अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 66 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 66

अगले दिन सुबह मैत्री की नींद जब खुली तो उसे बहुत अच्छा महसूस हो रहा था.. उसे ऐसा महसूस हो रहा था मानो उसके शरीर मे वजन ही नही है... एक अजीब सी ताजगी, अजीब सी खुशी उसको महसूस हो रही थी.... नींद खुलने के बाद सुकून की अंगड़ाई लेते हुये उसने जब दीवार पर टंगी घड़ी की तरफ देखा तो वो एकदम से चौंक गयी और खुद से बोली - हे भगवान... सात बज गये!! ओहो ये क्या हो गया मुझसे... लगता है आज डांट सुननी पड़ेगी.... 

कल रात मे मैत्री के सोने के बाद घर मे क्या हुआ था उसका उसे बिल्कुल भी अंदाजा नही था... इसलिये ये सोचते हुये कि आज डांट पड़ेगी... मैत्री फटाफट बिस्तर से उठी और बहुत तेजी मे नहा धोकर और तैयार होकर मन मे डांट खाने का डर लिये जब अपने कमरे से ड्राइंगरूम मे आयी तो उसने देखा कि घर का माहौल शांत है... उसके ससुर जी विजय सोफे पर बैठे अखबार पढ़ रहे हैं और जतिन भी वहीं उनके पास ही बैठा अपने मोबाइल पर कुछ कर रहा है... इससे पहले कि मैत्री कुछ कह पाती जतिन की नजर उस पर पड़ी और मुस्कुराते हुये और बड़े ही हर्षित तरीके से उसने मैत्री से कहा- गुड मॉर्निंग!! 

जतिन के गुड मॉर्निंग कहने पर मैत्री ने भी थोड़ा झेंपते हुये धीरे से कहा - गुड मॉर्निंग जी... 

जतिन के मैत्री से गुड मॉर्निंग कहने पर अखबार पढ़ रहे विजय ने भी जब मैत्री की तरफ देखा तो वो उनकी तरफ ही आ रही थी.... मैत्री ने पहले विजय से नमस्ते करी और उनके पैर छूने के लिये जैसे ही झुकी वैसे ही विजय ने बड़े ही प्यार से उसके सिर पर हाथ रखा और मुस्कुराकर उसे आशीर्वाद देते हुये कहा- हमेशा खुश रहो बेटा... 

इससे पहले कि मैत्री अपनी सास बबिता के बारे मे किसी से पूछती कि "मम्मी जी कहां हैं" उसे रसोई से कुछ बर्तन खटकने की आवाज आयी... बर्तन खटकने की आवाज सुनकर मैत्री को लगा कि "लगता है मेरे देर से उठने की वजह से मम्मी जी गुस्से मे रसोई मे चली गयी हैं, आज लगता है मम्मी जी से डांट पड़ेगी" ये सोचते सोचते ठिठके हुये कदमो से मैत्री रसोई की तरफ बढ़ने लगी... डांट खाने के डर से उसका चेहरा उतर सा गया था... और जैसे ही मैत्री रसोई के अंदर गयी उसने देखा कि बबिता गैस पर नाश्ता बना रही हैं.... मैत्री और जादा डर गयी और डरते हुये बोली- मम्मी जी सॉरी आज पता नही कैसे मुझे इतनी देर हो गयी जगने मे..... आज के बाद ऐसी गलती कभी नही होगी..... 

मैत्री की ये बात बबिता ने बिल्कुल अनसुनी करदी.... अपनी सास बबिता के अपनी बात को अनसुनी कर देने से मैत्री और डर गयी उसे लगा कि बबिता उससे बहुत जादा नाराज हो गयी हैं इसीलिये वो उसे नजरअंदाज कर रही हैं.... मैत्री सोचने लगी कि अब मम्मी जी पक्का मुझसे यही कहेंगी कि "उठ गयीं महारानी जी आराम से सोकर"... या फिर कोई टॉंट मारेंगी.... यही सोचकर मैत्री घबराई हुयी सी हाथ जोड़कर अपनी सास बबिता के पैरो को छूते हुये बोली- मम्मी जी मै कल से पक्का टाइम से पहले जाग जाउंगी... मै रात मे सोउंगी ही नही.... हां ये ठीक रहेगा मै रात मे सोउंगी ही नही.... 

" क्यो मैत्री रात मे सो गी क्यो नही" ऐसा कहते हुये बबिता ने अपने कानो से इयरफोन निकाला और मैत्री की तरफ देखकर बड़े प्यार से उसकी ठुड्डी पर हाथ फेरते हुये कहा- क्या हुआ बेटा तुम इतनी घबराई हुयी सी क्यो हो.... और क्यो नही सो गी रात मे... हम्म्!! 

मैत्री थोड़ी हैरान होते हुये बोली- मम्मी जी आपने ईयरफोन लगाये हुये थे.... मुझे लगा आप मुझसे नाराज हैं इसीलिये मेरी बातो का जवाब नही दे रही हैं.... 

मैत्री की बात सुनकर बबिता हंसते हुये बोलीं- अरे ये... ये तो मै कभी कभी एफएम सुनती हूं... सुबह सुबह किसी किसी चैनल पर भजन और सत्तर और अस्सी के दशक के गाने आते हैं ना... और वो मुझे बहुत अच्छे लगते हैं इसलिये कभी कभी सुन लेती हूं.... आज मन हो गया तो सुन लिया... और मै तुमसे नाराज क्यो हो जाउंगी......?? 

मैत्री ने बबिता की बात का जवाब देते हुये कहा- वो मम्मी जी आज मुझे देर हो गयी ना जागने मे... पता नही कैसे मेरी नींद नही खुली.... और जतिन जी ने भी मुझे नही जगाया.... 

बबिता मुस्कुराते हुये बोलीं- बेटा देर से नही... जल्दी जाग गयी हो तुम... ( ऐसा कहकर बबिता हंसने लगीं) 

मैत्री ने मन मे सोचा "मम्मी जी ने ये टॉंट मारा है पक्का".... ये सोचते हुये मैत्री हिचकिचाते हुये बोली- ज.. जल्दी कैसे मम्मी जी... 

बबिता ने कहा- मै जब शादी करके अपनी ससुराल गयी थी तो शादी के तीन या चार दिन बाद मै..... दस बजे सोकर उठी थी.... (अपनी बात कहते कहते बबिता हंसने लगीं और हंसते हुये बोलीं) उस हिसाब से तो तुम तीन घंटे पहले जाग गयीं मैत्री..... तो जल्दी हुआ ना.... 

बबिता की बात सुनकर मैत्री भी हंसने लगी और सोचने लगी कि "मम्मी जी कितनी अच्छी हैं और मै ना जाने क्या क्या सोचती रहती हूं, जबकि मम्मी जी ने पहले दिन से लेकर आजतक मुझे सिर्फ प्यार दिया है, आज के बाद मै मम्मी जी के साथ की परिस्थितियों की तुलना रवि की मम्मी के समय की परस्थितियो से बिल्कुल नही करूंगी क्योकि रवि की मम्मी मेरी इन मम्मी जी से तुलना के बिल्कुल लायक नही हैं.... कहां वो और कहां मेरी ये प्यारी सी मम्मी जी"

इसके बाद मैत्री ने धीरे से अपनी महीन सी आवाज मे मासूमियत भरे लहजे मे बबिता से पूछा- मम्मी जी फिर क्या हुआ... किसी ने गुस्सा किया था क्या? 

बबिता ने कहा- नही बिल्कुल नही.. जतिन की दादी यानि मेरी सासू मां का व्यवहार अपनी बहुओ के साथ बिल्कुल अपनी बेटियो जैसा रहा... जब तक वो रहीं किसी को भी इटावा वाले घर से दूर नही होने दिया.. अगर मर्दो को बाहर नौकरी करनी है तो करो लेकिन बहुयें यहीं एक छत के नीचे ही रहेंगी.... और ये बात हम सबको ना सिर्फ बहुत अच्छी लगती थी बल्कि हम सभी को दिल से स्वीकार्य भी थीं.....  तुम्हारे ससुर जी यानि पापा जी खुद कानपुर मे जॉब करते थे और रोज इटावा से कानपुर आते जाते थे.... एक दिन बहुत बारिश हो रही थी जिसकी वजह से ट्रेनें लेट हो गयी थीं.... जिसकी वजह से इन्हे घर आने मे रात के दो बज गये थे.... मै चिंता की वजह से सोयी नही ये सोचकर कि "इतनी तूफानी रात है और अभी तक ये आये नही"... उस जमाने मे मोबाइल वगैरह तो थे नही इसलिये इनसे संपर्क भी नही हो पा रहा था तो और चिंता हो रही थी.... फिर जब ये घर आये तब मैने इन्हे खाना वाना खिलाया और तभी मैने भी खाया इसलिये सोते सोते देर हो गयी... और मै सुबह देर से उठी... और जैसे जतिन ने तुम्हे आज नही जगाया वैसे ही इन्होने भी मुझे नही जगाया और ड्यूटी करने कानपुर निकल गये... मै जब जागी तो मुझे भी यही लगा था कि डांट पड़ेगी लेकिन मेरी सासू मां उल्टा मुझपे इतना खुश हुयीं ये कहते हुये कि "बिटिया तुम विजय के लाने रात भर जागीं, बा के आने के बादयी तुमने खाना खावा, हमेसा ऐसई साथ निभाओ एक दूसरन को, जुग जुग जियो मोर बिटिया, केहू की नजर ना लगे" और ऐसा कहते हुये उन्होने मेरे कान के पीछे छोटी सी काजल की बिंदी लगा दी और मुझे इक्यावन रुपय दिये.... उस जमाने के इक्यावन रुपय आज के पांच सौ एक के बराबर थे.... 

अपनी बाते बताते बताते बबिता अपने अतीत की यादो मे जैसे खो सी गयीं.... और मैत्री भी बड़ी मगन सी होकर खुश होते हुये बबिता की बाते सुन रही थी कि तभी बबिता ने प्यार से मुस्कुराते हुये मैत्री के सिर पर हाथ फेरा और बोलीं- बेटा डरा मत करो तुम... तुम्हारे इस घर मे बेवजह कोई किसी पर गुस्सा नही करता.... बेवजह तो क्या कोई गुस्सा ही नही करता.... मै ही कभी कभी तुम्हारे पापा जी पर गुस्सा कर देती हूं पर वो बेचारे कुछ नही कहते और उसकी वजह भी मेरी सासू मां ही थीं... शादी के तीसरे या चौथे दिन ही उन्होने इनसे कहा था कि "देखो बिजय चाहे कछु होय जाय हमायी बहुरिया पर कबहूं गुस्सा ना करियो.. तुम्हे कसम है हमायी".... और इन्होने वैसे भी कभी मेरे ऊपर गुस्सा किया ही नही.... तो जब मुझे इतना प्यार, इतना सम्मान मिला इस परिवार मे.... एक बहू नही बल्कि एक बेटी की तरह रखा गया मुझे तो इंसान तो अपने अनुभवो से ही सीखता है ना मैत्री बेटा....इसलिये किसी भी बात पर डरा मत करो.... यहां कोई तुम्हे कुछ नही कहेगा.... और तुम अपनी मम्मी से डरती हो क्या?? 

मैत्री ने धीरे से कहा- नही मम्मी जी.. 

बबिता बोलीं- तो फिर मुझसे क्यो डर लगता है तुम्हे.. मै भी तो तुम्हारी मम्मी ही हूं ना.....

बबिता जिस तरह से मैत्री पर प्यार की बौछार कर रही थीं उसे देखकर मैत्री मन ही मन फूली नही समा रही थी.... उसका मन जैसे गदगद सा किये जा रहा था.... उसे अपने नये परिवार की पुरानी बाते सुनकर... जतिन की दादी की बाते सुनकर बहुत अच्छा लग रहा था.... लेकिन इससे पहले कि वो कुछ बोल पाती... पीछे से आवाज आयी.... 

"और मै पापा जैसा नही... बल्कि मैत्री का पापा हूं... और मुझे नाश्ते की सख्त जरूरत है क्योकि मुझे भूख लग रही है" ये बात सुनने के बाद बबिता और मैत्री ने जब पलट कर दरवाजे की तरफ देखा तो विजय मुस्कुराते हुये रसोई के दरवाजे पर खड़े थे..... जतिन भी उनके साथ ही खड़ा सारी बाते सुन रहा था... जतिन हंसते हुये बोला- आप मैत्री के पापा और आप मैत्री की मम्मी.... आप लोगो ने तो सारे रिश्ते ही बदल दिये... उस हिसाब से तो मेरा और मैत्री का रिश्ता ही बदल गया... 

अपनी बात कहते हुये जतिन हंसने लगा.... जतिन के साथ मैत्री, बबिता और विजय भी हंसने लगे... और हंसते हुये बबिता ने कहा- नही नही ऐसे कैसे रिश्ते बदल गये... हमने तो तुझे जगदीश भाईसाहब और सरोज बहन जी को दान कर दिया है ना..... तेरे बदले मे मैत्री ले ली थी हमने तो.... 

बबिता की बात सुनकर सब लोग हंसने लगे और जहां एक तरफ सुबह उठते ही मैत्री जो सोच रही थी कि देर से उठने की वजह से उसे डांट पड़ेगी... उसके उलट घर का जो खुशनुमा माहौल उसे मिला उसे देखकर मैत्री इतना जादा खुश थी कि उसे समझ ही नही आ रहा था कि वो इन खुशियो के प्रति अपनी भावनायें व्यक्त करे तो कैसे करे.... मैत्री ने जैसा ससुराल कभी अपने लिये सपने मे सोचा था आज वो वैसे ही ससुराल मे रह रही थी.... ये सोचकर मन ही मन मैत्री अपनी किस्मत पर इतराये जा रही थी और बार बार भगवान का धन्यवाद किये जा रही थी..... 

क्रमशः