि की मम्मी तो जैसे लड़ने के मूड मे ही रहती थीं हर समय इसी वजह से उन्होने खूब खरी खोटी सुनाई थी... बाद मे मैत्री की कज़िन्स को बेवजह उनके मम्मी पापा ने बहुत डांटा था... इसी वजह से इस बार मैत्री की कज़िन्स जतिन के जूते नही चुराने वाली थीं लेकिन ज्योति ने जब वजह पूछी उनके पास जाकर तो उन्होने यही वजह बताई तो ज्योति ने उनसे कहा था कि "आप लोग बिंदास भइया के जूते चुराओ, मेरे भइया से आप लोग अभी मिले नही हो इसलिये ऐसे डर रहे हो.. उनका नेचर बहुत अच्छा है और जब मै उनकी बहन खुद कह रही हूं कि आप लोग हंसी मजाक करो उनके साथ तो किस बात की टेंशन...."... ज्योति के समझाने पर ही जतिन की सालियो मे हिम्मत आयी और उन्होने बहाने से जतिन के जूते कब चुरा लिये ये सिर्फ ज्योति और उसके साथ साथ नेहा और सुरभि को ही पता चल पाया.... 

इसके बाद जतिन की जो तीन चार सालियां थीं वो जतिन के सामने आयीं तो हंसी मजाक करने के उद्देश्य से जतिन ने भी उनकी थोड़ी टांग खिंचाई की और बाद मे ग्यारह हजार रुपय देकर जूते चुराई की रस्म को पूरा किया.... 

इस पूरे हंसी मजाक के प्यारे से माहौल मे जहां एक तरफ जतिन के मम्मी पापा समेत बाकी रिश्तेदार खूब खुश होकर मजे ले रहे थे वहीं इन सबके साथ ही बैठे मैत्री के पापा मन मे मैत्री की विदाई का भारी पन लिये बार बार अपनी घड़ी की तरफ देख रहे थे... ऐसा लग रहा था मानो वो समय से कह रहे हों कि थोड़ा धीरे चलो... मुझे मेरी बेटी को थोड़ा और ध्यान से देखने दो... अभी थोड़ा और समय मुझे उसके साथ बिताने दो.... 

क्रमशः