अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 21 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 21

बबिता के गुस्से से पैर पटकते हुये अपने कमरे में जाने के बाद ज्योति भी जतिन के कमरे में जाने लगी लेकिन विजय.. जतिन की चिंता मन मे लिये अपनी जगह पर ही बैठे बैठे बबिता को ऐसे गुस्से से वहां से जाते हुये देखते रह गये... इधर जतिन के कमरे मे जाने के बाद ज्योति ने देखा कि जतिन अपने कमरे मे आ तो गया था लेकिन ना तो वो बिस्तर पर अभी तक लेटा था और ना ही उसने बेड की बैक पर टेक ले रखी थी, वो अपने पैर लटका कर अपना सिर झुकाये अपने बिस्तर पर बैठा हुआ था... ऐसा लग रहा था मानो वो पूरी तरह से बबिता के व्यवहार से हताश सा हो गया था...

ज्योति जो पहले से ही जतिन की चिंता मन मे लिये हुये थी वो जतिन के पास गयी और उसके कंधे पर हाथ रखते हुये बड़े ही सहज और प्यार भरे तरीके से बोली - भइया... क्या हो गया है आपको...?

ज्योति के इस तरह से प्यार भरे लहजे से सवाल करने पर जतिन ने अपना सिर उठाया और खिसियायी हुयी सी मुस्कान अपने चेहरे पर लिये बड़े बुझे बुझे से तरीके से बोला- नही... कोई बात नही हुयी है, सब तो ठीक है...

जतिन के इस तरीके से अपनी बात कहने पर ज्योति ने कहा- नही भइया... ठीक तो कुछ नही है और आपको मै ऐसे अकेले परेशान नही होने दूंगी प्लीज बताइये कि क्या बात है?

ज्योति ने अपनी बात कही और चुप हो गयी और जतिन के कंधे को सहलाते हुये उसके बगल मे बैठ गयी, जतिन ने भी ज्योति की बात का जवाब नही दिया और फिर से अपने सिर को थोड़ा सा झुकाकर बैठ गया, ज्योति जतिन के कंधे पर हाथ सहलाती हुयी उस से बोली- भइया आप मैत्री को पहले से जानते हैं क्या??

ज्योति के इस सवाल को सुनकर जतिन ने अपना सिर उठाया और उसकी तरफ देखकर अपना गला खखारते हुये अपना सिर "ना" मे हिला दिया, जतिन खिसियाया हुआ था उसके फफकते से होंठ उसकी खिसियाहट को साफ साफ दिखा रहे थे, ऐसा लग रहा था कि जतिन अभी रोया कि तभी रोया...

जतिन को ऐसे दुखी लहजे मे "ना" मे सिर हिलाते देख ज्योति ने उससे कहा- भइया फिर ये सब क्यो??
ज्योति के इस सवाल को सुनने के बाद जतिन सामने की तरफ देखने लगा और अपने हाथ की एक उंगली से उसने अपनी आंख धीरे से पोंछी ऐसे जैसे कुछ आंसू जो उसने बड़ी हिम्मत करके अपनी आंखो मे रोके हुये थे वो लाख कोशिशो के बाद भी हल्के से बाहर आ गये थे... जतिन को इस तरह दुखी होते देख ज्योति का मन भी जैसे रोने सा लगा था, ये ज्योति की पूरी जिंदगी का दूसरा ऐसा मौका था जब उसने जतिन को इस तरह कमजोर पड़ते देखा था एक बार तब जब जतिन की टीन की दुकान रात मे आये उस तूफान से उजड़ी थी और दूसरी बार आज और वो भी एक ऐसी लड़की के लिये जिसे जतिन ठीक से जानता भी नही था, ज्योति जानती थी कि उसकी मम्मी बबिता अपनी जगह सही हैं, वो गलत नही हैं लेकिन उसका प्यारा जतिन भइया भी गलत नही हो सकता वो ये भी जानती थी, ये ज्योति के लिये भी बहुत असमंजस की स्थिति थी वो जतिन का साथ देती तो उसकी मम्मी का दिल दुखता और वो अपनी मम्मी का साथ देती तो उसका जतिन भइया टूट जाता, यही सब सोचते सोचते ज्योति ने अपने एक हाथ से जतिन का मुंह अपनी तरफ किया और बड़े प्यार से उसके बालो को सहलाते हुये उस से कहा- भइया आप संयम रखिये और ऐसे परेशान होने के बजाय मुझे ठीक से बताइये कि असल मे पूरी बात क्या है...

ज्योति के इस तरह प्यार से दुलारते हुये अपनी बात कहने पर जतिन उसकी तरफ देखकर मुस्कुराते हुये बोला- इतनी बड़ी कब हो गयी तू छुटकू कि आज अपने बड़े भइया को मां की तरह दुलार रही है...

जतिन की बात सुनकर ज्योति भी मुस्कुराने लगी और बोली- शादी के बाद बहुत सारी जिम्मेदारियां आ जाती हैं सिर पर भइया पहले जैसा कुछ नही रहता, वक्त सबको बड़ा कर देता है भइया और आज मेरे भइया को मेरी जरूरत है... और हां मै तब तक आपको नही सोने दूंगी जब तक आप सच सच मुझे सारी बात नही बता देते हैं...

ज्योति के इस तरह दबाव बना कर सवाल करने पर जतिन ने अपना सिर फिर से झुका लिया और उसके चेहरे पर जो मुस्कुराहट आयी थी वो भी फिर से उदासी मे बदल गयी और अपना सिर झुकाये झुकाये जतिन ने बड़े ही बुझे बुझे और उदास लहजे मे कहा- पता नही ज्योति ऐसा मुझे क्यो हो रहा है जो आज मै मम्मी पापा के इतने महत्वपूर्ण निर्णय के खिलाफ चला गया, पता नही क्यो मैत्री की फोटो देखकर मुझे एकदम से ऐसा लगा जैसे इस दुनिया मे सिर्फ मैत्री ही है जो मुझे पूरा कर सकती है, उसकी एक झलक ने मुझे संपूर्णता का एक अजीब सा एहसास करा दिया, मै आंखे बंद करता हूं तो उसका वो मासूम सा चेहरा मेरी आंखो के सामने नाचने लगता है, मुझे अभी तक ऐसा लग रहा है जैसे उसकी आंखे मुझे कुछ बताना चाहती हैं, ऐसा लगता है कि उसकी निश्छल, निर्मल, बेमन से की गयी मुस्कान लिये उसके होंठ मुझसे कह रहे हों कि "सिर्फ और सिर्फ तुम ही मेरे दर्द को समझ सकते हो" ऐसा लगता है कि उसके मासूमियत लिये होंठ मुझसे कह रहे हों कि "मुझे इस दर्द से, इस तकलीफ से बाहर निकाल लो, मै भी खुश होना चाहती हूं, मै भी सबकी तरह जीना चाहती हूं" पता नही क्यो ज्योति पर ऐसा लग रहा है जैसे मेरा मन मैत्री मे अटक सा गया है, मै चाहकर भी उसके मासूम से चेहरे को अपनी आंखो से बोझल नही कर पा रहा हूं मेरी कुछ समझ नही आ रहा कि मै क्या करूं...

जतिन भरे गले से अपने दिल की सारी बातें ज्योति से किये जा रहा था और ज्योति उसका हाथ अपने दोनो हाथो के बीच मे दबाये एकटक उसकी तरफ देखते हुये बस उसे सुने जा रही थी कि तभी आंखो मे आंसू लिये बेहद भावुक हुआ जतिन.. ज्योति की तरफ देखते हुये बोला- ज्योति कुछ हो सकता है क्या? तू मम्मी को समझा सकती है क्या और फिर अभी मेरी और श्वेता की सिर्फ कुंडली ही तो मिली है बात अभी कौनसा बहुत आगे बढ़ गयी है, ज्योति कुछ कर बेटा.. कम से कम एक बार मै मैत्री से मिलना चाहता हूं, उसे देखना चाहता हूं, उसे समझना चाहता हूं लेकिन मेरी कुछ समझ मे नही आ रहा कि मै क्या करूं...

ये कहते कहते जतिन अपने आंसुओ को जादा देर अपनी आंखो मे रोक नही पाया और उसने ज्योति के दोनो हाथ जिनसे उसने जतिन का हाथ पकड़ा हुआ था... अपने माथे पर लगाये और बहुत दुख करके रोने लगा, जतिन को ऐसे रोते और कमजोर पड़ते देखकर ज्योति भी खिसियाने लगी थी उसकी आंखो से भी आंसू निकलने लगे थे लेकिन अपने को संभालते हुये उसने जतिन को अपनी बांहो मे समेट कर उसका सिर अपने कंधे मे रखते हुये कहा- भइया ऐसे कमजोर मत पड़िये आप तो हम सबकी जिंदगी का वो मजबूत स्तंभ हैं जिसके बिना हम मे से कोई अपने जीवन की कल्पना तक नही कर सकता और आप इस तरह से टूटेंगे तो फिर हमे कौन संभालेगा.... (जतिन का सिर अपने कंधे से उठाकर उसके चेहरे को अपनी दोनो हथेलियों के बीच मे रखते हुये ज्योति ने कहा) भइया कोई और आपके साथ हो ना हो आपकी ये छुटकू आपके साथ है, हम दोनो मिलकर सब ठीक कर देंगे बस अब आप रोगे नही, प्लीज मेरे लिये आप बिल्कुल नहीं रोगे आप प्लीज लेट जाओ और आराम करलो विश्वास मानिये जैसा आप चाहते हैं वैसा ही होगा....

ऐसा कहकर ज्योति अपनी जगह से उठी और जतिन को दोनो बांहो से पकड़कर बिस्तर पर लिटा दिया और उसे पास ही पड़ी चादर ओढ़ाने के बाद दो मिनट उसके बालों मे प्यार से हाथ फेरकर उसके कमरे से बाहर आ गयी...

ज्योति का मन बहुत भारी था और उसी भारी मन से वो जतिन के कमरे से सीधे अपने मम्मी पापा के कमरे मे चली गयी, वहां जाकर उसने देखा कि बिस्तर के एक कोने पर बबिता मुंह फेरे लेटी थीं और दूसरे कोने पर विजय आंख बंद किये लेटे थे, दरवाजा खोलकर ज्योति के कमरे मे आने की आवाज सुनकर विजय उठ गये और उसकी तरफ देखकर बोले- अरे ज्योति बेटा तू अभी तक सोयी नही....!!

विजय का आवाज सुनकर बबिता जो सो नही रही थीं, बस गुस्से मे मुंह फेरे लेटी थीं, वो भी उठ गयीं और ज्योति से बोलीं- क्या हुआ ज्योति कुछ चाहिये था क्या? तू टाइम से सोया कर क्योंकि तेरा इतनी देर तक जगना बच्चे के लिये ठीक नही है...

अपने मम्मी पापा की बातो को जैसे अनसुना सा करती ज्योति उदास लहजे मे अपनी मम्मी बबिता से बोली- मम्मी... पापा ठीक कह रहे थे, आपको भइया की पूरी बात ठीक से सुननी चाहिये थी, उन्होने आजतक हममें से किसी से अपने लिये कुछ नही मांगा... सिर्फ दिया ही है, आज पहली बार भइया अपने लिये कुछ मांग रहे हैं क्या हम उन्हे वो भी नही दे सकते..? ये भइया की जिंदगी है मम्मी तो क्या उन्हे एक मौका नही मिलना चाहिये अपनी भावनायें बताने का और फिर क्या होगा अगर भइया की शादी श्वेता से हो भी जाये जब भइया का दिल किसी और के साथ लग चुका है, क्या ये श्वेता की भावनाओ के साथ खिलवाड़ नही होगा? मम्मी इस दुनिया की कोई औरत ये नही चाहती कि उसका पति रहे तो उसके साथ पर उसका मन किसी और औरत मे अटका रहे और आज जतिन भइया और श्वेता का लिये वही परिस्थितियां बन रही हैं और इस सब मे श्वेता की क्या गलती है जो हम उसको इतना बड़ा धोखा दे दें... एक ऐसा पति दे दें जो उससे प्यार करता ही नही है...!!

ज्योति की बात सुनकर पहले से गुस्से मे तमतमायी बबिता ने कहा- तो मैने कब कहा कि जतिन ने हम सबके लिये कुछ नही किया वो मेरा कुछ नही है क्या? मै उसकी दुश्मन हूं क्या जो तुम लोग मुझे ही समझाये जा रहे हो...!! जब एक जगह रिश्ते की बात अच्छे से चल रही है तो बीच मे दूसरी लड़की क्यो आयी ज्योति तू जादा तरफदारी मत कर जतिन की... तू इतनी समझदार नही हुयी है अभी कि तू मुझे समझाये, जतिन की शादी श्वेता से ही होगी ध्यान रखना.... एक विधवा से मै अपने बेटे की शादी नही होने दूंगी, नही होने दूंगी और किसी भी कीमत पर....

इससे पहले कि इसके आगे बबिता कुछ बोल पातीं ज्योति ने उनका हाथ पकड़ा और अपने गर्भवती पेट पर रखते हुये बोली- मम्मी...अब क्या आपको कसम देनी पड़ेगी क्या इस मासूम की!!!!

ज्योति के ऐसा करने पर अपना हाथ झटके से पीछे खींचते हुये बबिता ने कहा- हे मेरे राम!! ये क्या कर रही है तू... पागल हो गयी है क्या...!!

ज्योति के बबिता के हाथ को इस तरह अपने गर्भवती पेट पर रखने की हरकत से बबिता की आंखो मे आंसू आ गये और वो फफकते हुये रोने लगीं, कमरे मे जैसे बहुत गहरा सन्नाटा सा छा गया था इसके बाद अपनी आंसुओं से भरी आंखों से ज्योति की तरफ देखकर अपने पल्लू से अपने आंसू पोंछते हुये बबिता अपनी जगह से उठीं और चुपचाप अपने आंसू पोंछते हुये जतिन के कमरे की तरफ जाने लगीं, बबिता के अपने भइया जतिन के कमरे मे जाने के कुछ सेकंड्स बाद ज्योति भी अपनी जगह से उठी और धीरे धीरे दबे हुये कदमों से जतिन के कमरे के बाहर जाकर चुपचाप उसके कमरे के दरवाजे के पास ही खड़ी हो गयी, दरवाजे के पास से ज्योति ने देखा कि जतिन के कमरे के अंदर जाने के बाद बबिता ने बड़े प्यार से जतिन के सिर पर हाथ फेरा और उसे आवाज लगाते हुये कहा- जतिन... जतिन....

अपनी मम्मी की आवाज सुनकर जतिन चौंककर उठ गया और उनकी तरफ देखकर बोला- अरे मम्मी आप... इस टाइम...!!

जतिन के उठने पर बबिता उसके सिरहाने बैठ गयीं और उसका सिर अपनी गोद मे रखकर उसके बालो को सहलाते हुये बोलीं- जतिन बेटा... वो तू बता रहा था ना कि तेरे दोस्त राजेश की बहन है और वो उसकी शादी के लिये तुझसे बात करने आया था....

अपनी मम्मी की बात सुनकर जतिन जो पहले से ही इमोशनल था, रुंधे हुये गले से बोला- हम्म्म्!!

"उसे बोल देना कि मेरे मम्मी पापा और बहन उसकी फैमिली से मिलना चाहते हैं, तेरी और उसकी बहन मैत्री के रिश्ते की बात करने के लिये" बबिता ने कहा...

इतना कहकर बबिता ने बड़े ही प्यार से जतिन का सिर अपनी गोद से उतार के तकिये पर रखा और अपनी जगह से उठकर उसके माथे को चूमकर वहां से चली गयीं, अचानक से अपनी मम्मी के मुंह से ये अप्रत्याशित बात सुनकर जतिन जैसे अवाक् सा रह गया और" हां"" ना" कुछ बोल ही नही पाया लेकिन उसकी सारी उलझन अपनी मम्मी की बात सुनकर जैसे एकदम से खत्म हो गयी और उसके बुझे हुये चेहरे पर मुस्कान आ गयी इधर दरवाजे पर खड़ी ज्योति भी अपनी मम्मी की बात सुनकर एक दम से जैसे खिलखिला सी गयी और अपनी मम्मी को जतिन के कमरे से बाहर आते देख चुपचाप दबे हुये कदमो से चलकर अपने उस कमरे मे चली गयी जिसे जतिन ने आज तक ज्योति की शादी के इतने सालो बाद भी बहुत संभालकर रखा हुआ था, उस कमरे मे सिर्फ ज्योति और सागर को रुकने की ही इजाजत थी बाकि किसी भी मेहमान के सामने वो कमरा नही खोला जाता था, अपनी मम्मी की बाते सुनकर ज्योति का मन जैसे समंदर की लहरो की तरह हिलोरे मारने लगा था, वो अपने भइया की खुशी मे बहुत जादा खुश थी... वो कमरे मे भले अकेले थी लेकिन बस खुशी के मारे मुस्कुराये जा रही थी, वो जतिन केे दिल मे मैत्री के लिये जो प्यार पैदा हो गया था उसे अपने दिल मे महसूस कर रही थी, उसे ऐसा लग रहा था मानो उसके दिल मे प्यार ही प्यार भर दिया हो किसी ने और इसी खुशी और हर्षित मन के साथ उसने पास ही पड़ा अपना बड़ा सा टैड्डी उठाया और उसे अपने सीने से लगा के अपने बिस्तर पर लेट गयी, ज्योति को ऐसा लग रहा था मानो उसके कानो मे गाना गूंज रहा हो....

"कितने दूर दूर हों, उन दोनो के रास्ते..
मिल जाते हैं जो बने, इक दूजे के वासते.... इक दूजे के वासते "

क्रमशः

बबिता बेमन से मैत्री के घरवालों से मिलने के लिये मान तो गयीं लेकिन क्या वो इस रिश्ते को कभी स्वीकार कर पायेंगी??