अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 34 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 34

जतिन के इतना संजीदा गाना गाने पर कमरे में जैसे सन्नाटा सा छा गया था, जिस तकलीफ और जिन आंसुओं को मैत्री ने अपनी आंखों में बड़ी मुश्किल से कैद किया था वो लाख कोशिशें करने के बाद भी उसकी काजल लगी आंखों से बरबस ही बाहर आने लगे थे, बिल्कुल शांत हो चुके उस कमरे में मैत्री की सुबकियां मानो गूंज सी रही थीं....!!

जतिन का गाना सुनने के बाद मैत्री की सुबकियों की दर्द भरी आवाज ने नेहा और सुरभि को भी बहुत भावुक कर दिया था, उन दोनों ने जैसे तैसे अपने आंसुओ को अपनी आंखों में बस रोका हुआ था...

कमरे में बैठे सारे लोग भावुक जरूर हो गये थे लेकिन इसलिये नहीं कि जतिन ने गाना गलत गाया था बल्कि इसलिये कि जो गाना जतिन ने गाया था और जिस तरीके से गाया था उसका एक एक हाव भाव और उस गाने का एक एक शब्द सबको ऐसे महसूस हो रहे थे कि मानो जतिन ने मैत्री के जीवन को खुशियों से भरने की जिद पकड़ी ली हो..!! जिस तरीके से मैत्री की तरफ देखकर जतिन एक एक शब्द गा रहा था उस तरीके ने नेहा और सुरभि दोनों के मन में एक द्रढ़ विश्वास सा पैदा कर दिया था कि अब मैत्री को बिल्कुल वैसा हमराज, हमदर्द जीवनसाथी मिला है जो सही मायने में उसको वो सम्मान, वो प्यार दे सकता है जो उसे पहले नहीं मिला और जो उसका अधिकार है....

इन सारी बातों के बीच मैत्री को सुबकते हुये देख ज्योति अपनी जगह से उठी और मैत्री के पास जाकर उसके सिर को बहुत ही प्यार और सम्मान के साथ अपने कंधे से लगाकर बोली- नहीं भाभी ऐसे नहीं रोते हैं ना, अब सब ठीक हो जायेगा और मैं आपको विश्वास दिलाती हूं कि सब कुछ ठीक ही नहीं बल्कि बहुत अच्छा हो जायेगा....

ज्योति से मिले इस सहारे और प्यार भरे शब्दों को सुनकर मैत्री के सब्र का बांध जैसे टूट सा गया था, लाख कोशिश करने के बाद भी उसके दिल पर लगे जख्मों का दर्द जैसे उसकी आंखो से आंसू बनकर बहने लगा था, वो बहुत जादा दुख करके रोने लगी थी!!

हद से जादा भावुक हो चुकी मैत्री खुद को संभाल नहीं पायी और रोते रोते उसके मुंह से निकल गया- मेरी कोई गलती नहीं थी, मैंने किसी के साथ कुछ गलत नहीं किया था....

मैत्री.. ज्योति के गले लगकर रोये जा रही थी, उसके आंसुओ ने उसके पूरे चेहरे को गीला कर दिया था मैत्री को इतना जादा दुख करके रोते देख जतिन का गला भी भर आया था और उसकी आंखो में भी आंसू आ गये थे...

इसके बाद अपने आंसू अपनी एक उंगली से पोंछते हुये जतिन ने कहा- आ.... आई एम सॉरी, मेरा वो गाना गाने का ऐसा कोई गलत मकसद नहीं था, मैं मैत्री को तकलीफ नही पंहुचाना चाहता था... (मैत्री की तरफ मुंह करके जतिन ने कहा) मैत्री आई एम रियली वेरी सॉरी...!! मुझे नहीं पता था मेरी गायकी इतनी बेसुरी है कि तुम्हें रोना आ जायेगा...

भारी मन से ही सही लेकिन माहौल को हल्का करने के उद्देश्य के चलते की गयी जतिन की ये बात सुनकर मैत्री रोते रोते रुक गयी और अपनी आंखो में आंसू लिये ही हंसने लगी, सुबकते हुये धीरे धीरे हंसकर वो अपनी महीन सी आवाज में बोली- नहीं.. ऐसी बात नहीं है आप बहुत अच्छा गाते हैं, मैं तो बस ऐसे ही....

मैत्री के आंसू देखकर विचलित हुये जतिन ने इस बार बिना संकुचाते हुये ही मैत्री की तरफ अपना हाथ बढ़ाया और अपनी एक उंगली से उसके आंसू पोंछते हुये उसे मुस्कुराते हुये "रोना नहीं है" का इशारा किया और अपनी जगह से उठकर बाहर ड्राइंगरूम मे चला गया, जतिन के इस तरह से कमरे से बाहर जाने के बाद नेहा ने कहा- लगता है जतिन भइया जी बुरा मान गये...

नेहा की बात सुनकर मैत्री के बगल में ही बैठी ज्योति ने कहा- अरे नहीं नहीं भाभी.. जतिन भइया बुरा नहीं मानते, वो सबके लिये बहुत सेंसिटिव हैं और भाभी को लेकर तो पहले दिन से ही बहुत सेंसिटिव हैं... वो तो भइया यहां बैठे थे इसलिये उनकी सिर्फ आंखे गीली हुयीं कहीं अगर घर पर होते तो पक्का था कि वो भी रोने लगते, वो भले मेहनती हैं और एक बड़े बिज़नेसमैन हैं लेकिन बहुत कच्चे दिल के हैं और उनसे किसी बाहरी शख्स का तो रोना देखा नहीं जाता फिर भाभी तो उनके लिये सब कुछ हैं.... ( अपनी बात कहते कहते मैत्री का चेहरा उठाते हुये ज्योति ने मैत्री से कहा) भाभी... भइया आपसे बहुत प्यार करते हैं, हम अतीत तो नहीं सुधार सकते लेकिन आप भरोसा रखिये भइया और हम सब आपको बहुत खुश रखेंगे, आप प्लीज अपने आंसू पोंछ लीजिये और चलिये बाहर चलते हैं....

ज्योति के कहने पर मैत्री ने अपने आंसू पोंछे उसके बाद नेहा ने उसका मेकअप ठीक किया और ज्योति... मैत्री और उसकी दोनो भाभियो के साथ बाहर ड्राइंगरूम में आ गयी जहां खाना पीना शुरू होने वाला था...

ड्राइंगरूम मे आने के बाद छुपी हुयी नजरों से मैत्री जतिन को ढूंढ रही थी कि तभी उसकी नजर सामने ही अपने भइया राजेश के साथ खड़े जतिन पर पड़ गयी, मैत्री की नज़र जब जतिन पर पड़ी तो उसने देखा कि जतिन पहले से ही उसकी तरफ प्यार भरी नजरों से देख रहा था, जतिन को देखकर सबसे नजर बचाते हुये मैत्री ने धीरे से अपना एक कान पकड़ा और अपने होंठ हिलाते हुये ऐसे इशारा किया जैसे वो जतिन से सॉरी बोल रही हो, मैत्री का इशारा समझते हुये जतिन ने भी बहुत चुपके से एक इशारा किया ऐसे जैसे वो उससे कह रहा हो कि "इट्स ओके, बस तुम खुश रहा करो"

इसके बाद चूंकि खाना बनाने के लिये कैटरिंग वाले को ऑर्डर दिया गया था तो उसकी तरफ से खाना पीना सर्व करने के लिये दो तीन लड़के लगे हुये थे और सिर्फ परिवार के लोग ही वहां थे तो सबने साथ बैठकर ही खाना खाया...

खाना खाने के बाद बहुत ही हर्षित माहौल में मैत्री के परिवार के सभी सदस्यो ने खुशी खुशी जतिन और उसके परिवार को विदा कर दिया, उनके जाने से पहले मैत्री ने बहुत ही समर्पित तरीके से बबिता और विजय के पैर छुये.... मैत्री का ये भाव देखकर बबिता तो जैसे खुशी के मारे उसपर न्योछावर सी हुयी जा रही थीं, उन्होने बड़े प्यार से मैत्री के सिर पर हाथ फेरा और बहुत सारा आशीर्वाद दिया और इसके अलावा घर से जाने से पहले ज्योति अपनी भाभी मैत्री के पास आयी और बहुत प्यार से बोली- अच्छा भाभी अब मैं चलती हूं, हम बहुत जल्द मिलेंगे और भाभी बस कुछ दिनों के लिये आप खुद का अच्छे से ध्यान रख लो फिर तो मेरे भइया और हम सब आपका ध्यान रखने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे और अब.. दुखी नहीं होना है!!

ज्योति ने जिस प्यार और सम्मान भरे तरीके से मैत्री से अपनी बात कही थी मैत्री ने भी बड़े प्यार से उसी तरीके से उससे कहा- दीदी आप बहुत अच्छी हैं और आप जब जाती हैं यहां से तो मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता...

ज्योति बोली- भाभी मुझे भी अच्छा नहीं लगता पर क्या करूं मजबूरी है, बस कुछ दिनों की बात है फिर तो हम आराम से मिला करेंगे, वैसे भी मेरा ससुराल और मायका जादा दूर नहीं है तो जब मन होगा हम मिल लिया करेंगे....

इसके बाद जतिन और बाकी लोग कानपुर के लिये निकल गये थे...

अंधेरा हो चुका था... दिन भर की व्यस्तता ने राजेश, सुनील, नेहा और सुरभि चारों को जैसे थकान में चूर कर दिया था, घर में फैला सारा काम निपटा कर नरेश ने जगदीश प्रसाद और सरोज से जब विदा ली तो सरोज ने नरेश और सुनीता समेत राजेश, सुनील, नेहा और सुरभि सबका टीका किया और एक लिफाफे के साथ सबको कपड़़े गिफ्ट किये, उन्हें ऐसा करते देख नेहा ने कहा- अरे ताई जी इस सब की क्या जरूरत है, हमारे लिये तो आपका आशीर्वाद ही काफी है...

नेहा की बात सुनकर उसको प्यार से दुलारते हुये सरोज ने कहा- बेटा ये मेरा आशीर्वाद ही है और फिर तुम सबके लिये मैं जितना कर दूं उतना कम है तुम लोगो ने पूरी जिम्मेदारी से इतना सब इंतजाम इतने अच्छे से किया है इसलिये बेटा इसे मेरा और अपने ताऊ जी का आशीर्वाद ही समझो और हमेशा खुश रहो....

सरोज ने नेहा से जिस प्यार से अपनी बात कही उसे सुनने के बाद फिर किसी ने कुछ नहीं कहा, इसके बाद नरेश और सुनीता समेत राजेश, सुनील और उनकी दोनों बहुओं नेहा और सुरभि ने सरोज और जगदीश प्रसाद के पैर छुकर उनसे आशीर्वाद लिया और मैत्री को प्यार से दुलार कर उसके आने वाले जीवन के लिये ढेर सारी शुभकामनाएं देकर अपने घर चले गये....


क्रमशः

सगाई का कार्यक्रम तो बहुत अच्छे से निपट गया.. अब शुरू होंगी तैयारियां उस दिन की जिसका जतिन को बेसब्री से इंतजार है, जी हां जतिन और मैत्री की शादी का दिन... बस होने वाली है जतिन और मैत्री की शादी तो शादी अटैंड किये बिना कहीं जाइयेगा नहीं...