अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 33 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 33

अपने कमरे में बैठी मैत्री सगाई की रस्म के लिये ड्राइंगरूम में जाने का इंतजार कर ही रही थी कि तभी उसके कमरे में उसकी दोनो भाभियां नेहा और सुरभि उसे लेने के लिये आ गयीं, अपनी तकलीफ को अपने दिल में दबाये हुये मैत्री थोड़ी खिसियायी हुयी सी थी, नेहा ने कमरे में आने के बाद जब उसे देखा तो वो समझ गयी कि मैत्री का मन थोड़ा व्यथित सा है इसलिये मैत्री के चेहरे के भाव देखकर नेहा ने उससे पूछा - दीदी आप ठीक तो हो ना?

मैत्री जो पहले से ही बहुत परेशान थी.. नेहा के सवाल का जवाब देते हुये थोड़े रूखे अंदाज मे बोली- हां भाभी मैं बिल्कुल ठीक हूं, चलिये...

अपनी बात कहकर थोड़ी सी खिसियायी हुयी, थोड़ी सी व्यथित और थोड़ी सी चिढ़ी हुयी मैत्री तेज तेज कदमों से अपने कमरे के बाहर जाने लगी, उसे ऐसे अपने कमरे से बाहर जाते देखकर नेहा फिर कुछ नहीं बोली और सुरभि के साथ मैत्री को लेकर ड्राइंगरूम की तरफ जाने लगी...

भले मैत्री व्यथित थी, भले उसका मन तकलीफ में था लेकिन संस्कारो और सभ्यता की मिसाल मैत्री ने ड्राइंगरूम मे पंहुचने के बाद एक फीकी मुस्कान अपने चेहरे पर लेकर ड्राइंगरूम में सबके साथ बैठकर सबके साथ बातें कर रहे बबिता और विजय को देखकर बहुत ही सम्मानजनक तरीके से सिर झुकाकर नमस्ते करी तो वहीं पास में बैठी ज्योति ने मैत्री को देखकर बड़े ही खुश होते हुये कहा- हाय भाभी...

ज्योति की आवाज सुनकर मैत्री भी थोड़ी खुश हो गयी और बड़े ही हर्षित तरीके से धीरे से अपने हाथ को हाय के लहजे मे हिलाकर उसको हाय कर दिया... इसके बाद ज्योति अपनी जगह से उठकर मैत्री के पास आयी और उसका हाथ पकड़कर बोली- भाभी आप बहुत क्यूट लग रही हैं...

ज्योति की तारीफ सुनकर मैत्री थोड़ा सा झेंपते हुये बहुत धीमी सी आवाज मे उससे "थैंक्यू दीदी" बोली और इसके बाद ज्योति ने मैत्री का हाथ पकड़े पकड़े उसे ड्राइंगरूम में पड़े उस सोफे पर बैठा दिया जहां जतिन पहले से ही बैठा था और जहां सगाई की रस्म होनी थी...

शर्म और झिझक के चलते जतिन मैत्री की तरफ नजर भर कर तो नहीं देख पा रहा था लेकिन उसने इधर उधर देखने के बहाने से नजर घुमा कर मैत्री को दो तीन बार देख लिया था, मैत्री को देखकर जतिन के दिल की धड़कनें बहुत तेज चलने लगी थीं, हमेशा अपने काम में लगे रहे और लड़कियों की तरफ कभी दोस्ती या पटाने की मंशा ना रखने वाले जतिन के बगल में जब उसकी होने वाली अर्धांगिनी मैत्री आकर बैठी तो उसे एक बहुत सुखद और एक अजीब सी फीलिंग महसूस हो रही थी, जतिन को भी मैत्री बहुत प्यारी लग रही थी लेकिन वो इस बात को जाहिर नहीं कर पा रहा था, असल में मैत्री की भावनाओं का सम्मान करते हुये उसकी दोनों भाभियों ने उसका बहुत साधारण मेकअप किया था... मेकअप के नाम पर माथे पर लगी एक लाल रंग की छोटी सी बिंदी थी और बाल अच्छे से संवारे हुये थे, मैत्री ने बहुत ही सिंपल पिंक और क्रीम रंग का लहंगा पहना हुआ था, वो वैसे ही इतनी सुंदर थी कि इस हल्के से मेकअप में भी वो बहुत खूबसूरत लग रही थी...

मैत्री के सोफे पर बैठने के बाद सरोज पूजा की थाली लेकर आयीं और उन्होंने उस थाली में रखे दिये से अपने जमाता जतिन की आरती उतारकर उसके माथे पर टीका चावल लगा दिया उसके बाद मैत्री की उंगली के नाप वाली अंगूठी उसको दे दी, उधर बबिता ने भी मैत्री के रोली से छोटी सी बिंदी लगाकर जतिन के नाप की अंगूठी उसके हाथों में दे दी....

जतिन और मैत्री दोनों घबराये हुये थे... जहां एक तरफ मैत्री संकुचाहट में वो अंगूठी अपने हाथ में लेकर सिर झुकाये बैठी थी वहीं दूसरी तरफ जतिन भी घबराहट और संकोच की वजह से मैत्री को पहनाने वाली अंगूठी अपने हाथ में घुमाये जा रहा था, जतिन को ऐसा करते देखकर मैत्री की छोटी भाभी सुरभि ने मजाकिया लहजे में कहा- भाईया जी खेलना नहीं है अंगूठी से, दीदी को पहनानी है...

सुरभि की बात सुनकर जतिन नर्वस सी हंसी हंसने लगा और सिर झुकाकर बैठ गया.... इसके बाद पास ही खड़ी ज्योति ने जतिन से कहा - भइया भाभी का हाथ पकड़िये और अंगूठी पहनाइये...

मैत्री का हाथ पकड़ने की बात सुनकर जतिन की संकुचाहट और जादा बढ़ गयी और उसे अपनी हथेली और उंगलियों में अजीब सी सिहरन भी महसूस होने लगी थी...

एक तो पहली बार अपनी होने वाली अर्धांगिनी के इतने करीब होने का एहसास और दूसरा आस-पास खड़े सारे लोगों का "सेंटर ऑफ अट्रेक्शन" होना जतिन को पहले ही बहुत अजीब लग रहा था उस पर सबका दबाव बनाकर मैत्री का हाथ थाम कर उसे अंगूठी पहनाने के लिये कहना जतिन को और जादा नर्वस कर रहा था लेकिन उसे अंगूठी तो पहनानी ही थी यही सोचते हुये ज्योति की बात सुनकर संकुचाते हुये जतिन ने अपना हाथ मैत्री के हाथ की तरफ बढ़ाया और बहुत ही धीरे से उसकी वो उंगली जिसमें अंगूठी पहनानी थी सिर्फ वही उंगली अपनी उंगुलियो के ऊपरी हिस्से से हल्की सी पकड़ ली...

जतिन को इस तरह संकुचाते हुये देख उसके बगल में ही खड़ीं बबिता ने उसके कंधे पर जोर की थपकी मारते हुये कहा- बेटा इतना क्यों डर रहा है, ठीक से हाथ पकड़ के अंगूठी पहना ना...

जतिन जो संकुचाहट की वजह से मैत्री की सिर्फ एक उंगली पकड़ रहा था...बबिता की उस थपकी की वजह से उसकी हथेली थोड़ी और आगे बढ़ गयी और एक हल्के से झटके से जतिन की हथेली ने मैत्री की हथेली को थाम लिया...

जतिन के जीवन का ये पहला ऐसा मौका था जब उसने किसी लड़की का हाथ अपने हाथों में लिया था और जो वादा उसने अपने आप से किया था कि वो जिस लड़की से प्यार करेगा उसी से शादी करेगा और सिर्फ उसे ही छुयेगा... वो वादा आज उसने अपने आप से ही पूरा कर दिया था, मैत्री का पहला स्पर्श जतिन को एक अलग ही तरह का सुखद एहसास करा रहा था लेकिन जहां एक तरफ जतिन ने मैत्री की हथेली को पकड़ा हुआ था वहीं दूसरी तरफ मैत्री की उंगलियां अभी भी सीधी और खुली हुयी ही थीं उसने जतिन की हथेली को नहीं थामा था और जतिन की हथेली ना थामने के मैत्री के पास दो कारण थे... एक तो उसकी मनस्थिति जो उसे इस नये रिश्ते को स्वीकार नहीं करने दे रही थी दूसरा वो सब लोगों के बीच जतिन का दिखावे के लिये ही सही पर हाथ थामती भी तो कैसे....

भले मैत्री की मनस्थिति कोई और समझ रहा हो या ना समझ रहा हो लेकिन उसके हाव भावों से कहीं ना कहीं जतिन जैसे उसके मन को पढ़ भी रहा था और समझ भी रहा था, संकोच उसके मन में भी था इसलिये उसने मैत्री की हथेली थामने के कुछ पलों बाद ही बिना देर किये उसे वो अंगूठी पहना दी और तुरंत बहुत आराम से अपना हाथ पीछे कर लिया....

जतिन के मैत्री को अंगूठी पहनाने के बाद वहां खड़े सब लोग ताली बजाने लगे कि तभी ज्योति ने कहा- मेरे भइया ने तो भाभी को अपना बना लिया अब भाभी की बारी है....

ज्योति की बात सुनकर मैत्री सिर झुकाये झुकाये ही झेंपी हुयी सी हंसी हंसने लगी और वो भी हल्के कपकपाते हाथों से जतिन को पहनाने वाली अंगूठी को अपने हाथ में संकोचवश घुमाने लगी, उसे ऐसा करते देख नेहा समझ गयी कि मैत्री संकोच कर रही है, वो मैत्री के कान के पास आयी और धीरे से बड़ी सहजता से उससे बोली- दीदी संकोच मत करिये, जतिन जी को अंगूठी पहनाइये....

नेहा के कहने पर बहुत नर्वस सी हो चुकी मैत्री ने बहुत संकोच करते हुये धीरे धीरे अपना हाथ जतिन के हाथ की तरफ बढ़ाया और बिना उसका हाथ छुये ही उसने वो अंगूठी जतिन को पहना दी और फिर से सिर झुका कर बैठ गयी....

मैत्री के भी अंगूठी पहनाते ही वहां खड़े सब लोग ताली बजाने लगे कि तभी सुरभि ने ज्योति की तरफ देखकर कहा- लीजिये दीदी हमारी मैत्री दीदी ने भी जतिन भाईसाहब को अपना बना लिया...

सुरभि की बात सुनकर ज्योति हंसने लगी कि तभी राजेश और सुनील मोतीचूर के लड्डू का डिब्बा ले आये और बबिता, विजय, सागर और ज्योति का मुंह मीठा कराके वो डिब्बा जतिन की तरफ बढ़ा दिया... जतिन ने उस डिब्बे से एक लड्डू को पकड़ के उसमें से बहुत थोड़ा सा लड्डू तोड़कर खा लिया... उसे ऐसे थोड़ा सा लड्डू खाते देख नेहा जो पूरी तरह से मजाक के मूड में थी जतिन से बोली- क्या भइया जी यहां भी कंजूसी... पान नहीं खाया कोई बात नहीं पर लड्डू तो पूरा खाइये, आप तो कुछ खाते ही नहीं ऐसे तो हमारी दीदी भूखी रह जाया करेंगी...

नेहा की बात सुनकर जतिन हंसने लगा और मजाकिया लहजे में बोला- नहीं नहीं मैत्री को भरपेट भोजन करवाउंगा, चिंता मत करिये...

जतिन की बात सुनकर सब हंसने लगे कि तभी इस हंसी मजाक के बीच बबिता ने सरोज से कहा- बहन जी अगर हो सके तो ज्योति को अंदर कमरे में भिजवा दीजिये किसी के साथ, ये काफी देर से बैठी है यहां... थोड़ा आराम कर लेगी क्योंकि अभी हमें वापस भी जाना है तो उसके लिये काफी हैक्टिक सा हो जायेगा और इसके लिये इतनी थकान ठीक नही है...

बबिता की बात सुनकर सरोज ने कहा- हां हां बहन जी मैं भी सोच तो रही थी लेकिन मैंने सोचा सबके बीच से हंसी मजाक के बीच ज्योति को दूसरे कमरे में भेजना ठीक नही है...

अपनी बात बबिता से कहने के बाद सरोज नेहा से कहने ही जा रही थीं कि ज्योति को अंदर ले जाकर आराम करवा दो कि तभी मैत्री जो पास ही बैठी अपनी होने वाली सास की बात सुन रही थी वो सरोज से बोली- मम्मी मैं ले जाती हूं दीदी को...

इतना कहकर मैत्री अपनी जगह से उठी और ज्योति के पास जाकर मुस्कुराते हुये उसका हाथ पकड़ा और उसे अपने साथ अपने कमरे में ले गयी, बबिता को ये देखकर बहुत अच्छा लगा कि अभी से ही दोनो ननद भौजाई के बीच मे इतना अच्छा तालमेल है....

मैत्री और ज्योति के ड्राइंगरूम से उठकर अंदर कमरे में जाने के बाद जतिन के साथ मजाक करने का मौका ढूंढ रहीं और आज के दिन के भरपूर मजे ले रहीं मैत्री की दोनो भाभियो नेहा और सुरभि ने जतिन से कहा- भाईसाहब आप भी अंदर ज्योति दीदी और मैत्री दीदी के पास चलिये...

जतिन ने संकुचाते हुये कहा- अम्म् पर मैं ... अंदर क्या करूंगा....?

जतिन की ये बात सुनकर नेहा ने मजाकिया लहजे में उससे कहा- भइया जी जैसे ज्योति दीदी हमारी मैत्री दीदी से बात करना चाहती थीं वैसे ही हम दोनों भी आपसे बात करना चाहते हैं, हमें भी मौका दीजिये कुछ सवाल जवाब करने का....

नेहा के हंसते हुये इस बात को कहने के बाद जतिन थोड़ा सकपका सा गया और बबिता की तरफ देखकर बोला- अम्म् मम्मी... मै जाऊं..?

जतिन के इस तरह से बबिता से अंदर जाने की परमीशन लेने पर बबिता हंसने लगीं और बोलीं- ओहो.. मेरा भोला बच्चा, जा ना बेटा अब तेरी शादी हो गयी समझ और अब अपनी बीवी से परमीशन लेने की आदत डाल....

जहां एक तरफ बबिता जतिन से बात कर रही थीं वहीं दूसरी तरफ सरोज.. जतिन के भोलेपन और सहज स्वभाव को देखकर जैसे उस पर निहाल सी हुयी जा रही थीं, जतिन को एकटक प्यार से देखते देखते सरोज ने उससे कहा- जाओ बेटा आराम से अंदर जाकर बैठो ( इसके बाद उन्होंने नेहा और सुरभी की तरफ देखकर कहा) जादा तंग मत करना जतिन जी को....

इतना कहकर सरोज हंसने लगीं इसके बाद नेहा और सुरभि जतिन को लेकर अंदर मैत्री के कमरे में चली गयीं..

मैत्री के कमरे में उसका बिस्तर एक सोफा जिसमें दो लोग ही बैठ सकते थे और दो सोफे के साथ वाली कुर्सियां पड़ी थीं, ज्योति बिस्तर के बैक की टेक लेकर अपने पैर फैला कर बैठी थी और मैत्री उसके बगल में ही बैठी उससे बात कर रही थी इधर जैसे ही जतिन.. नेहा और सुरभि के साथ मैत्री के कमरे मे पंहुचा तो उसे देखकर मैत्री सकपका गयी और उसे देखते ही बिस्तर से उठकर खड़ी हो गयी... कमरे मे अंदर आने के बाद नेहा ने जतिन से कहा- भइया जी आप इधर सोफे पर बैठ जाइये....

जतिन से सोफे पर बैठने की बात कहकर नेहा ने मैत्री को भी जतिन के बगल में बैठा दिया और खुद दोनों देवरानी जेठानी पास ही पड़ी कुर्सियों मे जाकर बैठ गयीं.... इसके बाद शैतानी करते हुये नेहा ने जतिन से कहा- भइया जी मैं आपसे एक बात पूछना चाहती हूं...

जतिन ने कहा- हां जी पूछिये...
नेहा ने कहा- आप प्रॉमिस करो कि आप बुरा नही मानोगे...

जतिन हंसते हुये बोला- आपको शायद याद नहीं है लेकिन मेरा और आपका दो तरफ से मजाक का रिश्ता है... एक तो आप राजेश की वाइफ हैं उस लिहाज से आप मेरी भाभी हुयीं और देवर भाभी का मजाक तो जगजाहिर है... दूसरा आप मैत्री के भाई की वाइफ हैं यानि मेरी सलहज और ये रिश्ता भी मजाक का ही है, तो बुरा तो मैं वैसे भी नहीं मान सकता....

जब से नेहा, सुरभि और मैत्री ने जतिन को देखा था तब से ये पहला ऐसा मौका था जब जतिन ने एक साथ इतनी सारी बात करी थी वो भी इतने मजाकिया अंदाज मे... जतिन की बात सुनकर नेहा, सुरभि और पास ही बैठी ज्योति तो हंसने ही लगे थे पर सकपकाई सी जतिन के बगल में बैठी मैत्री ने भी अपना सिर झुकाया और हल्का सा हंसने लगी, असल में जतिन का स्वभाव भी चंचल और मजाकिया था लेकिन शादी की हिचकिचाहट में वो कुछ बोल नहीं पा रहा था... लेकिन काफी देर से नेहा के मजाक पर चुपचाप हंस रहे जतिन ने जैसे अपने अंदर के मजाकिया इंसान को समेटा और खुद भी मजाक करने लगा...

जतिन की बात सुनकर नेहा ने कहा- अच्छा ये बताइये कि आप हमारी मैत्री दीदी के लिये क्या कर सकते हैं...

नेहा की बात सुनकर जतिन ने भी मजाकिया लहजे में कहा- अम्म्म्.... मैं सब कुछ कर सकता हूं ट्रेन से छलांग लगा सकता हूं, बस से कूद सकता हूं,लेकिन..... अगर वो खड़ी हुयी है... तो!!

जतिन की बात सुनकर हंसते हुये नेहा ने कहा- ओहोहोहो ये तो कोई भी कर सकता है, हमारी दीदी स्पेशल हैं तो कुछ स्पेशल सा करना चाहिये आपको....

"ऐसा क्या करवाना चाहते हो आप मुझसे" जतिन ने हंसते हुये कहा...

जतिन की बात सुनकर सुरभि बोली- हम्म्म्म्म्... आप अच्छा सा गाना गाओ मैत्री दीदी के लिये....

"हाहा.... मैं और गाना.. हाहा... नहीं नहीं ये मैं नही कर सकता" जतिन ने कहा...

जतिन की बात सुनकर नेहा ने कहा- अरे क्यों इतनी सी तो बात है, गाना सुनाने में कौन सी मेहनत लगनी है...

जतिन ने कहा- नहीं मेहनत तो नहीं लगनी है लेकिन मैं नहीं चाहता कि मेरा गाना सुनकर आप लोगों के कान में दर्द हो जाये...

जतिन के ऐसा कहने पर पास ही बैठी ज्योति ने शरारती अंदाज में धीरे से कहा- भइया बहुत अच्छा गाना गाते हैं...

ज्योति के इस तरह से बीच में बोलने पर जतिन उससे बोला- तू थोड़ी देर चुप नहीं रह सकती... (इसके बाद नेहा और सुरभि की तरफ देखकर जतिन ने हंसते हुये कहा) इसे मैंने अपने साथ अलग से रखा हुआ है अपनी पोल खोलने के लिये.....

नेहा और सुरभि तो पहले से ही जतिन के पीछे पड़े थे कि वो गाना सुनाये ऊपर से ज्योति ने भी सबके सामने कह दिया कि "भइया बहुत अच्छा गाना गाते हैं" तो अब तो कोई सवाल ही नहीं था कि दोनो देवरानी जेठानी जतिन की सुनते... जब उन्होंने जतिन पर काफी दबाव बनाया और जिद करी तो उन्हें ऐसा करते देख सिर झुकाये बैठी सबकी बातें सुन रही मैत्री बहुत धीरे से अपनी महीन सी आवाज में बोली- सुना दीजिये ना...

असल में चुपचाप बैठी मैत्री अपनी दोनों भाभियो और ज्योति का जतिन के साथ हंसी मजाक देख रही थी, भले ही वो कुछ बोल नहीं रही थी लेकिन वो उस पूरे पल का आनंद खूब उठा रही थी और इतनी देर से जिस तरीके से एक अच्छे हंसी मजाक के माहौल में सारी रस्में हो रही थीं उन चीजों में वो जैसे थोड़ी देर के लिये अपना दुख भूल सी गयी थी, उसे जतिन के बात करने का तरीका और सेंस ऑफ ह्यूमर बहुत अच्छा लग रहा था... उसे जतिन और ज्योति दोनों के साथ बहुत सहज महसूस हो रहा था....

नेहा और सुरभि के साथ साथ जब जतिन की होने वाली अर्धांगिनी मैत्री ने भी उससे गाने के लिये कहा तो वो मना नही कर पाया... यही सोचकर जतिन गाना गाने के लिये मान गया और मैत्री की बात सुनकर एकदम से बोला- अब तो गाना ही पड़ेगा लेकिन आप लोगों के कान में अगर दर्द हो जाये तो मुझे दोष मत देना....

जतिन की बात सुनकर नेहा ने कहा- जी ठीक है हमारे कानों की सारी जिम्मेदारी हमारी, अब गाइयेना प्लीज...

जतिन ने कहा- चलिये ठीक है.... (इसके बाद अपना गला खखारते हुये जतिन ने गाना शुरू किया)

बेखुदी... दर्द का आलम तुम मुझे दे दो अपने ग़म
खामोशियां भी दो, परेशानियां भी दो, तन्हाइयां भी दे दो.. दे दोना...!!

जतिन ने बहुत सीरियस गाना गाया था जिसकी पहली ही लाइन सुनकर मैत्री जो पहले से ही दुखी थी... और जादा भावुक हो गयी और जो आंसू उसने किसी तरह से अपनी आंखो मे समेट कर रखे थे उनकी एक बूंद बरबस ही उसकी आंखो से टपक गयी, जतिन ने उसके आंसू को उसकी आंख से टपकते हुये देख लिया था... इसके बाद अपना गाना जारी रखते हुये उसने गाया...

भीगी पलको से चुरा लूंगा नमी, रहने दूंगा ना कहीं कोई कमी....
तुमको दामन ना भिगोने दूंगा.... अब कभी तुमको ना रोने दूंगा....

उलझनें, गम की परछाईं... दे दो मुझे अपनी तन्हाई...
गुमनामियां भी दो, नाकामियां भी दो, वीरानियां भी दे दो... दे दो ना...

जतिन का गाना सुनकर जहां एक तरफ मैत्री सिर झुकाये सुबकने सी लगी थी वहीं थोड़ी देर पहले तक हंसी मजाक कर रही नेहा और सुरभि समेत ज्योति भी बहुत भावुक हो गयी थी, ऐसा लग रहा था मानो जतिन अपने गाने के जरिये मैत्री समेत वहां बैठी उसकी भाभियों को ये यकीन दिलाने की कोशिश कर रहा था कि "अब मैत्री की सारी तकलीफ, सारे दर्द, सारे दुख... सारे आंसू मैं अपने ऊपर ले रहा हूं.... मैं मैत्री के जीवन में खुशियो के इतने रंग भर दूंगा कि उसे ये याद ही नही रहेगा कि उसके जीवन मे ग़मों का एक पूरा का पूरा दौर आया भी था या नहीं.... मै मैत्री को कभी किसी चीज की कमी नहीं रहने दूंगा, मैं इसकी आंखों में कभी गम के आंसू नहीं आने दूंगा!!

क्रमशः