अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 20 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 20

सागर के जाने के बाद विजय, बबिता और ज्योति के साथ जतिन भी घर के अंदर चला आया, घर मे अंदर आने के बाद सब लोग ड्राइंगरूम मे ही बैठ गये, रात के करीब साढ़े दस बज चुके थे और जहां एक तरफ बबिता और विजय हल्के मूड में थे और ज्योति से बात कर रहे थे वहीं दूसरी तरफ मन मे अजीब सी बेचैनी लिये जतिन अपना मोबाइल हाथ मे पकड़े कभी मोबाइल की तरफ देखता और कभी कुछ बोलने की कोशिश करता लेकिन फिर गहरी सांस खींचकर चुप होके बैठ जाता और मोबाइल देखने लगता..!! वो बार बार घर मे सबसे अपनी बात कहने की कोशिश कर रहा था लेकिन कह नही पा रहा था, इधर जहां एक तरफ ज्योति अपने मम्मी पापा से बात कर तो रही थी लेकिन उसका पूरा ध्यान जतिन की इस बेचैनी भरी गतिविधि पर ही था वहीं दूसरी तरफ कोई और भी था जो जतिन की बेचैनी और उदासी को महसूस कर रहा था और वो थे जतिन के पापा विजय सक्सेना..!!

बहुत देर तक जब उन्होने जतिन को इस तरह बेचैन सा हुये अपनी बात कहने की नाकाम कोशिश करते देखा तो उनसे रहा नही गया और उन्होने जतिन से पूछ ही लिया- जतिन..बेटा क्या बात है? मै काफी देर से नोटिस कर रहा हूं कि तुम कुछ परेशान से हो, क्या बात है बोलो..?

विजय की बात सुनकर गफलत से लहजे मे जतिन ने कहा- नही.. नही पापा ऐसी कोई बात नही है...!!

जतिन की बात सुनकर विजय ने कहा- नही.. कोई बात तो है, ऑफिस मे कुछ हुआ है क्या??

जतिन और विजय की बाते सुनकर बबिता भी बीच मे बोल पड़ीं- क्या हुआ बेटा कोई बात है तो बता दे...

इन तीनो लोगो की बातचीत के बीच ज्योति चुपचाप सबकी बाते सुन रही थी और इंतजार कर रही थी कि शायद जतिन भइया मम्मी पापा के सवालों का सही जवाब दे दें तो मेरी चिंता भी थोड़ी कम हो जाये, ज्योति ये बात सोच ही रही थी कि जतिन ने संकुचाये और दबे हुये से लहजे मे कहा- वोोो.... असल मे, हुआ यूं कि... आज मेरा एक दोस्त है ना लखनऊ का राजेश....

विजय ने कहा- हां वो पाइप बनाने वाली कंपनी का बंदा ना जो घर भी आया था दीपावली पर एक बार मिठाई लेकर....

जतिन ने कहा- हां जी वही...
विजय ने कहा- तो उससे कोई बात हो गयी है क्या...?
जतिन ने कहा- अरे नही नही पापा वो तो बहुत अच्छा इंसान है और मेरा बहुत अच्छा दोस्त भी है...

विजय ने कहा- हां तो फिर क्या बात हो गयी बता ना ठीक से इतना संकोच क्यो कर रहा है बेटा...

जतिन ने कहा- नही पापा संकोच नही कर रहा, असल मे राजेश की एक छोटी बहन है मैत्री उसके पति की म्रत्यु कोरोना की दूसरी लहर मे हो गयी थी, आज वो आया तो उसी के बारे मे बात कर रहा था, असल मे राजेश और उसके घरवाले मैत्री की दूसरी शादी के लिये लड़का देख रहे हैं...

जतिन को बीच मे टोकते हुये बबिता बोलीं- ये तो बहुत अच्छी बात है लेकिन इसमे इतना परेशान होने वाली कौन सी बात है, तू भी उसका साथ दे अच्छा लड़का ढूंढने मे तेरी तो बहुत जान पहचान है...

बबिता की बात का जवाब देते हुये जतिन ने कहा- ह.. हां मम्मी अच्छी बात है किसी की उजड़ी हुयी जिंदगी फिर से बस जाये और फिर किसी लड़की के पति की म्रत्यु हो जाये तो उसमे उस लड़की का तो कोई दोष नही है ना और मैत्री तो सिर्फ अट्ठाइस उन्तीस साल की ही है, इतनी छोटी उम्र मे उसे इतना दुख सहना पड़ा...

इतना बोलते बोलते जतिन चुप हो गया और सिर झुकाकर फिर से मोबाइल देखने लगा, जतिन के होंठ कांप रहे थे... मेन बात बोलने की हिम्मत वो अब भी नही कर पा रहा था कि तभी बबिता ने प्यार से अपना हाथ उसकी पीठ पर रखा और उसकी पीठ सहलाने लगीं... जतिन की पीठ सहलाते हुये उन्होने कहा- मै जानती हूं बेटा तू बहुत सेंसिटिव है, तेरे से किसी का दुख देखा नही जाता लेकिन बेटा कुछ चीजे हम इंसानो के हाथ मे नही होती हैं, यही नियति है और तेरे इस तरह परेशान होने से क्या होगा, परेशान होने से बेहतर है कि तू राजेश का साथ दे उसकी बहन के लिये अच्छा लड़का ढूंढने मे....

बबिता की बात सुनकर जतिन का गला भर आया और भरे गले से संकुचाते हुये उस ने कहा- अ.. असल मे मम्मी, व.. व.. वो राजेश मेरे पास अ... आया था म.. मैत्री का रिश्ता लेकर असल मे वो चाहता है कि मै मैत्री से शादी कर लूं....!!

जतिन की बात सुनकर ड्राइंगरूम मे सन्नाटा सा छा गया, ज्योति, विजय और बबिता तीनो एक दूसरे की तरफ देखने लगे कि तभी जतिन की पीठ सहलाते सहलाते बबिता ने अपना हाथ रोक लिया और कसके अपना हाथ पीछे खींचते हुये बोलीं - ये नही हो सकता.... तेरी शादी श्वेता के साथ तय हो चुकी है और उसी से तेरी शादी होगी, श्वेता बहुत अच्छी लड़की है और फिर ये तेरी पहली शादी है, लड़कियों की कोई कमी नही है कानपुर मे जो हमें तेरी शादी एक विधवा से करनी पड़े, मेरी संवेदनाये और सहानूभूति उस लड़की के साथ हैं पर इससे जादा हम कुछ नही कर सकते वैसे भी ये तेरी पूरी जिंदगी का सवाल है, हम रिस्क नही ले सकते, तू राजेश को मना कर दे साफ साफ....

अपनी मम्मी की बात सुनकर जतिन को एक पल को ऐसा लगा जैसे उसके अंदर कुछ टूट सा रहा हो, उसे ऐसा लगा जैसे कुछ है... कुछ तो है जो उसके हाथ से छूट रहा है, उसके हाथ पैर ढीले से पड़ रहे थे उसे खुद समझ नही आ रहा था कि सिर्फ फोटो देखने भर से वो मैत्री के लिये ये सब क्यो महसूस कर रहा है, वो बहुत जादा एक अजीब सी अंतर्द्वंद की स्थिति मे था जहां वो एक ऐसा युद्ध लड़ रहा था जहां उसकी लड़ाई खुद अपने आप से हो रही थी, जतिन को कुछ समझ नही आ रहा था कि ऐसा आखिर हो क्यो रहा है उसके साथ....!!

इतने तल्ख लहजे मे कही गयी बबिता की इस बात का जवाब देते हुये पहले से परेशान जतिन ने भारी गले से बौखलाते से लहजे मे कहा- ह.. हां... हां मम्मी, म.. मैने... मैने मना कर दिया उसे... मैने कह दिया कि मै अपने मम्मी पापा के खिलाफ़ जाकर कोई निर्णय नही ले सकता, मेरे लिये मेरे परिवार की खुशी मेरी खुद की खुशी से कहीं जादा बढ़कर है, ह.. हां मैने मना कर दिया... मना कर दिया मैने, मना कर दिया मम्मी मैने पहले ही मना कर दिया.... ( अपनी बात कहते कहते भरे गले से, दुख से भर्रायी सी आवाज मे जतिन एकदम से भीख मांगते हुये से लहजे में बोला) मम्मी कुछ हो सकता है क्या..? देख लो अगर कुछ हो सके तो...!!

जतिन सीधे सीधे अपने दिल की बात नही कह पा रहा था इधर बबिता भी जैसे अपनी बात पर अड़ सी गयी थीं और इसी अड़ मे उन्होने जतिन को जवाब देते हुये कहा- नही जतिन कुछ नही हो सकता और अब इस बारे मे मुझे कोई बात नही करनी, तू भी अपने दिमाग से राजेश की बहन की बात निकाल दे, तेरी शादी श्वेता से ही होगी... बस!!

बबिता की तरफ से जतिन को जब निराशा ही हाथ लगी तो उसने भी इस मुद्दे पर जादा बहस करना ठीक नही समझा और दो मिनट चुप रहने के बाद अपने को संभालते हुये उसने कहा- ठीक है मम्मी जैसा आप चाहती हैं वैसा ही होगा, मै श्वेता से ही शादी करूंगा...

इतना कहकर जतिन अपनी जगह से उठा और बबिता का माथा चूमकर चुपचाप सिर झुकाये अपने कमरे मे चला गया, जतिन के अपने कमरे मे जाने के बाद बहुत देर से चुप बैठकर जतिन और बबिता की बात सुन रहे विजय..बबिता से बोले - सत्रह साल की उम्र मे मेरे बेटे ने मेरी जिम्मेदारियो को आधा कर दिया था, कभी भी उसने हमसे अपने लिये कुछ नही मांगा..इतनी मेहनत करी और ना सिर्फ अपने लिये बल्कि हमारे लिये भी एक अच्छा और सुखी जीवन बनाया, ज्योति की शादी भी इतनी शानदार करी कि सब तारीफ कर रहे थे, आज पहली बार... पहली बार वो अपने लिये कुछ कह रहा था... कम से कम उसकी पूरी बात तो सुन लेतीं एकदम से तुमने मना कर दिया...

विजय की थोड़े गुस्से से की गयी इस बात को सुनकर बबिता को भी गुस्सा आ गया और झुंझुलाते हुये वो बोलीं - मै मां हूं उसकी नौ महीने पेट मे पाला है मैने उसे... उसके लिये क्या सही है और क्या गलत है अच्छे से जानती हूं मै, जतिन की शादी एक विधवा से नही होगी तो नही होगी और आप दोनो भी सुन लो कान खोलकर मै जतिन की शादी राजेश की बहन से किसी कीमत पर नही होने दूंगी, सब अच्छा खासा चल रहा था ये बीच मे राजेश की बहन पता नही कहां से आ गयी....

गुस्से मे अपनी बात बोलकर बबिता पैर पटकते हुये अपने कमरे मे चली गयीं इधर ज्योति अभी भी चुप थी लेकिन इन सारी बातो को सुनने के बाद वो अपनी जगह से उठी और जतिन के कमरे की तरफ जाने लगी.....

क्रमशः