अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 67 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 67

रसोई मे हुये इस हंसी मजाक के बीच सब साथ मिलकर नाश्ता करने बैठ गये.... जतिन और मैत्री आमने सामने बैठे थे.... जहां एक तरफ मैत्री सुबह सुबह के इस खुशनुमा माहौल को देखकर बेहद खुश थी... वहीं जतिन मैत्री को खुश देखकर एक अलग ही फीलिंग लिये उसके सामने बैठा सबसे नजरें चुराते हुये बार बार उसे ही देख रहा था.... इधर मैत्री के दिल मे भी जतिन के लिये प्यार जैसे उमड़ सा रहा था... वो भी नजरें इधर उधर घुमाते हुये जतिन को ही बार बार देखे जा रही थी.... जब जतिन मैत्री की तरफ देखता तो मैत्री की नजरें झुकी हुयी होतीं और जब मैत्री जतिन की तरफ प्यार भरी नजरो से देखती तो जतिन की नजरें झुकी हुयी होती थीं.... कि तभी कुछ ऐसा हुआ कि मैत्री और जतिन दोनो की नजरें टकरा गयीं.... जतिन से नजरें टकराते ही मैत्री ने शर्मा कर अपनी नजरें झुका लीं और धीरे धीरे मुस्कुराने लगी.... जतिन नाश्ता करता जा रहा था और मुस्कुराते हुये अपनी मैत्री की तरफ प्यार भरी नजरों से देखे जा रहा था....  जिस पल से दोनो की नजरें मिली थीं उस पल से एक अजीब सी बेचैनी थी जतिन और मैत्री दोनो के दिलो मे... इसके बाद जैसे ही सबने नाश्ता खत्म कर लिया वैसे ही मैत्री ने सबके बर्तन उठाने शुरू कर दिये.... ये देखकर विजय बोले- मैत्री बेटा बर्तन जादा हैं  सारे बर्तन मत ले जाओ.... थोड़े जतिन ले आयेगा.... वरना गिर भी सकते हैं ना.... 

अपने पापा विजय की बात सुनकर जतिन तपाक से बोला- ह.. हां पापा मै ले जाता हूं ना बाकि बर्तन... 

इसके बाद मैत्री ने कुछ बर्तन उठाये और रसोई की तरफ चल दी.... बाकि बचे बर्तन जतिन ने उठाये और मैत्री के पीछे पीछे वो भी रसोई की तरफ जाने लगा... जतिन और मैत्री दोनों के रसोई की तरफ जाने के बाद विजय ने मुस्कुराते हुये बबिता की तरफ देखा और बबिता ने हल्की सी हंसी हंसते हुये विजय की तरफ देखा..... बबिता की तरफ देखते हुये विजय ने कहा- देख रही हो बबिता... इन्हे लग रहा था कि हमें कुछ पता नही चला.... 

बबिता ने टौंट मारने के लहजे मे विजय से कहा- आप भी तो घूरते थे मुझे जब मै शादी करके आयी थी इस घर मे... 

विजय बोले- ओ मैडम घूरता नही था... प्यार से देखता था.... 
बबिता सिर हिलाकर हल्का सा हंसते हुये बोलीं- हां हां बड़ी प्यार भरी नजरें आपकी... बस करिये बुढ़ापे मे ऐसी बाते शोभा नही देती.... 

उधर दूसरी तरफ रसोई की तरफ जाते हुये मैत्री का दिल जोर जोर से धड़क रहा था ये सोचकर कि वो जतिन से क्या बात करेगी.... और जतिन का भी कुछ ऐसा ही हाल था... और वो ये सोच रहा था कि "यार ऐसा तो नही है कि मै और मैत्री पहली बार अकेले एक साथ होंगे... हम एक ही कमरे मे रहते हैं, एक ही बिस्तर पर सोते हैं और कल तो मैने मैत्री को अपने सीने से भी लगाया था जब वो रो रही थी, उसका हाथ भी मै काफी देर तक पकड़ कर बैठा रहा था... फिर ये आज ही क्यो मुझे मैत्री से अकेले मे मिलने पर झेंप सी महसूस हो रही है... "

शादी के बाद से आज पहला ऐसा  मौका था जब जतिन ने मैत्री की नजरो मे अपने लिये प्यार देखा था.... अभी तक मैत्री या तो सहमी हुयी सी रहती थी या झिझकते हुये बात करती थी... जतिन समझ रहा था कि हो ना हो ये कल रात मे जो हुआ उसका ही असर है जो मैत्री के अंदर इतनी सहजता और सुकून दिख रहा है.... 

मैत्री और जतिन दोनो रसोई मे पंहुचे तो बर्तन सिंक मे रखने के बाद मैत्री ने अपनी तरफ देख रहे जतिन की तरफ जब देखा तो शर्म के मारे अपनी पलकें झुका लीं... जतिन की भी समझ मे नही आया कि वो आज क्या बोले.... फिर बड़ी हिम्मत जुटा कर उसने मैत्री से कहा- मैत्री मुझे तुमसे कुछ काम है.... 

ऐसा कहकर मैत्री की तरफ मुस्कुराते हुये देखकर जतिन रसोई से अपने कमरे मे चला गया..... मैत्री शर्माती हुयी सी दो मिनट तक रसोई मे ही संकोचवश खड़ी रही फिर धीरे धीरे ठिठके हुये कदमो से चलकर अपने कमरे मे अंदर चली गयी... मैत्री जब कमरे मे गयी तो उसने देखा कि जतिन मुस्कुराते हुये उसकी तरफ ही देख रहा था बिल्कुल ऐसे जैसे उसे पता था कि मैत्री अभी दरवाजे से अंदर आ जायेगी....   

मैत्री के कमरे के अंदर आने के बाद जतिन ने मुस्कुराते हुये बड़े प्यार से उसके दोनों कंधो पर हाथ रखा और बगल मे ही लगे ड्रेसिंग टेबल के शीशे के सामने मैत्री को घुमाकर खड़ा कर दिया.... और अपनी और मैत्री की सगाई वाली फोटो मैत्री के सामने लाते हुये बड़े प्यार से बोला- एक ये मैत्री है जिसे देख कर साफ पता चल रहा है कि ये डरी, सहमी और दुखी है... और एक ये मैत्री है जो शीशे मे हम दोनो के सामने खड़ी है... मैत्री तुम्हे इन दोनो मे से कौन सी मैत्री अच्छी लगी.... 

जतिन का ये सहज और प्यार भरा अंदाज देखकर मैत्री ने शर्माते हुये हल्की सी हंसी... हंसी और शर्माते हुये शीशे मे अपने अक्स को देखते हुये अपनी प्यारी सी आवाज मे बोली- ये वाली... जो शीशे मे मेरे सामने खड़ी है.... 

मैत्री की बात सुनकर जतिन उसे प्यार से देखते हुये मुस्कुराने लगा.... और बड़े ही प्यार से अपना एक हाथ मैत्री के कंधे से उठाकर उसके सिर पर रखते हुये बोला- हमेशा ऐसे ही खुश रहा करो.... कुछ चेहरे हंसते, खिलखिलाते हुये ही अच्छे लगते हैं.... तुम खुश रहती हो तो मुझे इतना सुकून मिलता है कि मेेरे पास शब्द नही हैं उस सुकून को बयां करने के लिये...तुम्हे खुश देखकर ऐसा लगता है मानो सारी दुनिया जीत ली हो मैने..... लेकिन जब तुम्हारी आंखो मे दुख के आंसू आते हैं तो मुझे बिल्कुल अच्छा नही लगता... ऐसा लगता है कि तुम्हे खुश रखने का जो वादा मैने तुमसे किया था उस वादे को पूरा करने मे मै हार गया..... मुझसे तुम्हारे आंसू सहन नही होते मैत्री.... 

जतिन के इस तरह से आंसुओ की बात करने पर मैत्री समझ गयी कि जतिन रात की बात को लेकर ही उससे ना रोने की बात कर रहा है.... इसके बाद जतिन की तरफ देखकर मुस्कुराते हुये मैत्री ने कहा- आप जैसा कह रहे हैं वैसा ही होगा.... मै अब कभी नही रोउंगी... आपकी हर बात, हर आदेश मेरे सिर आंखो पर नाथ जी... 

मैत्री के नाथ जी बोलने पर जतिन ने मुस्कुराते हुये पूछा- नाथ जी...!! 

मैत्री ने अपनी प्यारी सी आवाज मे जतिन से कहा- हां.. आप नाथ जी ही तो हो मेरे.... नाथ जी मतलब परमेश्वर... परमेश्वर मतलब भगवान होते हैं ना... जैसे भक्त की वेदना को भगवान पूरे इत्मिनान से सुनते हैं, अपने भक्त का साथ देते हैं, उस पर अपने आशीर्वाद की बरसात करते हैं.. फिर भक्त को अच्छा लगने लगता है... ठीक वैसे ही तो आपने मेरी वेदनाओ को आराम से सुना, मुझे सहारा दिया, मुझे संभाला.... तो आप मेरे नाथ जी ही हुये ना.... 

अपनी मैत्री के मुंह से अपने लिये इतनी प्यारी प्यारी बातें सुनकर जतिन भी थोड़ा शर्मा गया... और शर्मा कर अपने होंठो को भींच कर मुस्कुराते हुये बोला- नही मैत्री मै इंसान हूं मुझे इंसान ही रहने दो.... 

मैत्री ने जतिन पर हक जताते हुये कहा- नही देखिये आपने कहा था ना कि मै जो चाहूं वो करूं... कोई मुझे बेवजह टोकेगा नही.... तो आप मेरे नाथ जी ही हो.... और अब से जब तक मेरे शरीर मे जान है और सांसे चल रही हैं.... आपको मै नाथ जी कह कर ही बुलाउंगी..... 

जतिन ने हल्का सा हंसते हुये मैत्री की बात मान ली और मुस्कुरा कर उसका चेहरा अपनी हथेलियो के बीच लाकर बोला- अच्छा ठीक है... जो तुम्हारा मन हो वो बुलाओ... अब खुश?? 

जतिन और मैत्री ऐसे ही एक दूसरे के ऊपर अपने प्यार की खुशबूदार बूंदो की बौछार करते हुये एकटक एक दूसरे को देखते रहे... ऐसा लग रहा था मानो उन दोनो के लिये दुनिया रुक  सी गयी हो... मैत्री आज इतनी खुश थी इतनी खुश थी कि उसे समझ ही नही आ रहा था कि वो और क्या कहे जतिन से... कैसे कहे जतिन से कि वो उससे कितना प्यार करती है... ये मैत्री की भले दूसरी शादी थी लेकिन "प्यार" उसने पहली बार महसूस किया था अपने दिल मे... मैत्री जतिन की तरफ प्यार भरी नजरों से एकटक देखे जा रही थी और मन ही मन सोच रही थी कि "नाथ जी... मै जानती हूं कि आप मुझसे बहुत प्यार करते हैं... प्लीज अपने दिल की बात कह दीजिये.... मै सच मे नही कह पा रही हूं आपसे अपने दिल की बात..." 

ऐसा लग रहा था मानो जतिन और मैत्री एक दूसरे मे समा जाना चाहते थे.... दोनो बेचैन थे.... लेकिन जहां जतिन सुहागरात पर किये गये अपने वादे से बंधा था वहीं मैत्री के मन मे  अपने दिल की बात कहने का भारी संकोच था..... लेकिन एक दूसरे को प्यार से देखते देखते जैसे जिस्मो के सारे बंधन टूटने वाले थे... जतिन और मैत्री दोनो के दिल मे एक दूसरे के लिये प्यार की बेचैनी को इतना बढ़ा दिया था कि दोनो अपनी सुध बुध जैसे खो सी गये थे.. और एक दूसरे को प्यार करने के लिये मदहोश से हुये एक दूसरे की तरफ बढ़ रहे थे... जैसे जैसे जतिन मैत्री के करीब आ रहा था मैत्री की आंखे बंद हो रही थीं... सांसे तेज तेज चलने लगी थीं.... मैत्री के प्यार मे डूबे जतिन ने बड़े ही सहज तरीके से मैत्री का चेहरा ऊपर उठाया.... और उसके होंठो पर अपने प्यार का इजहार रूपी चुंबन करने के लिये जैसे ही आगे बढ़ा... बाहर से आवाज आयी.. "अरे जतिन बेटा देख किसी का फोन आ रहा है" 

जतिन ने जैसे ही अपनी मम्मी बबिता की आवाज सुनी वैसे ही वो बुरी तरह चौंक गया ऐसे जैसे किसी गहरी मदहोशी से जागा हो..... और कांपते हुये से शब्दो मे मैत्री से बोला- म.. म.. मम्मी बुला रहीं... अमम् मै देख कर आता हूं..... 

बबिता की आवाज सुनकर मैत्री भी बुरी तरह झेंप गयी और शर्माते हुये सोचने लगी... "हे भगवान ये कैसी फीलिंग थी जो आज पहली बार मुझे महसूस हुयी.." 

जतिन के कमरे से जाने के बाद शर्म से लाल हुयी मैत्री अपने बालों को कानो के पीछे समेटते हुये शीशे की तरफ घूमी और अपनी लज्जायी हुयी नजरो से उस शीशे मे खुद को देखते हुये बोली- मै आपसे बहुत प्यार करती हूं नाथ जी..... मै  आपकेे बिना एक पल भी नही रह सकती..... प्लीज मुझे अपना बना लीजिये.... 

जो बात जतिन मैत्री के मुंह से सुनना चाहता था वो बात आखिरकार मैत्री के मुंह तक आ ही गयी थी.... लेकिन विडंबना ये थी कि जतिन वहां से जा चुका था.....  

थोड़ी देर बाद मैत्री जब थोड़ा नॉर्मल हो गयी तो जतिन के लिये लंच बनाने रसोई मे चली गयी.... इसके थोड़ी देर बाद जतिन के ऑफिस जाने का भी टाइम हो रहा था तो उस खूबसूरत पल की खुशबू जो अभी थोड़ी देर पहले गुजरा था... अपने दिल मे लिये वो अपने कमरे मे तैयार होने चला गया.... मैत्री ने रसोई से ही जतिन को कमरे मे जाते देख लिया था... और खाना बनाते बनाते वो बार बार अपने कमरे के दरवाजे की तरफ देखे जा रही थी... और सोच रही थी कि "नाथ जी... एक बार दरवाजा खोलकर मेरे सामने आ जाओ बस एक बार"..... इधर जतिन भी कमरे मे ऑफिस जाने के लिये तैयार जरूर हो रहा था पर उसका भी हाल मैत्री जैसा ही था... वो भी दरवाजे के इस तरफ खड़ा होकर यही सोच रहा था कि "काश मेरी मैत्री एक बार सिर्फ एक बार मेरे सामने आ जाये और ऑफिस जाने से पहले मै उसे जी भर कर देख लूं".... जतिन ये सोच ही रहा था कि तभी कमरे का दरवाजा खुला और मैत्री अपने हाथ मे जतिन का लंच बॉक्स वाला बैग लेकर कमरे मे आ गयी....  शर्माती हुयी सी मुस्कुराहट अपने होठो पर लाते हुये मैत्री ने जतिन को उसका लंच बॉक्स देते हुये बड़े प्यार से कहा- अपना ध्यान रखियेगा... और खाना टाइम से खा लीजियेगा..... शाम को मै आपका इंतजार करूंगी... टाइम से घर आ जाइयेगा.... 

वैसे तो बबिता भी जतिन से ऑफिस जाते समय अपना ध्यान रखने के लिये कहती थीं लेकिन आज अपनी प्राणो से प्यारी अर्धांगिनी के मुंह से ये बात सुनकर जतिन को एक अलग ही खुशी मिल रही थी.... इसके बाद मैत्री की बात का जवाब देते हुये जतिन ने कहा- हां.. ध्यान रखुंगा... तुम भी अपना ध्यान रखना मैत्री... ठीक से खाना खाना... मम्मी बता रही थीं कि तुम बहुत कम खाती हो.... ठीक से खाया करो.... और जादा काम मत करना.... दोपहर मे ठीक से आराम कर लेना... 

मैत्री ने जतिन की हां मे हां मिलाते हुये कहा- जी ठीक है.... आपकी हर बात का ध्यान रखुंगी.... 

इसके बाद मुस्कुराते हुये जतिन ऑफिस जाने के लिये अपने कमरे से बाहर आ गया.... बाहर आकर जतिन अपनी मम्मी बबिता और पापा विजय से बोला- अच्छा मम्मी मै आता हूं शाम को... अच्छा पापा जी मै आता हूं शाम को.... 

जतिन के ऑफिस जाने का कहने पर विजय ने कहा- हां बेटा आराम से जाओ और आराम से आना... 

इसके बाद जतिन ऑफिस जाने के लिये घर से निकल तो गया पर उसका मन वहीं अटका हुआ था.... मैत्री के पास... उसका बिल्कुल भी मन नही था आज मैत्री से दूर अपने ऑफिस जाने का... लेकिन वो अपने मम्मी पापा से कहता भी क्या कि वो घर पर क्यो रुका..... जतिन का स्वभाव जो शर्मीला था..... 

जतिन घर के दरवाजे से मेनगेट की तरफ बढ़ तो रहा था लेकिन वो बार बार पीछे मुड़कर घर के दरवाजे की तरफ देख रहा था और सोच रहा था कि "काश मैत्री एक बार दरवाजे तक आ जाये तो ऑफिस जाने से पहले एक बार और उसे देख लूं...." दरवाजे की तरफ देखते देखते जतिन अपनी कार तक पंहुच गया लेकिन मैत्री दरवाजे पर नही आयी.... दरवाजे की तरफ देखते देखते जतिन अपनी कार मे भी बैठ गया पर मैत्री नही आयी..... कार मे बैठकर जतिन ने जैसे ही कार स्टार्ट करी.... और दरवाजे की तरफ देखा तो उसकी खुशी का ठिकाना नही रहा.... ऐसा लगा जैसे हजारो ढोल एक साथ बज गये हों..... जतिन की मैत्री उसे विदा करने दरवाजे पर आ गयी थी....!!! 

दरवाजे पर आकर मैत्री ने अपने प्यारे से होठों पर प्यारी सी मुस्कान लाकर जतिन को बाय बोला तो जतिन ने भी खुश होते हुये मैत्री को बाय का इशारा किया और मैत्री को देखते देखते अपनी कार आगे बढ़ा दी..... 

जतिन के ऑफिस जाने के बाद जतिन के प्यार मे सराबोर मैत्री अपने कमरे मे आ गयी और बिल्कुल वैसे जैसे सावन के महीने की पहली बारिश की खुशबू से मंत्रमुग्ध होकर मोर अपने पंख फैला कर नाचता है वैसे ही मैत्री भी अपनी साड़ी का पल्लू हवा मे लहराते हुये जैसे जतिन के प्यार मे मदहोश सी हुयी झूमे जा रही थी.... और बस "नाथ जी.. मेरे नाथ जी.... मुझे अपना बना लो नाथ जी" कहते हुये जतिन के बारे मे ही सोचे जा रही थी..... 

क्रमश: