अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 31 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 31

जतिन और उसके परिवार के लखनऊ से लौटने के बाद उसी दिन शाम को सरोज ने बबिता को सगाई के संबंध मे़ की गयी सारी प्लानिंग के बारे में बता दिया जिसपर जतिन और उसके परिवार ने भी सहमति दे दी थी इसके बाद दोनों ही घरों में एक हफ्ते के बाद होने वाली जतिन और मैत्री की सगाई की तैयारियां शुरू हो गयीं!!

जहां एक तरफ जतिन के घर में सब लोग मैत्री के लिये अच्छी से अच्छी चीजें खरीद रहे थे वहीं दूसरी तरफ मैत्री के घरवाले भी जतिन और उसके परिवार के लिये कुछ भी खरीदने में कोई कमी नहं छोड़ रहे थे....

लेकिन कहते हैं ना कि "फर्स्ट इंप्रेशन इज़ द लास्ट इंप्रेशन!!" शायद यही वजह थी कि अपनी पहली शादी में मिली तकलीफों की छाप मैत्री के दिल में इस कदर घर कर चुकी थी कि वो चाहते हुये भी उन सब चीजों को भूलकर अपने नये जीवनसाथी के साथ एक नये सफर पर आगे नहीं बढ़ पा रही थी इसीलिये अपने घरवालों की सगाई के लिये करी जा रही इन सब तैयारियों से दूर जहां एक तरफ मैत्री असहजता के बंधन मे बंधी बेमन से उस बहाव में बहे जा रही थी जिस बहाव में परिस्थितियां उसे बहाये ले जा रही थीं वहीं दूसरी तरफ अपनी होने वाली अर्धांगिनी मैत्री से पहली बार मिलने के बाद से जतिन एक अलग ही दुनिया में खोया हुआ बस उसके बारे में ही सोचकर अपने आने वाले भविष्य के बहुत खूबसूरत सपने संजो रहा था, जतिन जो पहले दिन से मैत्री के साथ एक अलग ही लगाव महसूस कर रहा था... उससे मिलने के बाद से उसके दिल में मैत्री के लिये प्यार की लहरें जैसे हिलोरें मारने लगी थीं...

इधर सागर ने भी ज्योति को शादी होने तक अपने मायके में ही रहने के लिये कह दिया था... वजह थी शादी की तैयारियों में बार बार ज्योति को इस घर से उस घर लेकर आना उसके और उसके बच्चे की सेहत के लिये ठीक नहीं था और सागर समेत उसके घरवाले और इधर जतिन और उसके मम्मी पापा सब लोग कोई रिस्क नहीं लेना चाहते थे...


दोनो परिवारों मे सगाई की सारी तैयारियाँ पूरी हो चुकी थीं, सगाई की तैयारियो में व्यस्त दोनों ही परिवारों के लिये ये एक हफ्ता कब बीत गया... किसी को पता ही नही चला|

=======दिन रविवार यानि सगाई का दिन=======

सगाई का दिन था इसलिये सुबह से ही मैत्री के परिवार के सारे लोग जतिन और उसके परिवार के स्वागत की तैयारियों मे जोर शोर से लगे हुये थे, सबकी यही कोशिश थी कि कहीं किसी तरह की कोई कमी ना रह जाये, इन सब लोगो की तैयारियो के बीच मैत्री परेशान सी घबराई हुयी सी अपने कमरे में बैठकर यही सोचने मे लगी थी कि वो कैसे इन सारी चीजों को स्वीकार करे? क्या प्रतिक्रिया दे? कैसे अपने आप को खुश दिखाये कि तभी राजेश की बहू नेहा उसके पास आयी और बोली- दीदी... आप ठीक हो...?
मैत्री ने बुझे बुझे तरीके से कहा- हम्म्.. जी भाभी मैं ठीक हूं...

मैत्री को ऐसे बुझे बुझे तरीके से अपनी बात बोलते देख नेहा समझ गयी कि वो थोड़ी घबराई हुयी है इसलिये उसका हौंसला बढाते हुये नेहा ने बड़े ही प्यार से उसके गालों पर हाथ फेरते हुये कहा- दीदी मुझे जतिन जी और उनकी फैमिली की तरफ से बहुत पॉजिटिव वाइब्स आती हैं, उन सबके बात करने का तरीका और उनकी मुस्कुराहट बिल्कुल प्योर लगती है.. कहीं कोई दिखावा या बनावट नहीं दिखती आप विश्वास मानिये अब आपके जीवन में वो सारी खुशियां आने वाली हैं जो आप डिज़र्व करती हैं!!

अपनी बात कहतो हुये नेहा ने मैत्री को प्यार से अपने गले से लगा लिया और अपनी बात को आगे बढ़ाते हुये वो बोली- अभी जतिन जी से आपके भइया की बात हुयी है, वो लोग कानपुर से निकल रहे हैं दो से तीन घंटे मे वो लोग यहां आ जायेंगे तब तक चलिये पार्लर होकर आते हैं वरना देर हो जायेगी...

पार्लर जाकर फिर से दुल्हन की तरह सजने की बात सुनकर मैत्री ने कहा- भाभी कितना अजीब है ना मुझ जैसी कलंकित लड़की के लिये जिसकी मांग का सिंदूर नियति ने खुद अपने हाथों से पोंछ दिया हो... वो फिर से यही सब करे...

मैत्री की बात सुनकर नेहा ने कहा- दीदी आप प्लीज ऐसा मत सोचा करो क्योंकि जो हो चुका है उसपर हमारा कोई जोर नहीं है और जो हो रहा है वो भी भगवान की मर्जी से ही हो रहा है, बहुत कम लोग होते हैं इस दुनिया में जिन्हें जिंदगी दुबारा मौका देती है फिर से जीने का और आप उन्हीं लोगों में से एक हो इसलिये पिछली सारी बातें भूलने की कोशिश करिये और बस इतना याद रखिये कि भगवान जो करते हैं हमारे भले के लिये करते हैं... भगवान पर भरोसा रखिये बाकि सारी बातें उन पर ही छोड़ दीजिये चलिये पार्लर चलते हैं वरना देर हो जायेगी...

नेहा की बात मानते हुये मैत्री ने कहा- भाभी जो कुछ भी हो रहा है मैं उसका विरोध नहीं कर रही हूं पर मुझे दुबारा से वही सारी चीजें स्वीकार करना थोड़ा मुश्किल सा महसूस होता है, भाभी आप प्लीज मेरी एक सिर्फ एक बात मान लो....

मैत्री की बात सुनकर नेहा ने कहा- क्या बात दीदी...
मैत्री ने कहा- भाभी आप भी तो अच्छा मेकअप कर लेती हैं तो आप ही कर दीजिये, मेरा बिल्कुल मन नहीं है पार्लर जाने का, प्लीज भाभी देखिये मैं सारी बातें स्वीकार कर तो रही हूं ना लेकिन मेरी मनस्थिति भी समझिये ना...

ऐसा बोलते हुये मैत्री थोड़ा खिसियाने सी लगी... उसे ऐसे खिसियाते और अकेला सा महसूस करते देखकर नेहा ने बड़े ही प्यार से उसे अपनी बांहो मे भरकर कहा- आप बिल्कुल परेशान मत हो और आप जैसा चाहती हो वैसा ही होगा, आपका मन नहीं है पार्लर जाने का तो मत जाओ मैं आपको तैयार कर दूंगी ठीक है... (मैत्री का चेहरा उठाते हुये नेहा ने कहा) अब खुश..? चलिये अब थोड़ा सा हंस के दिखाइये...

नेहा के ऐसा कहने पर मैत्री खिसियायी हुयी सी हंसी हंसते हुये बोली- भाभी आप मेरी सच्ची साथी हो मेरे जीवन में आये हर उतार चढ़ाव में आप दोनो ही भाभियों ने मेरा इतना साथ दिया, आई रियली लव यू भाभी..!!

इसके बाद थोड़ी देर तक नेहा... मैत्री को अपने सीने से लगाकर प्यार से दुलारते और ढांढस बंधाते हुये उसके पास ही बैठी रही और जब मैत्री थोड़ी सी सहज हुयी तो नेहा ने कहा- दीदी चलिये अब मैं और सुरभि आपको तैयार कर देते हैं फिर हम भी तैयार हो जायेंगे, तब तक जतिन जी भी आ जायेंगे....

इसके बाद नेहा ने सुरभि को मैत्री के कमरे में बुलाया और दोनो देवरानी जेठानी मैत्री को तैयार करने मे लग गयीं...

इसके थोड़ी ही देर बाद जतिन और उसका परिवार मैत्री के घर आ गये, अपनी कार से उतर कर जैसे ही सारे लोग बाहर आये वैसे ही दरवाजे पर उनके स्वागत में खड़े जगदीश प्रसाद, सरोज... मैत्री के चाचा चाची समेत राजेश और सुनील ने उनका बहुत ही अच्छे तरीके से टीका करके स्वागत किया, जतिन ने आज हल्का आसमानी रंग का कुर्ता और सफेद पजामा पहना हुआ था और आज के आयोजन की खुशी जो उसके चेहरे पर साफ दिख रही थी वो उसके चेहरे पर मानो चार चांद लगा रही थी, ऐसा लग रहा था मानो स्वयं भगवान शिव ने अपनी आभा जतिन पर न्योछावर कर दी हो!! उसके चेहरे में उसके स्वभाव की सहजता का तेज साफ दिख रहा था..

जतिन का स्वागत करते समय जब सरोज उसके टीका लगा रही थीं तब उन्होंने बड़े ही प्यार से बिल्कुल ऐसे जैसे वो अपनी और मैत्री की किस्मत पर इतरा सी रही हों.. वैसे उसके सिर पर आशीर्वाद स्वरूप हाथ फेरा और अपनी आंखो पर लगे काजल को अपनी एक उंगली में लगाकर उसके कान के पीछे लगाते हुये बोलीं- नजर ना लगे किसी की...

जतिन भी मुस्कुराता हुआ बड़ी सहजता से उन्हें ये सब करते देख रहा था और मन ही मन खुश हो रहा था, उसे ये सब बहुत अच्छा लग रहा था इसके बाद बारी बारी करके जतिन के पापा विजय, मम्मी सरोज, ज्योति और ज्योति के पति सागर का उसी हर्ष के साथ सरोज ने टीका लगाकर स्वागत किया और इसके बाद एक दूसरे से बात करते खुशी खुशी सब लोग घर के अंदर चले आये, घर के अंदर आने के बाद नेहा और सुरभि ने भी बहुत ही हर्षित तरीके से सबसे नमस्ते करी और जतिन के मम्मी पापा के पैर छूकर उनसे आशीर्वाद लिया... इसके बाद सुरभि ने ज्योति से कहा- दीदी आप बहुत प्यारी लग रही हैं....

"हां दीदी आप बहुत अच्छी लग रही हैं" नेहा ने भी कहा...

ज्योति ने भी खुश होते हुये जवाब दिया- भाभी आप दोनों भी बहुत प्यारी लग रही हैं...

इन सब बातों और पानी वगैरह पिलाने के बाद सगाई से पहले जतिन के रोके का कार्यक्रम शुरू हो गया....

क्रमशः