अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 32 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 32

जतिन का रोका शुरू करने के लिये राजेश.. जतिन के सामने आकर बैठ गया था चूंकि राजेश और जतिन पहले से ही अच्छे दोस्त थे तो उनके बीच में वो जीजा साले वाला शुरुवाती संकोच नहीं था लेकिन उन दोनों के मन में दोस्ती से अलग इस नये रिश्ते के प्रति संजीदगी जरूर थी...

रोके के लिये आमने सामने बैठने के बाद राजेश ने मजाकिया लहजे में जतिन से कहा- और जीजा जी... कहीं कोई कमी तो नहीं लग रही है सब ठीक है ना...?

राजेश के मुंह से अपने लिये "जीजा जी" शब्द सुनकर जतिन हंसने लगा और उसी मजाकिया लहजे में राजेश से बोला- हां साले साहब सारा इंतजाम बढ़िया है, चिंता की कोई बात नहीं है..

दो पुराने दोस्तों के बीच "जीजा" "साले" शब्द के इस्तेमाल से वहां बैठे सब लोग हंसने लगे... इसके बाद हंसी खुशी के माहौल में रोके का कार्यक्रम शुरू किया गया, राजेश ने पूरे मन से और पूरी संजीदगी से मजाक को भूल कर भगवान से अपनी बहन मैत्री के उज्जवल भविष्य के लिये प्रार्थना करते हुये जतिन का टीका किया और शगुन के तौर पर जब उसके हाथ में पांच सौ एक रुपय रखे तो जतिन ने उन पांच सौ रुपयों को थाली में छोड़कर सिर्फ एक रुपया उठा लिया, जतिन को ऐसा करते देख राजेश ने मुस्कुराते हुये उससे कहा- जतिन भाई ये तो शगुन है, ये तो ले लो...

जतिन ने भी अपने चिर परिचित सहज अंदाज में राजेश से कहा- शगुन तो ले लिया और पापा जी ने तो पहले ही कहा था कि हम शगुन के नाम पर एक रुपय से जादा किसी भी रस्म में नही लेंगे और उनकी बात मैं कैसे टाल सकता हूं....

राजेश जानता था कि जतिन स्वाभिमानी है इसलिये इस माहौल में जादा दबाव बनाने का कोई फायदा नहीं है इसलिये जतिन की बात सुनकर हंसते हुये राजेश ने कहा- चलो ठीक है जैसी तुम्हारी मर्जी आखिरकार तुम हमारे जमाता हो और जमाता की बात काटना मतलब स्वयं भगवान शिव की बात की अवहेलना करना होता है तो मैं तुम्हारी बात तो वैसे भी नहीं काट सकता....

राजेश की बात सुनकर जतिन और उसके पास ही बैठीं बबिता और ज्योति भी मुस्कुराने लगे इसके बाद राजेश ने रोके की रस्म को आगे बढ़ाते हुये जतिन को जब पान खिलाया तो जतिन ने उस पान को दांतो से थोड़ा सा काट कर वापस प्लेट पर रख दिया, जतिन को पान प्लेट में रखता हुआ देखकर राजेश की तरफ उसके पास ही बैठी उसकी बहू नेहा ने टांग खींचने के लहजे में जतिन से कहा- अरे भइया जी पूरा पान खाइये ना, हम भी तो देखें कि पान का रंग कैसा लगता है आपके ऊपर....

नेहा की बात सुनकर पास ही बैठी उसकी सास सुनीता ने उसे चुप कराते हुये कहा- शश्श्श्श्... चुप.. नहीं...!!

सुनीता को ऐसा करते देख जतिन की तरफ उसके बगल मे बैठीं बबिता ने उनको टोकते हुये कहा- करने दीजिये बहन जी शादी ब्याह के माहौल में हंसी मजाक तो होता ही रहना चाहिये... (इसके बाद नेहा की तरफ देखकर उन्होंने कहा) कोई बात नहीं बेटा तुम्हारा तो रिश्ता ही मजाक का है जतिन के साथ, आखिरकार सलहज हो उसकी...!!

बबिता की बात सुनकर सरोज ने भी खुश होते हुये कहा- बिल्कुल सही कह रही हैं बहन जी आप, मेरी दोनों बेटियों नेहा और सुरभि ने जी जान लगा कर इतनी मेहनत से सब सजाया है और सारी व्यवस्था करी है, अब हंसी मजाक मस्ती का समय है और वो इनका अधिकार भी है.... (अपनी बात कहते कहते अपनी देवरानी सुनीता को देखकर सरोज ने कहा) सुनीता तुम टोको मत...

अपनी जेठानी की बात सुनकर सुनीता भी हंसने लगी और "अच्छा ठीक है नही टोकुंगी" कहकर रोके का कार्यक्रम देखने लगीं....

हंसी मजाक के बीच राजेश और जतिन ने खड़े होकर एक दूसरे को माला पहना कर बड़े ही हर्ष के साथ एक दूसरे को गले लगाया और पूरी गर्मजोशी से एक दूसरे से हाथ मिलाकर एक दूसरे को मिठाई खिलाने के बाद रोके की रस्म को पूरा कर लिया, इसके बाद राजेश, सुनील और उनकी बहुओं ने मिलकर जतिन और उसके परिवार को हल्का फुल्का नाश्ता करवा दिया...!!

नाश्ते के बाद हंसी मजाक के बीच बारी आयी उस पल की जिसके बारे में सोच सोचकर जहां एक तरफ मैत्री परेशान हो रही थी वहीं दूसरी तरफ जतिन के मन में इस नये सफर की शुरुवात को लेकर एक बहुत सुखद बेचैनी हो रही थी और वो पल था मैत्री और जतिन की सगाई का..!!

जहां एक तरफ बाहर ड्राइंगरूम में बैठे सारे लोग हंसी मजाक कर रहे थे वहीं दूसरी तरफ अपने कमरे में बेमन से सजी धजी बैठी मैत्री का मन बहुत भारी हो रहा था.... नियति के खेल ने जिस तरह से पासे फेंक कर उसके जीवन से सारे चटख रंगो को छीनकर उसके भाग्य में जो सफेद रंग भर दिया था उसके बाद नेहा द्वारा किया गया मेकअप और श्रंगार के नाम पर पहनायी गयी रंगीन साड़ी उसे उसके शरीर पर उसे जैसे कांटो की तरह चुभ रहे थे, रवि के जाने के बाद जिस तरह से उसके ससुराल वालों ने उसके लिये "हरामखोर, कुल्टा, कुलक्षणी, मनहूस, डायन, मेरे बेटे को खा गयी" जैसे शब्दों का इस्तेमाल करके उसे घर से धक्के मारकर निकाल दिया था... वो शब्द कहीं ना कहीं अभी भी मैत्री के कानों मे कांटे की तरह चुभते थे और आज जब दुबारा से उसके जीवन में वही सारी चीजें हो रही थीं तो वही सारी बातें , वही सारे द्रश्य जैसे उसकी आंखो के सामने घूमे जा रहे थे!!

दिक्कत एक ये भी थी कि मैत्री अपना दिल खोलकर दिखाये भी तो किसे? जब जब वो अपने दिल के जख्मों से भरी बातें किसी से बताने की कोशिश करती थी तब तब सब उल्टा उसे ही समझाने लगते थे और जो हो रहा है उसे स्वीकार करने के लिये बाध्य कर देते थे, हालांकि मैत्री समझदार थी... समझती थी कि उसके परिवार वाले जो कर रहे हैं वो उसके भले के लिये ही कर रहे हैं पर उसके भी तो कुछ अनुभव थे "शादी" नाम के इस रिश्ते को लेकर और जो ना सिर्फ बहुत कड़वे थे बल्कि ऐसे थे जो उसके दिल पर इतने गहरे घाव की तरह थे जो लाख कोशिशों के बाद भी भर ही नहीं पा रहे थे, वो बेचारी भी तो किसी के कंधे पर सिर रखके खुलकर रोना चाहती थी, वो भी तो चाहती थी कि वो शुरू से लेकर आखरी तक की सारे बातें किसी के सामने खोल कर रखे और बदले में उसे वो सांत्वना मिले, वो साथ मिले जो अभी तक नहीं मिला था, मैत्री की खुद की भी तो एक मनस्थिति थी जो ना तो वो किसी को समझा पा रही थी और ना ही कोई समझने को तैयार था...

यही सारी बातें अपने मन में लिये मैत्री का सिर भारी हो चला था, उसके आंसू जैसे उसके गले में अटक कर रह गये थे और उसके गले को बहुत भारी कर रहे थे लेकिन अब वो किसी से कुछ कहना भी नहीं चाहती थी क्योंकि वो जानती थी कि वो कहेगी तो सुनेगा कौन इसलिये भारी मन से अपने कमरे में बैठी मैत्री बाहर ड्राइंगरूम में सगाई के लिये जाने का इंतजार कर रही थी....

क्रमश:

गले में रोके हुये अपने आंसुओं को कितनी देर तक रोक पायेगी मैत्री? जानने के लिये पढ़ते रहें जतिन के निश्छल प्रेम से ओतप्रोत एक बेहद प्यारी और सीधे दिल में उतर जाने वाली प्रेम कहानी...