अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 60 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 60

अपने अतीत से जुड़ी हुयी बातो को अपने पति जतिन से बताते हुये मैत्री ने आगे कहा- रवि और बाकी लोगो के जाने के बाद मै और अंकिता घर के अंदर चले आये... अंदर आने के बाद मैने सोचा कि अब तो कहीं जाना नही है तो कपड़े बदल लेती हूं और घर की साड़ी पहन लेती हूं.... ये सोचकर जब मै अपने कमरे मे गयी तो मेरे पीछे पीछे अंकिता भी कमरे मे आ गयी.... तो मैने अंकिता से कहा- दीदी बस दो मिनट का टाइम दे दीजिये मै अभी अपने कपड़े बदल कर आयी... तब तक आप अपने कमरे मे जाकर आराम करलो.... 

मेरे ऐसा कहने के बाद अंकिता ने बड़े गंदे तरीके से दांत किसमिसाते हुये अपना हाथ मेरी कमर मे डाला और अपनी तरफ खींचते हुये बोली- आराम करना किसे है जानेमन... मै तो तुम्हारे साथ खेल खेलना चाहती हूं..... 

मुझे अंकिता का ये व्यवहार बिल्कुल भी ठीक नही लगा..... एक तो वो मुझे इससे पहले "आप" कह कर बुलाती थी और उस समय उसने मुझे "तुम" कहकर बुलाया तो मुझे बहुत अजीब सा लगा ये सब... मैने अपनी जिंदगी मे पहली बार किसी लड़की की आंखो मे एक लड़की के लिये वहशियत देखी थी... मेरी कुछ समझ मे नही आ रहा था कि अंकिता ये कर क्या रही है... और उसके दिमाग मे आखिर चल क्या रहा है.... 

अंकिता की बात सुनकर मैने उससे कहा- ये आप क्या कर रही हो.... आपकी तबियत खराब है ना तो आप प्लीज आराम करलो.... अगर आपकी तबियत जादा बिगड़ गयी तो मम्मी जी मुझे डाटेंगी.... 

मेरे बोलने के बाद अंकिता हंसते हुये और मेरे चेहरे पर उंगली फिराते  हुये बोली- अभी तक नही समझीं मेरी जान.... मेरी तबियत वबियत खराब नही थी.... मुझे तो बस तुम्हारे साथ समय बिताना था इसलिये बहाना बनाया था..... मुझे तुम्हारे इस खूबसूरत जिस्म को अपना बनाना है.... 

अंकिता के इस वाहियात बात के कहने के बाद मैने बहुत कोशिश करी कि मै उसकी पकड़ से छूट जाऊं पर उसकी सेहत मुझसे जादा थी इसलिये मै उसकी पकड़ से अपने आप को छुटा ही नही पा रही थी.... मुझे डर लग रहा था ये सब देखकर मै घबरा रही थी और उसकी पकड़ से आजाद होने के लिये छटपटा रही थी...इसके बाद अचानक उस बत्तमीज लड़की ने मुझे अपनी तरफ और जोर से घसीटते हुये बिस्तर पर धक्का दे दिया..... और मेरे साथ बत्तमीजी करने लगी... मै अभी भी उसकी पकड़ से आजाद नही हो पा रही थी... उस दिन मुझे एहसास हुआ कि मै गलत घर मे आ गयी हूं.... यहां पर रिश्तो का कोई मान नही है..... मै रोने लगी थी ये सोचकर कि इस माहौल मे अपनी पूरी जिंदगी कैसे काटुंगी.... मुझे ऐसा लग रहा था जैसे भगवान ने मेरी शादी इस घर मे करा कर मुझे पिछले जन्म के किसी पाप की बहुत बड़ी सजा दे दी है..... मै रो रही थी और अंकिता बत्तमीजी किये जा रही थी..... कि तभी... डोरबेल बजी... 
और जैसे ही डोरबेल बजी वैसे ही अंकिता ने मुझपर से अपनी पकड़ ढीली करते हुये कहा- ओह्हो अब कौन आ गया... कबाब मे हड्डी... इतना मजा आ रहा था.... 

अंकिता को पता भी नही चला पर जैसे ही उसकी पकड़ ढीली पड़ी मै तुरंत वहां से उठकर भागी और अपनी साड़ी संभालते हुये जब मैने गेट खोला तो देखा कि रवि की मम्मी, रवि की दूसरी बहन और रवि के पापा तीनो बाहर खड़े हैं... मुझे देखकर दांत भींचते हुये रवि की मम्मी ने कहा- इसी की हाय लगी है.... इसीलिये हम भी नही जा पाये घूमने.... 

जबकि मैने सच मे ऐसा कुछ नही सोचा था पर उन्हे मुझ पर खीज निकालनी थी तो निकाल ली.... और वो लोग वापस इसलिये आये थे क्योकि रवि की कार घर से थोड़ी दूर जाकर ही खराब हो गयी थी.... 

इसके बाद अंकिता का रोज का यही ड्रामा हो गया.. मेरे जादा से जादा करीब आने की कोशिश करना और मुझे किसी ना किसी बहाने से छूना ये रोज की बात हो गयी... मै हमेशा कहती थी कि "दीदी ये सही नहीं है, मुझे ये सब नही पसंद, ये गलत है" लेकिन वो नही मानती थी.... फिर एक दिन जब उसने सारी हदें पार करके मेरे साथ फिर से जबरदस्ती करने की कोशिश करी तो मुझे गुस्सा आ गया... और उसी गुस्से से झुंझुला कर मैने अंकिता को थप्पड़ मारते हुये कहा- आपको शर्म नही आती है ऐसी उल्टी सीधी हरकते करते हुये... मै आपके बड़े भाई की बीवी हूं... जरा सा भी लिहाज नही है आपके मन मे.... 

और बस यही बात मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी भूल साबित हो गयी.... जब मैने उसे थप्पड़ मारा तो अंकिता मुझसे गुस्से मे बोली- अब तू देख मै क्या करती हूं.... तेरा जीना ना हराम कर दिया तो मेरा भी नाम अंकिता नही है.... 

इसके बाद शाम को रवि जब थके हारे ऑफिस से घर आये तो उनके घर मे घुसते ही अंकिता अपने घड़ियाली आंसू दिखाकर रोते हुये उनसे बोली- भइया आपकी बीवी को अपनी सुंदरता पर बहुत घमंड है.... वो मेरे साथ नही रहना चाहती है... आप मेरा कहीं और इंतजाम करदो..... मै अब इस घर मे नही रह सकती हूं.... 

अंकिता को ऐसे रोते देखकर रवि जो पहले से ही किसी टेंशन मे थे.... गुस्से से लाल होकर कमरे मे चले गये और मुझे जोर से चिल्लाकर कमरे मे आने के लिये कहा... अंकिता की हरकत और रवि से की गयी बेवजह की शिकायत से मै पहले से ही डरी हुयी थी.... और रवि की चीख सुनकर मै और सहम गयी.... मै जब कमरे मे गयी तो रवि मुझसे गुस्से मे बोले- ये क्या कह रही है अंकिता...किस बात का घमंड है तुम्हे.... 

रवि का गुस्सा देखकर मै सहम गयी और मैने घबराये हुये लहजे मे कहा- मुझे कोई घमंड नही है... आप मेरी बात तो सुनिये.... 
रवि बोले- क्या सुनूं मै तुम्हारी बात... जबसे इस घर मे आयी हो सिर्फ कलेश हो रहा है.... और आज ये एक नया ड्रामा... 
मैने कहा- तो कलेश मेरी वजह से हो रहा है क्या? आप अंकिता को क्यो नही कुछ कह रहे हैं.... 
रवि गुस्से से बोले- क्या बोलूं मै उसे... वो घर छोड़ कर जाने को तैयार है... क्यो किया तुमने उसके साथ ऐसा व्यवहार... 

मैने कहा- मैने कुछ नही किया है... आप अंकिता से पूछिये ना कि क्या करने की कोशिश करती है वो मेरे साथ.. 

रवि बोले- क्या करने की कोशिश करती है बोलो?? 

मुझे लगा कि रवि मेरी बात को इत्मिनान से सुनेंगे और अंकिता को समझायेंगे.... लेकिन जब मैने उनसे कहा- वो मेरे साथ गलत हरकते करती है.... मेरे साथ गलत संबंध बनाना चाहती है.... 

मेरी बात सुनकर रवि गुस्से से और तमतमा गये और दांत भींचते हुये बोले- तुम्हारा दिमाग तो ठीक है... तुम मेरी बहन के बारे मे बात कर रही हो... कुछ अंदाजा भी है कि क्या बोल रही हो तुम... 

रवि लगातार अंकिता की ही साइड ले रहे थे... वो मेरी बात सुनना ही नही चाहते थे इसलिये मुझे भी गुस्सा आ गया और गुस्से मे मैने कहा- क्या गलत कह रही हूं मै... जो वो करती है मेरे साथ मै वही तो कह रही हूं ना.... वो लेस्बियन है लेस्बियन.... निहायती गंदी हरकते हैं उसकी मेरे साथ..... 

मेरी गुस्से से की गयी ये बात सुनकर रवि और तिलमिला गये और पास ही पड़ा बेसबॉल वाला बैट उठाया और गुस्से से मुझे मारना शुरू कर दिया.... मै हाथ जोड़ती रही, दर्द से चीखती रही पर रवि रुकने का नाम ही नही ले रहे थे..... फिर जब दर्द हद से जादा बढ़ गया तो मैने बचने के लिये अपना हाथ बीच मे लगाया तो वो बैट मेरी कलाई के पिछले हिस्से मे जोर से पड़ा और कट्ट की बहुत तेज आवाज आयी... रवि के मेरी कलाई पर किये गये उस वार का दर्द इतना असहनीय था कि मुझे बेहोशी आने लगी और मै गश खाकर जमीन पर गिर गयी.... चूंकि कमरे का दरवाजा थोड़ा खुला हुआ था तो गश खाकर गिरने से पहले मैने देख लिया था कि रवि की मम्मी और अंकिता दोनो कमरे मे झांक कर देख रहे थे कि अंदर क्या चल रहा है पर उन दोनो मे से किसी ने भी रवि को मुझे मारने से नही रोका... मै गश खाकर गिरने के बाद अपनी सुधबुध खोती जा रही थी दर्द की वजह से पर रवि रुक ही नही रहे थे... वो मुझे जानवरो की तरह पीट रहे थे..... मेरा मन चीख रहा था कि "हे भगवान प्लीज मेरे राजेश भइया को यहां बुला दो प्लीज उन्हे कह दो कि वो यहां आकर मुझे बचा लें...." लेकिन उस दिन भगवान भी जैसे मुझसे रूठे हुये थे.... मेरी पूरी जिंदगी मे मेरे साथ इतना गंदा और घटिया व्यवहार किसी ने भी नही किया था... हमारे घर मे औरतो पर हाथ उठाना तो दूर कोई बेवजह तेज आवाज मे बात भी नही करता है.... 
इसके बाद जब मै जमीन पर बदहवास सी गिरने लगी तब रवि की मम्मी अंदर आयीं और रवि का हाथ रोकते हुये बोलीं- रवि बस कर देख इसकी हालत.... कहीं मर वर गयी तो लेने के देने पड़ जायेंगे.... बस कर... 

जहां एक तरफ मैत्री रोते रोते अपनी आपबीती जतिन को बता रही थी वहीं मैत्री की बातें सुनकर जतिन को उसपर बहुत दया आ रही थी... और उसका मन भी मैत्री के लिये बहुत रो रहा था....

इसके बाद अपनी बात को आगे बढ़ाते हुये मैत्री ने कहा- अपनी मम्मी के रोकने पर रवि जैसे होश मे आये और जब उन्होने मेरी तरफ देखा तो दर्द और डर की वजह से मुझे दौरे जैसे पड़ रहे थे.... मेरी आंखे चढ़ गयी थीं.... मेरी घिग्गी बंध गयी थी..... वैसे मुझे तो ये सब याद नही लेकिन बाद मे रवि की मम्मी ने एक दिन बड़े प्यार से ये बात मुझे बतायी थी कि "बेटा रवि से गलती हो गयी और  उस दिन तेरी ऐसी हालत हो गयी थी" 

मैत्री को रोकते हुये जतिन ने पूछा- बाद मे उनका व्यवहार ठीक हो गया था क्या...? 
मैत्री ने कहा- हां इस घटना के बाद उनका और घर मे सबका व्यवहार बहुत अच्छा हो गया था.... 

जतिन ने कहा- हां.... ऐसी चीजें करने के बाद आत्मग्लानि के चलते कभी कभी इंसान का मन बदल जाता है.... 

जतिन की ये बात सुनकर मैत्री एक ठसका सा लेते हुये हल्का सा हंसी और जबरदस्ती की हंसी हंसते हुये बोली- आप अच्छे हैं ना जी... इसलिये आप सबको अच्छा मान लेते हैं.... पर रवि के परिवार का ये प्यार, ये अपनापन, ये बदला हुआ व्यवहार बस एक छलावा था... उसमे बिल्कुल भी सच्चाई नही थी... 

जतिन ने थोड़ा हतप्रभ सा होते हुये मैत्री से पूछा - छलावा!! कैसा छलावा मैत्री??? 

क्रमशः