अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 57 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 57

कोई और खाने के बर्तन ना उठा ले ये सोचकर मैत्री ने जल्दी जल्दी खाके अपना खाना खत्म कर लिया और इस इंतजार मे बैठ गयी कि सबका खाना पूरा हो जाये तो वो ही सबके बर्तन उठाकर रसोई मे रखे.... कोई और ना रखे.... लेकिन हुआ कुछ ऐसा कि मैत्री के बाद सबसे पहले विजय ने खाना खत्म किया और अपनी खाने की झूटी प्लेट उठाकर अपनी जगह से उठने लगे... उन्हे अपने बर्तन उठाते देख मैत्री ने कहा- पापा जी बर्तन मुझे दे दीजिये... मै ले जाउंगी...

विजय ने प्यार से कहा- अरे कोई बात नही बेटा... मुझे हाथ मुंह तो धोने ही है ना तो बर्तन मै ही रख दूंगा.... 

मैत्री ने अपनी प्यारी सी पतली आवाज मे विजय से बर्तन ना ले जाने के लिये  थोड़ी सी जिद करी तो विजय मान गये और खुश होते हुये बोले- अच्छा ठीक है बेटा... ये लो तुम ही ले जाओ....

इसके बाद जतिन और बबिता का खाना खत्म होने के बाद मैत्री ने सबके बर्तन उठाये और रसोई की तरफ जाने लगी.... मेज पर जो बाकि बर्तन रह गये थे वो जतिन ने उठाये और मैत्री के पीछे पीछे रसोई की तरफ जाने लगा.... रसोई मे जाकर बर्तन सिंक मे रखते हुये जतिन ने मैत्री की तरफ देखा और मुस्कुराने लगा... जतिन को ऐसे मुस्कुराते हुये देख मैत्री समझ गयी कि जतिन उसकी शैतानी की वजह से मुस्कुरा रहा है... जतिन को ऐसे मुस्कुराते देख मैत्री भी शर्मायी हुयी सी हंसी हंसने लगी और उसने अपना सिर झुका लिया.....

इसके बाद जतिन ने बहुत प्यार से  कहा-  मैत्री.... आईसक्रीम खाओगी??
मैत्री ने कहा- अम्म्म्... जी... ठीक है... खाना खाने के बाद आईसक्रीम खाने का मजा ही अलग है...

जतिन ने कहा- साथ चलें?? (फिर दो सेकंड सोच के जतिन ने कहा) अच्छा रहने दो.... आज सुबह से तुमने इतना काम किया है..तुम थक गयी होगी.... तुम कमरे मे चलके आराम करो... मै फटाफट से आईसक्रीम लेकर आता हूं....

मैत्री चूंकि सच मे थकी हुयी थी तो उसने भी जतिन के साथ चलने के लिये हामी नही भरी और चुपचाप खड़ी रही... इसके बाद जतिन आईसक्रीम लेने चला गया और मैत्री अपने कमरे मे चली गयी.... 

दुकान से आईसक्रीम लेते वक्त जतिन के दिमाग मे आया कि "आज फूल लेने हैं कि नही रंगोली बनाने के लिये... मैत्री ने तो कहा नही... हो सकता है भूल गयी हो.... एक काम करता हूं... फोन करके पूछ लेता हूं.." 
इसके बाद जतिन ने जब फोन निकालने के लिये जेब मे हाथ डाला तो मन ही मन बोला- ओह्हो फोन तो मै लाया ही नही हूं.... चलो एक काम करता हूं फूल ले लेता हूं बाकि अगर मैत्री ने कल वो रंगोली नही बनायी तो पूजा मे इस्तेमाल हो जायेंगे वो फूल.... 

ये सोचकर आईसक्रीम लेने के बाद जतिन मंदिर की तरफ चला गया फूल लेने.... वहां जाकर उसने देखा की फूलो की दुकान बंद हो चुकी है... ये देखकर जतिन ने फिर से मन मे सोचा कि "अरे यार... फूलवाला तो दुकान बंद कर चुका है.... शिट!!... फूल मिल जाते तो मैत्री को कितना अच्छा लगता कि मै उसके कहे बिना ही उसके लिये फूल ले आया...आज कितनी प्यारी लग रही थी मेरी मैत्री खुश होते हुये... फूल मिल जाते तो वो और खुश हो जाती" 

यही सब सोचते हुये जतिन घर पंहुच गया... घर पंहुच कर उसने बबिता और विजय को उनके कमरे मे जाकर उनकी आईसक्रीम दी और उनको आईसक्रीम देकर वो मैत्री के पास अपने कमरे की तरफ चला गया... कमरे के पास जाकर उसने देखा कि कमरे का गेट खुला है... और मैत्री दूसरी तरफ मुंह किये बेड के दूसरी तरफ पैर लटका के बैठी किसी से फोन पर बात कर रही है.... मैत्री को फोन पर बात करते देख जतिन को अंदाजा लग गया कि मैत्री पक्का लखनऊ मे माता जी (सरोज) से बात कर रही है.... जतिन ने कमरे मे जाकर मैत्री को डिस्टर्ब नही किया और चुपचाप दरवाजे से थोड़ा अंदर आकर खड़ा हो गया.... और मुस्कुराते हुये मैत्री की बातें सुनने लगा... वजह थी मैत्री की प्यारी प्यारी बातें... वो अभी भी खुश थी और खुश होते हुये वो अपनी मम्मी से आज दिन भर जो हुआ वो बता रही थी.... मैत्री कह रही थी "मम्मी आज सुबह मैने वो फूलो वाली रंगोली बनायी थी..जो मै घर पर बनाया करती थी.... मुझे तो डर लग रहा था कि कहीं कोई डांट ना दे... कि ये सब क्या बना दिया... लेकिन वो रंगोली सबको बहुत पसंद आयी... मम्मी जी और पापा जी तो इतना खुश हुये कि क्या बताऊं... जतिन जी को भी बहुत अच्छा लगा.... लेकिन मम्मी जी पापा जी ने तो बहुत तारीफ करी पर जतिन जी ने बस इतना कहा कि 'मैत्री ये रंगोली बहुत खूबसूरत लग रही है' बस फिर कमरे मे चले गये.... 

बच्चो जैसे शिकायती लहजे मे मैत्री को ये बात बोलते देख जतिन मन ही मन बोला- अरे नही माता जी... ये झूट बोल रही है... मैने तारीफ करी थी.... लेकिन.... शायद थोड़ी कम... अच्छा कल पक्का मै सच्चे दिल से खूब सारी तारीफ करूंगा..... 

इसके बाद मैत्री ने अपनी मम्मी सरोज से बहुत खुश होते हुये और हंसते हुये अभी थोड़ी देर पहले खाने की मेज पर जतिन के साथ की गयी अपनी शरारत के बारे मे जब बताया तो सरोज भी मैत्री को इतना हंसते हुये देखकर बहुत खुश हुयीं और सोचने लगीं कि "काश आज मै वहां होती तो अपनी गुड़िया को इतने समय बाद इतना खुश होकर हंसते हुये देख पाती, लेकिन कोई बात नही मेरी बच्ची तू जहां रहे वहां ऐसे ही हंसती खिलखिलाती रहे" 

इसके बाद मैत्री अपनी मम्मी सरोज से अपनी बात कहते कहते भावुक हो गयी और भावुक होते हुये वो बोली- मम्मा मुझे तो विश्वास ही नही था कि मेरे जीवन मे भी खुशियां आ सकती हैं.... (अपनी बात कहते कहते मैत्री का गला भर आया) सब बहुत प्यार देते हैं यहां.... पहले जैसा कुछ भी नही है.... 

मैत्री की बात सुनकर उसकी मम्मी सरोज समझ गयीं कि पुरानी बाते याद करके मैत्री का गला भर आया है... इसलिये मैत्री को समझाते हुये सरोज ने कहा- बेटा पिछली सारी बाते भूलने की कोशिश कर... अब उन बातो को याद रखने का कोई मतलब नही है.... ऐसी यादो को याद करके क्या फायदा जो सिर्फ तकलीफे दें... आज तुझे जो सम्मान और जो प्यार अपने नये घर मे मिल रहा है तू उसकी असली हकदार है.... ये सारी चीजें तुझे पहले ही मिल जानी चाहिये थीं... लेकिन हर चीज का एक सही समय होता है.... और अब तेरा समय है... 

अपनी मम्मी के समझाने पर भावुक सी हुयी मैत्री अपनी पहली शादी से मिली प्रताड़ना को याद करके सुबकने लगी.... और सुबकते हुये वो सरोज से बोली- मम्मा मै आपको कल कॉल करूंगी.... 

इसके बाद मैत्री ने फोन काट दिया.... मैत्री के पीछे खड़ा जतिन मैत्री को सुबकते हुये देख रहा था.... और खुद भी भावुक हो रहा था..जतिन से वैसे भी मैत्री की तकलीफ नही देखी जाती थी.. मैत्री के फोन काटने के बाद जतिन धीरे धीरे कदमो से मैत्री की तरफ आगे बढ़ा और उसके बगल मे जाकर उसके कंधे पर संकोच करते हुये हाथ रखा और बहुत ही प्यार से बहुत सहजता से वो मैत्री से बोला- मैत्री.... क्या हो गया... ऐसे मत परेशान हो... मैत्री मै नही जानता कि पिछली जिंदगी मे तुम्हारे साथ क्या हुआ लेकिन मै समझता जरूर हूं तुम्हारी हर बात को... तुम्हारे हर हाव भाव को.... इसलिये मै एक बार जानना जरूर चाहता हूं कि क्यो तुम जादातर सहमी हुयी सी रहती हो... क्यो तुम्हे ऐसा लगता है कि कोई तुम्हे डांटेगा... बोलो मैत्री... मै हूं ना तुम्हारे पास... 

जतिन के इतने प्यार से अपनी बात कहने पर मैत्री जैसे टूट सी गयी और जतिन के कंधे पर सिर रख कर बहुत दुख करके रोने लगी.... रोते रोते मैत्री बोली- मुझे बहुत टॉर्चर किया था उन लोगो ने... रवि ने मुझे एक दिन पीटा भी था.... 

मैत्री को पीटने की बात सुनकर जतिन सिहर सा गया... और हतप्रभ सा हुआ मैत्री के चेहरे को अपनी बांहो मे भरते हुये बोला- हे भगवान... ये तुम क्या कह रही हो... कोई तुम्हारे ऊपर हाथ कैसे उठा सकता है... अरे तुम्हारे ऊपर तो क्या किसी भी स्त्री के ऊपर कोई हाथ कैसे उठा सकता है.... 

जतिन के ये बात बोलने के बाद तो मैत्री के सब्र का वो बांध टूट सा गया जो उसने इतने महीनो से अपने दिल मे बांध कर रखा था.... जतिन से मिले प्यार भरे शब्दो ने जैसे मैत्री का उसके ऊपर से आपा खो सा दिया था... वो एक एक करके जतिन को सारी बाते बताने लगी.... 

क्रमश: