अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 18 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 18

मैत्री की फोटो देखकर जतिन जैसे मैत्री के चेहरे की मासूमियत मे खो सा गया था, इधर राजेश अपनी बात किये जा रहा था लेकिन जतिन को जैसे कुछ सुनाई ही नही दे रहा था, राजेश ने अपनी बात कहते कहते जतिन को आवाज लगाते हुये कहा- जतिन... जतिन...!!

राजेश की आवाज सुनकर जतिन ऐसे चौंक के उसकी तरफ देखने लगा जैसे वो किसी गहरे खयाल मे खोया हुआ हो, राजेश के आवाज लगाने पर अपने होश मे वापस आये जतिन ने गहरी सांस ली और अपनी कुर्सी से टेक लेकर बैठ गया और राजेश की तरफ उसका मोबाइल बढ़ाते हुये बोला - राजेश भाई तुमने थोड़ी सी देर कर दी असल मे मेरे घरवाले मेरे रिश्ते की बात कहीं और चला चुके हैं, घर मे सब खुश भी हैं उस रिश्ते से और ऐसे मे मैं ना तो तुम्हे अंधेरे मे रख सकता हूं और ना ही उन लड़की वालों को, मुझे समझ नही आ रहा कि मै तुमसे कैसेे माफी मांगू तुम्हारी बात से इन्कार करने के लिये... (अपनी बात कहते कहते जतिन ने राजेश के सामने हाथ जोड़ते हुये कहा) राजेश भाई मुझे माफ करना पर मै अपने घरवालो के खिलाफ नही जा सकता...

जतिन की संजीदगी से कही गयी इस बात के बाद राजेश ने उससे कहा- अरे जतिन भाई इसमें माफी मांगने वाली क्या बात है ये तो बहुत खुशी की बात है कि तुम्हारे जीवन की एक नयी शुरुवात हो रही है और जरूरी तो नही है ना कि जो हम चाहें वो हमें मिल ही जाये, मैने तो बस ऐसे ही बात चला ली थी क्योकि मै तुम्हे आज से नही बल्कि काफी सालों से जानता हूं और मुझे लगा था कि मैत्री तुम्हारे साथ बहुत खुश रहेगी और इस दुनिया का कौन सा ऐसा भाई होगा जो अपनी बहन की खुशी नही चाहेगा तो मैने बस यही सोचकर तुमसे बात करली थी, अपने दिल पर कोई बोझ मत रखना दोस्त ये सब तो चलता रहता है, मै सच्चे दिल से तुम्हे तुम्हारे आने वाले नये जीवन के लिये शुभकामनायें देता हूं... हमेशा खुश रहो!!

राजेश की बाते सुनकर जतिन बुझे बुझे तरीके से मुस्कुराने लगा और अपनी बात खत्म करने के बाद राजेश ने कहा- अच्छा जतिन भाई मै चलता हूं काफी टाइम हो गया है और अभी घर पंहुचने मे भी तीन से चार घंटे लग जायेंगे...

राजेश की जाने की बात कहने पर जतिन ने थोड़ी ग्लानि मे डूबी आवाज और उतरे हुये चेहरे से कहा- अब.. मै कैसे कह सकता हूं कि तुम जाओ जैसा तुम्हे ठीक लगे राजेश भाई...

जतिन के ऐसा कहने पर राजेश मुस्कुराया और "चलो ठीक है मै चलता हूं" कहकर और जतिन से हाथ मिलाकर उसके ऑफिस से चला गया, एक तो जतिन के मन मे मैत्री को लेकर एक अजीब सी बेचैनी हो रही थी दूसरा अपने इतने पुराने दोस्त को इतने महत्वपूर्ण मुद्दे पर मना करने की आत्मग्लानि वो महसूस कर रहा था इसलिये उसे समझ ही नही आया कि वो राजेश से क्या बोले और इसीलिये वो आज राजेश को छोड़ने नीचे तक भी नही जा पाया, उसे ऐसा लगा जैसे उसके पैर हिम्मत ही नही कर पा रहे राजेश को छोडने के लिये नीचे गेट तक जाने की...

इधर राजेश जो बहुत जादा उम्मीद लेकर जतिन के पास आया था उसे अंदर ही अंदर मैत्री के भविष्य के बारे मे सोचकर बहुत दुख हो रहा था, उसे आज के पूरे प्रकरण मे सिर्फ और सिर्फ अपनी गलती नजर आ रही थी, उसे ऐसा लग रहा था कि मुझे मैट्रीमोनियल साइट्स के लफड़े मे पड़ने के बजाय जतिन से पहले ही बात कर लेनी चाहिये थी अगर मै पहले बात कर लेता तो आज मेरे ताऊ जी के घर मे अनगिनत खुशियां आ जातीं....

यही सब सोचते हुये राजेश उदास सा कानपुर रेल्वे स्टेशन मे बैठा लखनऊ की ट्रेन का इंतजार कर रहा था, ये सब सोचते सोचते राजेश की आंखे भीग गयी थीं उसका मन कर रहा था कि वो रोने लगे लेकिन जैसे तैसे उसने अपने आप को बस संभाला हुआ था....

लेकिन आज के पूरे प्रकरण के बाद सिर्फ राजेश ही नही था जो दुखी और परेशान था, राजेश के जाने के बाद अपने ऑफिस मे बैठा जतिन भी बहुत जादा गिल्ट महसूस कर रहा था और इसी गिल्ट मे वो आंखे बंद किये हुये अपने केबिन मे बैठा हुआ था, उसकी बंद आंखो के सामने बस मैत्री की वो निर्मल, निश्छल और उदासी से भरी मुस्कुराहट थी उसे अभी भी ऐसा महसूस हो रहा था जैसे मैत्री की आंखे अभी भी उससे कुछ कहना चाह रही थीं, वो एक अलग ही लगाव महसूस कर रहा था मैत्री के साथ...

इसी उदासी और बेचैनी मे जतिन जब घर पंहुचा तो उसने देखा कि उसके पापा श्वेता के पापा से फोन पर बात कर रहे थे और वो कह रहे थे कि "ठीक है भाईसाहब मै जतिन से पूछकर आपको बताता हूं कि वो कब श्वेता से मिलने के लिये आ पायेगा, वो जब कहेगा हम सब तभी आपके घर आ जायेंगे और आगे की तैयारियों के लिये सारी बात फाइनल कर देंगे"

जतिन ने अपने पापा की बात सुनी और चुपचाप अपने कमरे मे चला गया, उसने ये भी ध्यान नही दिया कि वहीं ड्राइंग रूम मे ज्योति के पति सागर भी बैठे हुये हैं, असल मे ज्योति प्रेग्नेंट थी और डॉक्टर ने कहा था कि पांचवा महीना लगने के बाद उसे घर पर रहकर पूरी तरीके से आराम करना होगा इसलिये इससे पहले कि पांचवा महीना पूरा होता वो कुछ दिनो के लिये अपने मायके रहने के लिये आयी थी क्योकि इसके बाद कम से कम 6 महीने वो अपने मायके ना आ पाती..

जतिन को ऐसे बिना कुछ बोले घर के दरवाजे से आकर सीधे अपने कमरे मे जाते हुये देखकर ज्योति के पति सागर भी सोच मे पड़ गये कि "आज ये भइया को क्या हुआ इन्होने मुझ पर ध्यान ही नही दिया...." चूंकि सागर भी एक बहुत सुलझा हुआ और अच्छा इंसान था और जतिन की बहुत इज्जत भी करता था तो उसने कुछ गलत तो नही सोचा बल्कि वो समझ गया कि हो सकता है ऑफिस मे काम को लेकर कोई परेशानी होगी जिसकी वजह से जतिन भइया उदास उदास से दिख रहे थे लेकिन वो ये सोच कर परेशान हो गया कि कहीं ऐसा तो नही कि बिज़नेस को लेकर कोई बड़ी टेंशन हो इसलिये भइया का ध्यान कहीं और हो..!! यही सोच कर सागर ने अंदर कमरे मे अपनी मम्मी के पास बैठी ज्योति को वॉट्सएप मैसेज किया "बाहर आना जरा".... सागर का मैसेज देखकर ज्योति बाहर आयी और बाहर आकर सागर से बोली- क्या हुआ मैसेज भेज के क्यो बुला रहे हैं अंदर आ जाते...

सागर ने कहा- मै तुमसे अकेले मे कुछ कहना चाहता था.. मैने सोचा मम्मी जी के सामने बात करी तो वो बेकार मे चिंता करेंगी..

ज्योति ने कहा- ऐसी क्या बात है, बताइये...?
सागर ने कहा- यार जतिन भइया ऑफिस से घर आये और सिर झुकाये हुये सीधे अपने कमरे मे चले गये, वो काफी उदास लग रहे थे उन्होने शायद नोटिस ही नही किया कि मै भी यहां बैठा हूं...

सागर की बात सुनकर थोड़ी सरप्राइज़ सी हुयी ज्योति बोली- अरे भइया आ भी गये और पता भी नही चला, पक्का उनको किसी बात की टेंशन होगी इसीलिये आपकी तरफ ध्यान नही गया उनका वरना अभी तक तो आपके साथ हंसी मजाक की आवाज आने लगती उनकी....

सागर ने कहा- वही तो...!! यार मुझे भी चिंता सी हो रही है तुम एक बार जाकर भइया से बात करो वो तुम्हे बता देंगे अगर कोई बात होगी तो, मेरे सामने शायद ना बता पायें....

सागर की बात सुनकर ज्योति ने कहा- हां अब तो मुझे भी टेंशन होने लगी है, अच्छा सुनिये मै भइया के पास जाकर उनसे बात करती हूं वरना मुझे उलझन होती रहेगी...

ऐसा कहकर ज्योति अपनी जगह से उठी और जतिन के पास जाने लगी...

क्रमशः