अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 24 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 24

जहां एक तरफ राजेश और उसके घरवालो के वापस लखनऊ जाने के बाद जतिन के घर का माहौल बहुत खुशनुमा हो गया था वहीं दूसरी तरफ लखनऊ पंहुच कर मैत्री की मम्मी सरोज ने जब कानपुर मे जतिन के घर पर हुयी सारी बात अपने पति जगदीश प्रसाद को बतायी तो वो भी बहुत खुश हुये, मैत्री भी वहीं पास ही बैठी सारी बाते सुन रही थी... अपनी बात बताते हुये सरोज ने कहा- जतिन बहुत अच्छा लड़का है इतने अच्छे से और इतने सम्मानजनक तरीके से उसने हम सब से बात करी कि दिल खुश हो गया... (खुश होकर थोड़ा सा प्रफुल्लित सी होकर उन्होने आगे कहा) उनके घर पर सब बहुत अच्छे हैं सबने इतना सकारात्मक व्यवहार किया कि ऐसा लगा ही नही कि हम पहली बार मिल रहे हैं, खासतौर से जतिन की छोटी बहन ज्योति!! वो तो बहुत प्यारी लड़की है पूरे टाइम हंसती रही....

अपनी मम्मी सरोज की बातो में ज्योति का जिक्र आते ही पास ही बैठी मैत्री के मन मे हल्की हल्की घबराहट होने लगी और वो तुरंत अतीत की कड़वी बातो को याद करते हुये सोचने लगी कि "रवि की भी एक छोटी बहन थी जिसने मेरा जीना हराम किया हुआ था और यहां अब जतिन की भी छोटी बहन है, पता नही वो कैसी होगी... कहीं वो भी रवि की छोटी बहन अंकिता जैसी ही ना हो...."

जो कुछ भी मैत्री अपने अतीत में झेल चुकी थी उन बातों के बारे में सोचते हुये मैत्री थोड़ी सी खिसिया सी गयी, वो सोच रही थी कि "शुरू शुरू मे तो सबको सब अच्छा लगता है, बाद मे झेलना तो मुझे पड़ेगा ना, कोई मुझसे मेरी मर्जी पूछना ही नही चाहता है... यार ये ननदे पैदा ही क्यो होती हैं!!"

अपनी मम्मी की बाते सुनकर मैत्री के मन मे ऐसे ही अजीब अजीब खयाल आ रहे थे लेकिन वो कहती भी तो किस से क्योकि सबको सब कुछ पता था फिर भी सब उसे दुबारा से शादी के चक्रव्यूह मे फंसा रहे थे और वो बेचारी चुपचाप सब कुछ होते हुये देख रही थी तो सिर्फ अपने मम्मी पापा की खुशी के लिये... वो अपने मम्मी पापा की खुशी के लिये फिर से वही सब झेलने के लिये अपने आप को जैसे तैसे मना रही थी..!!

इधर कानपुर मे राजेश और उसके परिवार से मिलने के दो दिन बाद शाम को जतिन जब ऑफिस से वापस आया तो उसने देखा कि बबिता, ज्योति और विजय सब लोग ड्राइंगरूम मे साथ बैठकर चाय पी रहे थे, उन लोगों को वहां बैठा देखकर जतिन भी वहीं बैठ गया कि तभी बबिता ने सबके सामने कहा- श्वेता के पापा से भी तो मना करना है ना हम उन्हे अंधेरे मे नही रख सकते, उन्हे सारी बातें साफ साफ बता दीजिये ताकि वो भी श्वेता के लिये कहीं और बात चलायें...

बबिता की ये बात सुनकर विजय बोले- हां.. सही कह रही हो तुम, बात तो करनी है पर समझ नही आ रहा कि कैसे करूं और इधर काफी दिनो से श्वेता के पापा ने भी कॉल करके ना कुछ पूछा और ना बताया, मुझे लगा था कि उनकी कॉल आयेगी तब सारी बात बता दूंगा पर वो कॉल कर ही नही रहे हैं....

अपने मम्मी पापा की बात सुनकर जतिन ने कहा- पापा आप रहने दीजिये मैं उनको कॉल करके मना कर दूंगा और माफी भी मांग लूंगा और अगर वो गुस्सा करेंगे या कुछ उल्टा सीधा भी बोलेंगे तो मै चुपचाप सुन लूंगा पर अगर आपने कॉल किया और उन्होने आपको कुछ गलत बोला तो मुझे अच्छा नही लगेगा...

जतिन की बात सुनकर विजय ने कहा- अरे नही नही जतिन बेटा वो ऐसे लोग नही हैं कि वो कुछ गलत बोलें.. अच्छा तू एक काम कर तू अभी उन्हे कॉल कर और आज ही इस समस्या को खत्म कर दे...

विजय की बात सुनकर ज्योति और बबिता ने भी उनकी बात पर हामी भर दी तो जतिन ने भी बिना देर किये तुरंत श्वेता के पापा को कॉल कर दिया, श्वेता के पापा ने जब फोन उठाया तो वो बोले- नमस्कार जतिन बेटा... कैसे हो आप सब??

जतिन ने कहा- यहां सब अच्छे हैं अंकल,आप सब कैसे हैं... ?
श्वेता के पापा ने कहा- हम भी बस ठीक ही हैं...

श्वेता के पापा के इस बुझे बुझे से लहजे मे अपनी बात कहने पर जतिन ने उनसे पूछा- क्या बात हो गयी अंकल आप बहुत बुझे बुझे से लग रहे हैं और आपने काफी दिनो से कॉल भी नही किया, सब ठीक तो है ना??

जतिन के सवाल करने पर श्वेता के पापा ने कहा- हां बेटा सब ठीक ही है, बस हिम्मत सी नही हुयी आप लोगो को कॉल करने की...

जतिन ने कहा- हिम्मत सी नही हुयी!! ऐसा क्या हो गया अंकल!! आप प्लीज हिचकिचाइये मत आराम से अपनी बात बताइये....

जतिन के इतने अच्छे तरीके से भरोसा दिलाने पर श्वेता के पापा ने कहा- बेटा असल मे वो बात ऐसी थी कि...अम्म् असल मे हमे भी नही पता था कि...... श्वेता किसी और से शादी करना चाहती है, वो हमारे दबाव मे कुछ बोल नही पा रही थी लेकिन कुछ दिन पहले ही उसने हमे उस लड़के से मिलवाया, वो लड़का भी अच्छा है अच्छे परिवार से है... तो हमने श्वेता की खुशी के लिये "हां" कर दी, बस यही बात समझ मे नही आ रही थी कि आप लोगो से इस बात को बता कर कैसे इस रिश्ते के लिये मना करूं....

श्वेता के पापा की बात सुनकर जतिन मन ही मन खुशी के मारे जैसे उछला जा रहा था, जिस बात को लेकर वो और उसके घरवाले इतने दिनो से इतनी उलझन मे थे वो खुद ब खुद सुलझ गयी थी, जतिन का मन कर रहा था कि वो खुशी के मारे उछल जाये लेकिन अपने आप को संभालते हुये उसने श्वेता के पापा से कहा- अरे नही अंकल ये तो बहुत खुशी की बात है कि श्वेता ने अपने लिये स्टैंड लिया और जिंदगी भर घुट घुट के जीने की बजाय अपने दिल की बात आप सबसे कहकर अपने जीवनसाथी का चुनाव खुद कर लिया और अंकल आप अपने दिल पर कोई बोझ मत रखियेगा क्योकि मैने भी ऐसा ही कुछ बताने के लिये आपको कॉल किया था, असल में मैं भी किसी और से शादी करना चाहता हूं और मै सच्चे दिल से श्वेता और उसके होने वाले पति को उनके उज्जवल भविष्य के लिये ढेर सारी शुभकामनाएं देता हूं....

जतिन की बात सुनकर थोड़ी देर पहले तक आत्मग्लानि से भरे लहजे मे बात कर रहे श्वेता के पापा भी एकदम से खुश हो गये और उन्होंने भी जतिन को उसके आने वाले जीवन के लिये ढेर सारी शुभकामनाएं देकर फोन काट दिया, श्वेता के पापा के फोन काटने पर जतिन की बाते सुन रहे बबिता, विजय और ज्योति भी श्वेता के पापा से हुयी जतिन की बात जानने के लिये बहुत उत्सुक थे लेकिन उनका फोन काटने के बाद से जतिन शैतानी भरे लहजे मे बस हंसे जा रहा था, जतिन ताली बजा बजा के इतना हंस रहा था कि हंसते हंसते उसकी आंखो से पानी निकल आया था, उसे ऐसे हंसते देखकर विजय, बबिता और ज्योति भी बिना कुछ जाने ही हंसने लगे और हंसते हंसते कभी विजय जतिन से पूछें कि बात क्या है तो कभी बबिता और कभी ज्योति कि "भइया हुआ क्या ये तो बताओ"

फिर जतिन ने अपने आप को कंट्रोल करते हुये अपनी आंखो मे आये पानी को पोंछा और कहा- जिस बात को लेकर हम सब इतना परेशान थे वो बात अपने आप सुलझ गयी, श्वेता भी किसी और से शादी करना चाहती थी तो उसके पापा ने उसकी शादी उसी लड़के से तय कर दी है....

जतिन की ये बात सुनकर बबिता बहुत खुश हुयीं और खुश होकर ताली बजाते हुये बोलीं- अरे वाह ये तो बहुत अच्छी बात है चलो सब अपने आप ही ठीक होता जा रहा है अब मुझे श्वेता की चिंता नही रहेगी.... (इसके बाद उन्होने जतिन से पूछा) अच्छा ये बता लखनऊ जाने का क्या सोचा है, कब चलने का है अब बिल्कुल देर नही करनी हमें, तेरी भी शादी हो जाये तो मैं चैन की सांस लूं...

अपनी मम्मी की ये बात सुनकर जतिन ने कहा- संडे को चलेंगे, सागर जी शनिवार को यहां आ जायेंगे तो संडे को उनको भी साथ लेकर चलेंगे...

जतिन की ये बात सुनकर सबने हामी भर दी कि "हां संडे को सागर जी के साथ ही चलेंगे" और इंतजार करने लगे उस दिन का जब वो अपनी होने वाली बहू मैत्री से पहली बार मिलने वाले थे.....

क्रमशः