अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 42 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 42

सारी रस्मे पूरी होने के बाद जतिन, उसके परिवार और बाकि के मेहमानो को चाय और नाश्ता करवाया गया... चाय नाश्ता करने के बाद बारी आयी उस रस्म की जिसने पिछले दो तीन दिनो से मैत्री और उसके परिवार वालो खासतौर पर उसके पापा जगदीश प्रसाद और मम्मी सरोज को बेहद भावुक किया हुआ था... मैत्री की एक बार फिर से विदाई होने वाली थी.... मन पर पत्थर रखकर जगदीश प्रसाद ने अपने आंसुओ को जैसे तैसे अपनी आंखो मे रोका तो हुआ था लेकिन रात से ही बार बार मैत्री के दूर जाने के खयाल से वो सबसे छुप के बीच बीच मे फफकने लगते थे.... एक पिता के लिये अपनी बेटी की विदाई की रस्म बिल्कुल वैसी ही होती है जैसे उन्होने अपने शरीर का कोई अंग काटकर दान मे दे दिया हो.... लेकिन कुछ जिम्मेदारियाँ होती हैं जो पूरी करनी ही होती हैं.... 

मैत्री और उसके परिवार की एक दूसरे से दूर होने की सिहरन और बेचैनियों के बीच मैत्री की विदाई का कार्यक्रम शुरू हो चुका था... विदाई से पहले जतिन और मैत्री को कुर्सियों मे बैठाकर उनका टीका करके मैत्री की गोद मे सूखा नारियल रखा जा रहा था.... मैत्री सिर झुकाये बैठी धीरे धीरे सुबक रही थी.... कि तभी उसकी मम्मी सरोज ने जब उसके टीका किया तो वो खुद अपने आप को नही रोक पायीं और सुबकते हुये रोने लगीं... इधर मैत्री जिसने बड़ी मुश्किल से अपने आप को संभाला हुआ था वो अपनी मम्मी सरोज का रोना देखकर अपने आप को रोक नही पायी... और अपने सामने खड़ी अपनी मम्मी सरोज की कमर से लिपट कर जोर जोर से रोने लगी..... सरोज ने भी मैत्री के सिर को बड़े प्यार से अपनी बांहो मे भर लिया और रोने लगीं... मैत्री और सरोज इतना जादा दुख करके रो रही थीं कि उनके करुण क्रंदन की आवाज सुनकर वहां खड़े जतिन के परिवार वालो की भी आंखे नम हो गयीं.... जतिन का गला भी भर आया था और वो जैसे तैसे खखार खखार के अपने आंसुओ को अपने गले से नीचे उतार रहा था... अपनी अर्धांगिनी मैत्री को इस तरह से दुख करके रोते देख जतिन के भी होंठ फफकने लगे थे.... चूंकि जतिन की मम्मी बबिता को, ज्योति को और जतिन के पापा विजय को मैत्री के अतीत के बारे मे मालुम था इसलिये वो भी मैत्री को इस तरह से रोते देख अपने आंसू नही रोक पाये... मैत्री के रोने की आवाज मे अजीब सी बेबसी, अजीब सी टीस और अजीब सा दर्द था... 

मैत्री को रोते देख ज्योति भी रोने लगी थी और उसका इस तरह दुखी होना उसकी सेहत के लिये ठीक नही था... वैसे भी डॉक्टर ने उसे आराम करने के लिये कहा था लेकिन अपने भइया की शादी मे पूरी सावधानी के साथ आने के लिये ही डॉक्टर ने हामी भरी थी... उसे इस तरह से रोते देख सागर उसके पास गये और अपनी बांहो से उसे पकड़ के अपने कंधे से लगा लिया और उसका ढांढस बंधाते हुये बोले- नही... रो मत ज्योति... हम सब मिलकर भाभी को खुश रखेंगे... पर तुम अपने आप को संभालो तुम्हारा इस तरह दुखी होना हमारे बच्चे के लिये ठीक नही है तुम्हारा बीपी वैसे ही ऊपर नीचे हो रहा है... शादी की थकान की वजह से.... तुम चलो मेरे साथ.... 

ऐसा कहकर सागर अपनी रोती हुयी पत्नी ज्योति को ऐसे ही बांहो से पकड़े पकड़े वहां ले गये जहां पानी रखा हुआ था... सागर के समझाने पर ज्योति ने रोना तो बंद कर दिया पर वो अभी भी सुबक रही थी... सागर ने पानी वाले जार से एक गिलास पानी निकाल कर ज्योति को पिलाया तो ज्योति ने कहा- एक गिलास पानी मै आंटी जी और भाभी को पिला देती हूं... 
सागर ने कहा- तुम धीरे धीरे चलो मै पानी लेकर आता हूं... 

सागर के सामने अपना रोना बंद कर चुकी ज्योति जैसे ही मैत्री की तरफ बढ़ने लगी वैसे ही मैत्री के रोने की आवाज सुनकर फिर से वो अपने आप को नही रोक पायी और अपना मुंह अपनी साड़ी के पल्लू से ढककर रोते हुये मैत्री की तरफ बढने लगी... मैत्री के पास पंहुच कर ज्योति ने उसे बड़े प्यार से अपने गले लगाया और रोते हुये बोली- नही भाभी.. मत रोइये... हम सब आपको अपनी पलको पर बैठा के रखेंगे... प्लीज मत रोइये... 
मैत्री को समझाने के बाद ज्योति उसकी मम्मी सरोज की तरफ मु़ड़ी और उनको भी अपने गले से लगाकर अपने और उनके आंसू पोंछते हुये बोली- नही आंटी जी रोना नही है... हम भाभी को बहुत प्यार देंगे...!! 

ज्योति को इस तरह से मैत्री और सरोज को समझाते देख बबिता से भी नही रहा गया और वो भी अपने आंसू पोंछते हुये मैत्री के पास गयीं और बड़े ही प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते हुये बोलीं- नही बेटा ऐसे दुखी नही होते... मैत्री बेटा बस ऐसा समझ लो कि तुम्हारे मम्मी पापा की सिर्फ शक्लें बदल जायेंगी बाकि प्यार और सम्मान वही रहेगा... 

ऐसा कहकर बबिता ने मैत्री के सिर को चूम लिया... भले ज्योति और बबिता दोनो ने एक अच्छी ननद और सास होने की जिम्मेदारी को समझते हुये अपने घर की नयी मेहमान मैत्री को ये भरोसा दिलाने की कोशिश करी थी कि अब उसके जीवन मे खुशियो के अलावा कुछ नही होगा लेकिन विदाई एक ऐसी रस्म होती है कि लाख आश्वासनो के बाद भी लड़की और उसके माता पिता समेत अन्य परिवारीजनो को रुला ही देती है... 

बबिता और ज्योति के समझाने के बाद मैत्री और जतिन को बाहर दरवाजे की तरफ चलने के लिये उठाया गया.... कुर्सी से उठकर खड़े होने के बाद सुबकते हुये मैत्री ने इधर उधर देखा और रुंधे हुये गले से खिसियाते हुये बोली - पापा जी कहां हैं?? 

मैत्री के कहने पर वहां खड़े बाकी लोगो का ध्यान भी मैत्री के पापा जगदीश प्रसाद की तरफ गया जो वहां आसपास कहीं दिख नही रहे थे... वहीं पर ही खड़े होकर अपने ताऊ जी को खोज रहे सुनील ने कहा- मै अंदर देख कर आता हूं... 
ऐसा कहकर सुनील मैरिज लॉन मे बने कमरो की तरफ चला गया...  अंदर बने कमरो मे से एक मे जाकर सुनील ने देखा कि जगदीश प्रसाद अपने माथे पर अपने दोनो हाख रखकर बहुत दुख करके रो रहे हैं.... लेकिन इससे पहले कि सुनील कुछ कह पाता मैत्री जोर से रोते हुये चिल्लायी- पापााााा.... ऐसे मत रोइये पापा.... आप ही तो चाहते थे कि मेरा घर फिर से बस जाये... और आज आप ही ऐसे कमजोर पड़ रहे हैं.... 

असल मे सुनील को पता ही नही चला कि कब मैत्री उसके पीछे पीछे अंदर बने कमरो की तरफ आ गयी थी ...

मैत्री की बात सुनकर उसके पापा जगदीश प्रसाद उसे अपनी बांहो मे जकड़ कर रोते हुये बोले- नही मेरी गुड़िया मै कमजोर नही पड़ रहा हूं... तू मेरे कलेजे का टुकड़ा है मेरी बच्ची और कलेजे का टुकड़ा दूर जा रहा हो तो एक बाप अपने आंसुओ को कैसे रोक सकता है.... 

मैत्री ने रोते हुये अपने पापा जगदीश प्रसाद के आंसू पोंछे और कहा- तो क्यो दूर भेज रहे हैं.... रोक लीजिये ना पापा मुझको... मैने तो कभी आपसे किसी भी चीज की मांग नही की फिर किस गलती की सजा दे रहे हैं आप मुझे अपने आप से दूर करके.... 

जगदीश प्रसाद ने कहा- बेटा एक बेटी के पिता का आखरी फर्ज होता है ईश्वर की बनायी इस दुनिया को आगे बढ़ाने के लिये अपनी बेटी का दान करना... बस ये समझ ले कि आज तेरे पिता का जीवन सार्थक हो गया... और मुझे पूरा यकीन है कि जो आज मेरी आंखो मे तुझसे दूर होने की वजह से दुख के आंसू आ रहे हैं ना ये बहुत जल्दी तेरी खुशियो को देखकर खुशी के आंसुओ मे बदल जायेंगे... मुझे जतिन जी पर अटूट विश्वास है... 

"और मै ये विश्वास कभी नही टूटने दूंगा" 

ये बात सुनकर सुनील समेत मैत्री और उसके पापा जगदीश प्रसाद ने नजर उठाकर कर कमरे के दरवाजे की तरफ देखा तो सामने जतिन खड़ा था.... मैत्री को अंदर गये हुये काफी देर हो गयी थी इसलिये वो भी अंदर की तरफ चला आया ये देखने कि आखिर मैत्री को इतनी देर क्यो हो रही है.... इधर जतिन को देखकर मैत्री खड़ी हो गयी और सुनील ने जगदीश प्रसाद को सहारा देकर खड़ा कर दिया... जतिन को देखकर जगदीश प्रसाद फफकते हुये हाथ जोड़कर बोले- बेटा मेरी बेटी ने बहुत कष्ट सहे हैं.. अब उसकी खुशियो का सारा दरोमदार आप पर ही है... शादी के आयोजन मे किसी तरह की कोई गलती हो गयी हो तो हमे माफ कर देना पर मैत्री से कुछ मत कहना... मेरी बच्ची बहुत निर्मल और कोमल है.... 

अपने ससुर जगदीश प्रसाद को इस तरह बेबस से लहजे मे हाथ जोड़कर अपनी बात कहते देख सीधे सच्चे और साफ  दिल वाले जतिन से रहा नही गया और आगे बढ़कर उन्हे गले से लगाते हुये जतिन ने कहा- अरे नही बाउ जी... माता पिता बच्चो के सामने हाथ जोड़े ये तो बच्चो के लिये शर्म की बात है... मै अपनी मम्मी की कसम खाकर कहता हूं कि मैत्री को किसी भी चीज की कमी नही रहने दूंगा... मैत्री को अपने नये परिवार से प्यार और सम्मान के शब्दो के अलावा कुछ नही मिलेगा.... हम सब मैत्री का बहुत ध्यान रखेंगे... और मै तो कहता हूं कि आप और माता जी भी हमारे साथ चलो... यहां अकेले रहकर क्या करोगे आप लोग... वहां सब साथ मे रहेंगे तो मैत्री को भी अच्छा लगेगा.... 

जतिन की साथ रहने वाली बात सुनकर घबरायी और डरी मैत्री एकदम से बोली- हां पापा साथ चलिये... ये सही कह रहे हैं.... सब साथ मे रहेंगे ना प्लीज चलिये ना... 

जतिन और मैत्री की ये बच्चो जैसी जिद देखकर और जतिन का प्यार पाकर जगदीश प्रसाद हंसने लगे और हंसते हुये बोले- ऐसा नही होता है बेटा... और फिर लखनऊ है ही कितनी दूर कानपुर से जब मिलने का मन होगा तब हम आ जाया करेंगे.... 

मैत्री भी जानती थी कि ये संभव नही है इसलिये अपने पापा की बात सुनकर हल्का सा मुस्कुराई और अपना सिर झुका लिया..... मैत्री को मुस्कुराते देख जतिन ने कहा- देखा बाउ जी.... जैसे ये अभी खुश हुयी ना वैसे ही ये जीवन भर खुश रहेगी.... अब आप रोइयेगा मत... प्लीज... हमे हंसते हुये विदा करिये नही तो मेरा मन भी खराब सा ही रहेगा... और आपकी और माता जी की चिंता लगी ही रहेगी... 

जतिन ने पूरी जिम्मेदारी, सहजता और समझदारी से अपने ससुर और मैत्री के पापा को जिस तरह से इतने प्यार से समझाया उसकी वजह से जगदीश प्रसाद को बहुत तसल्ली मिली और उन्होने जतिन के सिर पर मुस्कुरा कर  हाथ फेरते हुये कहा- भगवान ने मुझे इतनी प्यारी बेटी दी थी और अब इतना संस्कारी बेटा भी दे दिया.... ये मेरा सच मे बहुत बड़ा सौभाग्य है  जो हमे इतना सुलझा हुआ परिवार मिला.... जतिन बेटा मेरे पास शब्द नही हैं उस खुशी को बयान करने के लिये जो मैत्री के साथ आपको देखकर मुझे मिलती है.... 

जतिन की प्यार भरी बाते सुनकर जगदीश प्रसाद तो खुश हो ही गये थे, मैत्री को भी अपने पापा के लिये की गयीं जतिन की बाते सुनकर बहुत सुकून सा मिला था और उसके बेचैन दिल को जतिन के साथ से थोड़ा सुकून सा मिला था... 

मैत्री और उसके पापा जगदीश प्रसाद को समझाने बुझाने के बाद जतिन और सुनील, मैत्री और जगदीश प्रसाद को बाहर लाने लगे.... जहां एक तरफ मैत्री का हाथ सुनील ने पकड़ा हुआ था वहीं जतिन ने अपने ससुर जगदीश प्रसाद को बांहो की तरफ से पकड़ा हुआ था और चारो लोग उस जगह पर आ रहे थे जहां मैत्री का विदाई कार्यक्रम चल रहा था.... बाहर आकर चारो ने देखा कि जतिन की मम्मी बबिता मैत्री की मम्मी सरोज को भी बांहो की तरफ से पकड़ कर बड़े प्यार से समझा रही थीं... और सरोज की आंखो के आंसू पोंछ रही थीं..... सरोज को ऐसे सुबकते देख मैत्री उनके पास गयी और बोली- मम्मा अब नही रोना... बहुत रो चुके हो आप दोनो... अब नही...!!! 

इन सबके पास ही खड़ी मैत्री की दोनो भाभियां नेहा और सुरभि भी मैत्री के दूर जाने के दुख मे दुखी सा मुंह बना कर खड़ी थीं... चूंकि जतिन माहौल को पहले ही हल्का कर चुका था दोनो को देखकर मुस्कुराते हुये नेहा से बोला- आपको क्या हुआ.... आप तो हमारी तरफ से हो... आपका रोना मना है.... 

जतिन की बात सुनकर नेहा हंसने लगी.. और बोली- नही मै नही रो रही मुझे पता है आप मैत्री दीदी का ध्यान हम सबसे भी जादा अच्छे तरीके से रखोगे.... 

भले माहौल मे हल्कापन आ गया था लेकिन विदाई की टीस तो कहीं ना कहीं अभी भी सबके मन मे थी... इसके बाद मैत्री एक एक करके सबके गले मिली और जब अपने चाचा के गले लगी तो फफकते हुये हाथ जोड़कर उनसे बोली- चाचा जी... पापा मम्मी का ध्यान रखियेगा.. वो लोग बहुत अकेले हो जायेंगे मेरे जाने के बाद... 

मैत्री के चाचा वीरेंद्र ने बड़े प्यार से उसे समझाते हुये कहा- बेटा तू बिल्कुल चिंतामुक्त होकर नये जीवन मे प्रवेश कर... हम उनका पूरा ध्यान रखेंंगे तू बिल्कुल चिंता मत कर... 

इन सबसे दूर राजेश मैरिज लॉन के गेट पर लगे पेड़ के नीचे पड़ी कुर्सी मै बैठा सुबक रहा था... राजेश अपनी बहन मैत्री से प्यार भी बहुत करता था... लेकिन वो अपने आंसू मैत्री को नही दिखाना चाहता था क्योकि वो जानता था कि उसे रोते देख मैत्री और दुखी हो जायेगी... राजेश बाहर बैठ कर मैत्री के बारे मे सोच ही रहा था कि उसे मैत्री की आवाज सुनाई दी "भइया".. 

राजेश ने पलट कर देखा तो मैत्री आंखो मे आंसू लिये उसके पास खड़ी थी... राजेश को देखकर मैत्री ने सुबकते हुये कहा- भइया आप नही मिलेंगे मुझसे?? 

राजेश ने अपने आपको बहुत संभाला और संभालते हुये कहा- बेटा मै इसीलिये बाहर बैठा था कि तू पहले सबसे मिल ले फिर मै आराम से तुझसे मिलूंगा और तेरे साथ तुझे कार मे बैठाने चलूंगा.. 

राजेश की बात सुनकर मैत्री भावुक होकर उसके सीने से लग गयी तो राजेश ने उसे समझाते हुये कहा- नही बेटा... रोते नही हैं... आज तो तेरे नये जीवन की शुरुवात हो रही है और किसी भी नयी चीज की शुरुवात हंसते हुये करनी चाहिये... हैना...!! 

मैत्री को समझाते हुये अपने बड़प्पन का एहसास कराते हुये राजेश ने उसे कार मे बैठा दिया.... मैत्री अब भी सुबक रही थी और आशाओ भरी नजरों से अपने मम्मी पापा और परिवार के अन्य सदस्यो की तरफ देखकर सोच रही थी कि "थोड़ी देर के लिये तो रोक लो, आप सबको छोड़कर जाने का बिल्कुल भी मन नही हो रहा है".... लेकिन ऐसा होता कहां है... इसीलिये कहते हैं कि जाने वाले को कोई नही रोकता...!! 

मैत्री के साथ कार मे पीछे की सीट पर इस बार एक तरफ ज्योति और दूसरी तरफ बबिता बैठे थे.... सबसे विदा लेकर आंखो मे आंसू लेकर मैत्री वहां से विदा हो गयी... मैत्री की कार धीरे धीरे आगे बढ़ रही थी... और उसके मम्मी पापा, चाचा चाची, राजेश नेहा और सुनील सुरभि सब लोग तब तक उसकी कार को खड़े होकर देखते रहे और सुबकते रहे जब तक कार उनकी आंखो से ओझल नही हो गयी... 

क्रमशः