अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 44 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 44

जहां एक तरफ मैत्री का मन सुहागरात के नाम पर बहुत घबरा रहा था, वो बहुत असहज महसूस कर रही थी... वही दूसरी तरफ जतिन का मन उस एहसास को महसूस करके बहुत खुश था जो मैत्री के उसके जीवन मे आने पर उसे मिल रहा था.... वैसे तो जतिन हमेशा से एक जिम्मेदार इंसान था और बड़ी जिम्मेदारी के साथ उसने अपने पूरे परिवार को समय से पहले ही संभालना शुरू कर दिया था लेकिन आज उसे अपने कंधो पर मैत्री को लेकर एक अजीब सी ही जिम्मेदारी का एहसास हो रहा था...अपनी अर्धांगिनी  मैत्री के अपने पास होने के एहसास से ही जैसे उसका मन हद से जादा प्रफुल्लित हो रहा था... जतिन बहुत खुश था और इसी खुशी को अपने दिल मे छुपाये जतिन जब अपने कमरे मे गया तो उसने देखा कि सागर ने उसके कमरे को बहुत ही खूबसूरत ढंग से सजाया हुआ है... पूरा कमरा गुलाब के फूलों की खुश्बू से ऐसा महक रहा था मानो जतिन अपने कमरे मे नही स्वर्ग मे आ गया हो.... जतिन के पूरे बिस्तर पर गुलाब के फूल की पंखुड़ियां बिखरी पड़ी थीं... और बिस्तर के चारो तरफ गुलाब के फूलो से बनी लटें लटक रही थीं और इस खूश्बूदार फूलों की सेज के बीचोंबीच लाल रंग की खूबसूरत साड़ी मे घूंघट से अपना मुंह ढके अपने घुटनो पर हाथ रखे बैठी मैत्री उस पूरी सेज की खूबसूरती मे चार चांद लगा रही थी... 

घूंघट से अपना मुंह ढके बिस्तर पर बैठी मैत्री बहुत कांप रही थी वो बहुत जादा असहज थी जतिन के स्पर्श को लेकर लेकिन वो ये समझती थी और बेमन से ही सही वो ये सच स्वीकार कर चुकी थी कि भले ये उसकी दूसरी शादी है लेकिन जतिन की तो पहली शादी है ना... और जतिन के भी तो कुछ अरमान होंगे अपनी पत्नी को लेकर, अपनी पत्नी के साथ  पहली मिलन की रात यानि सुहागरात को लेकर.... मैत्री भले असहज थी, भले उसने अपने दोनो पैरो की उंगलियो को बिस्तर की चादर से घबराहट के मारे जकड़ा हुआ था, भले उसका शरीर ठंडा पड़ रहा था, भले वो असहजता के मारे कांप रही थी लेकिन वो ये निर्णय भी ले चुकी थी कि उसका पति जतिन जो कुछ भी उसके साथ आज करेगा वो उसे करने से नही रोकेगी.... भले वो उसका साथ ना दे जैसा उसे देना चाहिये पर वो उसे कुछ भी करने से नही रोकेगी... वो जानती थी कि जतिन उससे बहुत प्यार करता है और एक पति के रूप मे ये जतिन का अधिकार है कि वो अपनी पहली रात मे अपनी पत्नी के साथ शारीरिक मिलन करे.... मैत्री के मन मे भारी कौतूहल था वो अपने आप को जतिन के साथ मिलन के लिये घूंघट मे आंखे बंद किये अंदर से तैयार कर ही रही थी कि तभी जतिन उसके बिल्कुल पास आकर बैठ गया... जतिन के अपने करीब आने के एहसास से मैत्री का गला सूख गया... जतिन ने मैत्री के पास बैठकर धीरे से उसका घूंघट उठाया.... और प्यार से मैत्री की तरफ देखकर मुस्कुराते हुये उसने अपने हाथ की एक उंगली से मैत्री का चेहरा ऊपर उठाया तो मैत्री की आंखे खुल गयीं और वो भी जतिन को घबरायी और संकुचाई हुयी नजरो से देखकर अपने कपकपाते होंठो से मुस्कुराने लगी.... मैत्री को मुस्कुराते देखकर जतिन को उसपर बहुत प्यार आया और उसने बहुत सहजता से और धीरे से अपना चेहरा आगे बढ़ा कर मैत्री का माथा चूम लिया.... उसके बाद उसके हाथों पर अपना हाथ रख कर उसके एक हाथ को घुमाकर उसकी हथेली को अपनी हथेलियों से पकड़ लिया.... मैत्री जानती थी कि जतिन अपने मिलन के लिये तैयार हो चुका है और इस बात को सोचकर मैत्री का दिल जोर जोर से धड़कने लगा था कि तभी मैत्री के कानों मे जतिन की आवाज आयी... जतिन बोला- मैत्री मै जानता हूं कि ये सब स्वीकार करना तुम्हारे लिये बिल्कुल भी आसान नही था... तुम्हारे लिये तो क्या किसी भी संस्कारी लड़की के लिये आसान नही होता... मै जानता हूं कि कोई भी संस्कारी लड़की कभी ये नही चाहेगी कि उसे अपने जीवन मे दो बार इन सब चीजो से होकर गुजरना पड़े... तुम्हारे जैसी कोई भी संस्कारी लड़की ये नही चाहेगी कि उसके पवित्र शरीर को उसके पति के अलावा कोई दूसरा पुरुष स्पर्श करे भले फिर वो पुरुष उसका दूसरा पति ही क्यो ना हो....  मैत्री मै महसूस करता हूं तुम्हारी मनस्थिति को, मै महसूस करता हूं तुम्हारी वेदना को, मै समझ सकता हूं तुम्हारे पैरो की उंगलियों की अकड़न की वजह, मै समझ सकता हूं तुम्हारे शरीर मे हो रहे इस कंपन की सिहरन को.... मैत्री तुम मेरी जीवनसंगिनी हो, मेरी अर्धांगिनी हो और हमारा रिश्ता कोई एक दो दिन का नही है.. सब कुछ करना आज ही जरूरी नही है.... और सच बोलूं तो बिना तुम्हे समझे बिना तुम्हे जाने मै भी इस मिलन के लिये आगे नही बढ़ना चाहता.... अभी तक मैने  राजेश और तुम्हारे परिवार की कही गयी बातो के हिसाब से तुम्हे जाना था पर अब मै खुद तुमसे तुम्हे जानना चाहता हूं.... मै चाहता हुं कि तुम भी खुद मुझसे मेरे बारे मे जानो, मुझे समझो और तब तुम मुझे अपना बनाओ और मै तुम्हे अपना बनाऊं..... मै जानता हूं मैत्री की शरीर पर लगे जख्मो को दवाइयो से ठीक किया जा सकता है पर दिल, आत्मा, भावनाओ और मन पर लगे घावों को भरने मे समय लगता है... और पहले दिन से ही वो समय मै तुम्हे देने के लिये तैयार था.... मैत्री मै तुम्हारा दर्द अपने दिल पर महसूस करता हूं इसलिये तुम्हे विश्वास दिलाता हूं कि अाज से अभी से तुम्हारी सारी और हर तरह की खुशियो का ध्यान रखुंगा, मै विश्वास दिलाता हूं कि अब तुम्हारे आत्मसम्मान को कभी ठेस नही पंहुचेगी.... मैत्री मै तुम्हे विश्वास दिलाता हूं कि जब तक तुम सच्चे दिल से मुझे एक पति के रूप मे स्वीकार नही कर लेती तब तक हमारे बीच मे पति पत्नी वाले संबंध नही बनेंगे.... मै वादा करता हूं मैत्री की तुम्हारा ये पति ये अर्धांग तुम पर कभी गलत तरीके से जबरदस्ती नही करेगा... (पूरी जिम्मेदारी और संजीदगी से अपनी बात कहते कहते जतिन मुस्कुराने लगा और मुस्कुराते हुये बोला) और मै तब तक भी तुम्हे हाथ नही लगाउंगा जब तक तुम्हारी हथेलियां सच्चे मन से मेरी हथेलियो को थाम नही लेती... 

जतिन के ये बात बोलने के बाद मैत्री ने जब अपने उस हाथ को देखा जिसे जतिन की हथेलियो ने पकड़ा हुआ था तब उसे समझ आया कि उसकी उंगलियां खुली हुयी हैं... मैत्री ने असल मे जतिन का हाथ नही पकड़ा हुआ था..वो घबराहट, डर और असहजता की मनस्थिति मे भूल ही गयी थी कि उसे भी जतिन का हाथ पकड़ना चाहिये था.... जैसे ही मैत्री की नजर अपनी खुली हुयी उंगलियो पर पड़ी वो "ओह्ह" बोली और अपनी उंगलियो से जतिन की हथेलियो को पकड़ लिया.... मैत्री के ऐसा करने पर जतिन मुस्कुराते हुये बोला- ऐसे नही... सही समय आने पर जैसे पकड़ोगी... वैसे!! 

इसके बाद जतिन ने मैत्री से कहा- मैत्री अब तुम आराम करलो... शादी की भागदौड़ और रस्मो के चलते तुम थक गयी होगी... थकान तुम्हारे चेहरे पर साफ दिख रही है... 

जतिन इतने प्यार, सहजता और सौम्यता से अपनी बात कह रहा था कि उसकी हर बात मैत्री के कानो मे जैसे मीठे रस की तरह घुली जा रही थी... मैत्री जतिन के प्यार को अपने दिल मे महसूस कर रही थी लेकिन संकोचवश वो कुछ कह नही पा रही थी वो बस जतिन की बातो को सुने जा रही थी... जतिन जिस तरह से उसकी भावनाओ का सम्मान कर रहा था और उसे मान दे रहा था वो सुनकर मैत्री को मन ही मन बहुत खुशी हो रही थी.... वो जाहिर नही कर पा रही थी लेकिन उसे आज इतने समय बाद अपनी किस्मत पर गर्व हो रहा था कि उसे जतिन जैसा पति मिला जो उसके कहने से पहले ही उसके मन की हर बात समझ लेता है.... मैत्री जतिन से तो कुछ नही कह पा रही थी लेकिन मन ही मन वो उससे वादा कर रही थी कि "आप जो मान, सम्मान, जो प्यार मुझपर बरसा रहे हो मै उसका हमेशा मान रखुंगी... आप जो कहेंगे वो करूंगी बस ये सारी चीजे स्वीकार करने के लिये मुझे थोड़ा समय चाहिये था.. जो आपने मेरी भावनाओ को समझते हुये खुद ही मुझे दे दिया... जिस ईश्वर की पूजा करनी मैने बंद कर दी थी... उन्होने ही आप जैसे अच्छे इंसान से ना सिर्फ मुझे मिलाया बल्कि जीवन भर के लिये आपके निश्छल, निर्मल और सच्चे प्रेम के रस का आस्वादन करने के लिये मझे आपकी अर्धांगिनी बना दिया...मै उसी ईश्वर से वादा करती हूं कि अब कभी उनकी पूजा करनी नही छोडुंगी और पूजा पाठ ना करने का अपना हठ वापस लेती हूं.... मै आपकी खातिर आपकी खुशियो की खातिर फिर से पूजा करना शुरू करूंगी.... मै आपसे वादा करती हूं जतिन जी कि आपकी अर्धांगिनी बस कुछ समय मे ही पूरी तरह से आपकी बन कर सच्चे दिल से आपको मिलेगी... आप महान हैं जतिन जी आप सच मे महान हैं"

क्रमशः