अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 46 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 46

ज्योति तो सागर के साथ घर से विदा हो गयी लेकिन जतिन की बातो से पहले से ही उसके लिये अपने दिल मे प्यार महसूस कर रही मैत्री के दिल मे उस प्यार को और गहरा कर गयी... वो बात बता कर जब जतिन ने पहली बार मैत्री का फोटो देखा था...   


ज्योति और सागर के जाने के बाद  सब लोग घर के अंदर चले आये, ज्योति चूंकि काफी दिन अपने मायके मे रहकर गयी थी इसलिये उसके जाने से घर बहुत सूना हो गया था और वो सूनापन बबिता, विजय और जतिन के चेहरे पर साफ साफ दिख रहा था, जहां एक तरफ बबिता और विजय चुपचाप आकर ड्राइंगरूम मे ही बैठ गये थे वहीं दूसरी तरफ़ जतिन अपने कमरे मे चला गया... मैत्री ये सारी बाते नोटिस कर रही थी और सोच रही थी कि ऐसा क्या करूं जो सबके चेहरो की उदासी खुशी मे बदल जाये...


एक तो उसे ससुराल आये अभी सिर्फ दो दिन ही हुये थे तो वो कुछ भी बोलने से पहले हिचक रही थी दूसरा उसे ये भी डर लग रहा था कि ज्योति दीदी के जाने की टेंशन मे कुछ पूछने पर कहीं कोई उसे डांट ना दे, काफी देर तक अपनी खुद की हिम्मत बढ़ाने के बाद मैत्री ने ड्राइंगरूम मे उदास सी बैठी अपनी सास बबिता से अपनी महीन आवाज मे बहुत धीरे से संकुचाते हुये और घबराते हुये पूछा- म... मम्मी जी... 


मैत्री के बुलाने पर बबिता ने बड़े प्यार से मुस्कुराते हुये जवाब दिया- हां बेटा...!! 


अपनी सास बबिता के इस तरह प्यार से मुस्कुरा कर जवाब देने पर मैत्री मे थोड़ी सी हिम्मत आयी और वो धीरे से बोली- मम्मी जी... अगर आप कहें तो मै खीर बना लूं..!! 


मैत्री की बात सुनकर बबिता ने अपने माथे पर हाथ मारते हुये कहा- ओह्हो... ज्योति के जाने की उलझन मे मै तो भूल ही गयी, बेटा नयी बहू से पहली बार मीठा ही बनवाया जाता है और मै पहले ही सोच रही थी कि खीर ही बनवाउंगी.... चलो अच्छा हुआ  कि तुमने खुद याद दिला दिया, चलो मै बताती हूं चलके कि रसोई मे कहां क्या रखा है.... 


इसके बाद बबिता.. मैत्री को लेकर रसोई मे चली गयीं और सारा कुछ बता कर और मैत्री के साथ थोड़ी देर खड़ी होके बाते करने के बाद वापस ड्राइंगरूम मे आ गयीं.... मैत्री ने भी खीर गैस पर चढ़ाकर उसे पकने के लिये गैस को हल्का कर दिया और रसोई से बाहर आ गयी... रसोई से बाहर आकर मैत्री ने अपनी सास बबिता से कहा- मम्मी जी खीर पक रही है, तब तक मै अपने कपड़े ब्रीफकेस से निकालकर अलमारी मे लगा देती हूं.... 


इसके बाद मैत्री भी अपने कमरे मे चली आयी, कमरे मे आने के बाद मैत्री ने देखा कि जतिन अपने लैपटॉप पर कुछ काम कर रहा है और उसका पूरा ध्यान अपने काम पर ही है, कमरे मे आने के बाद मैत्री ने अलमारी मे अपने कपड़े रखने शुरू कर दिये.... कपड़े लगाते हुये बीच बीच मे वो जतिन को भी देख लेती थी लेकिन जतिन अपने काम मे इतना मसरूफ था कि उसे जैसे पता ही नही चल रहा था कि मैत्री कमरे मे कुछ कर रही है, मैत्री जतिन से कुछ पूछना चाहती थी लेकिन जतिन उसकी तरफ देख ही नही रहा था इसलिये संकोचवश वो बोल ही नही पा रही थी..... लेकिन जब काफी देर हो गयी और जतिन ने उसकी तरफ ध्यान नही दिया तो मैत्री ने हिम्मत जुटायी और जतिन के थोड़ा पास जाकर धीरे से  बोली- जी.... 


जतिन ने मैत्री की आवाज नही सुनी तो मैत्री ने फिर कहा- जी..... 


इस बार भी जतिन ने जब मैत्री को अनसुना कर दिया तो मैत्री ने थोड़ी तेज आवाज मे जतिन से कहा- जी... 


इस बार मैत्री की आवाज सुनकर चौंकते हुये जतिन एकदम सो बोला- जी जी जी जी... कहिये जी... जी... 


ऐसा कहते कहते जतिन हंसने लगा... जतिन की ऐसी अचानक से की गयी प्रतिक्रिया देखकर मैत्री को भी हंसी आ गयी तो उसे हंसते हुये देखकर जतिन खुश होते हुये उससे बोला- बस यही मुस्कुराहट चाहिये तुम्हारे चेहरे पर.... मुस्कुराते हुये बहुत क्यूट लगती हो तुम मैत्री... 


जतिन के मुंह से अपनी तारीफ सुनकर मैत्री शर्मा गयी... उसे ऐसे शर्माते देख जतिन ने कहा- वैसे शर्माते हुये भी तुम बहुत क्यूट लगती हो... 


अपनी बात कहकर जतिन हंसने लगा और बहुत ही प्यार और सहजता से मैत्री से बोला- अच्छा बताओ क्या पूछ रही थीं... 


जतिन के सवाल का जवाब देते हुये मैत्री ने कहा - जी... मै ये पूछ रही थी कि यहां सुबह सब लोग कितने बजे जाग जाते हैं, आज मै 6 बजे जागी तो सब जाग रहे थे.... 


जतिन ने कहा- देखो मै सुबह पांच बजे जाग जाता हूं और जागते ही मुझे गुनगुना पानी पीने की आदत है जो मम्मी मुझे देती हैं कभी कभी और कभी मै खुद गर्म करके पी लेता हूं.... और मम्मी पापा पहले तो चार बजे जागते थे लेकिन अब वो भी पांच बजे ही जगते हैं, मै जागने के बाद योगा करता हूं फिर नहा धोकर घर के मंदिर मे दिया जलाकर और पूजा करके मंदिर चला जाता हूं, वहां से वापस आकर फिर मै चाय पीता हूं... तब तक मम्मी पापा भी योगा करने के बाद नहा धोकर पूजा पाठ कर लेते हैं... 


जतिन की बात सुनकर मैत्री ने कहा - सॉरी... मुझे लगा कि 6 बजे तक जागना ठीक रहेगा इसलिये मै 6 बजे जागी.... कल से पक्का मै भी सुबह और जल्दी जाग जाउंगी.... 


जतिन ने मुस्कुराते हुये कहा - इसमे सॉरी बोलने जैसा कुछ नही है मैत्री और आज देखा जाये तो सारे मेहमानो के जाने के बाद ये तुम्हारा पहला दिन था, धीरे धीरे ही हमारे तौर तरीके तुम्हे पता चलेंगे ना... और हमारे यहां इतनी छोटी छोटी बातो पर कोई बुरा नही मानता.... इसलिये सॉरी मत बोलो.... 


जतिन की बात सुनकर मैत्री को बहुत अच्छा लगा और वो जतिन से बोली- जी... मै रसोई मे जा रही हूं... मैने खीर बनायी है... आप भी बाहर ड्राइंगरूम मे आ जाइये.... 


मैत्री की बात सुनकर जतिन खुश होते हुये बोला- अरे वाह... खीर तो मुझे बहुत अच्छी लगती है, तुम चलो मै अभी आया.... 


इसके बाद जतिन से बात करके मैत्री किचेन मे चली गयी और खीर बना कर बहुत ही साफ सुथरे तरीके से कटोरियो मे परोसकर  ड्राइंगरूम मे बैठे सब लोगो के लिये ले आयी... और मेज पर सबके सामने बड़े प्यार और सम्मान के साथ मुस्कुराते हुये एक एक कटोरी रख दी... खीर देखकर बबिता ने कहा- अरे वाह... बड़ी अच्छी खुश्बू आ रही है, जतिन जरा चख कर देख कैसी बनी है खीर.. 


अपनी मम्मी बबिता के कहने पर जतिन ने अपने सामने रखी खीर की कटोरी उठायी और चम्मच से थोड़ी सी खीर चखी और मैत्री की तरफ देखकर गंदा सा मुंह बनाकर देखा तो मैत्री सकपका गयी... ये सोचकर कि "कहीं ऐसा तो नही कि मै खीर मे चीनी डालना भूल गयी" मैत्री ने ये सोचकर जब अपनी सास बबिता की तरफ देखा तो उन्होने भी खीर चखी और अजीब सा मुंह बना लिया... बबिता को बना हुआ मुंह देखकर मैत्री और जादा सकपका गयी और रसोई की तरफ पलटकर ठिठके और घबराये से कदमों से चलकर रसोई मे चली गयी... रसोई मे जाकर उसने थोड़ी सी खीर चखी तो मन मे सोचा "खीर तो टेस्टी है फिर मम्मी जी और जतिन जी ने ऐसा मुंह क्यो बनाया" यही सोचकर मैत्री जब वापस से ड्राइंगरूम मे गयी तो जतिन उसे देखकर मजाकिया लहजे मे  बोला- अरे मैत्री एक कटोरी खीर और मिल सकती है क्या?? 


जतिन की ये बात सुनकर मैत्री संशय मे पड़ गयी और आश्चर्यचकित सी हुयी बोली- जी... सच मे...!! 


बबिता ने हंसते हुये कहा- जी... सच मे... मैत्री बेटा खीर बहुत स्वादिष्ट बनी है... 


अपने हाथ की बनी खीर की तारीफ सुनकर मैत्री जो सोच रही थी कि खीर किसी को पसंद नही आयी... बहुत कंफ्यूज हो गयी... और कंफ्यूज सी हुयी बोली- पर मम्मी जी.... 


मैत्री को बीच मे टोकते हुये उसके ससुर विजय ने हंसते हुये कहा- मैत्री बेटा सच मे खीर बहुत स्वादिष्ट बनी है और तुम भी आदत डाल लो... जतिन ऐसे ही मजाक करके परेशान करता है सबको, जब तुम रसोई से खीर लेने गयी थीं तब इसी ने अपनी मम्मी से कहा था कि खीर खाकर मुंह बनाना.... 


अपने ससुर विजय की बात सुनकर मैत्री हंसने लगी और जतिन की तरफ देखकर अजीब सा मुंह बनाकर उसे चिढ़ाया.... इतने मे बबिता अपनी जगह से उठीं और अपने पास ही छुपा के रखा एक लिफाफा जिसमे इक्कीस सौ रुपय रखे थे वो मैत्री को दे दिये क्योकि उसने शादी के बाद पहली बार रसोई मे जाकर कुछ बनाया था.... 


अपनी ससुराल के हर सदस्य का इतना अच्छा और प्यारा व्यवहार देखकर मैत्री को बहुत खुशी हुयी.... इतना प्यार और सम्मान पाकर उसका चेहरा खुशी के मारे जैसे खिला जा रहा था... एक अलग ही सुकून था उसके चेहरे पर... 


क्रमशः